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मंत्र अधिकार
नि प्रार्थना सागला Visit our website:- www.jainmuniprarthnasagar.com Email:- muniprarthnasagar@gmail.com
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
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सर्वकार्य सिद्ध मंत्र
_97 मनोवांछित कार्य सिद्धि मंत्र 99 सर्व ऋद्धि सिद्धि प्राप्त मंत्र 101 अत्यंत चमत्कारी मंत्र
102 चिन्ताहरण मंत्र
102 महामंत्रों का महामंत्र
102 सौभाग्य प्राप्ति मंत्र
104 सर्वसम्पत्ति वान बनने का मंत्र 104 कन्या प्राप्त होय मंत्र संतान प्राप्ति मंत्र
106 सुख से प्रसव होय मंत्र
107 ब्रह्मचर्य रक्षक मंत्र सर्वजन प्रसन्न मंत्र श्रोतागण आकर्षण मंत्र मंगलकलश के सामने जपने का मंत्र 109 अभिषेक मंत्रित करने का मंत्र 109 प्रतिष्ठा के समय का मंत्र 109 वेदी में भगवान विराजमान करने का। श्लोक व मंत्र
110 माला शुद्धि मन्त्र
110 अशुभ मुहूर्त भी शुभ हों
110 बुद्धि-वृद्धि-मंत्र
110 रोजगार या नौकरी मिले मंत्र सर्वरक्षा मंत्र
113 नवग्रह शान्ति हेतु विशेष मंत्र
115 सर्व ग्रह शान्ति मंत्र
116 पद्मावती सिद्धि मंत्र
116 कलिकुण्डदण्ड मंत्र
118 ज्वाला मालिनी देवी सिद्धि मंत्र 119
चक्रेश्वरी देवी मंत्र
119 पापभक्षिणी विद्या
120 कर्ण पिशाचिनी सिद्धि मंत्र
120 स्वप्न में शुभा शुभ कहे मंत्र 121 दर्पण में देखते उत्तर मिले
123 श्री पंचांगुली देवी का मंत्र
123 नवरात्रि, दीवाली,शरद पूर्णिमा,सर्वकार्य सिद्धि मंत्र
125 क्षेत्रपाल सिद्धि मंत्र प्रत्येक तीर्थंकर के काल में उत्पन्न क्षेत्रपाल 127 घंटाकर्ण मंत्र
128 अनेक विशेष मंत्र
129 ऋषि-मण्डल मंत्र
129 गायत्री मंत्र मंगल ग्रह निवारण मंत्र कालसर्प दोष निवारण मंत्र केतु राहु ग्रह पीड़ा निवारक मंत्र भगवान पारसनाथ का मूल मन्त्र 130 भगवान महावीर स्वामी का मूल मन्त्र 130 त्रिभुवन सार मंत्र
130 त्रेलोक्य मण्डल विधान जाप 131 सुख शान्ति हेतु प्रतिदिन के लिए जाप 131 मातृका मंत्र सुरेन्द्र मंत्र वर्द्धमान मंत्र
132 महामृत्युञ्जय मंत्र
132 यक्षिणी विद्या
133 सामान की बिक्री का मंत्र 135
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र 136 ऋण मोचन मंत्र व्यापार वृद्धि मंत्र सर्व समृद्धि के लिए मंत्र शान्ति मंत्र सर्व भय निवारण मंत्र सर्वशत्रु शान्त मंत्र उनमत्त करने का मंत्र दुर्जन वशीकरण मंत्र वशीकरण मंत्र पुरुष (राजा)वशीकरण मंत्र उच्चाधिकारी वशी मंत्र पति वशीकरण मंत्र स्त्री वशीकरण मंत्र सासा वशीकरण मंत्र आकर्षण मंत्र मोहन मंत्र स्तम्भक मंत्र विरोध कारक (विद्वेषण) मंत्र पौष्टिक मंत्र परविद्या छेदन मंत्र उच्चाटन मंत्र मारण प्रयोग विरोध विनाशक मंत्र संकट हरण मंत्र सर्व विपत्तियाँ दूर हो मंत्र विघ्नहरण नमस्कार मंत्र क्लेश नाशक मंत्र
170
विवाद विजय मंत्र सर्वत्र विजय मिलती
162 139 क्रोध शान्ति मंत्र
162 140 गृह क्लेश निवारण मंत्र
163 लड़की ससुराल रहे मंत्र
163 सामने वाला सत्य बोले मंत्र
163 झूठे को सत्य करें मंत्र
163 143 वंधीमोक्ष मंत्र
163 व्यंतर बाधा (डाकिनी शाकिनी भूत पिशाच) विनाशक मंत्र
164 145
नजर आदि सर्व दोष निवारण मंत्र 168 निद्रा आने का मंत्र
168 निद्रा स्तंभन मंत्र
168 अग्नि उतारक मंत्र आकाश गमन मन्त्र
170 सर्पविष नाशक मंत्र बिच्छू का जहर नष्ट मंत्र
172 कुत्ते का जहर उतरे मंत्र
173 सर्व विष हरण मंत्र
173 मछली बचावन मंत्र
173 155 चूहे भागे मंत्र
174 157 खटमल भगाने का मंत्र
174 मक्खियाँ भगाने का मंत्र कौआ,तोता-मैना,श्वानबोली-ज्ञान मंत्र 175 सर्व रोग निवारण मंत्र शरीर पीड़ा दृष्टिदोष विनाशक मंत्र 176 सिर दर्द नाशक मंत्र आंख (नेत्र) पीड़ा दूर मंत्र
177 कान (कर्ण)रोग विनाशक मंत्र 178 दांत ,दाढ़,मुख के रोग शांत मंत्र 179 श्वांस,पाद ,पीलिया रोग निवारण मंत्र । 180 पेट रोग निवारण मंत्र
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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वात नष्ट मंत्र अंडकोष-वृद्धि व खालबिलाई मंत्र बाला (नहरवा) मंत्र दाद ,खुजली, घाव, फोड़ा ठीक मंत्र ज्वर नाशक मंत्र बवासीर ठीक मंत्र
औषधि मंत्र बच्चा चुप हो ,बच्चा दूध पीवे मंत्र परदेश गमन लाभ मंत्र खेती संबंधी समस्त मंत्र पुरुष व स्त्रियों की सुन्दरता का मंत्र स्त्रियों का रक्तस्राव बन्द हो मंत्र स्तन पीड़ा नाशक मंत्र चोरी गई वस्तु मिले वृष्टि कारक मंत्र मेघस्तम्भन मंत्र पृथ्वी में से धन निकालने का मंत्र खोया धन व प्राणी प्राप्ति मंत्र अन्य फुटकरमंत्र घर में अन्य पुरुष नहीं आय मंत्र घर के लोग सो जाते मंत्र जुआ में जीत मंत्र अदृश्य होने का मंत्र डूबती नाव बचाने का मंत्र अनाज में कीड़ा नही पड़ने का मंत्र पशु रोग निवारण मंत्र गाय भैंस के दूध बढ़ाने का मंत्र सैनिक घायल नहीं होता मंत्र पथ कीलित हो जाता मंत्र पराधीनता नष्ट मंत्र
186 187 187 188 188 189 190
अपकीर्ति निवारण मंत्र
193 मोक्ष साधन के लिये मंत्र
193 बेचैनी दूर मंत्र
193 भोजन पचाने का मंत्र सम्मान वर्धक एवं लाभ प्रदायक मंत्र 193 कुश्ती जीतने का मंत्र बुरे स्वप्न वा अपशकुन निवारण मंत्र 193 उपसर्गहर स्तोत्र के ऋद्धि, मंत्र व फल 194 कल्याणमंदिर स्तोत्र ऋद्धि-मंत्र विधि 197 कल्याण मन्दिर स्तोत्र ऋद्धि-मन्त्र द्वितीय विधि 205 विषापहार स्तोत्र ऋद्धि- मंत्र 210 भक्तामर स्तोत्र ऋद्धि मंत्र
215 अंकन्याय का चित्र
222-223 तीर्थकर परिचय बोध चार्ट
224 श्री जिनेन्द्रदेव प्राण प्रतिष्ठा मंत्र । 225 गर्भ कल्याणक मंत्र/विधि
225 जन्म कल्याणक मंत्र/विधि
228 तपकल्याणक विधि/मंत्र केवलज्ञान विधि/मंत्र
234 निर्वाण कल्याणक विधि/मंत्र 242 आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु के सूरि मंत्र 243 शासन देवता सूरि मंत्र
244 चरण पादुका प्रतिष्ठा मंत्र
245 शास्त्र (जिनवाणी) प्रतिष्ठा मंत्र 245 गुरु द्वारा दीक्षा(शिष्यव संस्कार)विधि 245 मुनि दीक्षा विधि
247 आर्यिक दीक्षा विधि
252 क्षुल्लक दीक्षा विधि
252 उपाध्याय पद प्रतिष्ठा विधि
253 आचार्य पद प्रतिष्ठा विधि
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र प्रकरण
(1) सर्व कार्य सिद्धि मन्त्र (1) सर्व कार्य सिद्धि मन्त्र- ॐ हीं अहँ अ सि आ उ सा नमः॥ विधि- प्रतिदिन प्रात:काल १०८ बार जाप करें। (2) सर्व कार्य सिद्धि मन्त्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं अहँ नमः। विधि- २५ हजार बार जाप कर मंत्र सिद्धि करें, फिर प्रतिदिन तीन माला जपें। (3) कार्य सिद्धिदायक- ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीं क्लौं ब्लूं अहँ नमः ॥ विधि- प्रतिदिन प्रात:काल १०८ बार जाप करें।। (4) सर्व कार्य सिद्धि मन्त्र- ॐ हीं श्रीं कलि कुण्ड स्वामिने नमः विधि-२१ दिन में सवा लाख जाप करें।। (5) सर्व कार्य सिद्धि मन्त्र- ॐ हीं श्रीं क्लीं ऐं श्री पद्मावती देव्यैनमः॥ विधि- इस मंत्र को २१ हजार जाप से सिद्ध करें। (6) सर्वकार्य सिद्ध मंत्र- (अ) -ॐ ह्रीं अहँणमो सव्वो सहिपत्ताणं ।
(ब)- ॐ ह्रीं अहँणमो विप्पोसहिपत्ताणं। विधि- दोनों में से एक ऋद्धि अवश्य जपें सर्व कार्य सिद्ध होय। इनके लिये ८००० जाप
करने से फौरन काम होता है। खासकर कैद वगैरह के मामले में आजमाया हुआ है। (7) सर्व मनोरथ सिद्ध मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं अ सि आ उ सा चुलु चुलु हुलु हुलु मुलु
मुलु कुलु कुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ४२ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप से सब मनोरथ सिद्ध होते हैं। (8) सर्वकार्य सिद्धि- ॐ महादंडेन भारय भारय स्फोटय स्फोटय आवेशय आवेशय
शीघ्र भजं शीघ्र भजं चूरि चूरि स्फोटि स्फोटि इंद्र ज्वरं एकाहिकं द्वयाहिकं त्रयाहिकं चतुर्दिकं वेलाज्वरं सम ज्वरं दुष्ट ज्वरं विनाशय विनाशय सर्व दुष्टनाशम् सर्व दुष्टनाशम् ॐ (७ बार) र (७ बार) हो स्वाहा स्वाहा यः यः यः।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि- मंत्र को अष्टमी अथवा चतुर्दशी को उपवास करके १०८ बार जपने से यह मंत्र
सिद्ध हो जाता है और यह मंत्र सर्व कार्य के लिये काम देता है। (9) सर्वकार्य सिद्धिमंत्र : ॐ पुरुषकाये अधोराये प्रवेग तो जाय लहु कुरु कुरु स्वाहा। विधि- २१ बार सरसों मंत्रित करके सिर पर धारण करें तो सर्वकार्य सिद्ध होते हैं। (10) सर्वकार्य सिद्धि मंत्र : ॐ णमो अरहंताणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ णमो आयरियाणं
ॐ णमो उवज्झायाणं ॐ णमो लोए सव्व साहूणं ॐ ऐसो पंच णमोकारो ॐ
सव्वपावप्पणासणो ॐ मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं स्वाहा। विधि- यह सर्व मंत्रों का सार है, सर्वकार्य सिद्ध करने वाला है (11) सर्व कार्य सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा नमः । विधि- मन, वचन और काय की शुद्धि पूर्वक त्रिकाल (प्रातः, सायं और मध्याह्न काल) मे
जाप करें तो अवश्य ही लाभ हो। यदि सवा लाख जाप करें तो अति उत्तम है। (12) सर्वकार्य सिद्धिमंत्र : ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं अहँ श्री वृषभनाथ तीर्थंकराय नमः। विधि- मंत्र की विधि पूर्वक सवा लाख जाप करें। (13) सर्वकार्य साधक मंत्र : ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा। विधि- मंत्र की विधि पूर्वक सवा लाख जाप करें। (14) सर्व मनोकामना पूर्ण मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू णमो लोए सव्व साहूणं । विधि- शुभ मुहूर्त में १२५०० जाप करें तो मन वांछित कार्य पूर्ण हों, सर्व कामनाओं की
पूर्ति होय। (15) सर्व कार्य सिद्धि एवं पुत्र प्राप्ति मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं असि आ उ सा चुलु-चुलु
हुलु-हुलु कुलु-कुलु मुलु-मुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा। विधि- यह त्रिभुवन स्वामिनी विद्या बहुत प्रभावशाली है। इसके आगे धूप जलाकर २४
हजार चमेली के फूलों पर जपें तो पुत्र प्राप्ति हो, वंश चले, धन, स्त्री-पुत्र मकान
की प्राप्ति होय। (16) सर्व कार्य साधक मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लौं क्लौं ब्लूं नमः । विधि- इस मंत्र का त्रिकाल जप करें तो सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। (17) सर्व कामना पूरण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा नमः। विधि- इसकी प्रतिदिन एक माला फेरने से कल्पवृक्ष के समान यह मनुष्य की सर्वकामनाएँ
पूरी करता है। (18) सर्वकामना-पूरण-अहँ मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ नमः ।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि- शुभ दिन, शुभ नक्षत्र में पूर्व की ओर मुँह करके जाप प्रारम्भ करें। १२५००० जाप
करें। इससे सर्व-कामना-पूर्ति होती है। (19) सर्वकार्य सिद्धिमंत्र : ॐ ह्रीं सकल कार्य सिद्धिकराय श्री वर्धमानाय नमः । विधि- इस मंत्र का १ लाख जाप करने से सर्व कार्य सिद्धि होती है। ( 20 ) सर्व कार्य सिद्ध मंत्र : - ॐ नमो पद्मावती मुख कमल वासिनी गोरी गांधरी
स्त्री पुरुष मन क्षोभिनी त्रिलोक मोहिनी स्वाहा। विधि- यह मंत्र दीपावली के दिन १०० बार जाप करें तो सर्व कार्य सिद्ध होय।
(2) मनोवांछित कार्य सिद्धि मंत्र (1) मनोवांछित कार्य सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ अ सि आ उ सा नम: (स्वाहा) विधि- प्रतिदिन ११०० जाप, ४१ दिन तक करने से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। (2) - ॐ नमो भगवते अभिप्सित कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र से धन लाभ होता है तथा मनोवांछित कार्य सिद्ध होता है। (3)- ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा वान्छितं मे कुरु कुरु स्वाहा। विधि- श्रद्धापूर्वक इस महामंत्र का सवालाख जप करने से समस्त मनोवांछित कार्यों की
सिद्धि होती है। (4) सर्व मनोकामना पूर्ण मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह: अ सि आ उ सा स्वाहा (नमः) विधि- मंत्र की विधि पूर्वक सवा लाख जाप करें। (5) - महति महावीर वड्ढमाण बुद्धिरिसीणं ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा झौं झौं
स्वाहा। विधि- ४१ दिन तक १०८ बार मंत्र को जपने से मनोवांछित समस्त कार्यों की सिद्धि
होती है।
(6) - ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय अढे मुढे क्षुद्र
विधढे क्षुद्रान् स्थम्भय स्थम्भय दुष्टान् चूरय चूरय मनोवांछित पूरय पूरय स्वाहा। विधि- दीवाली के दिन १००० जाप करें पीछे एक माला नित्य फेरें तो मनोवांछित कार्य
होता है। (7) मनोवांछित कार्य सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घण्टाकर्णो नमोऽस्तुते ठ:ठः स्वाहा। विधि- सफेद वस्त्र, सफेद माला, सफेद आसन के साथ एक लाख जाप करें तो सर्व
मनोवांछित कार्य सिद्ध हों। (8) मनवान्छित कार्य-सिद्धि-नमस्कार मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं, सिद्धाणं, सूरीणं
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(आयरियाणं), उवज्झायाणं, साहूणं मम ऋद्धिं वृद्धिं समिहितं कुरु कुरु स्वाहा । विधि- प्रातः काल उठकर स्नान कर, स्वच्छ पंचरंगी धोती पहन कर, मूँगे की माला से ३२०० जाप करें, धूप करें तो मनोकामना सिद्ध होगी ।
(9) मन चिन्तित कार्य सिद्धि मंत्र : ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा नमः (स्वाहा) ।
विधि : मन में किसी भी प्रकार का कार्य सोचकर सवा लाख जाप करें तो मन चिन्तित सब कार्य सिद्ध होगा ।
( 10 ) चिंतित कार्य तत्काल सिद्ध मंत्र - ॐ ह्रीं ऐं अर्हं क्लीं ब्लैं भ्रौं र्यं नमिऊण पासाह दुःखानि विजयं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि-इस चिन्तामणि मन्त्र का श्रद्धापूर्वक सवा लाख जाप करने से चिन्तित कार्यों की तत्काल सिद्धि होती है।
( 11 ) स्मरेण चिन्तेन कार्य सिद्धि मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं कलि कुंड स्वामिनि सिद्धि जगत वश्यं आनय आनय स्वाहा
विधि - इस मंत्र की प्रातः काल १०८ बार जाप करें।
(12) कामना पूर्ण मंत्र - ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिनेऽनन्त शुद्धि परिणाम विस्फुर दुरुशुक्लध्यानाग्निर्दग्ध कर्मबीजाय प्राप्तानन्त चतुष्टयाय सौम्याय शान्तय मंगलाय वरदाय अष्टदशदोष रहिताय स्वाहा ।
विधि - त्रिकाल १०८ बार जपें तो कार्य सिद्धि होय ।
(13) वांछित फल दायक मन्त्र - ॐ ह्रीं श्री श्रिये धनकारि धान्यकारि ह्रीं श्रीं कलि स्वामिनि-मम वांछिते कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए ।
(14) वांछितार्थ व सिद्धिकारक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं असि आ उ सा नमः ।
विधि - यह मंत्र कल्पवृक्ष के समान कामनाओं को पूर्ण करने वाला महामंत्र है। इस मंत्र को रोज १०८ बार जपने से वांछितार्थ सिद्धि होती है।
( 15 ) समस्त कार्य सिद्धि मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं हः स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन १००० जप, ११ दिन तक करने से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं ।
( 16 ) सर्व मनोकामना पूर्ण मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं असि आ उ सा नमः ।
विधि - शुभ मुहुर्त में शुरू करके प्रतिदिन 4 माला जाप करें तो 45 दिन के बाद लाभ दृष्टिगोचर होने लगेगा ।
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(17) इच्छित कार्य साधक मंत्र : ऊं ह्रीं अरिहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहू चुलु
चुलु हुलु हुलु कुलु कुलु मुलु मुलु इच्छियं में कुरु कुरु स्वाहा। विधि : कम-से-कम २१ दिन तक १०८ बार जाप करें तो इच्छित कार्य सिद्धि होय। (18) चिंतामणि मंत्र : ओं ह्रीं श्रीं ऐं अहँ क्लीं क्लीं ब्लौं ब्लौं भ्रौं भ्रौं यूँ नमिऊण पासनाह दुखारि विजयं कुरू कुरू स्वाहा। विधि : इस मंत्र का सवा लाख जप करने से सभी प्रकार के मनचिंतित कार्य सिद्ध होते हैं। 19) चिन्तामणि मंत्र : ऊँ नमो भगवते विश्व चिन्तामणि लाभदे रूपदे जशदे जयदे आनय महेसरि मनवांछितार्थ पूरय-पूरय सर्व सिद्धि रिद्धि वृद्धि सर्वजन वश्यं कुरू कुरू स्वाहा। विधि : इस चिन्तामणि मंत्र को नित्य प्रभात-संध्या में जपें, धूप खेवें तो सर्वसिद्धि होय।
(3) सर्व ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त मंत्र (1) सर्व सिद्धियां प्राप्त मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ अ सि आ उ सा भूर्भुवः स्वः
चक्रेश्वरी देवी सर्व रोगं भिंद भिंदं ऋद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा। विधि-श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जाप करने से स्त्री संबन्धी समस्त
कठिन रोगों का नाश होता है और सर्व सिद्धियां प्राप्त होती हैं। (2) सर्व सिद्धि प्रदायक मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू णमो लोए सव्वसाहूणं । विधि- २५ हजार बार जाप कर मंत्र सिद्धि करें, फिर प्रतिदिन तीन माला जपें। (3) ऋद्धि-सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं मम ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं कुरु-कुरु
स्वाहा। विधि- शुद्ध होकर प्रतिदिन १०८ बार जाप करें तो सर्व प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त
होगी। (4) ऋद्धि-सिद्धि-अहँ मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं मम ऋद्धि वृद्धि समीहितं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- शुद्ध होकर प्रतिदिन प्रातः सायं बत्तीस बार इस मंत्र का जाप करें तो सर्व प्रकार की
ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है। (5) ऋद्धि सिद्धि बढ़ाने का मंत्र- ॐ ह्रीं हूं सः स्वाहा। विधि- ११ रविवार के दिनों में रात्रि के समय सोने के पूर्व १०८ बार जपने से ऋद्धि सिद्धि
बढ़ती है। (6) अनेक सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं णमो जिणाणं विधि- प्रतिदिन इस मंत्र का १०८ बार जाप करना चाहिए।
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(4) अत्यंत चमत्कारी मंत्र (1) अत्यंत चमत्कारी मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं आं जां जी चन्दे सुनिम्मल यरा आइच्चे सु अहियं
पयासयरा सागर वरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं ममद्धि सन्तु मम मनोवांछिद पूरय पूरय
स्वाहा। विधि-इस मंत्र का साढ़े बारह हजार बार जाप करें तो सर्वकार्य की सिद्धि होती है। यह
अत्यंत चमत्कारी मंत्र है। यश प्रतिष्ठा के इच्छुक व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना
चाहिए। इससे यशप्रतिष्ठा बढ़ेगी, उपद्रव शांत होंगे। (2) प्रत्यक्ष फल पठित सिद्ध मंत्र- इति पिसो भगवान भगवान अरिष्ट सेम्म संबुद्धो
विज्जावरण संपन्नो सुगतो लोक विद्व अनुत्तरो पुरुष दम सारथी शास्ता देवानां च मनुषाणं च बुद्धों भगवाजय धम्मा हेतु प्रभाव तेषां तथागतो अवचेत सांयोनिरोधो
एव वादी मह समणो। विधि-इस मंत्र को २१ बार जप कर दुपट्टे में गांठ लगाकर ओढ़ लेने पर किसी भी प्रकार
के शस्त्रों का घाव नहीं लग सकता, रण में सर्वशस्त्रों का निवारण होता है। इस मंत्र के स्मरण मात्र से जीव बन्धन मुक्त हो जाता है। चोर भय, नदी में डूबने का भय, राज भय, सिंह व्याघ्र सर्पादि सर्व उपद्रव का निवारण होता है। यह मंत्र पठित सिद्ध होता है। इसका फल प्रत्यक्ष होता है।
(5) चिन्ता हरण मंत्र (1) चिन्ता हरण (निवारण) मंत्र- ॐ णमो अरहताणं बुद्धाणं बोहयाणं स्वाहा। विधि- लगातार छह माह तक एक माला का एकाग्रमन से काकेष्ठाधान पास में रखकर
जाप करें तो हर चिन्ता से मुक्त हो, जिस कार्य का चिन्तन करें वही कार्य सफल
हो।
(2) चिन्ता हरण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अरिष्ट नेमिनाथाय नमः । विधि - इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला करें तो हर चिन्ता से मुक्ति मिले। (3) चिन्ता निवारण लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमल वालेय प्रसीद श्रीं
ह्रीं ध्रीं महालक्ष्म्यै नमः। विधि : मन में किसी भी प्रकार का कार्य सोचकर सवा लाख जाप करें तो मन चिन्तित सब कार्य सिद्ध होगा।
(6) महामंत्रों का महामंत्र" सर्वकार्य सिद्धिदायक सर्व श्रेष्ठ महामंत्र। (1) मंत्र-ॐ ह्रीं श्री त्रिकाल संबंधी पंच परमेष्ठीभ्यो नमः
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मुनि प्रार्थना सागर
यह सर्व कार्य सिद्धि दायक, सर्वश्रेष्ठ चिन्तामणी महामंत्रों का महामंत्र है। इसकी महिमा देव, नाग, नरेन्द्र, इन्द्र आदि भी नहीं बता सकते हैं। इसके प्रभाव का वर्णन तो सिर्फ केवली भगवान ही कर सकते हैं। अन्य दूसरा नहीं। इस मंत्र के प्रभाव से पाप भक्षाणि विद्या, केवली विद्या, कर्ण पिशाची विद्या, अकारादि सभी विद्याये सिद्ध हो जाती हैं। यह मंत्र चिन्तामणि,. रतन के समान चिन्तित फल देता है, कल्पवृक्ष के समान कल्पना करने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं। सम्पूर्ण ऋद्धियाँ - सिद्धियां, सुख – समृद्धि शान्ति आनंद, वैभव-प्रभाव, धन-धान्य, प्रतिष्ठा - सम्मान, आदि इस महामंत्र से प्राप्त होता है। समस्त प्रकार के दुख, संकट, कष्ट वेदना, उपद्रव विघ्न – बाधाएँ परेशानियां इस मंत्र से दूर हो जाती हैं। सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। इस मंत्र के प्रभाव से अग्नि जल बन जाती है। जहर-अमृत में बदल जाता है। सर्प-फूल की माला बन जाता है। सूर्य चन्द्र के समान व चन्द्र सूर्य के समान हो जाता है। पृथ्वी स्वर्ग के समान हो जाती है, सर्व जीव जन्तु का विष नष्ट हो जाता है, शत्रु मित्र हो जाते हैं दुष्ट ग्रह शुभ हो जाते हैं। निशाचर भूत प्रेत शाकिनी डाकनी आदि मंत्र के स्मरण से भाग जाते हैं। यहां तक कि इस मंत्र के प्रभाव से नरकति का बंध छूट जाता है यदि तीन लाख जाप की जाये तो वचन सिद्धि प्राप्त होती है, फिर आपके मुंह से जो भी बात निकलेगी वह पूर्ण सही होगी। पांच लाख जाप की जाये तो नरक गति नहीं होगी और यदि सात लाख जाप की जाए तो समस्त समस्याओं का समाधान स्वयं ही हो जाता है। यदि 9 लाख जाप की जाये तो तीर्थकर प्रकृति का बंध हो सकता है। अर्थात् 9 लाख जाप से शाश्वत मोक्ष सुख प्राप्त होता है। अधिक क्या कहा जाए तीन लोक में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो इस महामंत्र के प्रभाव से प्राप्त नहीं की जा सकें। अर्थात् इस मंत्र से चारों पुरूषार्थ (धर्म, अर्थ, काम-मोक्ष) प्राप्त होते हैं। विधि - पूर्व दिशा की ओर मुख कर, पद्!मासन से बैठकर प्रतिमा जी के सामने अथवा श्री महामंत्र या श्री मंगलकलश के सामने, सफेद माला से अथवा स्वर्णमाला से, सफेद कपडे पहनकर, शुद्ध घी का दीपक सामने जलाकर, अगरबत्ती जलाकर शुद्धता पूर्वक एकाग्र मनन से प्रसन्नता पूर्वक, मन ही मन में 125000 जाप करना चाहिए। जाप के दिनों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, जमीन पर शयन करें तथा दिन में एक बार शुद्ध भोजन करें और कषायों का त्याग कर के संयमी जितेन्द्रिय होकर जीवन जीयें। ध्यान रहें कि प्रतिदिन एक निश्चित समय पर जाप करें और प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में ही जाप करें कम या अधिक नहीं तथा प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर बैठकर ही जाप करें अर्थात् स्थान न बदले और जब जाप पूरी हो जायें तब इस मंत्र का दशांश
