________________
आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पव
तरह, यह वृत्तान न तो छिपाया ही जा सकता है और न प्रकट ही किया जा सकता है।'
इस तरह कहकर और कपटके आँसू दिखाकर अशोकदत्त चुप होगया। निष्कपट सागरचन्द्र मनमें बिचार करने लगा'अहो ! यह संसार असार है, जिसमें ऐसे पुरुषों कोभी अकस्मात् ऐसे सन्देहके स्थान प्राप्त हो जाते हैं। धूआँ जिस तरह अग्नि की सूचना देता है, उसी तरह, धीरज से न सहे जाने योग्य, इसके भीतरी उद्व गकी इसके आँसू, ज़बर्दस्ती, सूचना देते हैं।' इस तरह चिरकाल तक विचार करके, उसके दुःखसे दुखी सागरचन्द्र गद्गद स्वरसे इस प्रकार कहने लगा-'हे बन्धु ! यदि अप्रकाश्य न हो, कहने में हर्ज न हो, तो अपने इस उद्वेगके कारणको मुझसे इसी समय कहो और अपने दुःखका एक भाग मुझे देकर अपने दुःखकी मात्रा कम करो।' __अशोकदत्तने कहा-'प्राण-समान आपसे जब मैं कोईभी बात छिपाकर नहीं रख सकता, तब इस वृत्तान्तको ही किस तरह छिपा सकता हूँ? आप जानते हैं कि, अमावस्याकी रात जिस तरह अन्धकारको उत्पन्न करती है, उसी तरह स्त्रियाँ अनर्थको उत्पन्न करती हैं।'
सागरचन्द्रने कहा-'भाई ! इस समय तुम नागिनके जैसी किसी स्त्रीके संकट में पड़ेहो?” _ अशोकदत्त बनावटी लजाका भाव दिखाकर बोला:-'प्रियदर्शना मुझसे बहुत दिनोंसे अनुचित बात कहा करती थी; परन्तु