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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व में, चन्द्रका योग होते ही, वज्रनाभ का जीव, तेतीस सागरोपम आयु भोगकर, सर्वार्थ सिद्ध विमानसे च्यवकर, जिस तरह मानसरोवरसे गङ्गातटमें हंस उतरता हैं उसी तरह, नाभि कुलकर की स्त्री-मरुदेवा–के पेटमें अवतीर्ण हुआ। जिस समय प्रभु गर्भमें आये उस समय, प्राणिमात्रके दुःखका विच्छेद होनेसे, त्रिलोकी में सुख हुआ और सर्वत्र बड़ा प्रकाश फैला। जिस रातको देवलोकसे च्यवकर प्रभु माता के गर्भ में आये, उस रातको निवास-भवनमें सोई हुई मरुदेवाने चौदह महास्वप्न देखे। उन्होंने उन स्वप्नोंमें से पहले स्वप्नमें एक उज्ज्वल वृषभ या बल देखा,जिसके कन्धे पुष्ठ थे, पूँछ लम्बी और सरल थी और जो सोनेके घुघुरुओं की माला पहने हुए बिजली समेत शरदऋतु के मेघके समान था। दूसरे स्वप्नमें उन्होंनेसफेद रङ्गका, क्रमोन्नत, निरन्तर झरते हुए मदकी नदीसे रमणीय, चलते हुए कैलाश-जैसा-चार दाँत वाला हाथी देखा। तीसरे स्वप्नमें उन्होंने-पीले नेत्र, दीर्घ जिला और चपल अयालों वाला, शूरवीरोंकी जयपाताकाकी तरह दुम हिलाता हुआ—केशरीसिंह देखा । चौथेस्वप्नमें उन्होंने-कमलनयनी पम-निवासिनी अगल-बग़ल अपनीटू डोंमें पूर्ण कुम्भ उठाये हुए दिग्गजोंसे शोभायमान-लक्ष्मी देखी। पांचवें स्वप्नमें उन्होंने देववृक्षोंके फूलोंसे गुथी हुई, सीधी और धनुर्धारियोंके चढ़ाये हुए धनुषके समान लम्बी-फूलोंकी माला देखी। छठेस्वप्नमें उन्होंनेअपने मुखके प्रतिबिम्बके समान, आनन्दका कारण रूप, अपने