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हवन करके निष्ठापन करें, और फिर जीवन पर्यन्त सुबह-शाम एक माला प्रतिदिन करें। (2) एकाक्षरी मंत्र- ॐ ह्रीं नमः। विधि - शुभ मुहूर्त में सवा लाख जाप करे श्वेत वस्त्र माला आसन से मुक्ति के लिए, लाल रंग से वशीकरण, पीले रंग से लक्ष्मी प्राप्ति, विद्या प्राप्ति, नीले रंग से शत्रु मरण, काले रंग से शत्रु उच्चाटन होता है। विशेष वशीकरण के लिए वषट् विद्वेषण, में हूँ। आकर्षण में संवोषट, उच्चाटन में फट, मरण में घे घे, शांति के लिय स्वाहा, पोष्टिक में स्वधा, विष नाशन के लिए हंसः सर्वोषधि अर्थात् स्तंभन में ठः ठः यह पल्लव लगाकर जाप करें, अन्त में दशांश हवन अवश्य करें।
(7) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र (1) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ॐ श्रां श्रीं श्रृं श्रः शत्रुभय निवारणाय ठः ठः स्वाहा। विधि- १०८ बार जप से सन्तान, सम्पत्ति, सौभाग्य, बुद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। (2) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ॐ इरि मेरि किरि मेरि गिरि मेरि, पिरि मेरि सिरि मेरि हरि मेरि
___ आयरिय मेरि स्वाहाः। विधि- मंत्र को संध्या में ७ दिन तक १०८ बार जपें तो सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (3) अखण्डित सौभाग्य प्राप्ति मंत्र : ॐ ह्रीं णमो पुरिसोप्तमाणं अतलिय पुरिसाणं अहँ
अ सि आ उ सा नमः। विधि : इस मंत्र के १०८ बार जपने से अस्खलित सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा भाग्य
वृद्धि होती है। (4) कुभाग्य- सौभाग्य में बदलने का मंत्र- ऐं क्लीं ह् सौः कुंडलिनी नमः विधि- मंत्र को त्रिकाल १०८ बार जपने से कुभाग्य भी सौभाग्यमय हो जाता है। (5) सौभाग्यवर्धक मंत्र -ॐ अप्रतिचक्रे फट्विचक्राय सर्ववश्यं मानय मानय स्वाहा। विधि - इस मंत्र को प्रतिदिन 21 बार जपकर मुंह पर हाथ फेरे, इससे सौभाग्य वृद्धि होती है।
(8) सर्वसम्पत्ति वान बनने का मंत्र (1) सर्वसम्पत्ति वान बनने का मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं हर हर स्वाहा। विधि-इस मंत्र को जो १०८ सफेद पुष्पों से ३ दिन तक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा के
सामने जपें तो सर्वसम्पत्तिवान होता है। (2) सम्पत्ति लाभ मंत्र- ॐ ह्रीं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिन् आगच्छ आगच्छ
आत्ममन्त्रान् आकर्षय आकर्षय आत्ममन्त्रान् रक्ष रक्ष परमंत्रान् छिन्द छिन्द मम
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समीहितं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- १२०० ऋद्धि मंत्र का जाप करने से सम्पत्ति का लाभ होता है।
(9) कन्या प्राप्त होय मंत्र (1) ॐ विश्वावसु नाम गंधर्व कन्या नामाधिपति सरूपा सलक्षान्त देहि मे नमस्तस्मै विश्वावसवे स्वाहा। विधि-७ अंजुलि जल लेकर मंत्र स्मरण करें। १००० जाप कीजे फिर नित्य १०८ बार
पढ़ें। १ माह में कन्या अवश्य प्राप्त होय। (2) ॐ कमले भद्रहासे रोहिणी मोचनि कन्येयं में भर्या भवतु ठः ठः। विधि-१० हजार जप से सिद्ध करके मधु में ही किये हुए कनेर के फूल से १ हजार होम
करने से कन्या की प्राप्ति होती है। (3) ॐ ह्रीं काम वर्ग सिद्धि साधन करण समर्थय श्री शान्तिनाथाय नमः । विधि-त्रिकाल जाप करें, परमात्मा पर श्रद्धा करें तो सफलता अवश्य मिले।
(10) संतान प्राप्ति मंत्र (1) सन्तान उत्पन्न मंत्र- (अ) ॐ भोमाय भूमि पुत्राय मम गर्भं देहि देहि स्थिर स्थिर
माचल ॐ क्रां क्रीं क्रौं फट् स्वाहा। विधि-मंगलवार के दिन कुमारी कन्या को भोजनादि वस्त्र देकर के संतुष्ट करें फिर इस मंत्र
का १ माह में ५०००० जाप करें किन्तु मंगलवार को ही जाप शुरू करना चाहिए
और जीवन पर्यन्त प्रत्येक मंगलवार को ब्रह्मचर्य का व्रत पालें और एकासन करें तो
निःसन्देह सन्तान उत्पन्न होती है। (2) ॐ ह्रीं श्रीं सिद्ध बुद्ध माला अम्बिके मम सर्वां सिद्धि देहि देहि ह्रीं नमः । विधि-पुत्र की इच्छा रखने वालों को नित्य ही १०८ बार स्मरण करना चाहिए। (3) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ अ सि आ उ सा नमः। विधि-सूर्योदय से १० मिनिट पूर्व, उत्तर दिशा में, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ऊर्ध्व, अधो
दिशाओं में क्रमशः २१-२१ बार जाप करें। पुनः १० माला फेरें, मध्याह्न में १० माला, सायं १० माला जपें। पुनः स्वप्न आयेगा तब मयूर पंख की चांद-२, शिवलिंगी के बीज १ ग्राम, दोनों को बारीक करें, ३ ग्राम गुड़ में मिलाकर रजोधर्म की शुद्धि होने पर खिलावें तो पहले या दूसरे माह में ही कार्य सिद्ध हो जायगा
अर्थात् पुत्रोत्पत्ति होगी। (4) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं अ सि आ उ सा चुलु चुलु हुलु हुलु मुलु मुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा।
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विधि- इस मंत्र को २४ हजार फूलों से जपना चाहिए। एक पुष्प पर एक जाप करें। इससे
पुत्ररत्न, धन-दौलत, मकान और सर्व सम्पत्ति प्राप्त होती है। दूसरी विधि- शुभ नक्षत्र, शुभ दिन में पुत्रजीवा की माला से डाभ के आसन पर पूर्वाभि
मुख बैठ कर, दीप जलाकर १२५० माला जाप करें तो अवश्य ही पुत्र हो। जाप के
समय संयम से रहें और भूमि शयन करें। (5) ॐ ह्रीं पुत्र सुख प्राप्ताय श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमः। विधि- श्री जिनेन्द्र प्रभु के सामने ५ माला जपें और प्रत्येक सोमवार को भगवान को
बादाम चढ़ावें, तो पुत्र प्राप्ति होती है। (6) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: मम सुपुत्रं सुखारोग्यं देहि-देहि सर्वा ऐश्वर्य
युक्तं उत्पादय-उत्पादय नमः (स्वाहा)। विधि- इस मंत्र की २१ दिन तक १-१ माला जपें तो सन्तान की प्राप्ति होती है। (7) संतान प्राप्ति मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं पुत्रकर पद्मावत्यै नमः । विधि- शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से पुत्रजीवा की माला से नित्य त्रिकाल जाप करें अवश्य ही
पुत्र प्राप्ति होगी। (8) नारियल द्वारा पुत्र-प्राप्ति का मंत्र- ऐं नमः ॐ नमो भगवती पद्म ह्रीं क्लीं ब्लू
त्रिट-त्रिट (अमुक) स्त्री अपत्य हिनाय अपत्य गुण क्षय, सर्वांवयव (सर्वंअवयव) संयुक्त शोभन सुन्दर दीर्घायु पुत्रं देही-देही, मा विलम्बय -विलम्बय, रां ह्रीं
पद्मावतीं मम कार्य कुरु कुरु स्वाहा ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- इस मन्त्र को एक सौ आठ बार नारियल पर जपें। तत्पश्चात् अभिमन्त्रित नारियल
ऋतु धर्म के पश्चात् शुद्ध होने पर स्त्री को खिलावें, तो पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।
यह अनुभूत मंत्र है। (9) पुत्र प्राप्ति मंत्र : ऊँ णमो अरहंताणं केवली पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामिं ह्रौं
शान्ति कुरु कुरु स्वाहा। श्री अहँ नमः। विधि : बिजौरा अथवा नारियल को इस मंत्र से १०८ बार मंत्रित कर बंध्या को खिलावें
तो पुत्र हो अथवा नये कपड़े मंत्र से मंत्रित कर रोगी को उढ़ावे तो दोष ज्वर जाये। (10) गर्भ स्तम्भन तंत्र “ॐ ह्रीं गर्भधारिणी गर्भस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा। महिला २१
दिन तक १-१ माला फेरें। शिवलिंगी के बीज ९-९ दिन तक लें तो नियम से
गर्भ रहे। ( 11 ) गर्भ धारण करने के लिए मंत्र- ॐ नमः पार्श्व जिनेन्द्राय कमठ दर्प विध्वंस नाय
सर्वोपसर्ग विनाशनाय धरणेन्द्र फणा मणि सहस्र ज्योति दीप्त दिगंतराल परिमंडिताय
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पद्मावती श्वेतात पत्रधराय सर्वगृह मातृका दोषं हन हन अपहर अपहर पुत्रमे जनय
जनय शीघ्रं-शीघ्रं ऋतु मृत्यै नमः स्वाहा। विधि- असगंध उशीर (खस ) से सारे शरीर में उबटन (लेप) कराके इस मंत्र से स्नान करावें। अर्थात् मंत्रित जल से स्नान करावें।
(11) सुख से प्रसव होय मंत्र (1) प्रसूति संकट निवारण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुंड स्वामिन् ...... अमुकस्य
गर्भं मुंच-मुंच स्वाहा। विधि- इस मंत्र से तेल मन्त्रित कर पेट पर लगाने से सुख पूर्वक प्रसूति होती है। (2) सुख से प्रसव होय मंत्र- ॐ मुक्ताः पाशा विमुक्ताशा मुक्ताः सूर्येण रश्मयः, मुक्ताः
सर्व भयाद् गर्भं एहि माचिर-माचिर स्वाहा। विधि- इस मंत्र को १०८ बार पढ़कर जल अभिमंत्रित कर जल गर्भिणी स्त्री को पिलाने से तुरन्त सुख पूर्वक प्रसव होगा।
(12) ब्रह्मचर्य रक्षक मंत्र (1) स्वप्न दोष निवारण मंत्र – ॐ चले चले चित्तं वीय स्तंभन कुरू कुरू स्वाहा। विधि - प्रतिदिन सोने से पहले 21 बार मंत्र का उच्चारण करके सोने से निन्द्रा में
वीर्यपात नहीं होता है। (2) कामवृत्ति पर नियन्त्रण मंत्र - असासया भोगपिवास जंतुणो। विधि –नीले रंग की माला से प्रतिदिन 108 बार जाप करने से इन्द्रिय विजय
प्राप्त होती है। (3) ब्रह्मचर्य रक्षक मंत्र - ॐ मन दृढ़ वच दृढ़ महामुनि शील दृढ़ सुविचारी हो। विधि - इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जपने से इन्द्रियों पर विजय प्राप्त होती है,
ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। (4) ब्रह्मचर्य रक्षक मंत्र - ॐ नमो भगवते महाबले पराक्रमाय मनोभिलाषितं मनः
स्तंभन कुरू कुरू स्वाहा विधि - प्रतिदिन निराहार दूध को 21 बार मंत्रित कर पीने से ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा
होती है। (5) स्वप्न दोष नहीं हो मंत्र - “ॐ आर्यमायै नमः"। विधि-इस प्रयोग के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति शयन करते समय निम्न मंत्र का २१ बार जाप अपने बिस्तर पर ही बैठकर करे तथा फिर सोये तो उसे स्वप्नदोष नहीं होता है।
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(13) सर्वजन प्रसन्न मंत्र (1) सर्वप्रिय मंत्र- ॐ नामे भगवउ अरहउ पउ मप्पहस्स सिज्झष्याउ में भगवई महइ
महाविद्या पउसे महापउमे पउमुत्तरे पउमसिरि ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- इस मंत्र को १०८ बार पढ़कर दो उपवास करके, करने वाले के सर्व जन इष्ट हो
जाते हैं, याने सर्व प्रिय हो जाता है। (2) परस्पर प्रेम बढ़े मंत्र- क्लीं जपे विजये जयंते अपराजिते ज्म्ल्यूँ जंभे भy मोहे
म्य॑ स्तम्भे, ह्म्ल्यूँ स्तम्भिनि (नाम) मोहय मोहय मम वश्यं कुरु स्वाहा। विधि-स्त्री जपे तो पुरुष वश होय और पुरुष जपे तो स्त्री आकर्षित होय। यदि दोनों जपें
तो परस्पर प्रेम होता है। (3) सर्वजन प्रसन्न मंत्र- ॐ ह्रीं क्रौं ह्रीं हूँ फट् स्वाहा। विधि- मंत्र से मंत्रित सुपाड़ी, इलायची व लौंग खिलाने से सर्वजन प्रसन्न होते हैं।
(14) श्रोतागण आकर्षण मंत्र (1) उपदेश समय में श्रोतृवृंद आकर्षण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुण्ड दण्ड
स्वामिनि अप्रतिचक्रे जये, विजये, अपराजिते अजिते जंभे स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जप करना चाहिए। (2) उपदेश देने में श्रोता आकृष्ट मंत्र- ॐ ह्रीं श्री महा संमोहिनी महाविद्ये मम दर्शनेन अमुकं ज॑भय स्तंभय मोहय मूर्छय कछय आकछय आकर्षयं पातयहीं महा संमोहिनी ठः ठः स्वाहा। विधि-उपदेश देने के पूर्व २१ बार पढ़ें तो सब श्रोतागण आकृष्ट होते हैं। (3) श्रोतागण आकर्षण मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं कीर्तिमुख मंदिरे स्वाहा। विधि- इस मंत्र को उपदेश देने के समय में प्रथम स्मरण करें तो श्रोतागण आकर्षित होते हैं। (4) श्रोता-आकर्षण मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ नमिऊण पास विसहर वसह जिण फुलिंग ह्रीं नमः । विधि- इस मंत्र का नित्य जाप करने से श्रोताजन आकर्षित होते हैं। (5) सुन्दर भाषण देने का मंत्र- ॐ णमो बोहिदयाणं, जीवदयाणं, धम्मदयाणं,
धम्मदेसयाणं, अरहंताणं नमो भगवईए, देवयाए सव्व सुयनायाए वार संग जणणी
ए अरहंत सिरिए झ्वी क्ष्वीं स्वाहा। विधि- दस हजार जाप करके पहले मंत्र को सिद्ध कर लें फिर व्याख्यान देने के पूर्व एक
बार पढ़ लें अथवा व्याख्यान देने के पूर्व एक माला करें तो सुन्दर भाषण होय सभी प्रशंसा करें।
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(6) सुन्दर भाषण देने का मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं कीर्ति कौमुदी वागेश्वरी प्रसन्न वर दे कीर्ति
मुख मन्दिरे स्वाहा। विधि- प्रतिदिन एक माला फेरे व्याख्यान में जाने से पहले एक बार पढ़ लें, फिर व्याख्यान
दे, अत्यन्त सफलता होगी। (7) सभा में सम्मान बढ़े मंत्र- ॐ नमो भगवती गुणवती सुसीमा पृथ्वी वज्र श्रृंखला
मानसी महामानसी स्वाहा।। विधि- २१ बार मंत्रित तेल मुख पर लगाने से सभा में सम्मान बढ़ता है। (8) कथित वचन श्रेष्ठ हो- ॐ ह्रीं श्रां श्रीं छू पद्मे (नमः)। विधि- राज्य सभा में साधक की सम्मति तथा कथित वचन श्रेष्ठ माने जाते हैं। (9) सभी अनुयायी बने- ॐ ह्रीं पसुस्स नमः स्वाहा। विधि- कंकरी को मंत्रित करके नगर के मध्य चौराहे पर डालने से सब लोग अनुयायी हो जाते हैं।
(15) मंगलकलश के सामने जपने का मंत्र (१)- ॐ ह्रीं श्री श्रियै नमः। विधि-प्रतिदिन एक माला जपे तो सुखसमृद्धि होय।
(16) अभिषेक मंत्रित करने का मंत्र (1) अभिषेक मन्त्रित करने का मंत्र :-ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा श्री जिन प्रतिमा (श्री...यंत्र) स्नापयन् जिन (श्री....यंत्र) गंदोधकं। वंदामि नमस्यामि इष्ट लाभं कर्माष्टकं विनाशनं भवतु ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकं भवतु ह्रीं नमः॥
(17) प्रतिष्ठा के समय का मंत्र (1) ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ अ सि आ उ सा अनाहत् विद्यायै णमो अरिहंताणं ह्रौं सर्व
शान्ति कुरु कुरु स्वाहा। विधि-यह मंत्र वेदी प्रतिष्ठा, मूर्तिप्रतिष्ठा, कलशारोहण आदि के समय सर्व विघ्न शान्ति के लिए सवा लाख अथवा कम से कम इक्यावन हजार, इक्कीस हजार संकल्प पूर्वक जाप करें, तो निश्चित ही सानंद कार्य संपन्न होय। (2) निर्विघ्न कार्य सम्पन्नता मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ अ सि आ उ सा,अनाहत विद्यायै णमो अरहंताणं पाप क्लेशापहर, निर्विघ्न कार्य समाप्तिं करणाय वषट् । विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए। (3) ॐ ह्रीं सकल कार्य सिद्धिकराय श्री वर्धमानाय नमः।
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विधि- इस मंत्र का १ लाख जाप करें।
(18) वेदी में भगवान विराजमान करने का श्लोक व मंत्र
निर्मितं वीतरागस्य, रत्नपाषाणधातुभिः ।
निराकारं च सिद्धानां, बिम्ब संस्थापये मुदा।। (1) ऊँ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिनेऽनन्तशुद्धपरिणामपरिस्फुरच्छुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानंतचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मंगलाय वरदाय
अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा ।
(19) माला शुद्धि मन्त्र (1) ॐ ह्रीं रत्नैः स्वर्णैः सूत्रर्बीजै रचिता जपमालिका सर्वजपेषु सर्वाणि वाञ्छितानि
प्रयच्छन्तु। विधि- प्रासुक जल से धोकर उक्त मंत्र को पढ़कर ७ बार पुष्प क्षेपण करें।
___ (20) अशुभ मुहूर्त भी शुभ हों (१) ॐ ह्रीं अहँ शासन देवते सिद्धायके सत्यं दर्शय-२ कथय-२ स्वाहा। विधि-परदेश जाते समय इस मंत्र को सात पाँव चलकर सात बार स्मरण करें तो मुहूर्त्तवार
शकुन अच्छे न होने पर भी सर्व कार्य सफल होते हैं। अशुभ मुहूर्त भी इस मंत्र के
प्रभाव से शुभ होते जाते हैं। (२) ॐ भगवती भिराड़ी भाटप्तु कुरु कुट कुट उतिणि भगवति भिराड़ी की ६ मास
सेवा की धी भगवति भिराड़ी तूसि करि वरु दी हुउ जुकणु जलवटि थल वटि
अम्हरउं नामुले सड़ तसुकु सवणु फेडि ससवणु होसइ। विधि-इस मंत्र को घर से जाते समय ३ बार स्मरण करें तो अपशकुन भी शकुन हो जाते हैं।
(21) बुद्धि-वृद्धि-मंत्र (1) बुद्धि-वृद्धि-अर्ह मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा। विधि- इस मंत्र से मालकांगनी के तेल को अभिमंत्रित कर छह माह तक प्रतिदिन बताशे
के ऊपर दस बूंद डालकर खाएं। ऊपर से दूध-खीर का भोजन करें। पानी अल्प लें।
इससे बुद्धि-वृद्धि होती है। (2) बुद्धिमान होय मंत्र- ॐ नमो भगवते ऋषभाय जैनमति मनोमति रोदन मति स्वाहा। विधि- इस मंत्र से सात वच, मंत्रित करके खावें तो बुद्धिमान व निरोगी होता है। (3) महान बुद्धिमान होने का मंत्र- ॐ अरवचन धीं स्वाहा। विधि- तीनों संध्याओं में १०८ बार स्मरण करने से महान बुद्धिमान हो जाता है।
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(4) शीघ्र विद्या आय मंत्र- ॐ ह्रीं श्रां धूं श्रः हं सं थः थः ठः ठः सरस्वती भगवती
विद्या प्रसादं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- २१ दिन तक लगातार १००० जाप से शीघ्र विद्या आती है। (5) सरस्वती प्राप्ति मंत्र- ॐ मालिनी किलि किलि साणि साणि स्वाहा। विधि- मंत्र के स्मरण से सरस्वती की प्राप्ति होती है। प्रतिदिन एक माला फेरें। (6) विद्या की प्राप्ति मंत्र- ॐ नमो भगवते चंद्रप्रभ जिनेन्द्राय चंद्र महिताय चन्द्रकीर्ति
मुखरंजनी स्वाहा। विधि- इस मंत्र को चन्द्रग्रहण के दिन रात्रि में जपने से विद्या की प्राप्ति अच्छी होती है। (7) वचन चातुर्य होने का मंत्र- ॐ नमो सवराणं हिली हिली मिली मिली वाचायै
स्वाहा। विधि- मंत्र को २१ बार स्मरण करने से वचन चातुर्य होता है। नित्य एक माला फेरें। (8) वचन सिद्धि मंत्र- ॐ नमो लिंगोद्भव रुद्र देहि मे वाचा सिद्धिं बिना पर्वत गते
द्रां द्रीं दूं दें द्रौं द्रः। विधि- मस्तक पर बायां हाथ रखकर एक लक्ष जाप करें तो वचन सिद्धि होती है। (9) वाक् सिद्धि मंत्र- ॐणमो अरहताणं, धम्मणाय गाणं, धम्मसारहीणं धम्मवर
चाउरंग चक्कवट्टीणं मम परमैश्वर्यं कुरू कुरू ही हंस स्वाहा। विधि - पूर्व की ओर मुंह कर सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला से शुभ मुहूर्त
में मस्तक पर बायां हाथ रखकर एक लाख जप कर फिर रोज एक माला करें
तो वाक् सिद्धि हो। (10) वचन सिद्धिमंत्र(अ) ॐहीं श्रीं क्लीं अ सि आउ सा चुलु चुलु कुलु कुलु मुलु मुलु
इच्छियं वासिद्धि कुरू कुरू स्वाहा। (ब) ॐऐं हीं श्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वती हीं नमः | (स) ॐनमो मालिनी किलि किलि सणि सणि स्वाहा। विधि - इन मंत्रों में से कोई भी मंत्र का छह महीने आठ आठ माला जाप करें फिर प्रतिदिन एक माला करें तो वचन सिद्धि होती है अर्थात आप जो कहें वह सही हो। (12) बुद्धि वृद्धि मंत्र- ॐहीं श्रीं वद-वद वाग्वादिनि स्वाहा। विधि- मंत्र को प्रतिदिन 108 बार जपे व मालकांगनी तेल की पांच बूंद बताशे में
डालकर प्रतिदिन छ: माह तक सुबह-सुबह लें। (13) बुद्धि प्राप्ति के लिए-ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः। विधि - सफेद वच, लाल चंदन, कुट, ब्राह्मी, सफेद मूसली व मालकांगनी के बीज को
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समान मात्रा में लेकर प्रतिदिन प्रातः 2 ग्राम, दूध के साथ लेकर ' मंत्र की जाप
करें तो नियम से अति प्रखर बुद्धि होगी। ( 14 ) पढ़े तो पंडित होय मंत्र- ॐ णमो सयंबुद्धाणं । विधि- १०८ बार जाप से पंडित होवे। (15) विवेक प्राप्ति मंत्र : ॐ ह्रीं अहँ णमो कोट्ठबुद्धीणं बीजबुद्धीणं ममात्मनि विवेक
ज्ञानं भवतु। (16) वाणी सिद्धि मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद-वद
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः (स्वाहा)। विधि- आषाढ में जब उत्तराषाढा नक्षत्र हो, तब १०८ बार दिन में जप लें और रात्रि को
ग्यारह बजे से बारह के बीच में जब कभी भी इस मंत्र को २१ बार जपकर लाल
चंदन से जीभ पर "ह्रीं" मंत्र लिखें तो वाणी सिद्धि होवे। (17) वाक् सिद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ऊँ सरस्वतीयै नमः। विधि- पूर्व की ओर मुँह करके सफेद माला, आसन, वस्त्र का प्रयोग करके बसंत पंचमी, गुरुवार, शु.,रविपुष्य नक्षत्र में जिह्वा पर मालकांगनी के तेल से अनामिका ऊंगली से 'ह्रीं' लिखकर ११००० जाप करें, तो भूत-भविष्य और वर्तमान को जानें। यदि १-२ -५ तिथि को ११ माला करें तो वाणी दोष दूर होय व वाक् सिद्धि होय। (18) वाक्-सिद्धि मंत्र- ॐ नमो लिंगोद्भव रुद्र देहि मे वाचा सिद्धिं बिना पर्वत गते द्रां
द्रीं द्रं तें द्रौं द्रः। विधि- मस्तक पर बायां हाथ रखकर एक लाख जाप करें तो वचन-सिद्धि हो। (19) विद्वान बनने का मंत्र- ॐ णमो सयं बुद्धाणं झौं झौं स्वाहा। विधि- १०८ दिन तक इस मंत्र की १-१ माला जपें लेकिन मंत्र जपते समय माला सफेद
लें व पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करें। ( 20 ) निमित्त ज्ञान प्राप्ति मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं अप्पडिहय वर णाण-दसणधराणं
विउहकृलमाणं (?) ऐं स्वाहा। विधि- इस मंत्र के निरन्तर जाप से भूत-वर्तमान-भविष्य का ज्ञान, स्वप्न, शकुन तथा
निमित्त ज्ञान का बोध हो जाता है। ( 21 ) कवि बनने का मंत्र- ॐ ऐं हं ऐं हं वद वद स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १०००० जाप कर लेने से मनुष्य कवि बनने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
(२२) रोजगार या नौकरी मिले मंत्र (1) रोजगार मिले चाहे व्यापार या नौकरी-ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं धन करी धान्य करी मम
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(2) रोजगार मिले मंत्र - ॐ
आशा ।
मंत्र अधिकार
सौभाग्य करी शत्रु क्षय करी स्वाहा ।
विधि- अगर तगर, कृष्णासागर, चन्दन, कर्पूर, देवदारू इन - २ चीजों का चूर्ण कर इस मंत्र का १०८ बार जाप करें और १०८ बार मंत्र की आहुति देवें तो तुरन्त ही रोजगार मिले चाहे व्यापार चाहे नौकरी ।
नमो नगन कीटि आवीर हूँ पूरों तोरी आशा तूं पूरो मोरी
विधि - भुने हुए चावल १ सेर, शक्कर १ पाव, घी आधा पाव, इन्हें एकत्र करके रखना फिर जहाँ चींटियों का बिल है, प्रातः काल वहां जाकर मंत्र पढ़ता जाय और एकत्र करी चीजों को थोड़ी-थोड़ी चींटियों के बिल पर डालता जाय । ४० बार ऐसा करने पर रोजगार मिलता है।
( 3 ) रोजगार के लिये - ॐ ह्रीं अर्थ वर्ग सिद्धि साधन करण समर्थाय श्री शान्तिनाथाय
नमः ।
विधि - त्रिकाल जाप करें अवश्य सफलता मिलती है।
(४) नौकरी प्राप्ति मंत्र हारिणी श्रीं श्रीं ॐ विधि - शनिवार के दिन
मुनि प्रार्थना सागर
-
