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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पवे
गया। अतः हे महाराज! आप अपने पितामह की कही उन बातों को याद करके, परलोक का अस्तित्व मानिये; कोंकि जहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण हो, वहाँ और प्रमाणों की कल्पना की क्या जरूरत?
स्वयंबुद्ध का कहा हुआ पिछला इतिहास ।
राजा ने कहा-'तुमने मुझे पितामह की कही हुई बातों की याद दिलाई, यह बहुत अच्छा काम किया। अब मैं धर्मअधर्म जिसके कारण हैं, उस परलोक को दिलसे मानता हूँ। राजा की आस्तिकता-पूर्ण बातें सुनकर, ठीक मौका देखकर, मिथ्याष्टियों की बाणी-रूप धूल में मेघ की तरह, स्वयंबुद्ध मंत्री ने इस तरह कहना आरम्भ किया:-'हे महाराज ! पहले आपके वंश में कुरुचन्द्र नामका राजा हुआ था। उस के कुरुमती नाम की एक स्त्री और हरिश्चन्द्र नामका एक पुत्र था। वह राजा क्रूरकर्मी, परिग्रहकर्ता, अनार्यकार्य में अग्रसर, यमराज के समान निर्दयी, दुराचारी और भयङ्कर था; तोभी उसने बहुत समय तक राज्य भोगा। क्योंकि पूर्वोपार्जित पुण्य का फल अप्रतिम होता है। उस राजा को, अवसान-काल में, धातुविपर्यय का रोग हो गया और वह निकट आये हुए नरक के क्लेशों का नमूना हो गया। इस रोग से, उसकी रूई की भरी हुई शय्या काँटों की सेज के समान हो गई। नरम गुदगुदा पलँग शूलों की तरह चुभने लगा। सरस भोजन नीम के रस