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प्रथम पर्व
आदिनाथ चरित्र को विषय-भोगों में लगाकर जिन्दगी बसर करने और गुलछरे उडाने वाले विरोध करें, हमारे अच्छे काम में विघ्न-बाधा उपस्थित करें: लेकिन हमको तो स्वामी के हितकी बात कहनी ही चाहिथे। क्या हिरनों के डर से कोई खेत में अनाज बोना बन्द कर देता है ? स्वामी के सच्चे शुभचिन्तक सेवक को विरोधियों के भय और हज़ारों आपदाओं की सम्भावना होने पर भी, अपने पवित्र कर्त्तव्य या फर्ज के अदा करने में आनाकानी न करनी चाहिए। स्वयंवुद्ध मंत्री ने, जो सारे वुद्धिमानों में अग्रणी या अगुआ था, इस प्रकार विचार कर ओर अञ्जलिबद्ध होकर अर्थात् हाथ जोड़ कर राजा से कहा--
स्वयंबुद्ध मंत्री का सदुपदेश । ___ "हे राजन् ! यह संसार समुद्र के समान है। नदियों के जल से जिस तरह समुद्र की तृप्ति नहीं होती; समुद्र के जल से जिस तरह बड़वानल की तृप्ति नहीं होती: प्राणियों से जिस तरह यमराज की तृप्ति नहीं होती; काष्ठ-समूह से जिस तरह अग्नि की तृप्ति नहीं होती; उसी तरह, इस जगत् में, विषय-सुखों से, किसी दशामें भी आत्मा की तृप्ति नहीं होती। प्राणी ज्यों-ज्यों विषयों को भोगता है, त्यों त्यों उसकी उनके भोगने की इच्छा और भी बलवती होती है। नदी-किनारे की छाया, दुर्जन, विषय और सादिक विषधर प्राणी, अत्यन्त सेवन करनेसे, विपत्ति के कारण ही होते हैं। सारांश यह कि, ये जितने ही अधिक सेवन