ॐ नमः भगवती पद्मावती ऋद्धि-सिद्धिदायिनी दुख दारिद्रय नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा। मुनिसुव्रतनाथ भगवान की पूजा करने के बाद उपरोक्त मंत्र की 10 माला जाप करें तो मंत्र सिद्ध हो जाता है । फिर जब नौकरी ढूँढने जाये तो 11 बार मंत्र का जाप करें और किसी सन्त महात्मा को दान दें अथवा किसी दुखी व्यक्ति की यथा शक्ति सहायता करें तो निश्चित ही नौकरी प्राप्त होती है। (5) पदोन्नति मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घण्टाकर्णे ठः ठः ठः स्वाहा । विधि - प्रतिदिन १०८ बार पढ़ें ।
( 23 ) सर्वरक्षा मंत्र
( 1 ) सर्वरक्षा मंत्र : ॐ क्षां क्षीं क्षं क्षं क्षैक्षों क्षौं क्षं क्षः नमोऽर्हतेसर्वरक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा। विधि - प्रतिदिन १०८ बार जाप करें।
( 2 ) सर्वरक्षा मंत्र नमस्कारः ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं, ॐ णमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच णमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मंगलं, ॐ ह्रीं हूँ फट् ।
विधि
- इस मंत्र का स्मरण प्रत्येक कार्य में सुखप्रद है । नित्यप्रति खूब ध्यानपूर्वक इसका जाप करना चाहिए। यह सर्वथा आनन्दायक महामंत्र है।
( 3 ) आत्मरक्षा मंत्र - ॐ क्षिप ॐ स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन १०८ बार जाप करें।
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(4) सर्व विघ्ननाशक आत्म रक्षाकारक मंत्र : "ॐ ह्रीं श्री कलिकुण्ड दंडाय धरणेंद्र
पद्मावती सहिताय अतुलबल वीर्य पराक्रमाय सर्वविघ्न विनाशनाय श्री पार्श्वनाथाय नमः आत्म रक्षां कुरू कुरू परविद्यां छिन्दि छिन्दि भिन्दि भिन्दि स्फ्रां स्फ्रीं स्फूं स्फ्रौं
स्फ्र: हूँ फट् स्वाहा।" विधि : इस मंत्र को प्रतिदिन १०८ बार लाल फूलों पर जाप करने पर शत्रुकृत सर्व उपद्रव
दूर होते हैं और आत्म तेज प्रगट होता है। (5) अंग व आत्म रक्षक मंत्र : ऊँ ह्रीं णमो अरिहन्ताणं पादौ रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं कटिं रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं णमो आयरियाणं नाभिं रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं ह्रदयं रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं ब्रह्माण्डं रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं एसो पंच णमुक्कारो शिखां रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं सव्वपावप्पणासणो आसनं रक्ष रक्ष, ऊँ ह्रीं मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं आत्मरक्षां पररक्षां हिलि हिलि मातङ्गिनि स्वाहा। विधि : उक्त मंत्र का प्रातः प्रतिदिन शुद्ध होकर एक बार जाप करने से अंगरक्षा व
आत्मरक्षा होती है। (6) आपदा नाशक मंत्र : ऊँ नमो वृषभनाथाय मृत्युञ्जयाय सर्वजीव शरणाय परम पवित्रपुरुषाय चतुर्वेदाननाय अष्टादश दोष रहिताय सर्वज्ञाय सर्व दर्शिने अष्टमहाप्रातिहार्याय चतुस्त्रिंशदतिशय सहिताय श्री समवशरण द्वादश परिखावेष्टिताय ग्रहनागभूत यक्षराक्षस वश्यंकराय सर्वशान्तिकराय मम शिवं कुरू कुरू स्वाहा। (7)सर्वरक्षा मंत्र : ॐ हं यूं फट् किरिटिं-किरिटिं घातय-घातय परिविघ्नान् स्फोट्य स्फोट्य सहस्र खण्डान् कुरू कुरू परमुद्रां छिंद-छिंद परमन्त्रान् भिंद भिन्द हाँ हाँ झै वः फट् स्वाहा। विधि : सरसों पढ़कर चारों ओर फेंके। ब्रह्मचर्यपूर्वक इस मंत्र का जप करें और रात्रि में
भोजन न करें। (8) रक्षामंत्र- (अ) ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौ ह्र: श्रीं ह्रीं कलिकुंड दंड स्वामिन् सर्वरक्षाधिपतये
मम रक्षां कुरु कुरु स्वाहा। (ब) ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुंड दंड पार्श्वनाथाय-धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय घातिकर्म क्षयंकराय,
अतुलबल वीर्य पराक्रमाय सर्वचिंता विघ्नबाधा विनाशनाय स्फ्रां स्फ्रीं स्फूं स्फ्रौं
स्फ्रः हूँ फट् स्वाहा । (स) ॐ क्षां क्षीं झू झें मैं क्षों क्षौं क्षं क्ष: नमोऽर्हते सर्वं रक्ष रक्ष हूँ फट स्वाहा। (द) ॐ ह्रीं अहँ णमो सर्व विघ्न विनाशक ॐ श्रां श्रीं श्रृं श्रः ठः ठः स्वाह। विधि - इन मंत्रों में से किसी भी मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए।
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( 24 ) नवग्रह शान्ति हेतु विशेष मंत्र
(1) सूर्य - ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभु जिनेन्द्राय नमः, अथवा ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं । विधि - लाल वस्त्र, लाल माला, लाल आसन, लाल फूल आदि से पूर्व दिशा की ओर मुँह करके १०८ माला जपें तो सूर्य ग्रह पीड़ा शान्त होगी ।
( 2 ) चंद्र - ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय नमः, अथवा ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं । विधि - उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सफेद वस्त्र धारण कर सफेद माला, सफेद आसन से दस हजार जाप करें तो चन्द्र ग्रह पीड़ा शान्त होय ।
(3) मंगल - ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ।
विधि - पूर्व दिशा की ओर मुँह करके लाल वस्त्र, लाल माला, लाल आसन से दस हजार जाप करें तो मंगल ग्रह पीड़ा शान्त होय । ( 4 )
बुध - ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं । विधि - उत्तर दिशा की ओर मुँह करके नीले वस्त्र, नीली माला, नीले आसन से दस हजार जाप करें तो बुध ग्रह पीड़ा शान्त होय ।
(5) गुरु - ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो आइरियाणं
विधि - उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पीले वस्त्र, पीली माला, पीले आसन से जाप करें तो लाभ होय ।
( 6 ) शुक्र - ॐ ह्रीं श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं । विधि - उत्तर दिशा की ओर मुँह करके श्वेत वस्त्र, श्वेत आसन, श्वेत माला से जाप करें तो लाभ होय ।
(7) शनि - ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं । विधि - पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसमानी वस्त्र, आसमानी आसन, आसमानी माला से जाप करें तो शनि ग्रह पीड़ा से शान्ति मिले ।
( 8 ) राहु- ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहूणं । विधि - पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसमानी वस्त्र, आसमानी आसन, आसमानी माला से जप करें तो राहु ग्रह पीड़ा से शान्ति मिले ।
(9) केतु- ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः, या ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहूणं, विधि - पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके नीले वस्त्र, नीली माला, नीले आसन से दस हजार जाप करें तो केतु ग्रह पीड़ा से शान्ति मिले।
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विशेष विधि- जिस ग्रह की पीड़ा हो उस ग्रह से संबंधित मंत्र की दस हजार जाप करें,
दीपक जलाकर एवं तद्प माला, वस्त्र, आसन के साथ। 1.नोट- नवग्रह शान्ति के लिए- यदि सिर में रोग हो तो विधि अनुसार सूर्य
पूजा, मुंह में रोग हो तो चन्द, हदय में हो तो मंगल, कमर में हो तो बुध, दोनों पार्श्व मे कष्ट हो तो गुरू, पीठ में रोग हो तो शुक्र जंघा में हो तो शनि तथा दोनों पैरो में रोग हो तो राहू की पूजा
जाप करनी चाहिए। 2.नोट- जैन दर्शन (सिद्धांत) अनुसार आकाश में ग्रहों की संख्या ८८ है, लेकिन लोक
व्यवहार की दृष्टि से मुख्यता से नवग्रहों को विशेष मान्यता दी गयी है और हाँ, मन्त्र जाप से ग्रह शांत-अशांत नहीं होते, अपितु अपने मन की शान्ति के लिए जाप करते हैं। मंत्र जाप करने से मन में एक विशेष प्रकार की शान्ति होती है, अशुभ कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा होती है और शुभ कर्मों का बंध होता है
जिससे समस्त प्रतिकूलताएं अनुकूलता में बदल जाती हैं। 3.नोट- नवग्रह शान्ति हेतु बीज (मूल) मंत्र देखें पेज नं. (384) पर।
___ (25) सर्व ग्रह शान्ति मंत्र(1) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा सर्व शान्तिं कुरु-कुरु स्वाहा। (2) ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः सर्व ज्योतिषकेंद्रार्चित परमपुरुषाय सर्वग्रहारिष्टं नाशय नाशय
शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा। नवग्रह अरिष्ट निवारक मंत्र : ऊँ ह्रां णमो अरहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ऊँ हूँ णमो आइरियाणं, ऊँ हौं णमो उवज्झायाणं, ऊँ ह्रः णमो लोए सव्व साहूणं
सर्वारिष्ट निवारणाय कुरू कुरू स्वाहा विधि- शुभ वार से शुरुकर इस मंत्र की दस हजार जाप करें फिर १ माला प्रतिदिन जपें तो
सर्वग्रह के कुप्रभाव से शान्ति मिले। (4) प्रति कूल ग्रह अनुकूल होने का मंत्र- ॐ ह्रीं सर्वे ग्रहाः सोम सूर्यांगारक बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनिश्चर, राहू, केतु सहित सानुग्रहा मे भवन्तु। ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा स्वाहा। फल- इस मंत्र के स्मरण मात्र से प्रतिकूल ग्रह भी अनूकूल होते हैं। विधि- इस मंत्र का सवा लाख जाप कर मंत्र को सिद्ध करा लें, फिर मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करें।
(26) पद्मावती सिद्धि मंत्र
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(1) पद्मावती सिद्धि मंत्र- ॐ आं क्रों ह्रीं ऐं क्लीं ह्रों पद्मावत्यै नमः । विधि- इस मंत्र का सवा लाख जाप करने से पद्मावती मां प्रत्यक्ष दर्शन दें तथा १२५०००
जाप करने से स्वप्न में दर्शन होते हैं। (2) पद्मावती सिद्धि मंत्र- ॐ क्रों क्लीं ऐं श्रीं ह्रीं पद्म-पद्मासने नमः। विधि- इस मंत्र के एक लाख जाप करने से पद्मावती मां की सिद्धि होती है। (3) पद्मावती साधने का मंत्र- ॐ आं क्राँ ह्रीं ऐं क्लीं ह्रों पद्मावत्यै नमः । विधि- इस मंत्र के सवा लाख जाप मूंगे की माला पर करने से पद्मावती देवी के प्रत्यक्ष
दर्शन होते हैं तथा साढ़े बारह हजार जप करने पर स्वप्न में दर्शन होते हैं। पद्मावती के दर्शन से साधक को प्रचुर द्रव्य की प्राप्ति होती है तथा सरस्वती का वास जिह्वा
पर हो जाता है। (4) पद्मावती एकाक्षरी मंत्र- ॐ ह्रीं नमः । विधि- यह एकाक्षरी मंत्रविद्या तीन लोक को मोहित करने वाली और तुरंत फल देने वाली
विद्या है। (5) पद्मावती प्रसन्न मंत्र- ॐ प्रसन्नतरे प्रसन्न कारिणि (ह) स्वाहा।
अथवा- ॐ क्लीं ब्लूं ली थ्रीं श्रीं कलिकुण्ड भगवती स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १००८ बार जाप ज्येष्ठ माह में करने से पद्मावती महादेवीप्रसन्न होती है। (6) पद्मावती चिन्ताचूरणी मंत्र- ॐ णमो भगवती पद्मावती सर्व जन मोहनी सर्व
कार्यकारणी मम विकट संकट हरणी मम मनोरथ पूरणी-मम चिन्ताचूरणी ॐ
णमो पद्मावती नमः स्वाहा। विधि- शुक्रवार को मंत्र जाप शुरु करें फिर प्रतिदिन एक माला करें अर्थात् १०८ बार पढ़े। (7) श्री पद्मावती देवी का मंत्र- १. मंत्र- ॐ धरणेन्द्र पद्मावतीसहिताय पार्श्वनाथाय
भक्ताय क्षिप्रगति सहिताय मम दुखं निग्रह निग्रह स्वाहा। (8) ॐ क्रौं ह्रीं ऐं क्लीं ह्रौं पद्मावत्यै नमः। विधि- भगवान पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म दिवस के दिन से १० माला का जाप करें। फिर
रोज एक माला का जाप करें तो हर प्रकार की विघ्न बाधा का नाश होता है। अथवा- शुभ मुहूर्त में १२५०० जाप करें तो देवी स्वप्न में दर्शन देगी १२५०००
जाप करें तो देवी प्रत्यक्ष दर्शन देगी। (9) ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावती सर्व संकट हरणी सर्व सौख्य करणी सर्व मोहय-मोहय स्वाहा। विधि- इस मंत्र को शुभ मुहूर्त में शुरू करके १२५०० जाप करना चाहिए। फिर प्रतिदिन
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or
एक माला जपें। सर्वकार्य सिद्ध होय। (10) पद्मावती साधने का मंत्र- ॐ आँ क्रों ह्रीं ऐं ह्रौं पद्मावत्यै नमः । विधि- शुभ मुहूर्त में लाल माला से, लाल वस्त्र पहनकर, मंत्र के सामने दीपक जलाकर
सवा लाख जाप करें तो देवी स्वप्न में दर्शन दें। (11) पद्मावती की पंचोपचार पूजा- इस मंत्र से पद्मावती देवी के पंचोपचार करें।
ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवती पद्मावती एहि एहि संवौषट आह्वाननम्। २. ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवती पद्मावती तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ३. ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवती पद्मावती मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। ४. ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवती पद्मावती इदमयं-गंध-अक्षतं-पुष्प-दीपं-चळं-फलं
आदि गृहाण गृहाण स्वाहा। ५. ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवती पद्मावती स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः (विसर्जनं) (नोट : इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं की पंचोपचार पूजा कर सकते हैं)
(27) कलिकुण्डदण्ड मंत्र (1) श्री कलिकुण्ड स्वामी मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने
अप्रतिचक्रे जये विजये अजिते अपराजिते स्तंभे स्वाहा। विधि- छह माह तक एकासन करें तथा नित्यप्रति एक माला फेरें तो मंत्र सिद्ध हो जाता है।
फिर जब भी आवश्यकता पड़े तो २१ बार पढ़ें, सर्वजन वश हों, दुष्टजनों के मुँह बंद हों, अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही सौ कोस दूर हो रही व होने वाली घटनाओं
की पूर्व जानकारी प्राप्त हो। (2) कलिकुण्डदण्ड मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्डदण्ड स्वामिन् अतुलबल
वीर्य पराक्रमाय मम अभीष्ट सिद्धिं कुरु कुरु स्फ्रां स्फ्रीं स्फूं स्फ्रौं स्फ्रः ममात्मविद्यां
रक्ष रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद हूँ फट् स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १०८ बार पढ़ें। (3) ऐश्वर्य प्राप्ति व सन्तान सुख मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं लक्ष्मी कलिकुण्ड स्वामिने
मम आरोग्यं ऐश्वर्य कुरु कुरु स्वाहा। विधि- शुक्रवार को मंत्र जाप शुरु करें फिर प्रतिदिन एक माला करें अर्थात् १०८ बार पढ़े। (4) ऐश्वर्य प्राप्ति मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुंडस्वामिने मम आरोग्यं ऐश्वर्यं कुरु
कुरु स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १०८ बार पढ़ें।
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(4) ॐ ह्रीं क्लीं ऐं अर्ह कलिकुण्ड श्री पार्श्वनाथ धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय ममात्मविद्यां रक्ष रक्ष परविद्यां छिन्द छिन्द भिन्द भिन्द स्फ्रां स्फ्रीं स् स् स् ह्रूं फट् स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन प्रातः काल १०८ बार जाप करें।
(5) ॐ ह्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुण्ड दण्डस्वामिन अतुल बल वीर्य पराक्रमाय ममात्मविद्यां रक्ष रक्ष परविद्यां छिन्द छिन्द भिन्द भिन्द स्फ्रां स्फ्रीं स्क्रू स्फ्रौं स्फ हूं फट् स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन प्रातः काल १०८ बार जाप करें।
(28) ज्वाला मालिनी देवी सिद्धि मंत्र
(1) ज्वाला मालिनी देवी सिद्धि मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं चन्द्रप्रभ पाद पंकज निवासिनी ज्वालामालिनी तुभ्यं नमः ।
विधि - इस मंत्र को ६ दिन तक पिछली रात्रि में शुद्ध होकर ३ माला का जाप करें, तो ज्वालामालिनी देवी प्रत्यक्ष दर्शन देती है ।
( 2 ) ज्वालामालिनी मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं चंद्र प्रभु स्वामिन पादपंकज निवासिनी ज्वाला मालिनी स्वाहा, नित्यं तुभ्यं नमः ।
(29) चक्रेश्वरी देवी मंत्र
(1) चक्रेश्वरी देवी मंत्र - (अ) ॐ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी, चक्रवारुणी, चक्रवेगेन मम उपद्रव हन हन शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की २१ दिन तक १० माला प्रतिदिन फेरनी चाहिए । इसके बाद प्रतिदिन एक माला का जाप करें तो हर उपद्रव को शान्त करें व अत्यन्त लाभ दें ।
(2) ॐ नमो चक्रेश्वरी चिन्तित कार्य कारिणी मम स्वप्ने श्रुताश्रुतं कथय कथय दर्शय दर्शय स्वाहा ।
(3) ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं चक्रेश्वरी मम रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - शुभ मुहूर्त में जाप शुरु कर १२५००० जाप करें।
( 4 ) चक्रेश्वरी देवी रक्षा मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं चक्रेश्वरी मम रक्ष रक्ष कुरु कुरु
-
चक्रधारिणी
स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की रोज १०८ बार जाप करना चाहिए ।
( 5 ) चक्रेश्वरी दर्शन मंत्र ॐ नमः स्वप्न चक्रेश्वरी स्वप्ने अवतर - अवतर गतं
वर्तमान कथय - कथय स्वाहा ।
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विधि - आंगन को लीपकर दीपक जला लें तथा शक्कर के बताशे रख लें । फिर वहीं बैठकर २१००० बार जपें तथा मंत्र जपने के बाद वे बताशे कुँवारी कन्या को बाट दें तो यह देवी सिद्ध होती हैं । तथा सारे प्रश्नों के उत्तर स्वप्न में दे देती है । यदि यह जप एक लाख सतत कर लिया जाय, तो चक्रेश्वरी ( स्वप्नेश्वरी ) देवी प्रत्यक्ष स्त्री रूप में आकर दर्शन देती है तथा वरदान देती है ।
(6) स्त्री संबन्धी सर्व रोग निवारण मन्त्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं असि आउ सा भूर्भुवः स्वः चक्रेश्वरी देवी सर्व रोगं भिंद भिंदं ऋद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा । विधि - श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जाप करने से स्त्री संबन्धी समस्त कठिन रोगों का नाश होता है और सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। ( 30 ) पापभक्षिणी विद्या
(1) पापभक्षिणी विद्या- ॐ अर्हन्मुखकमल वासिनी पापात्मक्षयंकरि श्रुतज्ञानज्वाला सहस्रप्रज्वलिते सरस्वति मम् पापं हन हन दह दह क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः क्षीरवर धवले अमृतसंभवे वं वं हूं हूं स्वाहा।
विधि- चौबीस हजार सफेद पुष्पों पर जपें तथा जपते वक्त धूप जलाकर रख लें मंत्र सिद्ध होय । (2) त्रिभुवन स्वामिनी विद्या- ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं । ॐ हूं णमो आइरियाणं ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ हृः णमो लोए सव्वसाहूणं । श्रीं क्लीं नमः क्षां क्षीं क्षं क्षं क्षौं क्षः स्वाहा ।
विधि- चौबीस हजार सफेद पुष्पों पर जपें तथा जपते वक्त धूप जलाकर रख लें मंत्र सिद्ध होय । ( 31 ) कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि
(१.) प्रथम मूलमंत्र - ॐ ह्रीं श्रवण पिशाचिनी मुण्डे स्वाहा ।
विधि - यह मन्त्र एक लक्षजप से सिद्ध होता है । फिर कुट मूल को २१ बार इस मंत्र से अभिमंत्रित करके अपने हृदय, मुख, दोनों कान और दोनों पैरों को इससे पोते तो कर्णपिशाचिनी सोते हुए में सोचे हुए कार्य को कान में कहती है।
(२.) द्वितीय मूलमंत्र - ॐ नमो कर्ण पिशाचिनी वद २ कनक पिशाचि वज्र वैडूर्य मुक्ताभरण निर्मलालंकृत शरीरे एहि २ आगच्छ २ त्रैलोक्यदर्शनि मम कर्णे प्रविश्यातीतानागत वर्तमानं कथय २ रुद्राज्ञापयति ठः ठः ।
विधि - पहिले इस रुद्र कर्ण पिशाचिनी मंत्र को तीन लक्ष जपकर होम करें । सिद्ध होने पर इस मंत्र की देवी से पूछने पर वह कर्ण में सत्य २ कहती है।
( ३. ) तृतीय मूलमंत्र - ॐ
शुभे भगवती कर्ण पिशाचिनी सत्यं कथय २ ठः ठः ।
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विधि - कुठ और हल्दी से अपने पैरों को पोतकर इस मंत्र को जपता हुआ सो जावे । के अन्त के पहर में मंत्री (साधक) शुभ और अशुभ को देखता हैं। (४.) चतुर्थ मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं जिणाणं लोगुत्तमाणं लोग नाहाणं लोगाहियाणं लोग पवाणं लोग पज्जोय गराणं मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय ॐ ह्रीं कर्ण पिशाचिनी मुण्डे
स्वाहा ।
विधि - सोते समय रात में इस मंत्र को १०८ बार जपकर धूप खेकर सोने से रात में भविष्य दर्शक स्वप्न दिखाई देता है ।
(५.) पंचम मंत्र - ॐ ह्रीं कर्ण पिशाची में कर्णे कथय कथय हूं फट् स्वाहा । विधि - रात्री को दीपक का तेल पैरों में मलकर एक लाख मंत्र जपने से मंत्र सिद्ध होता है। (६.) षष्ठम मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं णमो जिणाणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोग पईवाणं लोग पज्जोय गराणं मम शुभाशुभं दर्शय-दर्शय कर्ण पिशाचिनी नमः स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूर्व की ओर मुखकर रुद्राक्ष की माला से दशों दिशाओं में १ - १ माला फेरें, एकासन करें, ब्रह्मचर्य से रहें तो मंत्र सिद्ध होय ।
( 32 ) स्वप्न में शुभा शुभ कहे मंत्र
(1) स्वप्न में शुभाशुभ का ज्ञान होय- ॐ ह्रीं अर्हं नमो जिणाणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जो अगराणं मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय ॐ ह्रीं कर्णपिशाचिनी मुण्डे स्वाहा ।
विधि - सोने से पूर्व १०८ बार पढ़कर सोने में स्वप्न में संभावित शुभाशुभ का ज्ञान होय । (2) ॐ नमो भगवती चक्रधारिणि भ्रामय भ्रामय मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय स्वाहा । विधि - स्वप्न में पूछे गये शुभाशुभ प्रश्न का फल ज्ञात होय ।
(3) स्वप्न में चिंतित कार्य कहे- ॐ किरि किरि स्वाहा।
विधि - अद्धरात्रि में नग्न होकर इस मंत्र का जाप करने से स्वप्न में चिन्तित कार्य कहता है । (4) कान में सब बात कहे मंत्र - ॐ धेंठ स्वाहा ।
विधि - लाल फूल से एक लक्ष मंत्र का जाप करें, तब सिद्ध होता है । जो पूछो भूत, भविष्य, वर्तमान की सब बात कान में कह देवे ।
(5) जो पूछो सो कहे मंत्र - ॐ ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं सिकोतरी मम चिंतितं कथय कथय
सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहा ।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि- अनेन मंत्रेण आजानु जल महये प्रविश्य १०८ कनेर का फूल जपिये चन्दन, केशर,
कपूर, कस्तूरी सूं हाथ लेप कीजे अग्र दीजे सफेद घोड़े चढ़ी कन्या दीखे जो पूछो
सो कहे। (6) ॐ अरिहंते उत्पत्ति स्वाहा। विधि- मंत्र का एक लाख जाप करने पर सिद्ध होता है। इस विद्या का नाम त्रिभुवन
स्वामिनि विद्या है। सिद्ध हो जाने पर विद्या से जो पूछो वह सब कहेगी। (7) स्वप्न में भविष्य फल ज्ञान होय मंत्र- ॐ द्रां क्लीं द्रां द्रां द्रं स्वाहा। विधि-स्वप्न में दर्शन होवे और भूत भविष्य का ज्ञान होवे। (8) स्वप्न मातंगी मंत्र- ॐ नमः स्वप्न मातंगिनि सत्य भाषिणी स्वप्नं दर्शय-दर्शय
स्वाहा। विधि- साधक को दिन रात बिना जल पिये रहना चाहिए तथा रात्रि को मात्र १०८ बार मंत्र
को जपकर वहीं पर सो जायें, तो उसी रात्रि को स्वप्न में प्रश्न का उत्तर मिल जाता है। (9) स्वप्न में आवाज आने का मंत्र- ॐ ह्रीं क्ष्वीं स्वाहा। विधि- ललाट पर लाल चंदन लगाकर इस मंत्र की १ माला फेरकर सो जाएं तो प्रश्न का
