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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पब
तभीसे वे लोग अपने तई जेवर और कपड़ोंसे अलंकृत करने लगे। लोगोंने पहले जिस तरह प्रभुका पाणिग्रहण होते देखा था, उसी तरह आजतक पाणिग्रहण करते हैं, क्योंकि बड़े लोगोंका चलाया हुआ मार्ग निश्चल होता है। जिनेश्वरने विवाह किया उसी दिनसे दूसरेकी दी हुई कन्याके साथ विवाह होने लगे और चूड़ा कर्म, उपनयन आदिकी पूछ भी उसी समयसे हुई। यद्यपि ये सब क्रियाएँ सावध हैं, तथापि अपने कर्त्तव्य या फ़र्जको समझने वाले प्रभुने, लोगों पर दया करके ये चलाई। उनकी हो करतूतसे पृथ्वीपर आजतक कला-कौशल आदि प्रचलित हैं। उनको इस समयके बुद्धिमान विद्वानोंने शास्त्र-रूपसे ग्रथित किया है। स्वामीकी शिक्षासे ही सब लोग दक्ष-चतुर हुए, क्योंकि उपदेश बिना मनुष्य पशु तुल्य होते हैं।
प्रभु द्वारा प्रजापालन । विश्व-संसारकी स्थिति रूपी नाटकके सूत्रधार-प्रभुने उग्र, भोग, राजन्य और क्षत्रिय-इन चार भेदोंसे लोगोंके कुलोंकी रचना की। उग्र दण्डके अधिकारी आरक्षक पुरुष उग्र कुलवाले हुए ; इन्द्रके त्रायस्त्रि'श देवताओंको तरह प्रभुके मन्त्री आदि भोग कुल वाले हुए ; प्रभुकी उम्रवाले यानी प्रभुके समवयस्क लोग राजन्य कुल बाले हुए ; और जो बाकी बचे वे क्षत्रिय हुप । इस तरह प्रभु व्यवहार नीतिकी नवीन स्थिति की रचना करके, नवोढ़ा स्त्रीकी तरह, नवीन राज्यलक्ष्मीको भोगने लगे। जिस तरह