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आदिनाथ चरित्र
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3) प्रभुकी यौवनावस्था
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प्रथम पर्व
अंगुष्ट पान करने या अँगूठा चूसने की अवस्था बीतने पर, दूसरी अवस्था में क़दम रखतेही, घर में रहने वाले अर्हन्त सिद्ध पाक किया हुआ यानी पकाया हुआ अन्न खाते हैं; लेकिन भगवान् नाभिनन्दन तो, उत्तर कुरुक्षेत्र से देवताओं द्वारा लाये हुए, कल्पतरु के फलों को खाते और क्षीर समुद्र का जल पीते थे । बीते हुए कलके दिनकी तरह ; बाल्यावस्था को उलङ्घन करके, सूर्य जिस तरह दिनके मध्य भागमें आता है; उसी तरह प्रभुने उस यौवन का आश्रय लिया, जिसमें अवयव विभक्त होते हैं; अर्थात् बचपन से जवानीमें क़दम रखा । भगवान् बालकसे युवक हो गये । यौवनावस्था आजाने पर भी प्रभुके दोनों चरण-कमलके बीचके भागकी तरह मुलायम, सुर्ख, गरम, कम्प-रहित, स्वेदवर्जित और समतल यानी यकसाँ तलवे वाले थे । मानों नम्र पुरुषकी पीड़ा छेदन करने के लिये ही हो, इस तरह उसके अन्दर चक्रका चिह्न था और लक्ष्मी रूपिणी हथिनीको स्थिर करनेके लिएचंचलाको अचल करनेके लिये, माला, अङ्कुश और ध्वजा के भी चिह्न थे; अर्थात् भगवान् के पैरोंके तलवोंमें चक्र, माला, अङ्कुश और ध्वजा पताकाके चिह्न थे । लक्ष्मीके लीला-भुवन-जंसे प्रभु के चरणों के तलवोंमें शङ्खऔर घड़े की एवं एड़ीमें स्वस्तिक का चिह्न था। प्रभुका पुष्ट, गोलाकार और सर्पके फण जैसा उन्नत अँगूठा
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