उत्तर मिलेगा। एक रात्रि में ऐसा न हो, तो ३ रात्रि तक ऐसा ही करें। (10) स्वप्न फल दायकमंत्र- ॐ ह्रीं स्वप्न चक्रेश्वरी! मम कर्णे अवतर-अवतर सत्यं
वद-वद स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए। (11) स्वप्न में शुभा शुभ कहे मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कर्ण पिशाचिनी पद्मावती देव्यै
मम शुभशुभं कथय-कथय स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए। (12) स्वप्नेश्वरी मंत्र- ॐ विश्वमालिनी विश्वप्रकाशिनी मध्यरात्रौ सत्यं अमुकस्य
वद-वद प्रकटय प्रकटय श्रीं ह्रीं हूं फट् स्वाहा। विधि- सिंगरफ, कालीमिर्च और स्याही एकत्र करके कागज पर लिखकर वह कागज
तकिये के नीचे रखकर सो जायें, तो स्वप्न में सब मालूम हो जाएगा। विशेष- एक माला मंगलवार या रविवार को इस मंत्र की जाप करें यदि सफलता न मिले
तो तीन दिन करें। ( 13 ) स्वप्न में आवाज आने का अर्ह मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ क्ष्वीं स्वाहा। विधि : रात्रि में मस्तक पर चन्दन लगाकर १०८ बार यह मंत्र पढ़कर सो जावें। जैसा कुछ
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होनहार होगा स्वप्न द्वारा मालूम हो जाएगा। पहले गुरूवार को ११०० मंत्र जप लें ।
( 14 ) स्वप्न में शुभाशुभ कथन मंत्र ॐ णमो अरिहा ॐ भगवउ बाहुबलीस्सय समणस्स अमले विमले निम्मल नाण पयासिणी ॐ णमो सव्व भाई अरिहा सच्च भासई केवलीणं एं एणं सच्च वयणेणं सच्च होउ में स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र का ध्यान रात्रि के समय खड़े-खड़े कायोत्सर्ग में करें। नींद आए, उस समय भूमि पर सो जाएं। इससे स्वप्न में शुभाशुभ का भान होता है।
(15) शुभाशुभ स्वप्न में मालूम मंत्र: ऊँ ह्रीं अर्हं क्ष्वीं स्वाहा ।
विधि - ललाट पर चन्दन का तिलक करके इस मंत्र की एक माला फेरकर सो जाएं तो स्वप्न में प्रश्न का उत्तर मिलेगा। एक रात्रि में वैसा न हो तो तीन रात्रि तक वह प्रयोग चालू रखें। (प्रकारान्तर से )
(33) दर्पण में देखते उत्तर मिले
(1) दर्पण में देखते उत्तर मिले- ॐ नमो मेरू महामेरू ॐ नमो गौरी महागौरी ॐ नमो काली महाकाली ॐ नमो इंद्रे महाइंद्रे
ॐ नमो जये महाजये ॐ नमो विजये महा विजये
ॐ नमो पव्वसमणि महापव्वसमणि अवतर अवतर देवि अवतर अवतर स्वाहा ।
ध्यान मंत्र :
( 34 ) श्री पंचांगुली देवी का मंत्र ॐ पंचागुली महादेवी श्री सीमन्दर शासने । अधिष्ठाती करस्यासौ, शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः ॥
(1 ) मंत्र : ओं नमो पंचागुली पंचागुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शाकिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषेणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गारूडीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरण मध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ उपरे बुरो जो कोई करावे जड़े जड़ावे तत चिन्ते चिन्तावे तस माथे श्री माता श्री पंचांगुली देवी तणे वज्र निर्धार पड़े ऊँ ठः ठः ठः स्वाहा।
विधि : कार्तिक मास में जब हस्त नक्षत्र प्रारम्भ हो, उस दिन से साधना प्रारम्भ करें । मार्गशीर्ष के हस्त नक्षत्र में पूर्ण करें। प्रतिदिन एक माला का जाप करें। जाप शुरू करने से पहले ध्यान मंत्र का एक बार उच्चारण करें, फिर जाप शुरू करें, जाप के बाद नित्य पंच मेवा की दस आहुतियों से अग्नि में हवन करें। इस प्रकार साधना करने से मंत्र
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सिद्ध हो जाता है। देवी का एक चित्र पाटे पर रखकर, उसके सामने बैठकर साधना करनी चाहिए। हस्त नक्षत्र रूप आधार पर स्थित हाथ की पांच अंगुलियों को प्रतीक स्वरूप देवी का एक चित्र बनवा लेना चाहिए ।
चित्र की कल्पना : शनि की अर्थात् मध्यमा उंगली के प्रथम पोरवे के आधे भाग पर देवी का मुकुट सहित मस्तक होगा, उसके पीछे सूर्य मंडल होगा। देवी के आठ हाथ होंगे, जिनमें दाहिने तरफ पहला हाथ आशीर्वाद का हो, दूसरे हाथ में रस्सी, तीसरे हाथ में तलवार, चौथे हाथ में तीर हो । बाईं तरफ पहले हाथ में पुस्तक, दूसरे हाथ में घंटा, तीसरे हाथ में त्रिशूल और चौथे हाथ में धनुष हो । गले में आभूषण, ललाट में तिलक, कानों में कुण्डल, कमर में करधनी (आभूषण) व सुन्दर वस्त्र हों । पैर मणिबन्ध रेखा नीचे तक आयें। इस तरह देवी का चित्र बनाना चाहिए ।
फल : हस्तरेखा सामुद्रिक जानने वाला व्यक्ति यदि इसकी एक बार साधना कर लें और फिर रोज हाथ को इस मंत्र से सात बार अभिमंत्रित कर उसे सर्वांग पर फेरें तो वह इसके फलस्वरूप हस्तरेखा द्वारा जन्मकुंडली बनाने में हाथ देखकर फल कहने में ही सदा सफल नहीं होता बल्कि उसके सूक्ष्म रहस्यों से भी परिचित होता है । पंचागुली देवी हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी है। कहते हैं कि पाश्चात्य विद्वान् कीरो भी इसकी ही साधना किया करता था। पंचागुली देवी का यंत्र भी है, जिसे यंत्र अधिकार में विधि सहित दिया गया है । साधना करते समय यंत्र को भी बाजोटे (पाटे) पर रखना चाहिए ।
नोट : विशेष विधि-विधान देखें, हमारी " हस्त रेखा से जाने मनुष्यों का स्वभाव पुस्तक से ।
(2) पंचांगुली मंत्र : ऊँ ह्रीं पंचागुलीदेवी देवदत्तस्य आकर्षय आकर्षय नमः स्वाहा । विधि : शुक्लपक्ष की अष्टमी से यंत्र के सामने ४१ दिन तक १०८ बार जपें तो हजार गांव से मनुष्य अथवा स्त्री का आकर्षण होवे ।
"
(3) ऊँ ह्रीं पंचांगुली देवी अमुको अमुकी मम वश्यं श्र श्रां श्रीं स्वाहा ।
विधि : सोते समय यंत्र के सामने १३ दिन तक १०८ बार मंत्र जपें तो मन की इच्छा पूर्ण होती है । इच्छित व्यक्ति वश में होता है। यंत्र को छप्पर पर या छत पर बांध दें।
(4) ऊँ ह्रीं क्लीं क्षां क्षं फट् स्वाहा ।
विधि : यंत्र को शत्रु के वस्त्र पर श्मशान के कोयले से लिखे, मंत्र को १०८ बार धूपपूर्वक जपें, फिर यंत्र को एक कपड़े में बांधकर एक पत्थर में बांधे और फिर उसको कुएं में प्रवेश करावें । ऐसा ४१ दिन करें तो विद्वेषण होगा ।
(5) पंचांगुलीमूल मंत्र : ॐ ह्रीं श्री पंचागुली देवी सरीरे सर्व अरिष्टान् निवारणाय नमः
स्वाहा ठः ठः ।
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विधि : मंत्र को पूर्ण विधि-विधान से सवा लाख जपें तो पंचागुली देवी सिद्ध होये, सर्वकार्य की सिद्धि होये।
(35) नवरात्रि, दीवाली,शरद पूर्णिमा ,सर्वकार्य सिद्धि मंत्र (1) नवरात्रि, सर्वकार्य सिद्धि मंत्र : "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ह्र: ऐं नमः स्वाहा।"
विधि : नवरात्रि में ब्रह्मचर्यव्रत पूर्वक, दिन में एक बार भोजन कर, पवित्र मन से एकान्त में अखण्ड दीप, धूप पूर्वक साढ़े बारह हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है। फिर नित्य एक माला अवश्य जपें, इससे आनंद से दिन निकलता है। २१ बार जपकर व्याख्यान दें तो श्रोता मोहित होय। २१ बार जपकर वाद-विवाद करें तो जय होय। कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने २१ बार जपकर बोलें तो मुकदमें में विजय होय। जलाशय के किनारे बैठकर एक माला जपकर गांव में जायें तो व्यापार लाभ होय, सर्वकार्य सिद्ध हों। शत्रु पराजय होय, २१ बार जपने से सिरदर्द दूर होय। २१ बार मंत्रित कर पानी पिलाने से पेट दर्द दूर होय। बिच्छू का जहर उतरे। मार्ग में चलते समय जपें तो सर्वभय नष्ट होय। (2) नवरात्रि सर्व मनोरथ पूर्ण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ऐं नमः। विधि- यह सर्व कार्य सिद्धि मंत्र हैं, इसे नवरात्रि में साढ़े बारह हजार जाप करके सिद्ध करें
व प्रयोग के समय मात्र “२१" बार स्मरण करें सब कार्य की सिद्धि होगी। (3) दीवाली मनोवांछित कार्य मंत्र : १. ऊँ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र
पद्मावती सहिताय अढे मुठे क्षुद्र विघठे क्षुद्रान् स्थम्भय स्थम्भय दुष्टान् चूरय
चूरय मनोवांछितं पूरय पूरय स्वाहाः। विधि : दीवाली के दिन १००० जप करें, पीछे एक माला नित्य फेरें तो मनोवांछित कार्य हों। (4) दीवाली मनोवांछित कार्य मंत्र : - ऊँ नमो पद्मावती मुख कमल वासिनी गोरी
गांधारी स्त्री पुरुष मन क्षोभिनी, त्रिलोक मोहनी स्वाहा। विधि : दीपावली के दिन १ माला जप करें, सर्व कार्य सिद्ध होय। (5) लक्ष्मी प्राप्ति का अद्भुत मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ठें ॐ घंटाकर्ण महावीर
लक्ष्मी पूरय-पूरय सुख सौभाग्यं कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दीवाली की धनतेरस को इस मंत्र की ४० माला, चतुर्दशी को ४२ माला और
अमावस्या को ४३ माला लाल वस्त्र पहन कर लाल आसन पर बैठकर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र की जाप करें। जाप के स्थान में मंगल कलश विराजमान करें एवं तीर्थंकर की फोटो के सामने दीपक जलायें और धूप खेते
जायें। तीनों दिन पूर्ण संयम रखें तो इस मंत्र के प्रभाव से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। (6) दरिद्रता नाश के लिए- “ॐ ह्रीं दारिद्रय विनाशने अष्टलक्ष्मयै ह्रीं नमः"
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विधि- दीपावली की रात्रि में कमलगट्टे या स्फटिक की माला से पूर्व दिशा में मुख करके दीपक
जलाकर निम्न मंत्र का जाप करेंपहले इस मंत्र से मंत्र का उत्कीलन करें
"ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलन कुरु कुरु स्वाहा।" (7)लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र- ॐ ह्रीं श्री गजवाहिनी महालक्ष्मी धन धान्यं वृद्धि कुरु-कुरु
स्वाहा। विधि- दीवाली की रात को 120 माल जप करें, पश्चात्, प्रतिदिन एक माला जपे तो
लक्ष्मी की प्राप्ति हो। (8) दीपावली कर्ज मुक्ति मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ॐ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मी
पूरय-पूरय सुख सौभाग्यं कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दीपावली को सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला का उपयोग करें व व्यापार
वृद्धि मंगल कलश की स्थापना करें। दीपक जलाएं उत्तर दिशा को मुंह करके जप
करें तो वह वर्ष निश्चित ही कर्ज मुक्ति हो। (10) शरद पूर्णिमा पर (पापभक्षणी विद्या) सरस्वती मंत्र : ऊँ अर्हन् मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयंकरी श्रुतज्ञान ज्वाला सहस्त्र प्रज्वलने सरस्वती मम् पापं हन हन, दह दह, पच-पच, क्षां क्षीं हूं क्षौं क्षः क्षीर वर, धवले अमृत संभवे (पल्लवे) अमृत श्रावय श्रावय वं वं हूँ फट् स्वाहा। विधि : मंत्र को कांसे की थाली में सुगन्धित द्रव्य से लिखे १००८ पुष्पों से जप करें मेवा
की खीर बनाकर रखें फिर दूसरे दिन सिर्फ वही खीर खायें और कुछ न खायें तो सरस्वती प्रसन्न होय।
(36) क्षेत्रपाल सिद्धि मंत्र (1) क्षेत्रपाल मंत्र- ॐ खं क्षेत्रपालाय नमः विधि- सवा लाख जाप करें तो क्षेत्रपाल प्रसन्न हो। (2) क्षेत्रपाल सिद्धि मंत्र- ॐ क्षां क्षीं झू क्षौं क्ष: क्षेत्रपालाय नमः। विधि- इस मंत्र की त्रिकाल १२माला जाप करने से क्षेत्रपाल जी प्रसन्न होते हैं। (3) क्षेत्रपाल मंत्र- ॐ खं क्षेत्रपालाय नमः। विधि- ताम्र पत्र पर क्षेत्रपाल की मूर्ति बनाकर उस पर जल व दुग्ध धारा करते हुए एक
लाख जप करने से मंत्र सिद्ध होता है, क्षेत्रपाल प्रसन्न होता है ।( प्रकारान्तर से) (4) देव प्रसन्न मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमि उण विसहर विसह जिण फुलिंग ह्रीं श्रीं नमः । विधि- शुभदिन, तिथि, नक्षत्र से शुरु कर एक लाख जाप करें।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
( 37 ) प्रत्येक तीर्थंकर के काल में उत्पन्न क्षेत्रपाल
तीर्थंकर क्षेत्रकाल
१.
जय
२.
क्षेमभद्र
३.
वीरभद्र
४.
महाभद्र
५.
६.
७.
८.
९.
१०.
११.
१२.
१३.
१४.
१५.
१६.
१७.
१८.
१९.
२०.
२१.
२२.
२३.
२४.
कल्याणभद्र
कालाचन्द्र
विद्याचन्द्र
सोमकांत
वज्रकांति
शतवीर्य
तीर्थरुचि
लब्धि रुचि
विमलभक्ति
स्वभावनामा
धर्मकर
सिद्धसेन
यक्षनाथ
गिरिनाथ
क्षितिज
तंद्रराज
मंत्र अधिकार
कपिल
कौकल
कीर्तिधर
कुमुद
विजय
क्षांतिभद्र
वलिभद्र
भद्रभद्र
महाभद्र
कल्पचन्द्र
चन्द्र गुण
रविकांति
वीरकांति
महावीर्य
भावरुचि
तत्वरुचि
आराध्यरुचि
परभाव नामा
धर्माका
महासेन
भूमिनाथ
गद्धरनाथ
भवप
गुणराज
वटुक
खगनाम
स्मृमिधर
अंजन
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अपराजित मानभद्र
श्रीभद्र
शान्तिभद्र
गुणभद्र
चन्द्रायभद्र
शतभद्र
दानभद्र
पद्मभद्र
नयभद्र
कुमुतचन्द्र
खेमचन्द्र
कुमुद्र चन्द्र
विनयचन्द्र
शुभ्र
हेमकांति
विष्णुकांत चन्द्रकांति
बलवीर्य कीर्तिवीर्य
शान्तिरुचि
तूर्यवाद्य रुचि
भावश्य वैद्यवाद्यरुचि
सहजानन्द
विनय नाम
भव्यरुचि
सम्यक्तरुचि
वैद्य रुचि
अनौपम्य
शांतकर्मा
(सातृकर्मक)
लोकसेन
देशनाथ
वरूणनाथ
क्षांतिप
कल्याणराज
भैरव
त्रिनेत्र
विनयधर
चामर
विनय केतु
अवनिनाथ
मैत्रनाथ
क्षेत्रप ( यक्षप)
भव्यराज
भैरव मल्लाकाखय
कलिंग
अब्जधर ( अब्जारव्य)
पुष्पदन्त
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मंत्र अधिकार
मुनि प्रार्थना सागर
( 38 ) घंटाकर्ण मंत्र -
(1) ॐ यक्षिणी आकर्षिणी घंटा कर्णे घंटा कर्णे विशाले मम स्वप्नं दर्शय-दर्शय स्वाहा। विधि- नित्य रात्रि को ११०० मंत्र जाप करें, तो ११ वें दिन उसके प्रश्न का उत्तर स्वप्न में मिल जाता है।
( 2 ) श्री घंटाकर्ण द्रव्यप्राप्ति मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ॐ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मी पूर - पूरय सुख सौभाग्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - धनतेरस को ४० माला, रूप चौदस को ४२ माला तथा दीपावली को ४३ माला का जाप करें तो वह वर्ष निश्चित ही लक्ष्मी प्राप्ति हो । उत्तर दिशा को मुंह करके सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला का उपयोग करें व व्यापार वृद्धि मंगल कलश की स्थापना करें। दीपक जलाएं।
(3) घंटाकर्ण मंत्र - 'ॐ घंटाकर्णो महावीरः " आदि मंत्र के पीछे “मम बंधी मोक्षं
कुरु कुरु स्वाहा । "
लगाकर कैदी के छोड़ने के अर्थ पश्चिम दिशा में मुख करके २१ दिन तक दस हजार जाप करें, तब यह मंत्र सिद्ध होता है। बंदी के छूटने के पश्चात् दशांश पंचामृत होम करें। ( 4 ) घण्टाकर्ण स्तोत्र
ॐ घंटाकर्णो महावीर, सर्व व्याधि विनाशकः । विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ॥ यत्रत्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणश्यंति, वातपित्तकफोद्भवाः । तत्र राजभयं नास्ति, यांति कर्णे जपात्क्षयं । शाकिनी भूतवेताला, राक्षसा च प्रभवन्ति नः ॥ नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण डस्यते । अग्नि चोर भयं नास्ति, ह्रीं घंटाकर्णो नमोस्तुते ॥
ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - इस स्तोत्र को मंदिर जी में या घर में दीप जलाकर धूप खेते हुए रोज भक्ति पूर्वक पढ़ने से सर्व तरह की बाधायें दूर होकर धन-धान्य आदि की वृद्धि होकर गृह शांति होती है। अथवा उत्तर दिशा में लाल माला, वस्त्र, आसन से ७२ दिन में सवा लाख जप करें, अन्त में दशांश होम करें किसमिश, बादाम, नारियल, चारोली आदि से तो सर्व अरिष्ट शान्त हों ।
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(5) घंटाकर्ण मंत्र द्वितीय
मंत्र अधिकार
ॐ घंटाकर्णो महावीर, सर्व व्याधि विनाशकः । विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ॥१॥ लक्ष्मी वृद्धिकरं देवं, ह्रीं कराय नमोऽस्तु ते । यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणश्यंति, वातपित्तकफोद्भवाः॥२॥ तत्र राजभयं नास्ति, यांति कर्णे जपात्क्षयं । शाकिनी भूतवेताला, राक्षसा च प्रभवन्ति नः पिशाचा ब्रह्म राक्षसाः ॥३॥ नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दृश्यते । ग्रह देवा क्षेत्रपाला, स्वन भवंति कदाचन ॥ अग्नि चोर भयं नास्ति, ह्रीं घंटाकर्णो नमोस्तुते ॥४॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लीं ऐं घण्टा कर्णो नमोस्तुते ॐ नर वीर ठः ठः ठः स्वाहा।
विधि- यह घंटाकर्ण मंत्र का जाप ४२ दिन तक प्रतिदिन त्रिकाल १०८ बार जपें। धूप खेवें। मिर्च, सरसों जप कर होम करें तो अनिष्ट देव का भय नहीं होता ।
मुनि प्रार्थना सागर
शासन देवी-देवता मान्य हैं
चक्रेश्वर्यादिदिक्पाला यक्षाश्च शांतिहेतवे । सम्यदग्दर्शनयुक्तत्वात्ते पूज्या जिनशासने | | 4 |
अर्थ चक्रेश्री, दिक्पाल, यक्ष आदिदेवता शान्ति प्रदान करने वाले हैं। ऐसे देव सम्यदृष्टी होने के कारण पूज्य हैं ऐसा जैन शास्त्रों का आदेश है उनकी पूजा करने में देव मूढ़ता नहीं होती क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव सदा पूज्य होता है ।
( उमास्वामी श्रावकाचार - पृष्ठ 29 )
( 39 ) अनेक विशेष मंत्र
(1) ऋषि-मण्डल मंत्र - ॐ ह्रां हिं हुं ह्रूं हें ह्रौं ह्रः असि आउ सा सम्यग्दर्शन ज्ञान
चारित्रेभ्यो ह्रीं नमः ।
-
इस मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए ।
विधि नोट - विशेष फल देखें यंत्राधिकार के पेज नं. (391) पर ।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
(2) गायत्री मंत्र - ॐ भूर्भुवः स्व तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
विधि
इस मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए ।
( 3 ) मंगल ग्रह निवारण मंत्र - ॐ आं क्रौं श्रीं क्लीं भौमारिष्ट निवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की प्रतिदिन प्रातः काल दो माला जाप करें, छह माह तक ।
(4) कालसर्प दोष निवारण मंत्र - (अ) ॐ ह्रीं क्लीं ऐं केतु अरिष्ट निवारक श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
(ब) ॐ ह्रीं भ्र्व्यू बीजाक्षर सहिताय श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः ।
विधि - इन मंत्रों में से किसी भी मंत्र की यंत्र के सामने छह माह में 51 हजार जाप करना चाहिए।अर्थात् सुबह, दोपहर व रात को तीनों समय एक-एक माला करना चाहिए । (5) केतु राहु ग्रह पीड़ा निवारक मंत्र - ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं, ॐ णमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूणं ।
विधि - इस मंत्र की दस हजार जाप करना चाहिए ।
( 6 ) भगवान पारसनाथ का मूल मन्त्र - “ ॐ पां पारसनाथाय नमः"। इस मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए।
विधि
नोट-म
- मन्त्र बीज और मन्त्र बनाने के विधान में बताया गया है कि 'स्वर और व्यंजन पर अनुस्वार ( ं) बिन्दु लगाने पर वह मन्त्र बीज बनता है । यदि कभी मंत्र बनानें कि आवश्यकता हो तो उस दशा में नाम के प्रथम अक्षर पर बिन्दु लगावें और नाम के साथ चतुर्थीभक्ति जोड़ें। नाम के आगे प्रणय और अन्त में नमः पल्लव लगाने पर वह उस देव का मूल मन्त्र बन जाता है- जैसे पारसनाथ"ॐ पां पारसनाथाय नमः”। यह भगवान पारसनाथ का मूल मन्त्र है।
(7) भगवान महावीर स्वामी का मूल मन्त्र- "ॐ मं महावीराय नमः"। विधि
-
इस मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए ।
( 8 ) अष्टाक्षरी मंत्र - ॐ णमो अरहंताणं ।
विधि
- इस मंत्र का ११०० जाप करने से अत्यन्त शान्ति प्राप्त होती है ।
( 9 ) महान प्रभावक नमस्कार मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं णमो अरहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं णमो आइरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं णमो लोए सव्व साहूणं ।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि - शुभ मुहूर्त में साधना प्रारंभ करें, शुद्ध वस्त्र पहने, स्फटिक या सूत की माला से जाप शुरु करें । २७ दिन तक सुबह, दोपहर व रात को - तीनों समय प्रत्येक पद की ९ माला फेरें। पहले दो पदों की पूर्व की ओर मुँह करके - प्रत्येक पद की नौ-नौ माला फेरें । तीसरे पद की उत्तर की ओर मुँह करके नौ माला फेरें, चौथे पद की पश्चिम की ओर मुँह करके नौ माला फेरें और पाँचवे पद की दक्षिण की ओर मुँह करके नौ माला फेरें । सत्ताईस दिनों में जाप पूर्ण होगा। यह अत्यन्त ही प्रभावशाली मंत्र है। जाप के दिनों में चामत्कारिक घटनाएँ हो सकती हैं।
(10) कल्याणकारी मंगलकारी नवकार मंत्र - ॐ ह्रीं असि आ उ सा नमः । विधि- यह सर्वसिद्धि मंत्र है। इसका १२५००० जाप होने से मंत्र सिद्धि होती है। सर्व प्रकार की सम्पत्ति व सिद्धि मिलती है । महाकल्याणकारी मंत्र है।
( 11 ) त्रिभुवन सार मंत्र - ॐ क्षम्यूँ जम्र्व्यू भर्व्यू म्म्र्व्यू ह्मर्व्यू फ्र्व्यू आं क्रीं ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं संवौषट् ।
विधि - यह मंत्र दश सहस्र जप और दशांश होम से सिद्ध हो जाता है। यह तीन लोक में सार मंत्र गुरु की कृपा से जानना चाहिए ।
( 12 ) त्रेलोक्य मण्डल विधान जाप - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अनाहत विद्याधिपाय त्रैलोक्यनाथाय नमः सर्व शांतिं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि-विधान के समय 51 हजार जाप करना चाहिए ।
( 13 ) सुख शान्ति हेतु प्रतिदिन के लिए जाप
रविवार - ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः । सोमवर - ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय नमः । मंगलवार - ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः । बुधवार - ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय नमः । गुरुवार - ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय नमः । शुक्रवार - ॐ ह्रीं श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय नमः ।
शनिवार - ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय नमः । विधि - इन मंत्रों में से वार (दिन ) के अनुसार प्रतिदिन १०८ बार जाप करना चाहिए । (14) मात्रका मंत्र - ॐ नमोऽर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः क ख
ग घ ङ, च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श
ष स ह ह्रीं क्लीं क्रौं स्वाहा ।
विधि - मंत्राराधना १०८ बार जाप करें।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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( 15 ) सुरेन्द्र मंत्र-ॐ ह्रां वषट् णमो अरहंताणं संवौषट् ॐ ब्लू क्लीं द्रीं द्रां ह्रीं क्रौ आ सः
ॐ नमोऽहँ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ, च छज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व श ष स ह क्लीं
ह्रीं क्रौं स्वाहा। विधि-मंत्राराधना १०८ बार जाप करें। (16) वर्द्धमान मंत्र- ॐ णमो भयवदो वड्ढमाणस्स रिसहस्स चक्कं जलं तं गच्छइ
आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा थंभणे वा रणांगणे वा रायं गणे
वा मोहेण वा सव्वा जीवसत्ताणं अपराजिदो मम भवदु रक्ख रक्ख स्वाहा। विधि- इस वर्द्धमान महाविद्या को उपवास करके एक हजार जप सुगंधित पुष्पों से करें,
दशांश होम करें तो ये मंत्र सिद्ध हो जाये। फिर कहीं से भय आने वाला हो अथवा आ गया हो तो सरसों हाथ में लेकर सर्वदिशाओं में फेंक देने से आगत उपद्रव भय, परकृत विद्याएं सर्व स्तम्भित हो जाएंगे। घर में स्मरण मात्र से ही शान्ति हो जायेगी। इस परकृत उपद्रव शान्त मंत्र का विलक्षण फल गुरुगम्य है।
