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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र
पूर्ण दृष्टिपात रूपी अमृत के पीने की इच्छा से, उनके अगल-बग़ल, क्रौंच पक्षी का रूप धरकर, मध्यम स्वर से बोलते थे। कितने ही प्रभु के मन की प्रीति के लिये, कोयलका रूप धरकर, नजदीक के वृक्षपर बैठकर, पञ्चम स्वर से गाते थे। कितने ही प्रभु के वाहन या चढ़ने की सवारी होकर, अपने आत्मा को पवित्र करने की इच्छा से, घोड़े का रूप धरकर, धैवतध्वनि से हिनहिनाते हुए प्रभु के पास आते थे। कितने ही हाथी का रूप धरकर, निषाद स्वर से बोलते और नीचा मुंह करके अपनी सूड़ों से प्रभु के चरण स्पर्श करते यानी पैर छूते थे। कोई बैल का रूप बनाकर, अपने सींगों से तट प्रदेश को ताड़न करते और बैलकी सी आवाज़से बोलते हुए प्रभुकी दृष्टिको विनोद कराते थे। कोई अञ्जनाचल सुरमेके पहाड़-जैसे बड़े-बड़े भैंसे बन कर आपस में लड़ते हुए, प्रभुको लड़ाई का खेल दिखाते थे। कोई प्रभु के दिल. बहलावके लिये, मल्ल-रूप धारण करके, खम्भ ठोक-ठोक कर, अखाड़ेमें एक दूसरे को बुलाते थे। इस प्रकार योगी जिस तरह परमात्माकी उपासना करते हैं,उसी तरह देवकुमार अनेक प्रकार के खेल तमाशोंसे प्रभु की उपासना करते थे । एक ओर ये सब काम होते थे और दूसरी ओर उद्यानपालिकाओं अथवा मालिनों द्वारा वृक्षों का लालन-पालन होने से जिस तरह वृक्ष बढ़ते हैं ; उसी तरह पाँचों धायों के सावधानी से लालन-पालन किये हुए प्रभु क्रम से बढ़ने लगे,