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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र सेनापतिके बुलानेसे आये हुए, साठ हजार सामानिक देव और इनसे चौगुने आत्मरक्षक देव एवं अन्य त्राय त्रिशक प्रभृति देवों सहित, चमरेन्द्र की तरह अमन्द आनन्दके मन्दिर रूप मेरू पर्वत पर आया । नाग कुमारका धरण नामक इन्द्र मेधस्वरा नामकी घण्टी बजवाकर, भद्रसेन नामके अपनी पैदल सेनाके सेनापति द्वारा बुलाये हुए छः हज़ार सामानिक देवताओं और उनसे चार गुने आत्मरक्षक देव, छः पटरानी एव' अन्यभी नागकुमारके देवोंको साथ लेकर दो लाख मील लम्बे चौड़े और दो हज़ार मील ऊँचे और इन्द्र ध्वजसे सुशोभित विमानमें बैठकर भगवान्के दर्शनके लिए उत्सुक होकर मन्दराचल या मेरु पर्वत के ऊपर क्षणभरमें आया। भूतानन्द नामक नागेन्द्र, अपनी मेधस्वरा नामकी घण्टी बजवाकर दक्ष नामक सेनापति द्वारा बुलाये हुए सामानिक प्रभृति देवताओं सहित अभियोगिक देवताके बनाये हुए विमानमें बैठकर, तीन लोकके नाथसे सनाथ हुए मेरु पर्वत पर आया। उसी तरह विद्यु तकुमारके इन्द्र हरि और हरिसह, सुवर्णकुमारके इन्द्र वेणुदेव और वेणुदारी, अग्निकुमार के इन्द्र अग्निशिख़ और अग्निमाणव वायुकुमारके इन्द्र बेलम्ब
और प्रभञ्जन स्तनित कुमारके इन्द्र सुषोध और महा धोष, उदधी कुमारके इन्द्र जलकान्तक और जलप्रभ, द्वीप कुमारके इन्द्र पूर्ण और अविष्ट एवौं दिक्कुमारके इन्द्र अमित और अमितवाहन भी वहाँ आये।