(40) महामृत्युञ्जय मंत्र (1) महामृत्युञ्जय मंत्र- ॐ ह्रों ॐ जूं सः त्र्यम्बकं यजामहे भुर्भुवः सुगन्धि पुष्टि वर्द्धन
उर्वा रुकमिक बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वरो भुर्भुव: जूं सः ह्रों फ नमः । विधि- प्रत्येक साधक को मृत्यु भय टालने व अकाल मृत्यु को समाप्त करने के लिए इससे
बढ़कर मंत्र व अनुष्ठान नहीं है। सवा लाख मंत्र जप करने से यह मंत्र सिद्ध होता है। इसमें रोग निवारण की शक्ति है। मंत्र जाप का दशांश बिल्व फल तथा तिल लेकर हवन किया जाता है। जप से साधक का देह अन्तिम समय तक सुसंगठित, सुन्दर होता है। कुटुम्ब रक्षा, अकाल घात व बलाघात वत् अशुभ योगों हेतु
सर्वाधिक मंत्र योग्य है। (२) महामृत्युंजय मंत्र - ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ हूँ णमो
आइरियाणं ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं मम सर्वग्रहारिष्टान्
निवारय-निवारय अपमृत्युं घातय-घातय सर्वशान्तिं कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दीप जलाकर धूप देते हुए नैष्ठिक रहकर इस मंत्र का स्वयं जाप करें अथवा अन्य
द्वारा करावें। यदि अन्य व्यक्ति जाप करें तो 'मम्" के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जोड़ लें- अमुकस्य सर्वग्रहारिष्टान् निवारय आदि। इस मन्त्र का सवा लाख जाप करने से ग्रह बाधा दूर होती है। कम से कम इस मन्त्र का ३१ हजार जाप
करना चाहिए। जाप के अनन्तर दशांश आहुति देकर हवन भी करें। (३) मृत्युञ्जय मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौ ह्र: णमो जिणाणं जीवन लाभं कुरु-कुरु स्वाहा।
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विधि- प्रतिदिन प्रातःकाल १०८ बार जपें।
(41) यक्षिणी विद्या (1) आकाशगामिनी मंत्र (सुलोचन यक्षिणी विद्या)- ॐ लैं लैं सुलोचने सिद्धं
देहि देहि स्वाहा। विधि- पर्वत पर या नदी के किनारे तीन लाख जाप करें। घृत से दशांश हवन करें तो
सुलोचनानामक यक्षिणी सिद्ध हो, जो आकाशगामिनी दो पादुकाएँ भेंट करे
जिससे जहाँ चाहे जा सकें। (2) अदृश्य होने का मंत्र (मदना यक्षिणी विद्या)- ऐं मदने मदनबिटंबनी
(मदनबिन्टबिनी) आत्मीय मम देहि देहि श्रीं स्वाहा। विधि- राजद्वार पर एक लाख जाप करें तथा जातिपष्प व दध से दशांश हवन करें तो मदना
नामक यक्षिणी सिद्ध होय, जो एक गुटिका भेंट करे जिसे मुंह में रखने से अदृश्य
हो जाने की शक्ति प्राप्त होती है। (3) विद्याधर बनने का मंत्र ( मानिनी यक्षिणी विद्या)- ऐं मानिनी ह्रीं ऐहि ऐहि
सुंदरी हस हस समीह मे सगमकं स्वाहा। विधि- जहां चौपाये जानवर रहें, वहां बैठकर १२५००० जाप करें व लाल फूल व तीन
वस्तुओं से दशांश होम करें तो मानिनी नामक यक्षिणी सिद्ध होय, जो साधक के पास स्त्री रूप में आकर उससे संभोग करे और उसके बाद एक तलवार भेंट दे
जिससे वह विद्याधर बनने की शक्ति प्राप्त करे। (4) पृथ्वी के अन्दर की वस्तुएँ दिखें मंत्र (हंसिनी यक्षिणी विद्या) - हंसिनी
हंसयाने (हंसयनि) क्लीं स्वाहा। विधि- नगर द्वार पर एक लाख जाप करें व कमल पत्र से दशांश हवन करें तो हंसिनी
नामक यक्षिणी सिद्ध हो, जो साधक को अंजन भेंट करे, जिससे पृथ्वी के अन्दर
की वस्तुएं देखी जा सकें। (5) पृथ्वी में गड़े खजाने दिखें (शतपत्रिका यक्षिणी विद्या) - शतपत्रिके ह्रां ह्रीं
ध्वीं स्वाहा। विधि- वट वृक्ष के नीचे एक लाख जाप करें व घृत से दशांश हवन करें तो शत पत्रिका
नामक यक्षिणी सिद्ध होय जो पृथ्वी में गड़े खजाने को बताये। (6) प्रतिदिन ५०० रुपये मिलें मंत्र ( मोहन यक्षिणी विद्या) - हूं मम मेखले ग ग
ह्रीं स्वाहा। विधि- पलाश वृक्ष के नीचे १४ दिन तक जाप करें तो मेखल नामक यक्षिणी सिद्ध होय
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जो प्रतिदिन पांच सौ रुपये तक भेंट दे। (7) छोटा होने का मंत्र (विकला यक्षिणी विद्या) - विकले ऐं ह्रीं श्रीं हूँ स्वाहा। विधि- घर में तीन माह तक जाप करें तो विकला नामक यक्षिणी सिद्ध होय जो अणिमा
विद्या दें। (8) मनवाछित धन प्राप्ति मंत्र (लक्ष्मी यक्षिणी विद्या) - ऐं कमले कमल धारिणी
हंस स्वाहा। विधि- लाल कनेर के फूलों से एक लाख जाप करें कुंड में गूगल से दशांश हवन करें तो
इससे लक्ष्मी नामक यक्षिणी सिद्ध होय, जो पांच विद्या दे तथा मनवांक्षित धन
(9) स्तंभन मंत्र (कालकर्णी यक्षिणी विद्या) - क्रों कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा। विधि-ब्रह्म वृक्ष के नीचे एक लाख जाप करें व मधु मिश्रत (चासनी) दशांश हवन करें तो
कालकर्णी नामक यक्षिणी सिद्ध होय, जो सैन्य,अग्नि, मधु, गर्भ आदि स्तंभन की
विद्या दें। (10) वृद्धावस्था न आये मंत्र (महाभय यक्षिणी विद्या) - ह्रीं महाभय एहिं स्वाहा। विधि-श्मशान में जहां मुर्दा जलाया गया हो, वहां बैठकर एक लाख जाप करें तो महाभय
नामक यक्षिणी सिद्ध होय, जो रसायन दे जिसके खाने से वृद्धावस्था नहीं आये व
वृद्धावस्था हो तो युवा हो जाये। (11) महाशक्ति प्राप्त मंत्र (माहिन्द्री यक्षिणी विद्या)- माहिन्द्री कुल कुल युल युल
स्वाहा। विधि- इन्द्रधनुष के उदय के समय निर्गुण्डी वृक्ष के नीचे बैठकर १२००० जाप करें तो
माहिन्द्री नामक यक्षिणी सिद्धि होय जो आकाशगामिनी, पातालगामिनी, नगरप्रवेश, वचनसिद्ध, देव, भूत, प्रेत, पिशाच, शाकिनी, बेताल झोंटिग आदि को दूर करने
की शक्ति दे। (12) अदृश्य होने का मंत्र (श्मशानी यक्षिणी विद्या)- ह्रां ह्रीं स्युः श्मशान वासिनी
स्वाहा। विधि-श्मशान में नग्न होकर ४ लाख जाप करें तो श्मशानी नामक यक्षिणी सिद्धि होय, जो
एक पट्टा दें जिससे अदृश्य होकर तीनों लोकों में घूम सकें। (13) हजार वर्ष तक जीवित रहे मंत्र (चन्द्रिका यक्षिणी विद्या)- ओं नमो भगवती
चन्द्रिकाय स्वाहा। विधि- शुक्ल पक्ष की रात्रि में एक लाख जाप करें तो चन्द्रिका नामक यक्षिणी सिद्धि होय
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जो अमृत रसायन दे, जिससे हजार वर्ष तक जीवित रहने की शक्ति प्राप्त हो । नोट :- इस कल्प में हमनें २४ यक्षिणियों की विधि विधान में से मात्र १३ को दिया है शेष को अनुचित समझकर नहीं दिया ।
(42) सामान की बिक्री का मंत्र
(1) सामान की बिक्री का मंत्र - ॐ नमो अरहंताणं नमो सिद्धाणं नमो अनंत जिणाणं सिद्धयोग धाराणं सव्वेसिं विज्जाहर पूत्ताणं कयंजली इमं विज्जारायं पउंजामि इमामे विज्जाय सिष्यउ आर कालि बाल कालि पुंस खररेउ आवतवो चडि स्वाहा ।
विधि- पृथ्वी पर से सात कंकर लेकर इस मंत्र से २१ बार या १०८ बार मंत्रित कर बिकने वाली दुकान की चीजों पर डाल देने से शीघ्र ही उस सामान की बिक्री हो जाती है।
(2) वस्तु - विक्रय मंत्र- नट्ठट्ठ मयट्ठाणे, पणट्ठ कमट्ठ नट्ठ संसार । परमट्ठ निट्ठियट्ठे, अट्ठेगुणा धीसरं वंदे ॥
विधि - इस मंत्र की साधना कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन संध्या बीत जाने के पश्चात् एक पहर रात रह जाने पर प्रारंभ करें । जाप करते वक्त धूप, दीप रखें व गूगल का हवन करें। प्रतिदिन दो हजार जाप करें । ११००० जाप होने पर मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध होने के बाद अभिमंत्रित कर फिर बाजार में बिक्री के लिए निकलें तो मुँह माँगे दाम आएं तथा तुरन्त बिक्री हो ।
(3) वस्तुशीघ्र बिके मंत्र : आक्खालि वालिका लिंप सुखरे ऊँ आवत वो चडि स्वाहा । विधि : सात कंकर लेकर मंत्रित कर बिकने वाली वस्तु में डाल दें तो वस्तु अतिशीघ्र बिक जाती है ।
(4) क्रय-विक्रय में लाभ का मंत्र - ॐ नमो भगवउ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खीण महाणसस्स अवतर अवतर स्वाहा ।
विधि
- इस मंत्र से ५०० बार अक्षत (चावल) को मंत्रित करके बिकने वाली चीजों पर डालने से विक्रय शक्ति बढती है और क्रय-विक्रय में लाभ होता है ।
(5) माल क्रय में लाभ होवे - ॐ ह्रीं श्रीं धन धान्य करि महाविधे अवतर अवतर मम गृहे धन धान्य कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - ५०० बार अक्षताभिमंत्र्य क्रयाण के क्षिप्यते क्रयो लाभश्य भवति ।
( 6 ) वस्तु अक्षय होय मंत्र - ॐ नमो आदि योगिनी परम माया महादेवी शत्रु टालिनी, दैत्य मारिनी मनवांछित पूरणी, धन आन वृद्धि आन जस सौभाग्य, आन आनै तो आदि भैरवी तेरी आज्ञा न फुरै । गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो ईश्वरो मंत्र वाचा।
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विधि - निरन्तर १०८ बार विधिपूर्वक जपने से लक्ष्मी प्राप्ति, सर्वकार्य सिद्धि होय । २१ बार या १०८ बार जपके जिस वस्तु पर हाथ रखें वह अक्षय होय ।
(7) वस्तु अक्षय होय मंत्र - ॐ नमो गोमय स्वामी भगवउ ऋद्धि समो अक्खीण समो आण आण भरि भरि पुरि पुरि कुरु कुरु ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - प्रातः काल जपें तो लक्ष्मी प्राप्त होय, २१-१०८ सुपारी, चावल, जिस वस्तु पर डाल दें वह अक्षय होय ।
( 8 ) वस्तु अक्षय होय मंत्र : ॐ णमो गोमय स्वामी भगवऊ ऋद्धि समो, वृद्धि समो, अक्षीण समो, आण आण भरि भरि पुरि पुरि कुरु कुरु ठः ठः स्वाहा । विधि : प्रतिदिन शुद्ध होकर प्रातः काल १०८ दिन तक जपें, फिर २१ सुपारी, चावल मंत्रित कर जिस वस्तु में रखें वह अक्षय होय । मंत्र दीप- धूप पूर्वक जपें । 43 ) लक्ष्मी प्राप्ति मन्त्र
(1) अपार लक्ष्मी प्राप्ति मन्त्र : ॐ ह्रीं अक्षीणमहानस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमः । विधि : इस मंत्र का लाल पुष्पों से सवा लाख जाप करने पर अपार लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
( 2 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः । ॐ नमो भगवऊ गोमयस्य, सिद्धस्स बुद्धस्य अक्षीणस्स भास्वरी ह्रीं नमः स्वाहा ।
विधि : नित्य प्रातः काल शुद्ध होकर दीप धूप पूर्वक जाप करें तो लाभ होय, लक्ष्मी प्राप्ति होय ।
( 3 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र : ॐ ह्रीं हूँ णमो अरहंताणं हूँ नमः ।
विधि : प्रतिदिन १०८ बार पढ़ें ।
( 4 ) अभ्युदय कारक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं ईं ऐं अर्हं - अर्हं क्लीं प्लूं प्लूं नमः ।
विधि : प्रतिदिन १०८ बार जप से वैभव प्राप्त होता है ।
( 5 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ नमो भगवती गुणवती महामानसी स्वाहा ।
विधि- ७ कंकरियाँ २१ बार मंत्रित कर चारों दिशाओं में फेंकने से व्याधि शत्रु आदि का भय नहीं रहता एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।
( 6 ) लक्ष्मी लाभ मंत्र - ॐनमो अरिहंताणं ॐ नमो भगवइ महाविज्जाए सत्तट्ठाए मोर हुलु हुलु चुलुचुलु मयुर वाहिनीए स्वाहा ।
विधि - पौष कृ. १० को निराहार रहकर १००८ जाप करें फिर परदेस गमन के व्यापार के समय ७ बार स्मरण से लक्ष्मी व अन्न का लाभ होता है ।
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(7) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ ह्रीं णमो महायम्मा पत्ताणं जिणाणं । विधि - इस मंत्र का १२००० जाप करें तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। ( 8 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ ह्रीं हूं णमो अरहंताणं हूँ नमः । विधि- प्रतिदिन १०८ बार पढ़ें तो धन बढ़े।
( 9 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ ह्रीं ऐं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा। (10) ऋद्धि- ॐ ह्रीं श्रीं कीर्ति मुखमन्दिरे स्वाहा ।
विधि - प्रतिदिन १०८ बार जाप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होय ।
मुनि प्रार्थना सागर
(11) लक्ष्मी दायक मंत्र - ॐ ह्रीं हं णमो अरिहंताणं ह्रीं नमः ।
विधि - प्रतिदिन मंत्र को १०८ बार पढ़ें ।
( 12 ) अभ्युदय वैभव होय - ॐ ह्रीं श्रीं इं ऐं अर्हं अर्हं क्लीं प्लूं प्लूं नमः। विधि - प्रतिदिन १०८ बार जपने से अभ्युदय वैभव होय ।
( 13 ) स्थायी धन प्राप्ति मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ।
(14) अटूट लक्ष्मी होय मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः
विधि- तीन दिन में १२०० जाप करें उपवास के साथ, आसन, माला, वस्त्र, पीले रंग के लेना। जाप करते समय अखण्ड धूप-दीप रखना । जाप पूर्ण होने के बाद एक माला प्रतिदिन करना चाहिए ।
फल- अटूट लक्ष्मी प्राप्ति, धन-धान्य प्राप्ति, शरीर सुख एवं चारों ओर प्रताप बढ़े।
(15) यश व लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं, ॐणमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ( ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं
हः स्वाहा ।)
विधि - पुष्य नक्षत्र के दिन से पीली माला, पीले वस्त्र, पीले आसन का उपयोग करके, सवा लाख मंत्र का जाप करें मन्त्र सिद्ध होगा । साधना के दिनों में एक बार भोजन, भूमिशयन, ब्रह्मचर्य का पालन, सप्त व्यसन का त्याग, पंच पाप का त्याग करें। स्वाहा शब्द के साथ प्रत्येक मंत्र पर धूप देते जायें तथा दीपक जलता रहे। (मंत्रसिद्धि के पश्चात् प्रतिदिन एक माला जपने से धन की वृद्धि होती है ।)
( 16 ) धन संपत्ति रक्षा मंत्र - ॐ ह्रां ह्रौं श्रूं ह्रः कलिकुंड स्वामि जये विजये अप्रतिचक्रे अर्थ सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - यह मंत्र ताम्र पत्र पर लिखकर द्रव्य ( पैसे के भण्डार) में रखें तो धन बढ़े और बिक्री होय ।
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( 17 ) श्री घंटाकर्ण द्रव्यप्राप्ति मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ॐ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मी पूर - पूरय सुख सौभाग्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - धनतेरस को ४० माला, रूप चौदस को ४२ माला तथा दीपावली को ४३ माला का जाप करें तो उस वर्ष निश्चित ही लक्ष्मी प्राप्ति हो । उत्तर दिशा को मुंह करके सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला का उपयोग करें व व्यापार वृद्धि मंगल कलश की स्थापना करें। दीपक जलाएं।
(18) धन-धान्य बढ़ाने वाला मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रः कलिकुण्ड स्वामिने नमः जये विजये अपराजिते चक्रेश्वरी ममार्थ सिद्ध-सिद्ध कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - किसी भी धान के सात अच्छे दाने लेकर उस पर यह मंत्र सात बार पढ़ना तथा वह दाने वस्तु में वापस डाल दें तो उस वस्तु की वृद्धि होगी तथा उससे लाभ होगा।
( 19 ) व्यापार द्वारा धन लाभ दायक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूर पूरय चिन्ता दूर दूरय स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की १०८ जाप करें तो धन लाभ होगा।
( 20 ) श्री लक्ष्मी देवी का मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।
विधि - पूर्व की ओर मुंह करके पीले वस्त्र व पीले रंग की माला का प्रयोग करें, मार्गशीर्ष नक्षत्र व गुरुवार के दिन मंत्र का जाप शुरु करें। एक लाख जाप होने पर मंत्र सिद्ध हो जाएगा, लक्ष्मी प्रत्यक्ष दर्शन देगी।
( 21 ) लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं हर-हर स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र को १०८ बार सफेद पुष्पों से ३ दिन तक जाप करने से सर्व सम्पत्तिवान होता है। जाप श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा के सामने करना चाहिए।
( 22 ) लक्ष्मी दायक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॐ नमो भगवउ गोयमयस्य सिद्धस्य बुद्धस्य अक्खीणस्स भास्वरी ह्रीं नमः स्वाहा ।
विधि-यह मंत्र नित्य प्रातः काल शुद्धता पूर्वक दीप धूप सहित जपने से लक्ष्मी प्राप्त होती है।
( 23 ) लाभ अन्तराय कर्म नाशक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मम लाभ अन्तराय कर्म निवारणाय स्वाहा ।
विधि - जिनेन्द्र भगवान् के सामने धूप देते हुए प्रतिदिन एक माला जपें ।
( 24 ) लक्ष्मी प्राप्ति - अर्हं मंत्र - ॐ ह्रीं ह्रां अर्हं णमो अरहंताणं ह्रीं नमः ।
विधि - शुभ मुहूर्त में पीले वस्त्र धारण कर पीली माला से जाप शुरु करें ।
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१२५००० जाप होने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। लक्ष्मी प्रसन्न होती है। फिर
प्रतिदिन एक माला फेरें। बड़ा श्रेष्ठ मंत्र है। ( 25 ) लक्ष्मी-प्राप्ति मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं,
ॐ णमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूणं,। विधि- प्रातः सूर्योदय से एक घंटा पहले उठकर सर्व प्रकार की शुद्धि करके पीले वस्त्र तथा
पीली माला और पीला आसन लेकर बैठे। पूर्व दिशा में मुख करके इस मंत्र की एक माला फेरें। फिर आसन पर बैठे हुए उत्तर दिशा में मुख करके एक माला फेरें। फिर पश्चिम दिशा में, फिर दक्षिण दिशा में तथा वापस पूर्व दिशा में मुख करके माला पूर्ण करें-इस प्रकार चारों दिशा में पाँच माला फेरने से छह महीने में ही विपुल सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है। यदि छह महिने तक एकासन करके जप किया जाय तो आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। यह रहस्य "नवकार महिमा छन्द" में कुशलतम वाचक ने इस प्रकार बताया है
पूरब दिशि चारे आदि प्रपंचे, समर्या संपत्ति सार।
सद्गुरु ने सन्मुख विधि समरतां सफल जनम संसार॥ ( 26 ) लक्ष्मी प्रप्ति- ॐ हीं श्रीं क्लीं ब्लू ऐं महालक्ष्म्यै नमः (स्वाहा) ( 27 ) द्रव्य प्राप्ति मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं मम ऋद्धि-वृद्धि समीहितं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- १२५०० जाप करे फिर बाद में १०८ बार रोज जाप करें। (28) सर्व सम्पदादिक प्राप्त मंत्र : ऊँ ह्रीं श्रीं हर हर स्वाहा। विधि : श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने १०८ सफेद पुष्पों से तीन दिन जपने से सर्व सम्पदा की प्राप्ति होय। लेकिन तीनों दिन नये पुष्प लें।
(44) ऋण मोचन मंत्र) (1) ऋण मोचन मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गं ओ गं नमो संकट कष्ट हरणाय, विकट दुख
निवारणाय, ऋणमोचनाय स्वाहा। विधि- शुभ दिन से शुरु करके प्रति दिन १० माला जाप करें। (2) दीपावली कर्ज मुक्ति मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ॐ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मी
पूरय-पूरय सुख सौभाग्यं कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दीपावली को सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला का उपयोग करें व व्यापार
वृद्धि मंगल कलश की स्थापना करें। घी का दीपक जलाएं उत्तर दिशा को मुंह करके 11 दिन जाप करें तो वह वर्ष निश्चित ही कर्ज मुक्ति हो।
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(3) दरिद्रता नाश के लिए- “ॐ ह्रीं दारिद्रय विनाशने अष्टलक्ष्मयै ह्रीं नमः" । विधि-दीपावली की रात्रि में कमलगट्टे या स्फटिक की माला से पूर्व दिशा में मुख करके
दीपक जलाकर निम्न मंत्र का जाप करेंपहले मंत्र का उत्कीलन करें "ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलन कुरु कुरु स्वाहा।"
( 45 ) व्यापार वृद्धि मंत्र (1) दुकान खोलते समय बोलने का मंत्र-ॐ णमो भगवते विश्वचिन्तामणि लाभ दे,
रूप दे, जश दे, जय दे, आनय आनय महेश्वरी मन वांछितार्थ पूरय पूरय सर्व सिद्धिं ऋद्धिं वृद्धिं सर्वजन वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- दुकान खोलते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मंत्र को २७ बार उच्चारण करके दुकान का ताला खोलें एवं परमात्मा का नाम स्मरण कर दुकान में प्रवेश करें तो दुकान अच्छी चलेगी। (2) व्यापार वृद्धि मंत्र- ॐ ह्रीं व्यापार वृद्धि रहितयोपद्रव निवारकाय श्री शान्तिनाथाय
नमः। विधि-त्रिकाल मन्दिरजी में अथवा घर में १०८ बार पढ़ें। (3) वस्तु विक्रय मंत्र- णट्ठट्ठ मयट्ठाणे पणट्ठ कम्ट्ठ णट्ठ संसारे।
परमट्ठ णिट्ठियढे अढे गुणाधीसरंवंदे ॥ विधि- इस मंत्र का पीली सरसों अथवा छोटे-छोटे सात पत्थरों पर १०८ बार जाप करके कोई भी वस्तु सामान में मिला दें तो वस्तुओं की बिक्री अच्छी होती है। विशेष दुर्बुद्धि का नाश होय, राज से भय टले, अष्ट सिद्धि व नव निधि की प्राप्ति होय, प्रताप बढ़े, रोगादि नष्ट होय, सुख प्राप्त होय, १०८ सफेद पुष्पों को प्रतिदिन जप कर दस हजार जाप करें। (4) व्यापार में धन प्राप्ति मन्त्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय-पूरय
चिंतां दूरय-दूरय स्वाहा। विधि- प्रतिदिन प्रातः काल मन्दिर जी में एक माला जाप करना चाहिए। (5) व्यापार में लाभ मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा अनाहतविद्येयं अहँ नमः । विधि- इस मंत्र को दिन में तीन बार जपें तो व्यापार में लाभ होय सर्वत्र जय हो। (6) व्यापार में धन प्रप्ति- ॐ हीं श्रीं क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय-पूरय चिन्तां
दूरय दूरय स्वाहा (१०८) (7)लाभ व जयदायक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा अनाहत विद्येयं अहँ नमः।
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विधि : यह मंत्र दिन में तीन बार १०८ बार जपने से व्यापार में लाभ हो, सर्वत्र जय हो।
__(46) सर्व समृद्धि के लिए मंत्र (1) ॐ ह्रीँ श्री अनंतानंत परमसिद्धेभ्यो सर्व शांति कुरु कुरु ह्रीं फट् नमः। (2) ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत परम सिद्धेभ्यो नमः। (3) ॐ ह्रीं नमः। (4) ॐ नमः सिद्धेभ्यः । (5) शुभंकरोति कल्याणं आरोग्यं धन सम्पदा।
शत्रु बुद्धि विनाशाये, दीपो ज्योति नमोऽस्तुते॥ विधि-इन मंत्रों में से किसी भी मंत्र की सवा लाख जाप कर मंत्र को सिद्ध करा लें, फिर
मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करें । (6) समृद्धि कारक मंत्र- ॐ श्रिये श्रीकरि धनकरि धान्यकरि पुष्टिकरि वृद्धिकरि
अविघ्नकरि ठः ठः। विधि- शुभ मुहूर्त में शुरुकर एक लाख जाप करें तथा वसुधारण आदि स्थान करें तो दुख दारिद्रय और सब रोगों से छुटकारा होय।
(47) शान्ति मंत्र (1) शान्ति मंत्र : ऊँ ह्राँ अर्हद्भ्यः स्वाहा, ऊँ ह्रीं सिद्धेभ्यः स्वाहा, ॐ हूँ आचार्येभ्यः
स्वाहा, ऊँ ह्रौं पाठकेभ्यः स्वाहा, ऊँ ह्रः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा। विधि : कार्य सिद्धि तक प्रतिदिन १०८ बार जपे। (३) शान्ति मंत्र-ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे ममस्वस्ति शान्ति कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- मंत्र के स्मरण मात्र करने से सर्व प्रकार की शान्ति होती है। (4) शान्ति मंत्र-ॐ नमोऽर्हते भगवते प्रक्षीणाशेष दोष कल्मषाय, दिव्य तेजो मूर्तये श्री
शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्वविघ्न प्रणाशनाय,सर्व रोगापमृत्यु विनाशनाय. सर्व परकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय, सर्वक्षाम डामर विघ्न विनाशनाय, ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं:ह:
