________________
प्रथम पव
आदिनाथ चरित्र निर्नामिका का वृत्तान्त। इधर स्वयंबुद्ध मन्त्री को अपने स्वामी की मृत्यु से वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने श्री सिद्धाचार्य नामक आचार्य से दीक्षा ली। बहुत समय तक अतिचार रहित व्रत पालन करके वह मर गया और ईशान देवलोकमें इन्द्रका दृढ़धर्मा नामक सामानिक देव हुआ। उस उदार बुद्धिवाले देव का हृदय, पूर्व-जन्म के सम्बन्धसे, बन्धु की तरह, प्रेम से पूर्ण हो उठा। उसने वहाँ आकर, ललिताङ्ग देव को आश्वासन देने के लिए कहा :-“हे महासत्व ! केवल स्त्रीके लिए आप ऐसा मोह क्यों करते हैं ? धीर पुरुष प्राण-त्याग का समय आ जाने पर भी इस हालत को नहीं पहुँचते।" ललिताङ्ग देव ने कहा :-“हे बन्धु ! आप ऐसी बातें क्यों करते हैं ? पुरुष प्राणों का विरह तो सह सकता है ; पर कान्ता का विरह नहीं रह सकता। इस संसार में एक मात्र मृगनयनी कामिनी ही साग्भूत है* : क्योंकि उस एक के विना सारी सम्पत्तियाँ असार
8 महाराजा भर्तृहरिकृत' शृङ्गारशतक में भी एक जगह लिखा है :
हरिणोप्रेक्षणा यत्र गृहिणी न विलोक्यते।
सेवितं स सम्पदभिरपि तद भवनं वनं ॥ जिस घर में मृगनयनी गृहिणी नहीं दीखती, वह घर सव सम्पत्तिसम्पन्न होने पर भी वन है।
अगर आप को मुनि-मनमोहनी कामिनियों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करना है, उन के हासविलास लीला और नाज नखरों का आनन्द लेना है ; तो आप कलकत्तं की सुप्रसिद्ध हरिदास एण्ड कम्पनी से सेचित्र 'शृङ्गार