________________
आदिनाथ-चरित्र २१६
प्रथम पर्व रेशमी कपड़े पहनाकर, और उन्हें बिठा कर उनके बालोंसे मोतियों की वर्षाका भ्रम करने वाला जल नीचे टपकाया । धूप रूपीलतासे सुशोभित उनके ज़रा-ज़रा गीले बाल दिव्य धूपसे धूपित किये। सोने पर जिस तरह गेरूका लेप करते हैं; उसी तरह उन स्त्रीरत्नोंके अङ्गोंको सुन्दर अङ्गरागसे रञ्जित किया। उनकी गर्दनों, भुजाओंके अगले भागों, स्तनों और गालों पर मानों कामदेवकी प्रशस्ति हो, इस तरह पत्र-वल्लरी की रचना की। मानो रतिदेवके उतरनेका नवीन मंडल हो ऐसा चन्दनका सुन्दर तिलक उनके ललाटों पर किया। उनकी आँखोंमें नील कमलके बनमें आने वाले भौंरेके जैसा काजल आँजा। मानो कामदेवने अपने शस्त्र रखनेके लिये शस्त्रागार बनाया हो, इस तरह खिले हुए फूलों की मालाओं से उन्होंने उनके सिर किये। माथा-चोटी और माँग पट्टी करनेके बाद, चन्द्रमाकी किरणोंका तिरस्कार करने वाले लम्बे-लम्बे पल्लेवाले कपड़े उन्हें पहनाये । पूरब और पश्चिम दिशाओंके मस्तकों पर जिस तरह सूरज और चाँद रहते हैं, उसी तरह उनके मस्तकों पर विचित्र रत्नोंसे देदीप्यमान दो मुकुट धारण कराये । उनके दोनों कानोंमें, अपनी शोभा से रत्नोंसे अङ्करित हुई पृथ्वीके सारे गर्वको खर्च करने वाले, मणिमय कर्णफूल और झूमके पहनाये। कर्णलताके ऊपर, नवीन फूलोंकी शोभाकी विडम्बना करने वाले मोतियोंके दिव्य कुण्डल पहनाये। कर्णमें विचित्र माणिककी कान्तिसे आकाशको प्रकाशमान करने वाले और संक्षेप किये हुए इन्द्र धनुषकी शोभाका निरादर