अ सि आ उ सा नमः । मम सर्व शान्ति कुरु-कुरु स्वाहा। (5) शान्ति मंत्र लघु -ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं:ह: अ सि आ उ सा नमःसर्व शान्ति पुष्टि कुरु
कुरु स्वाहा। विधि- त्रिकाल जाप करें अपूर्व शान्ति प्राप्त होगी। (6) सर्व शान्ति करण मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ असि आ उ सा नम: सर्व विघ्न शांतिं कुरु कुरु स्वाहा।
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विधि- प्रतिदिन त्रिकाल जाप करें तो शान्ति मिले। (7) संकट निवारक शान्ति दायक मंत्र- ॐ ह्रौं अहँ श्रीं असि आ उ सा नमः सर्व
शांति कुरु कुरु स्वाहा। विधि- शुभ दिन से प्रारम्भ कर प्रतिदिन १ माला जाप करें तो संकट दूर होकर शान्ति
मिलती है। (8) सर्व शान्ति दायक मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं अहँ नमः।
(48) सर्व भय निवारण मंत्र । (1) सर्वभय निवारण मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं,
सरणदयाणं, ऐं ह्रीं सर्वभय निद्रा विनाशकाय नमः। विधि- शुभ मुहूर्त में प्रात: स्नानकर, शुद्ध सफेद वस्त्र धारण कर, सफेद आसन, सफेद
माला का प्रयोग करते हुए पूर्व की ओर मुंह कर १४ दिन में १२५००० जाप कर मंत्र सिद्ध कर लें। सिद्ध होने पर राज्य संकट, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उत्पन्न संकट के
समय तीन बार स्मरण मात्र से सर्व संकट दूर होंगे। (२) भय निवारण मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी मम रक्षं कुरू कुरू स्वाहा। विधि - इस मंत्र की प्रतिदिन 108 बार जाप करने से सभी प्रकार के भय समाप्त
हो जाते हैं। (३) सर्व संकट हरण मंत्र - ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वजन मोहनी सर्वकार्य
कारिणी, मम विकट संकट हरणी, मम मनोरथ पूरणी, मम चिन्ता चूरणी, ॐ
नमों ॐ पद्मावती नमः स्वाहा। विधि -विजयदशमी, दिवाली, ग्रहण, सिद्धि योग, गुरू पुष्ययोग, इनमें से किसी भी
अवसर पर रात्रि में एकान्त स्थान में पद्मावती की फोटो की शुद्धता पूर्वक स्थापना करें। फिर प्रतिदिन 1 माला करें तो बेरोजगारी, निर्धनता, समस्याएँ,
रोग, विकार, कलह, दुख, तनाव आदि सब दूर हो जायेंगे । (४) सर्वभय दूर होय मंत्र : ऊँ मैं चामुंडै हिलि हिलि विच्चे स्वाहा। विधि : इस मंत्र को आठ छोटे पत्थरों के कंकरों पर पढ़कर आठों दिशा में फैंकने से चोर
शत्रु और भयंकर जीव तथा दूसरों का भय भी नहीं होता है। (5) सर्व विघ्न दूर होय मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ नमः ६वीं स्वाहा। विधि- प्रतिदिन ११०० जप से सर्वविघ्न बाधाएँ दूर हो। (6) सर्व भय निवारण मंत्र- ॐ णमो जिणाणं जिय भयाणं कित्तणे भया, उवसंमतु ह्रीं
स्वाहा ।
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विधि - इस मंत्र को भोजपत्र पर गोरोचन से लिखकर, लाल डोरे में डालकर कमर में बांधे
तो हर प्रकार के भय से रक्षा हो। (7) दुष्ट भय निवारण मंत्र- ॐ ह्रीँ अहँ नमः क्षीं स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १०८ बार जाप करें। (8) भय हरण मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ असि आ उ सा अनाहत विजये अहँ नमः । विधि- इस मंत्र की श्रद्धा पूर्वक प्रतिदिन १ माला जाप करें तो सर्व भय दूर हों। (9) सर्व भय निवारण मंत्र- ॐ णमो जिणाणं जियभयाणं कित्तणेणसभयाइं उवसंमतु
ह्रीं स्वाहा। विधि- भोजपत्र पर गोरोचन व कुंकुम से लिखें तथा लाल डोरे से कमर में बांध लें तो हर
प्रकार के भय से रक्षा होगी। (10) सर्व भय निवारण मंत्र- ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ऐं नमः स्वाहा। विधि- शुभ मुहुर्त में पूर्व की ओर मुंह करके जाप शुरू करें। १२५००० जाप होने से मंत्र
सिद्ध हो जाता है। उसके बाद निम्न रुप से प्रयोग में लाया जा सकता है१. सात बार जाप करके शत्रु का नाम लेकर मुंह पर हाथ फेरें, शत्रु वश में हो। २. एक माला फेर कर जो भी कार्य शुरू करें, सफल हों। ३. मुकदमा या विवाद में २१ बार पढ़कर जावें, तो सफल हों। ४. व्यापार के लिए जिस गांव या नगर में जायें वहां की नदी या तालाब पर पहले एक
माला फेरें, फिर प्रवेश करें, तो सफल हों। (11) दुश्मन की सेना मैदान छोड़कर भागे- ॐ ह्रीं भैरवरूप धारिणि चण्डथूलिनि
प्रतिपक्षा सैन्यं चूर्णय चूर्णय धूर्मय धूर्मय भेदय भेदय ग्रस ग्रस पच पच खादय
खादय मारय मारय हूँ फट् स्वाहा। विधि- १०८ बार जाप कर चारों ओर लकीर खींचने से दुश्मन की सेना मैदान छोड़कर
भाग जाती है। (12) सर्वभय निवारण मंत्र : ऊँ णमो अरहंताणं अभयदयाणं चरकुदयाणं मयदयाणं
सरदधाणं ऐं ह्रीं सर्वभय विद्वावणायै नमः। विधि : इस मंत्र का जाप करने से सर्व प्रकार के भय, राजभय, शत्रुभय आदि दूर हो जाते हैं।
(49) सर्वशत्रु शान्त मंत्र (1) सर्व शत्रु शांत मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं 'अमुक' दुष्ट साधय-साधय अ सि आ उ सा नमः ।
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विधि - शनिवार, रविवार और मंगलवार की रात्रि में इस मंत्र से काली उड़द को १०८ बार मंत्रित कर शत्रु के घर में डालने से शत्रु शांत हो जाता है।
(2) दुष्ट निवारण मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अमुकं दुष्टं साधय साधय अ सि आ उ सा नमः । अथवा-ॐ अर्हं अमुकं दुष्टं साधय साधय अ सि आउ सा नमः ।
विधि : इस मंत्र को २१ दिन तक १०८ बार जपें तो शत्रु शान्त हो जाता है । (3) दुष्ट पराजय मंत्र - ॐ पार्श्वयक्षदिव्यरूपाय महर्षण एहि आं क्रों ह्रीं नमः ।
विधि- इस मंत्र को श्रद्धापूर्वक जपने से दुष्ट दुश्मनों की पराजय होती है तथा उपद्रव शान्त होते हैं।
( 4 ) दुश्मन का क्रोध नष्ट मंत्र - ॐ चामुण्डे कुर्यम दंडे अमुक हृदय मम हृदयं मध्ये प्रवेशय प्रवेशय प्रवेशय स्वाहा ।
विधि
- इस मंत्र को पढ़ता जावे और जिस दिशा में क्रोधी मानव हो उस दिशा में सरसों फेंकता जावे तो क्रोध नष्ट हो जाता है।
( 5 ) शत्रु का राजकुल नष्ट होय मंत्र - णंहू सव्व सएलो मोण, णंयाज्झावर मोण, यारियआ मोण, द्धासि मोण णंता हंरअ मोण ।
विधि - चौथ, चतुर्दशी या शनिवार को धूल को चुटकी में लेकर मंत्र पढ़ता हुआ तीन बार फूंक कर जिस पर डालें वह वश में होय । मंत्र पढ़ते हुए सामने, दाएँ ३ दें तो हवा से बादलों की तरह शत्रु का राजकुल नष्ट हो जाता है।
३ फूँक
( 6 ) दुश्मन निवारण मंत्र - (अ) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तंभय-स्तंभय
ठः ठः ठः । अथवा
(ब) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्वदुष्टान् स्तंभय - स्तंभय मोहय मोहय जृंभय-जृंभय अन्धय-अन्धय वधिरय - वधिरय मूकवत् कराय-कराय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः
ठः ठः ।
विधि - यदि दुष्मन हमला करने आवे तो इसमे से किसी भी मंत्र का मुट्ठी बांध कर १०८ बार जाप करके मुकाबले को जावें, तो दुश्मन भागे ।
(7) सभी प्रकार के कष्ट और शत्रु निवारक : णट्ठट्ठ मयट्ठाणे पणट्ठ कम्मट्ठ नट्ठ संसारे । परमटठ् णिट्ठि अटठे अट्ठगुणाधीसरं वंदे ।
विधि : राई, नमक, नीम के पत्ते, कड़वी तुम्बी के बीजों का तेल और गूगल इन पाँचों को एकत्रित कर उक्त मंत्र से मंत्रित करें । पश्चात् पिछले पहर में प्रतिदिन ३०० बार२१ दिन तक मंत्र बोलते हुए हवन करें, सभी प्रकार के कष्टों और शत्रुओं से छुटकारा मिलेगा।
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( 50 ) उनमत्त करने का मंत्र
(1 ) उनमत्त करने का मंत्र - ॐ नमो काला भेरू कल वा वीर में तोहि भेजु समदा तीर अंग चटपटी मांथै तैल काला भैरू किया खेल कलवा किलकिला भैरूं गजगजाधर में रहे न काम सवारे रात्रि दिन रोव तो फिरै तो जती मसान जहारै लोह का कोट समुद्र सी खांई रात्रि दिन रौवता न फिरै तो जती हणमंत की दुहाई सवदशा चांपिडका चा फुरो मंत्र ईश्वरो वला ।
विधि - श्मशान की भस्म को ७ बार इस मंत्र से मंत्रित करके जिसके ऊपर डाल दिया जाय वह उन्मत्त होकर फिरे, याने पागल हो जाये, घूमता फिरे । ( 51 ) दुर्जन वशीकरण मंत्र
(1) दुर्जन वशीकरण मंत्र - ॐ नमो भगवते अप्रतिचक्रे ऐं क्लीं ब्लूं ॐ ह्रीं मनोवांछित सिद्धयै नमो नमः अप्रतिचक्रे ह्रीं ठः ठः स्वाहा ।
विधि - मंत्रित जल के छींटे मुंह पर देने से दुर्जन पुरुष वश में हो जाया करते हैं और उनकी जबान वश में हो जाती है।
(2) शत्रु वश एवं विजय प्राप्त मंत्र - ॐ नमो ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः श्रां श्रीं ह्रीं फट् स्वाहा । विधि - १०८ बार जपने से शत्रु वश में होते हैं विजय लक्ष्मी प्राप्त होती है और शस्त्रादि के घाव शरीर में नहीं हो पाते ।
( 3 ) दुष्टजन का वशी मंत्र - ॐ हूँ मम सर्व दुष्टजनं वशी कुरु कुरु स्वाहा । विधि - शान्त चित्त से २१ बार स्मरण करने से दुश्मन वश में हो जाता है।
(4) सर्व वशी मंत्र - ॐ ऐं क्लीं ह्रः सौः रक्त पद्मावती नमः सर्व मम वशीकुरु कुरु स्वाहा ॐ अलू मलू ललू नगर लोकराजा सर्व मम वशी कुरु कुरु स्वाहा ।
( 5 ) दुष्ट वश में हो जाता है - ॐ अरहंत सिद्ध सहयोगि केवली स्वाहा । ॐ आइच् सोम मंगल बुद्ध गुरु सुक्को शनि छरो राहू केतू सव्वे विगहा हरंतु मम विग्यरोग चयं ॐ ह्रीं अछुप्तं मम श्रियं कुरु कुरु स्वाहा आहिय सराहिया हः म्हः यः यों हु वः
ऊहः ।
विधि - इस मंत्र से धूली को ५ बार मंत्रित करके दुष्ट के सामने डालने से दुष्ट शांत ( उपशय ) हो जाता है
( 52 ) वशीकरण मंत्र
(1) वशीकरण - नमस्कार
मंत्र - ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं णमो आइरियाणं, ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहूणं, ॐ ह्रीं णमो णाणस्स, ॐ ह्रीं णमो दंसणस्स, अमुकं मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
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विधि- इस मंत्र को १२५००० जाप करके सिद्ध कर लें। फिर जिसको वश करना
हो, अमुक' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम बोलें-२१ बार उच्चारण करें। एक बार उच्चारण करें, एक गाँठ पगड़ी या साफे के दें। इस प्रकार २१ गाँठ देकर पगड़ी या साफा सिर पर धारण कर, जिसे वश करना हो, उसके पास जावें तो वह वश में हो
जाएगा। ( 2) ऊँ ह्रीं रक्त चामुण्डे कुरु कुरु अमुकं मे वश्य मे वश्य मानय स्वाहा। विधि : लालकनेर के फूल, लाल राई, कडुवा तेल का होम करते हुए दस हजार जाप करें
तो अवश्य ही वशीकरण होय। (3.) ऊँ नमो वश्य मुखीराजमुखी अमुकं मे वश्य मानय स्वाहा। विधि : सवेरे उठकर मुंह धोते समय पानी को ७ बार मंत्रित कर मुंह धोने से जिसके नाम
से जपे वह वशी होता है। (4) ऊँ नमो हन हन दह दह पच पच मथ मथ अमुकं मे वश्य मानय मानय कुरु कुरु स्वाहा। विधि : मंत्र से सूर्योदय के समय १०८ बार पानी मंत्रित कर पीने से वश्य होता है। (5). ऊँ नमो मोहनीय सुभगे लिलि ठः ठः । विधि : अपना वीर्य खिला दें तो जीवनभर वश में रहे। (6). ह्रीं क्लीं ब्लू द्रां द्रीं ह्रां आं क्रों क्षीं। जो प्रातः उठकर मंत्र से अभिमंत्रित जल से
अपने मुख को धोता है, वह पुरुष स्त्रियों का कामदेव हो जाता है। (7) ॐ णमो जिणाणं जावयाणं केवल जिणाणं परमोहिजिणाणं सर्व रोष प्रशमिनि
जंभिनि स्तंभिनि मोहिनी स्वाहा॥ विधि- शुभ मुहूर्त में एक काष्ठ पात्र पर मंत्र लिखें फिर उस काष्ट पात्र मंत्र की स्थापना करें। बायें तरफ पार्श्व प्रतिमा की स्थापना करें। मयूरशिखा मूल काष्ठ पात्र के आगे रखे। बिना सिलाई किए हुए वस्त्र पहन कर १०८ दिन तक प्रतिदिन एक माला का जाप करें फिर जहां भी जावें मयूर शिखा मूल पास में रखें तो सर्व सम्मान मिले, वशीकरण हो। (8 ) ऊँ नमो भगवति अम्बिके अम्बालिके यक्षी देवी ' यौं ब्लैं हस्क्लीं ब्लूं ह्र सौं र: र: र: र: दृष्टि प्रत्यक्षं मम (नाम) वश्यं कुरू कुरू स्वाहा। विधि : इस मंत्र से २१ बार मंत्र जप करने से इच्छित मनुष्य वश में होता है। कोष्ठक में
इष्ट व्यक्ति का नाम लिखें। (9) वशीकरण मंत्र-ॐ अरे अरुणु मोहय मोहय देवदत्तं मम वश कुरु कुरु स्वाहा ।
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विधि-कृष्ण पक्ष की १४ को पाटे पर लिखकर लाल कनेर के फूलों से १०८ बार जाप करें
तो उत्तम वशीकरण होता है। (10) ॐ नमो भगवती वशं करि स्वाहा। विधि-फलादिक २७ बार मंत्रित कर जिसको खिलायें वह वश में होता है। अन्धा हुलि के
फूल और वाम पांव के नीचे की धूली श्मसान की राख सब मिलाकर चूर्ण करें फिर
जिसके माथे पर डालें वह वश में होता है। (11) ॐ नमो अरहंताणं अरे अरणि महारिणी मोहिणी मोहिणी मोहय मोहय स्वाहा। विधि-इस मंत्र को जिन आयतन में १०८ बार जपें फिर फलादिक को ७ बार मंत्रित करके
जिसको दिया जाये वह वश में हो जाता है। (12) ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं आरि आरिणी मोहणी मोहय मोहय स्वाहा। विधि- ४७ दिन तक १०८ बार जपने से लाभ होता है। (13) ॐ नमो भगवतो रुद्राय ॐ चामुंडे (नाम अमुकस्य) हृदयं पिवामि चामुंडिनी
स्वाहा। विधि- १०८ बार पानी मंत्रित करके जिसके नाम से पानी पीवें तो वह वश होता है। (14) वशीकरण मंत्र- ॐ ह्रीं क्रों ह्रीं हूँ फट् स्वाहा। विधि- सुपाड़ी मंत्रित करके देने से वशीकरण होता है। ( 15 ) वशीकरण मंत्र- ॐ नमो रुद्राय अगिधगि रंगि स्वाहा। विधि- श्वेत सरसों को इस मंत्र से ६० बार मंत्रित करके जिसके माथे पर डालें तो वह
वशी होय, विशेषतः महिला। ( 16 ) वशीकरण मंत्र- ॐ हूँ फट् । विधि- जिस किसी के सामने खड़े होकर १०० बार इस मंत्र का उच्चारण करें, तो साधक
जो कहेगा सामने वाला वही करेगा। (17) वशीकरण मंत्र- ॐ पद्म पद्मावती पद्महस्ते राज्य मंत्री क्षोभय-क्षोभय राजवश्यं
प्रजा वश्यं मम सर्व जन वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र को २१ हजार बार पढ़कर मुंह पर दोनों हाथ फेरने से वशीकरण होता है। (18) वशीकरण मंत्र- ॐ नमो भगवउ अरहउ पुप्फदंतस्स जिज्झायउ मे भगवइ महई
महाविद्या पुक्फ, महापुफ्फे पुफ्फसुई ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- इस मंत्र को दो उपवास करके आठ सौ जाप करें, फिर इस मंत्र से फल या पुष्प को
२१ बार मंत्रित कर जिसको दिया जाये वह वश में हो जाता है।
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(19) वशीकरण मंत्र- (अ) ॐ ह्रीं मम अमुकं वशी कुरु कुरु स्वाहा।
(ब) ॐ ह्रीं श्रीं कुष्मांडि देवी मम सर्व शत्रु वशे कुरु कुरु स्वाहा।
(स) ॐ ह्रीं सर्वदुष्ट जनं वशी कुरु कुरु स्वाहा। विधि-इन मंत्रों में से किसी भी मंत्र की सवा लाख जाप कर मंत्र को सिद्ध करा लें, फिर
मंत्र के १०८ बार स्मरण करने से इच्छित व्यक्ति वश में होते हैं। ( 20 ) वशीकरण मंत्र- ॐ ह्रीं क्रों ह्रीं हूँ फट् स्वाहा। विधि-इस मंत्र से सुपारी को मंत्रित करके जिसको दिया जाय वह वश में हो जाता है। ( 21 ) वशीकरण-अहँ मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं अरे अरिणि मोहिणि अमुकं मोहय
मोहय स्वाहा। विधि- १२५००० जाप करके पहले इस मंत्र को सिद्ध कर लें। चावल अथवा पुष्प को
१०८ बार अभिमंत्रित कर जिस के सिर पर गिराएं, वह वश में होगा। 'अमूक' के
स्थान पर उसका नाम बोलना चाहिए। ( 22 ) सर्वजन वशी मंत्र- ॐ देवी चंद्र निरइ हरूं भंडइ राहडि तीनइ त्रिभुवन वसि किया
ह्रीं कियइ निलादि। विधि- मंत्र से चन्दनादिक मंत्रित करके तिलक करने से सर्वजन वश में होंय। ( 23 ) सर्वजन वश कारक काजल मंत्र- ऊँ नमो भगवते चन्द्रप्रभाय चन्द्रेन्द्र महिताय ___ नयन मनोहराय ओं चुलु चुलु गुलु गुलु नील भ्रमरि नील भ्रमरि मनोहरि सर्वजन
वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि : दीपावली के दिन पिंगला गाय के शुद्ध घी का दीपक जला के उक्त मंत्र बोलते
और दीपक में घी की बिन्दुएँ छोड़ते हुए १०८ बार जाप करें। दीपक के ऊपर काजल फाड़ने को मिट्टी का ढक्कन रखें। पश्चात् उस काजल को लगाकर जहां
जावेंगे वहां मनुष्य वश में होवेंगे। ( 24 ) सभी वश्य होये- ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ ह्रीं णमो
आइरियाणां ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं अमुक
मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि -पहले ११ हजार बार जाप कर मंत्र को सिद्ध कर लें फिर जब राजा, मंत्री या अन्य
किसी भी अधिकारी आदि के यहां जाये तो सिर के वस्त्र को २१ बार मन्त्रित कर धारण करें तो सामने वाला वश में होय। अमुक के स्थान जिस व्यक्ति को वश
करना हो उसका नाम जोड़ लेना चाहिए। ( 25 ) तीन लोक वश होय मंत्र- ॐ ह्रीं हर क्लीं बगलामुखी देवी नित्ये! विन्ने! मद्रवे
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मदनातुर वषट् स्वाहा। विधि- पुष्य नक्षत्र में इस मंत्र को २१ दिन तक १२००० जप करने से तीनों लोक वश
में होते हैं। ( 26 ) संसार वश में होय मंत्र- ॐ ब्रह्म कुष्यि के दुर्जन मल-मल सुखी स्वाहा। विधि-७ या २१ बार चंदन मंत्रित करके उल्टा तिलक करने से संसार को वश करने वाला
होता है। ( 27 ) सर्व परिवार वश होय- ॐ माहेश्वरी नमः। विधि- इस मंत्र से बैर की लकड़ी चार अंगुल की एक हजार बार मंत्रित करके जिसके घर
में डाल दें तो सर्व परिवार वश होय। ( 28 ) सरल वशीकरण मंत्र- ॐ ह्रीं हूं ज जा जिं जी जुं जूं जें जै जो जौं जं जः अमुकं
ठः ठः। विधि- पीपल की लकड़ी पांच अंगुल की हजार बार मंत्रित करके अपने घर गाड़ देने से
वश में होय। ( 29 ) शीघ्र ही वशीकरण होय मंत्र- ॐ नमो भगवती: रक्त चामुंडे यत्प्रजा पाले कट
कट आकर्षय आकर्षय ममोपरि चित्तं भवेत् फलं पुष्पं यस्य हस्ते ददामि स शीघ्र
मागच्छतु स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १००० जाप कर फिर १०० पुष्पों से जप कर फल अथवा पुष्प को
मंत्रित करें फिर जिसको दिया जायगा वह शीघ्र वश्य होता है। ( 30 ) वश होय मंत्र- ॐ नमो कृष्ण सवराय वल्गु वल्गु ने स्वाहा। विधि- २१ बार स्वयं को मंत्रित करके जिसको भी स्पर्श करें वह वश हो जाय। (31) वश्य अवश्य होय- ॐ श्रीं क्षं का मातुरा काम खेला विधेसिनी लवनी अमुकं
वश्यं कुरु कुरु ह्रीं नमः। विधि- मंत्र को भोजन करते समय अपने भोजन को ७ बार मंत्रित करके जिसके नाम से
खावें वह ७ वें अथवा १२ वें दिन अवश्य वश हो जाता है। ( 32 ) व्यक्ति वशी मंत्र- ॐ भगवती काली महाकाली स्वाहा। विधि- सुबह मुंह धोकर हाथ में पानी लेकर ७ बार इस मंत्र से मंत्रित करें और जिस
व्यक्ति के नाम से पीवें वह व्यक्ति वश में हो जाता है। ७ दिन करें। ( 33 ) जिसका नाम लेवें वह वश होय- ॐ देवी रुद्रकेशी मंत्र सेसी देवी ज्वालामुखी
सूति जागा विसिवइट्ठी लेयाविसी हाथ जोडंति पाय लागंति ठं ठली वायंति सांकल मोडंति ले आउ कान्हइ नारसिंह वीर प्रचंड।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि - जिसका नाम लेकर सात दिन तक १०८ बार जपें तो वह व्यक्ति वश में होय । ( 34 ) इच्छित व्यक्ति वश करने का मंत्र - ॐ हूं मम 'अमुकं' वशी कुरु कुरु स्वाहा । विधि - इस मंत्र को २१ बार स्मरण करने से इच्छित व्यक्ति वश में होता है।
( 35 ) घर वश में होय - ॐ हूँ स्वाहा ।
( 36 ) वशीकरण मन्त्र : ॐ नमो भगवति अम्बिके अम्बालिके यक्षी देवी र्यू यौं ब्लैं हस्क्लीं ब्लूं ह्रसौं र र र र दृष्टि प्रत्यक्षं मम (नाम) वश्यं कुरू कुरू स्वाहा । विधि : इस मंत्र से २१ बार मंत्र जप करने से इच्छित मनुष्य वश में होता है । कोष्ठक में इष्ट व्यक्ति का नाम लिखें।
विधि - मघा नक्षत्र में अपामार्ग की कील ४ अंगुल इस मंत्र से सप्त बार मंत्रित करके जिसके घर में गाड़ दी जाये वह वश में हो जाता है।
( 37 ) चिन्तामणि मंत्र - ॐ ह्रीं नमोऽर्हं ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करने से त्रिलोक वश में होता है।
( 38 ) जीवन भर वश में रहे मन्त्र - ॐ हं हां हिं हीं हुं हूं हैं हैं हों हौं हं हः क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष : हंसः हम् ॥
मंत्र अधिकार
विधि-कांगनी (प्रियंगु), तगर, कूठ, चंदन, नागकेसर, काले धतुरे का पंचांग सममात्रा में लेकर गोली बनाकर छाया में सुखा लें । फिर गोली सात बार अभिमंत्रित कर खाद्य पदार्थों में मिला दें, फिर जिसे पिला दी जाये वह जीवन भर उसका दास बना रहता है। इसके अतिरिक्त जो प्राणी इस मंत्र का तीस हजार जाप करता है वह किसी भी स्त्री पुरूष को वशीभूत कर सकता है।
(39) वशीकरण मन्त्र ॐ नमो समोहिनी महाविद्ये जंभृय जंभृय स्थंभय स्थंभय मोहय मोहय आकर्षण आकर्षण अमुकी वश्य कुरू कुरू स्वाहा |
जिसको प्यार करना चाहे उसका नाम लेकर तीन हजार जाप करें तो वश
होय ।
( 40 ) वशीकरण मन्त्र ॐ नमो रुद्राय अगिधगि रंगि स्वाहा ।
विधि - सफेद सरसों को 60 बार मंत्रकर जिसके घर पर डालें वो वश होय । ( 41 ) - ॐ ह्रीँ श्री कुष्मांडनी देवी मम् सर्व शत्रु वश्य कुरू कुरू स्वाहा । विधि - इस मंत्र से मिट्टी या सरसों मंत्रित कर डाले तो वश हों ।
( 42 ) वशीकरण मन्त्र ॐ समोहिनी महाविद्ये जंभृय स्थंभय मोहय आकर्षय पात्रय महा समोहिनी ठः ठः ठः ।
विधि - इस मंत्र के स्मरण मात्र से वश होय ।
( 43 ) वशीकरण मन्त्र ॐ चामुण्डा भगवती शिव शक्ति रूपणी मम अमुक
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विधि
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मंत्र अधिकार
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मानुष वस्य ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र से फूल 108 बार मंत्रित कर जिसे सुंघावे वह वश होय । ॐ सरूपे योर प्रहार चंडालि स्वाहा ।
( 44 ) वशीकरण मन्त्र विधि - चिता की भस्म इस
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र से 108 बार मंत्रित कर जिस पर डालें वह वश होय ।
( 53 ) पुरुष (राजा) वशीकरण मंत्र
(1) पुरुष वशीकरण मंत्र - (अ) ॐ ह्रीं क्रीं ऐं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा। विधि - इस मंत्र का एक लाख जाप करने से पुरुष वश में होता है।
(2) ॐ औँ ह्रीं क्रों एहि एहि परमेश्वरी स्वाहा ।
विधि- लाल वस्त्र पहिनकर लाल माला से एक लाख जाप जपने से पुरुष वश में होता
है ।
(3) पुरुषस्खलित मंत्र: ऊँ चले चलचित्त मातंगीरेत्तो मुंच मुंच स्वाहा ।
विधि : इस मंत्र से कनेर के फूलों की अभिमंत्रित करके पुरुष के आगे फेंकने से पुरुष स्खलित हो जाता है।
(4) स्वामी वश्य मंत्र : " ॐ पद्मप्रभे पद्मसुंदरि धर्मेषे ठः ठः।"
विधि : यह मंत्र तीन लाख जाप से सिद्ध होता है। यदि मंत्र जपता हुए क्रोधित स्वामी के सामने जावें तो वह प्रसन्न होकर इच्छित वस्तु देवें ।
(5) राजा आकर पैर पड़े मंत्र - ॐ वँ वँ बुवण वर्द्धमान ।
विधि - मंत्र के प्रभाव से राजा आकर पांव पड़े।
(6) राजा प्रजा वश होय - ॐ जल कंपै जलधर कंपै सौ पुत्र चंडिका कंपै राजा रूठो कहा करे सिंघासन छाडि बैठे जब लगई चंदन सिर चडाउं तब गीत्र भुवन पांव पडाउं ह्रीं फट् स्वाहा ।
विधि - चंदन को १०८ बार मंत्रित करके तिलक लगाने से राजा प्रजा सर्व ही वश में होते
हैं।
(7) राजा प्रसाद पावें मंत्र - ॐ तारे महाविद्ये राज मोहनं कुरु कुरु स्वाहा । विधि - इस मंत्र से थूक को सात बार मंत्रित करके लगावें तो राजा प्रसाद पावें । ( 8 ) राजा वशी मंत्र - ॐ नमो भगवती गंगे काली काली महाकाली स्वाहा । विधि - बायें पांव के नीचे की मिट्टी वाम हाथ से ग्रहण करें फिर उस मिट्टी को सात बार मंत्रित करें फिर अपने मुख पर लगावें फिर राजकुल में प्रवेश करें और राजा को जैसा कहें तो राजा वैसा ही करे।
