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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र हेतु हैं, तत्काल नष्ट हो जाती हैं। परिपूर्ण पराक्रम से किया हुआ धर्म, दूसरे जन्म में, कल्याण-सम्पत्ति देने के लिए ज़ामिन रूप होता है । हे स्वामिन् ! बहुत क्या कहूँ ? नसैनी से जिस तरह मनुष्य महल के सर्वोच्च भाग पर चढ़ जाता है, उसी तरह प्राणी बलवान धर्म से लोकाग्र-मोक्ष को प्राप्त होता है। आप धर्म ही से विद्याधरों के स्वामी हुए है ; इसलिये, उत्कृष्ट लाभ के लिये. अब भी धर्म का ही आश्रय लें।
नास्तिक मत-निरूपण ।
___ वाद-विवाद। __ स्वयंबुद्ध मन्त्री के उपरोक्त बातें कहने के बाद, अमावस्या, की रात्रि के समान मिथ्यात्वरूपी अन्धकार की खान रूप और विष-समान विषम बुद्धिवाला संभिन्नमति नाम का मन्त्री बोला.... "अरे स्वयंबुद्ध तुम धन्य हो! तुम अपने स्वामी की अतीव हितकामना करते हो ! डकार से जिस तरह आहार का अनुभव होता है : उसी तरह तुम्हारी वाणी से तुम्हारे अभिप्राय का पता चलता है। सदा सरल और प्रसन्न रहने वाले स्वामी के सुख के लिये, तुम्हारे जैसे कुलीन मंत्री ही ऐसी बातें कह सकते हैं, दूसरा तो कोई कह नहीं सकता ! किस कठोर-स्वभाव के उपाध्याय ने तुम्हें पढ़ाया है। जिससे असमय में वज़ पात-जैसे बचन तुमने स्वामी से कहे। सेवक जब अपने भोग के लिएही स्वामी की सेवा करते हैं ; तब वे अपने स्वामी से-"आप भोग