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आदिनाथ-चरित्र दुप-योग से ही मिलते है। जो अपने मनुष्यभव का फल ग्रहण नहीं करना, वह बस्तीवाले शहर में चोरों से लुटे हुए के समान है। इसवास्ते कवचधारी महाबल कुमार को राज्य-भार सौंप कर ---उ० । गद्दी पर बिठाकर, में अपनी इच्छा पूरी करूँ ।' मन-हीमन ऐसे विचार करके, राजा शतबल ने अपने पुत्र कुमार महाबल को अपने निकट बुलवाया और उस विनीत-नम्र, सुशील गजकुमार को राज्य-भार ग्रहण करने-राजकी बागडोर अपने हाथों में लेने का आदेश किया। महात्मा पुरुष गुरुजनो को
आज्ञा भंग करने में बहुत डरते हैं, इस काम में वे पूरे कायर होते हैं: अतः राजकुमार ने, पिता की आज्ञा से, राजकाज हाथ में लेना और चलाना मंजूर कर लिया। राजा शतबलने, कुमार की सिंहासनारूढ़ करके, उसका अभिषेक और तिलक-मंगल अपने ही हाथों से किया। मुचकुन्द के पुष्पों की सी कान्तिवाले चन्दन के तिलक से, जो उसके ललाट पर लगाया गया था, नवीन राजा ऐसा सुन्दर मालूम होता था, जैसा कि चन्द्रमा के उदय होनेसे उदयाचल मालूम होता है। हंस के पंखों के समान, पिता के छत्र के सिरपर फिरने से वह ऐसा शोभने लगा, जैसा कि शरद् ऋतु के बादलों से गिरिराज शोभता है । निर्मल बगुलों की जोड़ी से मेघ जैसा शोभता है, दो सुन्दर चलायमान चैवरों से वह वैसा ही शोभने लगा। चन्द्रोदय के समय, समुद्र जिस तरह गम्भीर गरजना करने लगता है ; उसके अभिषेक के समय, दशों दिशाओं को गुंजाने वाली, मंगल ध्वनि उसी तरह गम्भीर शब्द