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मुनि प्रार्थना सागर
(54) उच्चाधिकारी वशी मंत्र (1)-ॐ नमो भगवते ह्रीं पद्मावती मम कार्य कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र को इक्कीस बार पढ़कर, अभीष्ट वस्तु ले करके जावें तो राजा व उच्चाधिकारी वश में हो जाते हैं।
(55) पति वशीकरण मंत्र (1) पति वशी मंत्र- ॐ ही महाकाली क्रां क्रीं क्रू कालवर्णस्या सो वश्य मानय मानय
स्वाहा। विधि- 21 बार काजल मंत्रितकर अंजन करे तो पति वश होय। (2) पति वशी मंत्र- कामी काजल काम में ल्याई, कामी काजल कहाँ न समाई, काजल
अंजे जेयान चाहो, आपनो पिंड वल्द करि वाहो। विधि- रविवार के दिन स्त्री इस मंत्र से काजल को 7 बार मंत्रित कर आंख में डाले
तो पुरूष वश होय। (3) पति वश होय मंत्र-ॐ राई बधाई धनियो धायो जीरा ताला बेल करावे, अमुके
__ अमुकी कहुं नींद न आवे। विधि- राई धनिया गुड जीरा एकत्र करके जलावे तो पति वश्य होय। (4) पति वशी मंत्र-ॐ भगवते मातंग कुमाराय देवदत्तस्य वशी कुरू कुरू स्वाहा। विधि- इस मंत्र को 108 बर हींग मंत्रकर साग में खिलावे तो पति वश होय। (5) पुरुष वशीकरण मंत्र- ॐ ह्रीं ठः ठः। विधि- इस मंत्र से सात बार सिन्दूर मंत्रित कर ललाट पर लगावे (तिलक करें) तो जो पुरूष तिलक को देख वही वश होकर मोहित होगा।
(56) स्त्री वशीकरण मंत्र (1) स्त्री शरण को प्राप्त मंत्र- ॐनमो भगमाल्लिनी भगावहे चल चल सर सर। विधि- इस मंत्र से हाथ को सात बार मंत्रित करके स्त्री के भग पर रखें तो वह शरण को
प्राप्त होती है। प्रवास में ८००० हजार जाप करें अशोक के फूल से दशांश होम करें। (2) स्त्री तुरंन्त वश होय- ॐ ह्रां ह्रीं हूं नरसिंह चेट की ह्रां ह्रीं दृष्टय प्रत्यक्ष अमुकी मम
वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- रात्रि में १०८ बार जपने से तुरन्त वश में होती है। (3) स्त्री वशीकरण होय मंत्र- (अ) ॐ चले चल चित्ते चपले मातंगी रेत्तं मुंच मुंच
स्वाहा।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
(ब) ॐ नमो कामदेवाय महानुभावाय कामसिरि असुरी स्वाहा। विधि-इस मंत्र से तांबूल अथवा दातुन अथवा पुष्प अथवा फल को २१ बार मंत्रित करके
जिसको दिया जाय तो वह वश्य हो जाता है। लाल कनेर को १०८ बार मंत्रित
करके स्त्रियों के आगे (आयथेत) डालें तो वह शरण को प्राप्त होती है। (4) चमत्कारी वशी मंत्र- ॐ सुगंधवती सुगंध वदना कामिनी कामेश्वराय स्वाहा
'अमुक' स्त्री वश मानय मानय। विधि- ३० दिनों तक रात्रि में १०८ बार जप करें तो अन्य की बात क्या इन्द्र की पत्नी
भी वश में होय। (5) स्त्री अवश्य वश होय मंत्र- ॐ नमो ह्रां ह्रीं श्रीं चमुंड चंडालिनी 'अमुका' मम
नामेण आलिंगय आलिंगय चुंबय चुंबय भग संचय संचय ॐ क्रौं ह्रीं क्लीं ब्लूं सः
सर्व फट् फट् स्वाहा। विधि-रात्रि को सोने के समय १०८ बार जपना, फिर पानी को २१ बार मंत्रित करके
पीना, सोते समय इस प्रकार २१ दिन तक करना, शनिवार से प्रारंभ करना, तो
जिस स्त्री के नाम से जपा जायेगा वह अवश्य ही वश में होगी। (6) ॐ कामिनी रंजय होम मंत्र ॐ कामिनी रंजय स्वाहा। विधि-मंत्र को अपने बायें हाथ में लिखकर जिसको दिखलाया जाय यदि वह कामदेव के
बाण से बिध जाये तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। (7) स्त्री वशीकरण मंत्र- ॐ उचिष्ट चांडालिनी देवी अमुकी हृदयं प्रविश्य मम हृदये
प्रवेश प्रवेश हन हन देहि देहि पच पच हूँ फट् स्वाहा। विधि-रविवार से शनिवार तक ७ दिन इस मंत्र को शौच पेशाब के लिये बैठते समय २१
बार जपें तो ७ दिन में वांछित स्त्री वश में होती है। (8) स्व स्त्री वशी मंत्र एवं पर घर वश मंत्र- ॐ सिली खोली स्वाहा। विधि- अनुराधा नक्षत्र में सरीष की कील ४ अंगुल प्रमाण को सात बार मंत्रित करके
जिसके घर में डाल दिया जाये वह वश में हो जाता है। विधि-। यदा तस्य सत्पुष्पो परिकीलिका मारीजते तदा स्व स्त्रियाँ वशी भवति। (9) स्त्री वशीकरण मंत्र : ऊँ नमो काम देवाय महानुभावाय कामसिरि असुरी असुरी
स्वाहा। विधि : इस मंत्र से तांबुल (पान) अथवा दांतुन अथवा पुष्प अथवा फल को २१ बार मंत्रित करके जिसको दिया जाये वह वश्य में हो जाता है। इस मन्त्र से लाल कनेर को १०८ बार मंत्रित करके स्त्रियों के आगे (आमयेत) फेंके तो वह शरण को प्राप्त होती है।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
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(57) सासा वशीकरण मंत्र ( 55 ) सासा वशीकरण मंत्र - ऊँ भगवती काली महाकाली स्वाहा। विधि - सुबह मुंह धोकर इस मंत्र से एक अंजली जल मंत्रित कर पीवे तो सास वश में होय।
(58) आकर्षण मंत्र (1) आकर्षण मन्त्र : ॐ ह्रां अर्हद्भ्यो हूँ वषट्, ऊँ ह्रीं सिद्धेभ्यो हूँ वषट्, ऊँ हूँ
आचार्योभ्यो हूँ वषट्, ऊँ ह्रौं पाठकेभ्यो हूँ वषट्, ऊँ ह: सर्वसाधुभ्यो वषट्। विधि- कार्यसिद्धि तक प्रतिदिन १०८ बार जपें। (2) इष्ट स्त्री का आकर्षण मंत्र- ॐ नमो भगवती! चण्डि! कात्यायनि! सुभग युवति
जनानां मा कर्षय आकर्षय ह्रीं र रचू संवौषट् देवदत्ताया हृदय घे घे। विधि- ७ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जपने से इष्ट स्त्री आकर्षित होती है। (3) अभीष्ट व्यक्ति आ जाता है- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं श्रीं कुमति निवारिण्यै महामायायैः
नमः स्वाहा। विधि- २१ दिन तक १०८ बार जपने से अभीष्ट व्यक्ति आ जाता है। (4) आकर्षण मन्त्र : ॐ नमो राई रावै धनि आधावे खारी नोन चटपटी लावे मिरचै
मारि दुश्मनै जलावै "अमुक" मेरे पांव पड़त आवै बैठा होय तो उठावै सूता होय तो मार जगावै लट गहि साटी मार बांये पांये तले आनि धाल दशों हनमंत वीर तेरी
आज्ञा फुरै ॐ ठः ठः ठः स्वाहा। विधि-राई, धनिया, नमक, मिरच इन चारों चीजों को मिलाकर इस मंत्र से १०८ बार अग्नि
में होम करें तो इच्छित व्यक्ति आकर्षित होगा। (5) स्त्री पुरुष परस्पर में आकर्षित होय- म्यं क्लीं जये विजये जयंते जयंते
अपराजिते, ज्म्ल्वयूँ जंभे, भल्व, मोहे, म्म्ल्वयूं स्तम्भे, मल्ल्यूँ स्तम्भिनि, (अमुकं)
मोहय मोहय मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-इस मंत्र के जाप से स्त्री पुरुष का परस्पर में आकर्षण होता है। पुरुष साधे तो स्त्री
और स्त्री साधे तो पुरुष वश में होता है। (6) आकर्षण मंत्र- ॐ नमः आदि पुरुषाय अमुकस्य आकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।। विधि- काले धतूरे के पत्ते के रस में गोरोचन को घिसकर श्वेत कनेर की जड़ की लेखनी
बनाकर भोजपत्र पर उक्त मंत्र लिखकर मध्य में उस व्यक्ति का नाम लिखना चाहिए, जिसका आकर्षण करना हो। खैर (कत्थे) के अंगारे पर भोजपत्र को तपाने से सौ योजन दूर बैठा व्यक्ति भी दौड़ा चला आता है।
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मुनि प्रार्थना सागर
अनामिका उंगली के रक्त से भोजपत्र पर मंत्र लिखकर शहद में रख देने से भी दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण होता है।
(7) आकर्षण मंत्र
मंत्र अधिकार
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ॐ समोहनी महाविद्ये जंभृय जंभृय मोहय आकर्षण पातय महा ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्रेयांसनाथाय नमः ।
समोहनी ठः ठः ठः । अथवा
विधि : प्रतिदिन 108 बार जाप करने से लोग आकर्षित होते हैं ।
( 59 ) मोहन मंत्र
(1 ) मोहिनी विद्या मंत्र ॐ नमो भगवती कराली महाकराली ॐ महा मोह संमोहनीयं
महाविद्ये जंभय जंभय स्तंभय मोहय मोहय मुच्चय मुच्चय क्लेदय क्लेदय आकर्षय आकर्षय पातय पातय कुनरे संमोहिनी ऐं द्रीं त्रीं ट्रों आगच्छ कराली स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र का १२ हजार जाप करने से ये मंत्र सिद्ध हो जाता है, ये मोहिनी विद्या
है।
( 2 ) मोहन मंत्र - ॐ ह्रीं कालिं कपालिनी घोरनादिनी विश्वं विमोहय जगन्मोहय सर्वं मोहय मोहय ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि-मोहन मंत्र को सर्वप्रथम विधिपूर्वक पूजादि कर एक लाख जाप करके सिद्ध कर लें फिर घुंघची श्वेत रस में ब्रह्मदंडी की जड़ को जल में घिसकर अभिमंत्रित करके शरीर पर लेप करने से सारा जगत उस मनुष्य के वशीभूत हो जाता है।
(3) राजा मोहिनी व शत्रु निवारक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं श्री पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय चिन्त चिन्तामणि राजाप्रजा मोहिनी सर्व शत्रु निवारणी कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए ।
(4) प्रतिकारक मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं कलिकुण्ड स्वामिन् सिद्ध जगत वश्यं
आनय - आनय नमः ।
विधि - इस मंत्र की प्रातः काल स्नान कर पवित्र श्रद्धा से १०८ बार प्रतिदिन जाप करना चाहिए।
( 60 ) स्तम्भक मंत्र
(1 ) स्तम्भन मन्त्र : ॐ ह्रां अर्हद्भ्यः ठः ठः, ऊँ ह्रीं सिद्धेभ्यः ठः ठः, ॐ हूं आचार्येभ्यः ठः ठः, ऊँ हौं पाठकेभ्यः ठः ठः, ऊँ ह्रः सर्वसाधुभ्यः ठः ठः ।
विधि : कार्यसिद्धि तक प्रतिदिन १०८ बार जपें ।
(2) प्रतिवादी शक्ति स्तम्भक मंत्र : ॐ ह्रीं अर्हं णमो पत्तेय बुद्धाणं प्रतिवादी विद्या विनाशनं भवतु ।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
विधि - मंत्र की शुद्धि पूर्वक सवा लाख जाप करें।
(3) दीपक स्तम्भन मंत्र : ॐ नमो भगवते वरणाय वरणाय स्तंभय स्तंभय ठः ठः । विधि : यह पाशपाणि देवता का मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है । फिर इसके सात बार जपादि से दीपक की लौ का स्तम्भन होता है ।
मुनि प्रार्थना सागर
(4) स्तम्भन निवारक मंत्र : "ह स्व क्षी मान्त (य) "
विधि : यदि किसी ने स्तम्भन किया हो तो इस मंत्र से उच्छेदन करें ।
(5 ) दुष्टजन स्तम्भक मन्त्र : ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्वदुष्टान् स्तंभय स्तंभय अन्धय अन्धय मुकय मुकय, मोहय मोहय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः स्वाहा । विधि : पूर्वाभिमुख होकर २१ दिन तक प्रतिदिन मुट्ठी बांधकर मंत्र का ११०० बार जप करने से दुष्ट देव मनुष्य आदि का स्तम्भन होता है ।
( 6 ) दुष्ट देव का स्तम्भन होता - ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय स्तम्भय मूकय मूकय मोहय मोहय कुरू कुरू ह्रीं दुष्टान ठः ठः ठः स्वाहा।
विधि - पूर्वाभिमुख होकर २१ दिन तक मुट्ठी बांधकर मंत्र का ११०० बार जाप करने से दुष्ट देव व मनुष्यादि का स्तम्भन होता है ।
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( 7 ) शत्रु बुद्धि स्तम्भन ॐ नमो भगवते शत्रुणां बुद्धि स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा। विधि - इस मंत्र की जाप से शत्रु की बुद्धि नष्ट हो जाती है, अर्थात वह विरोध करना बन्द कर देता है।
( 8 ) प्रतिवादी की जिह्वा स्तंभन मंत्र - ॐ तटमर्टय स्वाहा ॐ व्याघ्र वदने वज्र देवी सप्त पाताल भेदिनी यज्ञक्षय प्रतिक्षोभिणी राजा मोहिनी त्रैलोक्य वश करणी परसभा जय जय ॐ ह्रां ह्रीं फट् स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र को १०८ बार जपने से प्रतिवादी की जिह्वा का स्तंभन होता है।
(9) मुख स्तंभित मंत्र ॐ कट विकट कटे कटि धारिणी ठः ठः परिस्फुट वादनी भंज भंज मोहय मोहय स्तंभय स्तंभय वादी मुखं प्रति शल्य मुख कीलय कीलय पूरय पूरय भवेत् अमुकस्य जयं ।
विधि - इस विद्या को कार्य पर जाने के पूर्व जप करने से वादि का मुख स्तंभित होता है और विजय प्राप्त होती है। कांटे वाले वृक्ष के नीचे इस विद्या को ८००० जपने से यह मंत्र सिद्ध होता है। इसको कंटकारि महाविद्या कहते हैं।
( 10 ) मनुष्य स्तंभन - ॐ नमो भगवते रुद्राय अमुकं स्तंभय स्तंभय ठः ठः ठः। विधि
- इस मंत्र को सिद्ध कर रजस्वला स्त्री का कोई वस्त्र लेकर उस पर गोरोचन से शत्रु का नाम अंकित करके वह वस्त्र जल से भरे मटके (घड़े) में डाल देने से मनुष्य का
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
स्तंभन होता है। (12) स्तंभन मंत्र- ॐ हीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय अग्नि मेघ
वायु कुमार स्तंभय-२ स्वाहा। (13) वीर्य (शुक्र) स्तंभन मंत्र- (अ) ॐ शुक्र कामाय स्वाहा। विधि-कुंवारी कन्या द्वारा कतित सूत्र को २१ बार मंत्रित करके फिर ७ बार मंत्र को पढ़कर
उस सूत्र को कमर में बांधने पर वीर्य (शुक्र) का स्तंभन होता है। (14)वीर्य-स्तंभन मंत्र- ॐ ज्येष्ठ शुक्रवारिणि स्वाहा। विधि- कुंवारी कन्या द्वारा कतित सूत्र से सात गांठ लगावें फिर उस डोरे को कमर में बांधने
से वीर्य का स्तंभन होता है। (15) वीर्य-स्तंभन मंत्र- ॐ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय मनोभिलाषितं स्तंभनं
कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दूध को १०८ बार अभिमंत्रित कर पीने से वीर्य- स्तंभन होता है। (16) गर्भ-स्तंभन व शुक-स्तंभन मंत्र- ॐ रहु रहु हो श्वेत वर्ण पुरुष रहु रहु हो हरि
धवल पुरुष रह रहु हो शंख चक्र गदाधर रह रहु। विधि- कुमारी कन्या के हाथ से कते हुए सूत के ७ डोरे लें। प्रत्येक डोरे पर एक-एक बार
मंत्र पढ़कर उनको मिला लें। फिर सात बार मंत्र पढ़कर एक गांठ दें। इस तरह १६ गांठ दें। उसे स्त्री की कमर में बांध दें तो गर्भ-स्तंभन हो व पुरुष की कमर में बांध
दें तो शुक्र-स्तभंन हो। (17) गर्भ स्तम्भन तंत्र “ॐ ह्रीं गर्भधारिणी गर्भस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा। महिला २१
दिन तक १-१ माला फेरें। शिवलिंगी के बीज ९-९ दिन तक ले तो नियम से गर्भ
रहे। (18) चींटी स्तम्भन मंत्र : ऊँ नमो सुग्रीवाय हनुमंताय सर्वकीटिका भक्षिकाय पिपीलिका
विप्रे प्रवेश प्रवेश स्वाहा। विधि : जब रविवार को सूर्य संक्रमण करता है तब रात्रि को १०८ बार मंत्र जपकर सरसों को चींटियों के नगर (नाल) पर फेंकने से चींटियाँ सर्वथा चली जाती हैं।
(61) विरोध कारक (विद्वेषण ) मंत्र (1) विरोध कारक मंत्र : ॐ ह्रीं श्री अ सि आ उ सा अनाहतविद्ये ह्रीं हूँ अमुकयो विद्वेषं
कुरू कुरू स्वाहा। विधि : यह मन्त्र सात दिन तक १०८ बार जपें। फिर श्मशान के अंगारे की राख व खलादि रसों के द्वारा भोजपत्र पर कौए के पंख से लिखें, शत्रु का नाम भी
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
लिखकर मार्ग में डाल दें, तो उससे उन दोनों में विरोध हो जाएगा। (2) शीघ्र विद्वेषण- ॐ नमो भगवती श्मशान कालिके (अमुक स्यामुकेन) विद्वेषय
हन- हन , पच-पच, मथ-मथ ॐ फट् स्वाहा। विधि- हवन कुंड को श्मशान की आग से प्रज्ज्वलित करें खेजड़े व खैर की लकड़ी का
उपयोग करें तथा नीम के पत्ते व कडुवा तेल, तिल, जौ, अक्षत को मिलाकर दसहजार आहुतियाँ दें। यह कार्य शनिवार या मंगलवार को ही करें, निश्चित ही विद्वेषण होय। लेकिन पाप लगता है इसलिए ऐसा कार्य न करें जिससे बाद में
आपको दुःख हो। (3) विद्वेषण मन्त्र : ॐ ह्रां अर्हद्भ्यो हूँ फट्, ॐ ह्रीं सिद्धेभ्यो हूँ फट्, ऊँ हूँ आचार्योभ्यो
हूँ फट्, ऊँ ह्रौं पाठकेभ्यः हूँ फट, ऊँ ह्रः सर्वसाधुभ्यो हूँ फट् । विधि : कार्य सिद्धि तक प्रतिदिन १०८ बार जपें।
(62) पौष्टिक मंत्र । (1) पौष्टिक मंत्र : ऊँ ह्राँ अर्हद्भ्यः स्वधा ऊँ ह्रीं सिद्धेभ्यः स्वधा, ऊँ हूं आचार्येभ्यः
स्वधाः, ऊँ ह्रौं पाठकेभ्यः स्वधा, ऊँ ह्रः सर्वसाधुभ्यः स्वधा। विधि : कार्य सिद्धि तक प्रतिदिन १०८ बार जप करें।
(63) परविद्या छेदन मंत्र (1) परविद्या छेदन मंत्र : ॐ रक्त जट्ट रक्त रक्त मुकुट धारिणि परवेध्य संहारिणी उदलवेधवंती सल्लुहाण विसल्लुचूरी फुट पूर्वहि आचार्य का आज्ञा ह्रीं फट् स्वाहा। विधि : इस मंत्र की जप करने से परविद्या का छेदन होता है। (2 )परमन्त्र छेदक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये येन केनचित् मह्यं दुष्कृतं कारितं
अनुमतं वा तदुष्कृतं तस्यैव गच्छतु ओं ह्रीं श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये स्वाहा। विधि : प्रात:काल पूर्व दिशा की ओर और सायं पश्चिम की ओर मुख करके २१ दिन तक अंजलि जोड़कर १०८ बार जप करने से परमंत्र का छेद होता है। (3) परविद्या छेदन मंत्र- धुणसि चंचुली लवं कुली पर विद्या फट् स्वाहा हूँ फट्
स्वाहा। विधि- इस मंत्र का स्मरण करने से परविद्या का स्तम्भन होता है। (4) पर विद्या छेदन मंत्र-ॐ रक्त जट्ट रक्त रक्त मुकुट धारिणि परवेध संहारिणी उदलवेधवंती
सुल्लुहणि विसल्लु चूरी फटु पूर्वहि आचार्य की आज्ञा हीं फट् स्वाहा। विधि- इस मंत्र का जाप करने से पर विद्या का छेदन होता है। (5) परविद्या छेदन मंत्र- ॐ स्फ्र: हूँ फट्।
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विधि- इस मंत्र का जाप करने से पर विद्या का छेदन होता है। (6) प्रतिविद्या छेद मंत्र- ॐ णमो पत्तेय बुद्धाणं। विधि- १०८ बार जपने से परविद्या का छेद होता है। (7) परविद्या का छेदन मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये येन येन केनचित् मम पापं
कारितम् अनुमतं वा तत् पापं तमेह गच्छतु ॐ ह्रीं श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविधे स्वाहा। विधि- प्रातः पूर्वाभिमुख हो तथा शाम को पश्चिमाभिमुख होकर अंजलिबद्ध मुद्रा में
१०८ बार जपने से परविद्या का छेदन होता है। (8) परविद्या छेदन मंत्र- ओं ह्रीं उग्ग तवाणं ॐ ही दित्त तवाणं ॐह्रीं तत्त तवाणं ॐ
ह्रीं पडिमापडिवन्नाणं नमः स्वाहा। विधि- इस मंत्र को १०८ बार पढ़कर मोरपंख से झाड़ा देना चाहिए। फलत: दूसरों के द्वारा
किया हुआ अनिष्ट प्रयोग नष्ट हो जायेगा। भूत-प्रेत का दोष टलेगा, शीत ज्वर, उष्ण ज्वर दूर होगा।
__ (64) उच्चाटन मंत्र (1) उच्चाटन मंत्र : ॐ जूं सः अमुकं उच्चाटय उच्चाटय सः ऊँ। विधि : इस मंत्र की एक लाख जप करें तो उच्चाटन होगा। (2) परकृत उपद्रव शान्त मंत्र- ॐ णमो भयवदो वड्ढमाणस्स रिसहस्स चक्कं जलंतं
गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा थंभणे वा रणांगणे वा
रायं गणे वा मोहेण वा सव्वा जीवसत्ताणं अपराजिदो मम भवदु रक्ख रक्ख स्वाहा। विधि- इस वर्द्धमान महाविद्या को उपवास करके एक हजार जप सुगंधित पुष्पों से करें,
दशांश होम करें तो ये मंत्र सिद्ध हो जाये। फिर कहीं से भय आने वाला हो अथवा आ गया हो तो सरसों हाथ में लेकर सर्वदिशाओं में फेंक देने से आगत उपद्रव भय, परकृत विद्याएं सर्व स्तम्भित हो जाएंगे। घर में स्मरण मात्र से ही शान्ति हो
जायेगी। विलक्षण फल गुरुगम्य है। (3) उपसर्ग नाशक मंत्र- ॐ नमो अमिय सवीणं झौं झौं स्वाहा। विधि- इस मंत्र का जाप करने से सर्व प्रकार का उपसर्ग नाश होता है। (4) जादू टोना का निवारण मंत्र-हरि खिल्लुं गडि खिल्लुं चामुंडा खिल्लुं दुष्ट पिशुन
चिल चिलां तडई पारि प्ररई। विधि- इस मंत्र को सात दिन तक प्रतिदिन 21 बार जल को मंत्रित कर पिलने से तथा 31
बार मंत्र से झाड़ा देने से मूठ-जादू टोना आदि का प्रभाव समाप्त होता है। (5) जादू टोना का उच्चाटनादि- ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः जक्ष ह्रीं वषट् नमः स्वाहा।
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विधि- १०८ बार जपने से परकृत जादू मूठ टोना-टोटका उच्चाटनादि का भय नहीं होता। (6) उपसर्ग निवारक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो विज्जाहराणं। विधि : इस मंत्र की एक माला प्रतिदिन जप करें तो उच्चाटन का निवारण होगा। (7) सर्व उपद्रव शान्त मंत्र- ॐ अरहंताणं जिणाणं भगवंताणं महापभाणं होउ नमो
ऊमाई साहिं तो सव्व दु:क्ख हरो जो ही जिणाणप भावो परमिट्ठी णंच जंच माइप्पं
संधामि जोणु भावो अवयर उजलं मिसोइथ। विधि- इस मंत्र से २१ बार पानी मंत्रित कर पिलाने से सर्वप्रकार के उपद्रव शांत होते हैं। (8) उपद्रव होने लगे घर श्मशान होय- ॐ जलयं जुल ठः ठः स्वाहा। विधि- उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में वट वृक्ष की तीन अंगुली लकड़ी को सात बार मंत्रित करके जिसके घर में डाल दिया जाये वह घर श्मशान हो जाय।
___(65) मारण प्रयोग (1) मारण प्रयोग- ॐ चांडालिनी कामाख्यावासिनी वनदुर्गे क्लीं क्लीं ठः स्वाहा। विधि- मारण प्रयोग से पहले उक्त मंत्र को १० हजार बार जाप करके सिद्ध कर लेना
चाहिए फिर उपरोक्त मंत्र भोजपत्र पर गोरोचन व केशर से लिखकर मंगलवार या शनिवार को गले में पहनने से शत्रु की निश्चित ही मृत्यु होती है। भोजपत्र में (अमुक) के स्थान पर शत्रु का नाम लिखना चाहिए। लेकिन यह प्रयोग करना नहीं चाहिए क्योंकि इससे बहुत पाप लगता है।
(66) विरोध विनाशक मंत्र (1) विरोध विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो पादानुसारीणं परस्पर विरोध विनाशनं
भवतु। विधि - इस मंत्र की जाप से शत्रु की बुद्धि नष्ट हो जाती है, अर्थात वह विरोध करना
बन्द कर देता है। (2) विरोध निवारक मंत्र- ॐ धणु-धणु महाधणु स्वाहा। विधि- इस मंत्र रूपी विद्या को सुनकर सभी ईर्ष्या, द्वेष और मात्सर्य से भरे हृदय वाले शीघ्र ही नष्ट होते हैं।
(67) संकट हरण मंत्र (1) संकट हरण मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं श्री पद्मावती पराक्रम साधिनी, दुर्जन मति विनाशनी,
त्रैलोक्य क्षोभनी श्री पार्श्वनाथ उपसर्ग विनासनी, क्लीं ब्लूं मम दुष्टं हन हन कार्याणी साधय-साधय कुरु कुरु स्वाहा।
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विधि- इस मंत्र को जपने से उपसर्ग मिटता है। इस मंत्र का हर समय स्मरण करने से देव
व्यन्तर शत्रु आदि कृत उपसर्ग मिटता है। (2) संकट मुक्ति तथा मनोरथ पूर्ण मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्री पद्मावती देव्यै नमः।" विधि- शुभ नक्षत्र में शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से ४५ दिन में एक हजार जाप करके सिद्ध करें। (3) संकट निवारक शंति दायकः- ॐ हीं अहँ श्री अ सि आ उ सा नमः सर्व शांतिम्
कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- मंत्र की शुद्धि पूर्वक सवा लाख जाप करें तो लाभ हो। (4) कष्टहर मंत्र : ऊँ ह्रीं पंच परमेष्ठिने नमः। विधि : श्री सुपार्श्वनाथ भगवान् के स्मरणपूर्वक मंत्र का जाप करने से विषम कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
(68) सर्व विपत्तियाँ दूर हो मंत्र । (1) सर्व विपत्तियाँ दूर हो मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा नमः (स्वाहा)। विधि- यह मंत्र सर्व कार्य सिद्धि करने वाला है। जो एक वर्ष तक दोनों समय संयम पूर्वक ५-५ माला का जाप करता है, उसकी सब विपत्तियाँ दूर होती हैं।
(69) विघ्नहरण नमस्कार मंत्र(1) विघ्नहरण नमस्कार मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं णमो अरहंताणं, ॐ क्लीं पैं णमो सिद्धाणं, ॐ
क्षौं ब्रै णमो आयरियाणं, ॐ श्रीं रैं णमो उवज्झायाणं, ॐ ब्लूं लौं णमो लोए सव्व
साहुणं। विधि- एकान्त शुद्ध स्थान में, शुद्ध वस्त्र धारण कर शुभ मुहूर्त में जाप शुरु करें।
