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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र किया और उसकी इच्छा न होनेपर भी उसे अपने कन्धेपर बिठा लिया। परस्पर-दर्शनके अभ्याससे; उन दोनों मित्रोंको, जरा देर पहले किये हुए काम की तरह, पूर्वजन्मका स्मरण हुआपहले जन्म की याद आगई। उस समय, चार दाँतोंवाले हाथीपर बैठे हुए सागरचन्द्रको, विस्मयसे उत्तान नेत्रोंवाले दूसरे युगलिये, इन्द्रके समान देखने लगे। चूंकि वह शङ्ख कुन्दपुष्प और चन्द्रजैले निर्मल हाथीपर बैठा हुआ था : इसलिये युलिये उसे विमलवाहन नामसे पुकारने या बुलाने लगे। जाति-स्मरणसे सब तरहकी नीतिको जाननेवाला, विमल हाथीके वाहनवाला और स्वभावसे ही स्वरूपवान वह सबसे अधिक या ऊँचा हुआ। कुछ समय बीतनेके बाद, चारित्रभ्रष्ट यतियों की तरह, कल्पवृक्षोंका प्रभाव मन्दा पड़ने लगा। मानो दुर्दैवने फिरसे दूसरे लगाये हों, इस तरह मद्यांग कल्पवृक्ष अल्प और विरस मद्य विलम्बसे देने लगे। भृतांग कल्पवृक्ष, मानो दें कि नहीं, ऐसा विचार करते हों और परवश हों इस तरह, माँगनेपर भी विलम्बसे पात्र देने लगे। तूर्या ग कल्पवृक्ष, बेगारमें पकड़े हुए गन्धों की तरह, जैसा चाहिये वैसा, गाना नहीं करते थे। बारम्बार प्रार्थना करनेपर भी, दीपशिखा और ज्योतिष्क कल्पवृक्ष, जिस तरह दिनमें दीपक की शिखा प्रकाश नहीं करती ; उसी तरह वैसा प्रकाश नहीं करते थे। चित्रांग कल्पवृक्ष भी, दुर्विनीत सेवककी तरह, इच्छा करतेही तत्काल, फूलोंकी मालाएँ नहीं देते थे। चित्ररस कल्पवृक्ष, दानकी इच्छा क्षीण सदा