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प्रथम पर्व
१११ आदिनाथ-चरित्र वे वहाँ से च्यवे अर्थात् उनका उस लोक से दूसरे लोकके लिये पतन हुआ; क्योंकि मोक्ष के सिवा और किसी भी जगह में स्थिरता नहीं है, अर्थात् जबतक मोक्ष नहीं होती, तबतक प्राणी को नित्य शान्ति नहीं मिलती। वह एक स्थान में सदा नहीं रहता। एक लोक से दूसरे लोक में, दूसरे से तीसरे में,—इसी तरह घूमा करता है। एक शरीर छोड़ता है, और दूसरा शरीर धारण करता है । शरीर त्यागने और धारण करने का झगड़ा एकमात्र मोक्षसे ही मिटता है। मोक्ष हो जाने से प्राणी को फिर मरना और जन्म लेना नहीं पड़ता।
ग्यारहवाँ और बारहवाँ भव*।
वज्रसेन के पुत्र-जन्म।
वजनाभ को राजगद्दी ।
वज्रसेन को वैराग्य । जम्बू द्वीप के पूर्व, विदेह-स्थित पुष्कलावती विजय में, लवणसमुद्र के पास, पुण्डरीकिनीनाम कीनगरी है । उस नगरी के राजा वज्रसेन की धारणी नाम की रानी की कोख से, उनमें से.पाँचने, अनुक्रम से, पुत्ररूप में जन्म लिया। उसमें जीवानन्द वैद्य का जीव, चतुर्दश महास्वप्नों से सूचित वज्रनाभ नामक पहला पूत्र हुआ।