________________
२८६
प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र नामकी दो दो देवियाँ प्रतिहारी के रूपमें खड़ी थीं । अन्तिम बाहर के कोटके चारों दरवाज़ोंपर तुम्बस खाटकी पाटी, मनुष्य मुण्डमाली, और जटाजूट मण्डित- इन नामोंके चार देवता द्वारपाल होकर खड़े थे। समवसरण के बीच में व्यन्तरोंने छै मील ऊँचा.एक चैत्य वृक्ष बनाया था। वह रत्नत्रयके उदय का उपदेश देता सा मालूम होता था। उस वृक्षके नीचे अनेक प्रकार के रत्नोंसे एक पीठ बनाई गई थी। उस पीठ पर अप्रतिम मणिमय एक छन्दक बनाया गया था। छन्दकके वीचमें, पूरब दिशाकी ओर, मानों सारी लक्ष्मीका सार हो ऐसा, पादपीठ समेत रत्न-जटित सिंहासन बनाया था और उस के ऊपर तीन लोक के आधिपत्य के चिह्नस्वरुप तीन छत्र बनाये थे। सिंहासन के दोनों ओर दो यक्ष हाथों में दो उज्ज्वल-उज्ज्वल चंवर लिये खड़े थे, जिनसे ऐसा जान पड़ता था, मानों भक्ति उनके हृदयों में न समाकर बाहर निकली पड़ती है। समवसरण के चारों दरवाजों पर अद्भुत कान्ति-समूह वाले धर्म-चक्र सोनेके कमलोंमें रखे थे। और भी जो करने योग्य काम थे, वे सब व्यन्तरों ने किये थे, क्योंकि साधारण समवसरण में वे अधिकारी हैं। ____ अब प्रातः कालके समय, चारों तरह के, करोड़ों देवताओं से घिरकर, प्रभु समवसरण में प्रवेश करने को चले। उस समय देवता हज़ार हज़ार पत्तेवाले सोनेके नौ कमल रचकर अनुक्रमसे प्रभुके आगे रखने लगे। उनमें से दो दो कमलों पर प्रभु पादन्यास करने लगे और देवता उन कमलों को आगे आगे रखने लगे।