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आदर्श-जीवन ।
खीमचंदभाई प्रसन्न होकर उठे । आपको दो चार उपदेश देकर अपने घर बड़ोदे चले गये । खीमचंदभाईके हृदयको कोई भी न पहचान सका । किस तरकीबसे वे अपना अभिप्राय सिद्ध कर गये, इस बात का किसीको विचारतक न आया । वे समझते थे कि, अहमदाबाद बड़ा शहर है। यहाँ यदि कुछ गड़बड़ी करूँगा तो छगन कहीं जाकर छिप जायगा और उसे वापिस ढूँढ लाना असाध्य हो जायगा । साधु यहीं तों रहेंगे ही नहीं। जब ये छोटे गाँवमें विहार कर पहुंचेंगे तभी छगनको पकड़ लेनाऊँगा । साधुओंके पास क्या अपने भाईको रहने दूंगा।
'कार्यदक्षो वणिक पुत्रः' के अनुसार अपना कार्य करके वे चले गये।
खीमचंदभाईके एक मुनीम था। जातिका पाटीदार, नामथा भगवानदास । उसकी सुसराल अहमदाबादमें थी । खीमचंदभाई बडोदे जाते समय आपको देखते रहनेकी सूचना भगवानदासके सालेको देते गये । बड़ोदे जाकर भगवानदाससे अपनी सुसराल में एक पत्र लिखवा दिया। उसका आशय यह था कि,छगनको एक दो बार दिनमें देख आना और साधु किधर विहार करते हैं और छगन किनके साथ जाता है इस बातका खयाल रखना । विहार होते ही तारद्वारा सूचना देना ।
मुनीमका साला उपाश्रयमें आया। लोगोंने उसको आनेका
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