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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
सत्पुरुष सर्वत्र दयासे ही काम लेते हैं। इस के बाद, जीवानन्द ने, अमृतरस - समान प्राणी को जिलानेवाले, गोशीर्ष चन्दन का लेप करके मुनि की आश्वासना की । इस तरह पहले चमड़े के भीतर के कीड़े निकले । तब उन्हों ने फिर तेल की मालिश की। उस से उदानवायु से जिस तरह रस निकलता है; उस तरह मांस के भीतर के बहुत से कीड़े निकल पड़े। तब, पहले की तरह फिर रत्न- कम्बल उढ़ाया गया। इसबार जिस तरह दो तीन दिन के दही के कीड़े अलता के ऊपर तिर आते हैं; उसी तरह कीड़े उस कम्बल पर तिर आये। उन्होंने वे फिर मरी हुई गाय पर डाल दिये । अहो ! कैसा उस वैद्य का बुद्धि-कौशल था । उसने कमाल किया। पीछे, मेघ जिस तरह गरमी से पीड़ित हाथी को शान्त करता है; उन्हों ने उसी तरह गोशीर्ष चन्दन के एस की धारा से मुनि को शान्त किया। कुछ देर बाद, उन्होंने तीसरी बार तैल मर्दन किया । उस समय हड्डियों में रहनेवाले कीड़े भी बाहर निकल आये; क्योंकि बलवान पुरुष हृष्ट-पुष्ट हो तो बज्र के पींजरे में भी नहीं रहता । उन कीड़ों को भी रत्नकम्बल पर चढ़ाकर, उन्होंने उन्हें भी गाय की लाशपर डाल दिया । सच है, नीच को नीच स्थान ही घटता है । पीछे उस वैद्य शिरोमणि ने परम भक्ति से, जिस तरह देवता को विलेपन करते हैं उसी तरह; मुनि के गोशीर्ष चन्दन का लेप किया । इस तरह चिकित्सा करने से मुनि निरोग और नवीन कान्तिमान होगये और उजाली हुई सोने की मूर्त्ति की तरह शोभा पाने लगे । अन्त