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प्रथम पर्द
आदिनाथ चरित्र हम लोग आपकी सेवामें खबर देनेको आना चाहते ही थे, कि इतने में आपही यहाँ पधार गये" मालियोंकी बात सुनते ही तक्षशिलाधीश बाहुबलि हाथोंसे डाढ़ी पकड़, आँखोंमें आँसू डबडबा, दुःखित होकर चिन्तामग्न हो गया। वह मन-ही-मन विचार करने लगा-"अरे! मैंने विचार किया था, कि आज मैं परिजन सहित स्वामीकी पूजा करूँगा–मेरा यह विचार मरुस्थली में बोये हुथे वीजकी तरह वृथा हुआ। लोगोंके अनुग्रह की इच्छा से मैंनेबहुत देर करदी । अतः मुझे धिक्कार है ! “ऐसे स्वार्थके कारण मेरीमूर्खता ही प्रगट हुई। प्रभुके चरण कमलोंके दर्शनों में विघ्न बाधा उपस्थित करनेवाली इस बैरिन रातको और अधम बुद्धिको धिक्कार है !! इस समय स्वामी मुझे नहीं दीखते, अतः यह प्रभात-प्रभात नहीं; यह यह सूर्य-सूर्य नहीं और ये नेत्र-नेत्र नहीं हैं। हाय ! त्रिभुवन पति रातको इस जगह प्रतिमा रूप से रहे और बेहया–बे शर्मनिलजा बाहुबलि अपने महलमें आनन्द पूर्वक सोता रहा।” बाहु बलिको इस तरह चिन्ता सागरमें गोते लगाते देख, उसका प्रधान मन्त्री शोक रुपी शल्य को विशल्य रूप करने वाली वाणी से यों बोला-“हे देव ! आपने यहाँ आकर स्वामीके दर्शन नहीं पाये इस लिये शोक क्यों करते हो? रञ्जीदा क्यों होते हो? क्योंकि प्रभु तो निरन्तर आपके हृदय में वसते हैं। यहाँ जो उनके वज्र अङ्कश, चक्र कमल, ध्वजा और मत्स्यसे लांछित चरण-चिह्न देखते हैं, इनसे आप यही समझिये कि हम साक्षात् प्रभुको ही देख रहे हैं। मन्त्री की बातें सुनकर, अन्तःपुर और परिवार सहित