१२५००० जाप करने से हर प्रकार की विघ्न-बाधा दूर होती हैं। (2) विघ्न विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अहँ कलिकुण्ड दंड स्वामिने श्री पार्श्वनाथाय
धरणेंद्र पद्मावती सहिताय मम सर्व विघ्न विनाशनाय नमो नमः । विधि- इस मंत्र की ५००० जाप विधि पूर्वक करें तो सभी विघ्न दूर हों।
(70) क्लेश नाशक मंत्र (1) क्लेश नाशक मंत्र- ॐ अहँ अ सि आ उ सा नमः । विधि- यह अत्यंत प्रभावक शान्तिदायक मंत्र है, इसे पूर्व दिशा की ओर मुख करके सफेद
वस्त्र, सफेद माला, सफेद आसन पर बैठकर, दीपक सामने जलाकर १२५०००
बार जपें तो अवश्य ही सफलता मिले। (2) क्लेश नाशक मंत्र -(अ) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा नमः |
= 161
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(ब) ॐ रक्त कमल धारणी महाघृति वासिनी जतो भवंतु शीघ्र सुंदू कुरू कुरू स्वाहा। विधि- इन दोनों मंत्रों में से किसी भी मंत्र की 55 माला 21 दिन तक करें फिर प्रतिदिन एक माला करें तो घर में सुख शान्ति का साम्राजय स्थापित रहता है।
(71) विवाद विजय मंत्र (1) विवाद विजय मंत्र- ॐ अहँ ऐं श्रीं अ सि आ उ सा नमः विधि- २१ बार स्मरण कर वाद-विवाद करें तो विजय होगी। (2) वाद-विवाद में जीत- ॐ हंसः ॐ अहँ ऐं श्रीं अ सि आ उ सा नमः । विधि-सवा लाख से सिद्ध करें फिर २१ बार पढ़कर वाद विवाद में जावें तो आप जीतें
जय पावें। (3) विवाद विजय मंत्र- ॐ अहँ ऐं श्रीं अ सि आ उ सा नमः । विधि- मंत्र को २१ बार स्मरण कर वाद विवाद करें तो विजय होय।
(72) सर्वत्र विजय मिलती (15) सर्वत्र विजय मिलती- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्रों (क्रौं) वषट् स्वाहा फल- दोज के चाँद की तरह संसार में यश फैलता है और सर्वत्र विजय मिलती हैं।
(73) क्रोध शान्ति मंत्र (1) क्रोध शान्ति मंत्र-हली ठी ठी क्रोध ह्रीं ह्रीं ह्रां क्लीं सः सः स्वाहा ॥ विधि : इस मंत्र को सात बार पढ़कर पहनने के वस्त्र के एक कोने में गांठ लगाने से, जिस
व्यक्ति के उद्देश्य से मंत्र का जप किया जाय, वह चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष,
समीप पहुंचते ही उसका क्रोध शान्त हो जायेगा। (2) क्रोधित मनुष्य वश होय- ॐ नमो रत्नत्रय पाय नमो आचार्य विलोकिते स्वरात्थ
बोधि सत्वाय महा सत्वाय महा कारुणि काय चन्द्रे चन्द्रे सूर्य सूर्य मति पूतने सिद्ध
पराक्रमे स्वाहा। विधि- अपने कपड़े को इस मंत्र से २१ बार मंत्रित करके गांठ लगावें फिर क्रोधित मनुष्य
के सामने जावें तो तुरन्त वश में हो जाता है। (3) र शान्त हो मंत्र- ॐ नमो धृति देव्यै ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ऐं द्रां द्रीं नमः (स्वाहा)। विधि- मंत्र पास रखने से बैर शान्त होता है। (4) ॐ ह्रीं श्रीं धरणेन्द्र पद्मावती बल पराक्रमाय नमः (स्वाहा) फल- दुश्मन परास्त होता है और बैर-विरोध छोड़कर शान्त होता है। (5) अपराध क्षमापण मंत्र : ऊँ ह्रीं णमो भगवओ, ऊं णमो पासनाहस्स थंभय सव्वाओ
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ई ई ओं जिणणाए मा इइ अहि हवंतु ओं ह्रीं क्षां क्षीं हूं क्षौं क्षः स्वाहा। विधि : मोगर चमेली या श्वेत गुलाब के फूल को उक्त मंत्र से १०८ बार मंत्रित करके
राज्याधिकारी पुरुष को सुंघाने से वह अपराध क्षमा कर देता है। क्रोध मुक्ति मंत्र - ॐ शान्ते प्रशान्ते सर्व क्रोधोपशमनी स्वाहा। विधि - प्रतिदिन एक माला जपने से आवेश (क्रोध) पर नियन्त्रण रहता है।
(74) गृह क्लेश निवारण मंत्र (30) गृह क्लेश निवारण मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं झों झों सुविहिं च पुष्फदंत सीयलं सिझं
सेयवासुपुजं च विमल मणंतं च धम्म संति च वंदामि कुंथु अरं च मल्लिं वंदे
मुणि सुव्वयं (च) स्वाहा। विधि- इस मंत्र का विधि पूर्वक सवा लाख जप करने से आपस के झगड़े और गृह क्लेश
शान्त होते हैं। वैरभाव नष्ट होता है। फिर एक माला नित्य फेरने से साधु संघ मे एवं गृहस्थ में मन मुटाव दूर होता है। सम्पत्ति वान होता है।
(75) लड़की ससुराल रहे मंत्र (9) लड़की ससुराल रहे मंत्र- ॐ नमों भोगराज भयंकर परिभूय उत उधरई जोई जोई
देखै मारकर तासो सो दिखै पाव परंता ॐ नमो ठः ठः स्वाहा। विधि- सांभर नमक की १०८ कांकरी अभिमंत्रित कर खिलाएं तो लड़की ससुराल रहे। रूठ कर नहीं आवे।
(76) सामने वाला सत्य बोले (70) सामने वाला सत्य बोले-ॐ ह्रीं सः सूर्याय असत्यं सत्य वद-वद स्वाहा। विधि - इस मंत्र को पढ़कर जिसके मस्तक पर हाथ रखे वह सत्य बोलने लगा जाय इसमें कोई सन्देह नहीं।
(77) झूठे को सत्य करें मंत्र (1) झूठे को सत्य करें मंत्र- ॐ ह्रीं स सूर्याय असत्यं सत्यं वद वद स्वाह। विधि- इस मंत्र को २१ बार स्मरण करके सिर पर हाथ धरें, फिर आग में प्रवेश करें तो
आग में नहीं जलता। यह झूठे को सत्य कहलाने वाला है। झूठा व्यक्ति आए संकल्प लेकर आग में जाये तो भी जलेगा नहीं।
(78) बंदी मोक्ष मंत्र (1) बंदीमोक्ष मंत्र-ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं, ॐ
णमो उवज्झायाणां, ॐ णमो लोए सव्व साहूणं हिलि-२, कुलु-२, चुलु-२,
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मुलु-२ स्वाहा। विधि-प्रतिदिन १०८ बार जाप करें तो बंदी बंधन से मुक्त होय । (2) बंदीमुक्त मंत्र- बंधस्य मुख करणी वासर जावं सहस्स जावेण हिलि हिलि विझाण
तहारिउ वल दम्यं पणासेउ स्वाहा। विधि- कृष्ण चतुर्दशी को उपवास करके रात्रि में १००० जाप करके सिद्ध कर लें,फिर
१०८ बार प्रतिदिन जपने से शीघ्र ही बंधन को प्राप्त हुए मनुष्य का छुटकारा होता है
तुरन्त ही बंदी मुक्त होता है। (3) बंदी छुटकारा मंत्र- ॐ नमो रत्नत्रयाय मोचिनि-२ मोक्षिणी-२ मिली-२ मोक्षय
जीवं स्वाहा विधि- मंत्र की त्रिकाल १०-१० माला फेरें तो तुरन्त ही बन्दी बंधीखाने से छूटता है (4) बंदी को तुरन्त मोक्ष हो- ॐ ह्रीं अघोर घंटे स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १ लाख जाप करने से तुरन्त ही बंदी का मोक्ष (मुक्त) होता है। (6) बंदी मोक्ष मंत्र- ॐ णमो अरिहंताणं जम्ल्वयूँ नमः, ॐ णमो सिद्धाणं भल्वयूं
नमः, ॐ णमो आइरियाणं रम्ल्यूँ नमः, ॐ उवज्झायाणं म्ल्यूं नमः, ॐ णमो
लोए सव्वसाहूणं क्ष्ल्यूँ नमः मम बंदी मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-निम्न लिखित मंत्र की प्रतिदिन १०८ बार जाप करें। (7) कैदी कैद से छूटे मंत्र - ॐ हलि हलि नमः स्वाहा।। विधि - प्रतिदिन मन्त्र का एक हजार जाप करने से कैदी कैद से शीघ्र छूटता है। (10) कारागृह मुक्ति मंत्र - ॐ णमों अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं,
ॐणमो उवज्झायाणं, ॐणमो लोए सव्व साहूणं झुलु झुलु कुलु कुलु चुलु चुलु मुलु
मुलु स्वाहा। विधि - जिस व्यक्ति को कारावास (कैद) हो गया हो वह यदि इस मंत्र की 12500 जाप
करें तो बंधन मुक्त अवश्य होय। (11) कारागार मुक्ति मंत्र - ॐ णमो जिणाणं मुत्ताण मोयगाणं मोयगाणं ज्ल्यूँ भ्यूँ
ह्यल्यूँ ल्यूँ अ सि आ उ सा नमः बंधि मोक्ष कुरू कुरू स्वाहा। विधि - दिन रात दस माला जाप करें तो कारागार से मुक्ति मिले।
(79) व्यंतर बाधा (डाकिनी शाकिनी भूत पिशाच ) विनाशक मंत्र (1) भूत-पिशाच-चोट-सिंह-सर्पादि भय निवारक मंत्र : "ऊँ नमो भगवओ अरिट्ठणेमिस्स बंधेण बंधामि रक्खसाणं भूयाणं खेयराणं चोराणं दाढाणं साइणीणं महोरगाणं अण्णे जे के वि दुट्ठा संभयंति तेसिं सव्वेसिं मणं मुहं गहं दिठ्ठि बंधामि धणु धणु जः
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ज:जः ठः ठः ठः हूँ फट् (स्वाहा)।" विधि : गहन वन में जाते समय उक्त मंत्र से २१ बार कुछ कंकरों को मंत्रित कर सर्व ओर
फेंकने से भूत-पिशाच, चोर-डाकू, सिंह सर्पादि का भय नहीं रहता। (2) डाकिनी शाकिनी भूत पिशाच भाग जायें- ॐ णमो विरेही ज॑भय जूंभय मोहय
मोहय स्तम्भय स्तम्भय अवधारणं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धि मंत्र से मंत्रित हल्दी की गांठ को मंत्रित कर चवाने से डाकिनी शाकिनी भूत
पिशाच चुडैल आदि भाग जाते हैं। (3) शाकिन्यादि दोष शांत- ॐ ह्रां ग्रां हूं फट् स्वाहा। विधि- १०८ बार पढ़ें और रोगी पर हाथ फेरें तो शाकिन्यादि दोष शांत होते हैं। (4) भूतादि उपशम होते हैं- ॐ ह्रां ह्रीं हूं सेयउ घोऽउ ब्राह्मणी कउ छोड़ उल कारे लागइ
जकारे जाइ भूत बांधि प्रेत बांधि राक्षस बांधि मेक्षस बांधि डाकिनि बांधि शाकिनि बांधि डाउ बांधि वपालउ बांधि लहुडउ गुरूडु वडउ गरुडु आसनि भेदु भेदु सुबांधि कसु बांधि सकसु बांधि सकसु बांधि जइनें मेरउ वुतउ करहि परिग्रह स चक्र भीडी
धरि मारि बापु प्रचंड वीर को शक्ति धरी मारि बापु पूत प्रचंड सीह। विधि- इस मंत्र को धूप से मंत्रित करके जलाने से और रोगी पर हाथ फेरने से भूतादि
उपशमादि शान्त होते हैं। (5) भूतादि रोगी को छोड़कर भगाने का मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं क्षः हः र: फट् स्वाहा। विधि-मंत्र से सरसों लेकर पढ़ता जावे और रोगी के ऊपर सरसों डालता जावे तो भूतादि
रोगी को छोड़कर निश्चित ही भाग जाते हैं। (6) शाकिनियाँ भागें- (अ) ॐ हंस दक्ष म्ल्यूँ छौं ह्रौं यां हूँ फट्।
(ब) ॐ झौं-२ शाकिनीनां निग्रहं कुरु-कुरु हूँ फट्। विधि- योगिनी मुद्रा से जौ और असगंध के ऊपर निम्न लिखित मंत्र को पढ़कर उनसे
पुरुष को झाड़े तो शाकिनियाँ पुरुष को छोड़कर भाग जाती हैं। (7) व्यंतरों से मुक्ति का मंत्र- (अ) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय
स्तम्भय अंधय अंधय मोहय मोहय मूकय मूकय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः
स्वाहा। विधि- पूर्वाभिमुख होकर ८ या २१ दिन तक मुट्ठी बांधकर ११०० जाप से सब दुष्ट क्रूर
व्यंतरों से मुक्ति प्राप्त होती है। (8) व्यंतरों से मुक्ति का मंत्र- ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय अंधय अंधय मूकय मूकय मोहय मोहय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः स्वाहा।
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विधि- पूर्व दिशा की ओर मुख करके किसी एकान्त स्थान में बैठकर ८ या २१ दिन तक । प्रतिदिन मुट्ठि बांधकर इस मंत्र का ११०० जाप से सब दुष्ट क्रूर व्यंतरों से मुक्ति
प्राप्त होती है। (9) भूत पिशाचादि व्यंतरों से छुटकारा- ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय
स्तंभय मोहय मोहय अंधय अंधय मूकवत्कारय कुरु कुरु ह्रीं स्वाहा। विधि- २१ दिन लगातार १०८ बार जप रोज करने से भूत पिशाच आदि व्यंतरों से छुटकारा
मिल जाता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो आगासगामिणं। (10) प्रेतबाधा दूर होती है- ॐ नमो भगवती जयावती मम समीहितार्थ मोक्ष सौख्यं कुरु
कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धि मंत्र को १०८ बार जपकर अपने शरीर की रक्षा करें तत्पश्चात् इसी मंत्र से
__झाड़ने पर प्रेत बाधा दूर होती है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो आसीविसाणं। (11) भूत प्रेत आदि का उपद्रव शांत- ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं
स्रावय स्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लू ब्लू द्रां द्रीं द्रावय द्रावय ह्रीं स्वाहा। विधि- उक्त मंत्र को २१ बार जल को मंत्रित कर कुल्ला करने से व मुंह धोने से भूत प्रेत
आदि का उपद्रव दूर होता है। ( 12 ) भूतप्रेत ग्रह पीड़ा तथा ज्वरनाशक मंत्र- ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथ ह्रीं धरणेन्द्र
पद्मावती सहिताय आत्मचक्षु, प्रेतचक्षु, पिशाचचक्षु, शाकिनी-डाकिनी चक्षु, सर्वग्रहनाशाय, सर्व ज्वर नाशाय, त्रासाय ॐ णमो अरिहंताणं भूतपिशाच शाकिन्यादि
गणान् नाशय हूँ फट् स्वाहा। विधि- यह मंत्र १० माला (एक हजार) जाप से सिद्ध हो जाता है अतः सिद्ध करके
उपयोग में लें। (13) भूतप्रेत रक्षक मंत्र- ॐ ह्रीं भूतप्रेत बाधा निवारकाय श्री पद्मप्रभुदेवाय नमः । विधि- शुभ मुहुर्त में सिद्ध कर प्रयोग समय १०८ बार पढ़ें। (14) शाकिनी भूतपिशाच विनाशक मंत्र- ॐ णमो अरिहंताणं भूत पिशाच शाकिन्यादि
गणान् नाशय नाशय हूं फट् स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए। (15) भूतप्रेत रक्षक मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं ब्लूं कलिकुंड स्वामिन् सकल कुटुंब रक्ष रक्ष
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भूतप्रेत विनाशनाय नमः। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए। (16) सर्व ज्वर और भूतपिशाच निवरक मंत्र- ॐ नमो भगवती पद्मावती सूक्ष्मवस्त्र
धारिणी पद्मसंस्थिता देवी प्रचंडदोर्दऽखंडित, रिपुचक्रे, किन्नरकिंपुरुष गरुड, गंधर्व,यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, महोरग, सिद्धिनागमनुपिजत विद्याधर सेवित,
ह्रीं पद्ममावती स्वाहा। विधि- इस मंत्र से सरसों को २१ बार मंत्र पढ़कर मंत्रित कर बायें हाथ में बांधे, तो सब
प्रकार का ज्वर तथा भूत प्रेत बाधा दूर होती है। (17) व्यंतर बाधा विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ अ सि आ उ सा अनाहत
विद्यायै णमो अरिहंताणं ह्रौं सर्व शान्ति भवतु (भवन्तु) स्वाहा।
अथवा- ॐ नमोऽर्हते सर्व रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा। विधि- शुभ मुहुर्त में सिद्ध कर प्रयोग समय १०८ बार पढ़ें। ( 18 ) डाकिनी-शाकिनी नाश मंत्र- ओं ह्रीं कुर कुले स्वाहा। विधि- यह नागदमनी महाविद्या है। इसके स्मरण मात्र से डाकिनी,शाकिनी, राक्षस आदि
का नाश होता है। (19) भूतप्रेत बाधा निवारण मंत्र- श्री मणिभद्र देव एषः योगः फलतु।
एक बार बोलना। ॐ नमो भगवते मणिभद्राय, क्षेत्रपालाय, कृष्णरूपाय, चतुर्भुजाय, जिन शासन भक्ताय, नव नाग सहस्रबलाय, किन्नर किं पुरुष गन्धर्व राक्षस भूत-प्रेत पिशाच
सर्व शाकिनीनां निग्रहं कुरु कुरु स्वाहा मां रक्ष रक्ष स्वाहा। विधि- उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, लाल रंग की माला से तीन दिन में १२५००० जाप
करें, आचंबिल या एकाशन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, दीपक अखंड रखें, मंत्र सिद्ध होय। फिर रोज एक माला का जाप करें भूत-प्रेत आदि की सर्व बाधाएं दूर
होंगी। (22) भूत निवारण मंत्र- (अ) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तंभय-स्तंभय ठः
ठः ठः । अथवा (ब) ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्वदुष्टान् स्तंभय-स्तंभय मोहय-मोहय ज़ुभय-ज़ुभय
अन्धय-अन्धय वधिरय-वधिरय मूकवत् कराय-कराय कुरु-कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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विधि- यदि किसी को भूत पिशाच, चुडैल आदि लग जावे तो इसमे से किसी
भी मंत्र का मुट्ठी बांधकर 108 बार मंत्र पढ़के दोनों समय झाड़े तो भूतादि भागे। अथवा पहले ईशन कोण की तरफ मुँह करके आधी रात के समय आठ रात्रि तक, धूप दीप कर साधना करके 2100 बार जप करके सिद्ध कर लें फिर नौ बार पढ़कर झाड़ दें या एक हाथ द्वारा मंत्रित जल को रोगी के ऊपर छोड़ दें तो भूत भागे।
(80) नजर आदि सर्व दोष निवारण (1) दृष्टि दोष ठीक मंत्र- ॐ चन्द्रमीलि सूर्य मीलि कुरु कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र से झाड़ा अथवा पानी मंत्रित कर दिया जावे तो दृष्टि दोष दूर होता है। (2) ॐ नमो आर्या व लोकिते स्वराय पझे फुः पद्म बदने पद्म लोचने स्वाहा। विधि- भस्म २१ बार मंत्रित कर तिलक करने से दृष्टि दोष याने नज़र लगी हो तो ठीक हो
जाती है। (3) नजर आदि सर्व दोष निवारण- ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय, ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती
सहिताय, आत्म चक्षु, परचक्षु, भूत चक्षु, डाकिनी चक्षु, सर्व लोग चक्षु, पितरचक्षु,
हन-हन, दह-दह, पच-पच, ॐ फट स्वाहा।। विधि- यह अत्यन्त दुर्लभ मंत्र है। अचानक किसी प्रकार की हवा (नजर) लगने पर,
स्वास्थ्य खराब होने पर, जी मचलाने पर, इस मंत्र से जल को मन्त्रित करके, पिलावें और इस मंत्र को इक्कीसबार पढ़ें, तो सब प्रकार के दोष हट जाते हैं और
जीव को आराम मिलता है। (4) नजर उतारने का मंत्र- ओं नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ही धरणेन्द्र पद्मावती
सहिताय आत्मचक्षु प्रेतचक्षु पिशाचचक्षु सर्वग्रह नाशय सर्वज्वर नाशय ह्रीं श्रीं
पार्श्वनाथाय स्वाहा। विधि- इस मंत्र की दीपावली पर एक माला फेरकर सिद्ध करके फिर पानी को सात बार मंत्रित कर पिलाने से लगी नजर उतर जाती है।
___(81) निद्रा आने का मंत्र निद्रा आने का मंत्र - ॐहीं निशोज्ये स्वाहा। विधि - इस मंत्र से जल 108 बार मंत्रित कर मुंह पर छिड़के तो नींद आवें। निद्रा आने का मंत्र - ॐ निल नित्याने निल स्वाहा। विधि - इस मंत्र को आंख पर हाथ रख 108 बार पढ़े तो निद्रा आवे।
(82) निद्रा स्तंभन मंत्र
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मंत्र यंत्र और तंत्र
(1 ) निद्रा - तन्द्रा नाश मंत्र : ॐ ऋषभाय हनि हनि ना हानि स्वाहा ।
विधि : इस मंत्र को १०८ बार जपने से कषायेन्द्रिय का उपशम होय । विशेष तो निद्रातन्द्रा का नाश होता है ।
( 2 ) गहरी निद्रा में निमग्न होय मंत्र - ॐ भ्रम भ्रम केशि भ्रम केशि भ्रममाते, भ्रममाते भ्रम विभ्रम मुह्य मोहय मोहय स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र को जपते हुए जमीन पर न गिरे हुए सरसों के दाने मंत्रित कर घर की चौखट पर डालने से उस के लोग गहरी निद्रा में निमग्न हो जाते हैं।
( 3 ) निद्रा स्तंभन - ॐ नमो भगवते रुद्राय निद्रां स्तंभय ठः ठः ठः ।
विधि - मंत्र को सिद्ध करके भटकटैया व मुलैठी को पीसकर सूंघने से स्तंभन होता है। मंत्र सिद्ध करके ही यह क्रिया करनी चाहिये ।
(83) अग्नि उतारक मंत्र
(1) अग्नि-स्तंभन मंत्र - ॐ नमो कोरा करुवा, जल से भरिया । ले गौरां के सिर पर धरिया । ईश्वर ढोले, गिरज्या न्हाय, जलती आग शीतल हो जाय । सत्य नाम आदेश गुरु को 1 विधि - इस मंत्र को २१ दिन तक रोज १००० जाप कर सिद्ध कर लें । फिर जब भी काम पड़े, कोरे मिट्टी के बर्तन में जल भर कर उसे २१ बार अभिमंत्रित कर जल के छींटा दें, तो जलती आग बुझ जाए।
( 2 ) हांडी, बाधने का मंत्र - जल बाँधूं, जलाई बाँधूं, जल की बाँधूं काई चूल्हे चढ़ी हांडी बाँधूं, बाँधूं तेल कढ़ाई, सेंस मण लकडूयां का भार बाँधूं, बाँधूं अग्नी माई, मेरी नहीं बँधे, तो गुरु गोरखनाथ की दुहाई ।
विधि - ११ दिन में १२५०० जाप करके मंत्र सिद्ध करें। फिर सात कांकरी व थोड़ी-सी राख लेकर ११ बार इस मंत्र से अभिमंत्रित कर हांडी में गिरा दें तो हांडी का पानी या जो भी उसमें होगा, गर्म नहीं होगा ।
(3) जलते हुए घर को बुझाने का मंत्र : “ऊँ क्ष्वीं इवीं अमृतवाहिनि स्वाहा । " विधि : इस मंत्र को बेर और एरण्ड के पत्ते पर लिखने से जलता हुआ घर ठण्डा हो जाता है ।
( 4 ) अग्नि प्रवेश में भी न जले - ॐ नमः सर्व विद्याधर पूजिताय इति मिलि स्तंभयामि
स्वाहा ।
विधि - मंत्र को पढकर अपनी चोटी में गांठ लगाकर अग्नि में प्रवेश करें तो जलेगा नहीं । (5) अग्नि उतारक मंत्र : ॐ भ्रू भ्रू वः श्वेत ज्वालिनी स्वाहा ।
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(6) अग्नि उतारण मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद-वद वाग्वादिनी क्लीं नमो ॐ अमृते वर्षणि पट्पट प्लावय -प्लावय ॐ हंसः।
(84) आकाश गमन मन्त्र (1)आकाश गामिनी मंत्र- ॐ णमो आगास गमणाणं झों झों स्वाहा। विधि- इस मंत्र को २८ दिन तक अलूणा कांजि व्रत (एक बार भोजन) करके १०८
जाप्य करें, तो १ योजन तक आकाश में गति होय। (2)आकाश गमन मन्त्र (अ) ॐ णमो आगासगमणिज्जो स्वाहा। अथवा
(ब) ॐ णमो अरहंताणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ णमो आइरियाणं, ॐ णमो
उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूणं । विधि- २५० दिन अलूना भोजन कांजी से करके सिद्ध करें फिर वक्त पर २४९ बार पढ़ें तो आकाश गमन होय।
(85) सर्पविष नाशक मंत्र (1) सर्पविषहर मंत्र : " ऊँ नमो भगवते पार्श्वनाथ तीर्थंकर हंसः महाहंसः शिवहंसः
कोपहंसः उरगेशहंसः पक्षि महाविष भक्षि हूं फट् (स्वाहा)।" विधि : इस मंत्र को २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जपकर सिद्ध करें, फिर समय पड़ने
पर साँप से काटे को झाड़ने से विष दूर हो जाता है। (2) सर्पविष नाशक मंत्र : ऊँ यः यः सः सः हः हः वः वः उसरिल्लय रूह रूहन्त ऊँ ह्रीं पार्श्वनाथाय दह दह दुष्ट नागविषं क्षिपं ऊँ स्वाहा। वधि : २१ दिन तक प्रतिदिन १००० जपकर सिद्ध कर लें। पुनः समय पर सात बार उक्त
मंत्र से जल मंत्रित कर सांप से कटे व्यक्ति को पिलाने से सर्पविष दूर होता है। (3) सर्प विषहर मन्त्र : ऊँ नमो भगवति वृद्धगरूडाय सर्पविष विनाशिनि छिन्द छिन्द भिन्द भिन्द गृह गृह एहि एहि भगवति विद्ये हर हर हूं फट् स्वाहा। विधि : उक्त मंत्र को पढ़ते हुए जहर चढ़े हुए व्यक्ति के समीप जोर-जोर से ढोल बजाने
से जहर उतर जाता है। १०८ बार पढ़ें। (4) सर्प का जहर नष्ट करने का मंत्र- ॐ सुरबिन्दु सः । विधि- मंत्र को पढ़ता जाये और नीम के पत्तों से झाड़ता जाये तो सर्प का जहर उतर जाता है। (5) जब तक जग में जीवें सर्प न काटे- ॐ णमो सिद्धाणं पंचैण (पंचनं) विधि-यह मंत्र दीवाली को १०८ बार जप लें। जब तक जग में जीवें सर्प का भय टले। (6) झाड़ने से विष शान्त होय- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रमली त्रिभुवन हूं स्वाहा।
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विधि- सर्प, गोह, बिच्छू और छिपकली आदि का विष असर नहीं करता। मंत्र के झाड़ने से शांत होता है।
(7) सर्प भगाने का मंत्र - ॐ गरूड जीमुत वाहन सर्प भये निवर्त्तय निवर्त्तय आस्कि को आज्ञा पर्यंत पदं ।
विधि-इस मंत्र को हाथ से ताली बजाता जावे और पढ़ता जावे तो सांप चला जाता है; किन्तु मंत्र तीन बार पढ़ना चाहिए ।
(8) ॐ कुरु कुल्ले कुल्ले मातंग सवराय सं खं वादय ह्रीं फट् स्वाहा । विधि
ध- इस मंत्र से बालू को २१ बार मंत्रित करके घर में डाल देने से सर्व सर्प भाग जाते हैं। ( 9 ) घर पर सर्प नहीं आने का मंत्र - ॐ नकुलि नाकुलि मकुलि माकुलि अहाते स्वाहा। विधि - २१ बार बालू को मंत्रित करके घर में डाल देने से घर में सर्प नहीं रहते । (10) कीलित सर्प छोड़ने का मंत्र ॐ गंगयमण ऊँची पीपली चारे सर्प निकलिंवीर । विधि - भस्म को १०८ बार मंत्रित कर सर्प पर डालने से कीलित सर्प छूट जाता है। I ( 11 ) सर्प कीलित करने का मंत्र - ॐ आंणूं गंग जमण चीवेली लूं खीलूं होठ कंठ सरसा बालू खीलूं जीभ मुखं संभा लूं खीलूं होठ कंठ सरसा बालू खीलूं जीभ मुखं संभा लूं खीलूं मावायजिण तूं जाया खीलूं वाट घाट जिण तूं आया खीलूं धरती गमण आकाश भर हो विसहर जो मेंलूं सास।
विधि - इस मंत्र से धूलि अथवा कंकर पर भस्म १०८ बार मंत्रित कर सांप के ऊपर डालने से कीलित हो जाता है।
( 12 ) सर्प विषहर मंत्र - ॐ नमो रत्नत्रयाय अमले विमले स्वाहा ।
विधि - इस को १०८ बार पढ़ते जायें और हाथ से झाड़ा देते जायें व पानी को १०८ बार मन्त्रित करके पिलाने से सर्प विष उतरता है ।
( 13 ) सर्प - भय नाशः घोण - मंत्र - ॐ नमो भगवते श्री घोणे हर हर दर दर सर सर धर मथ मथ हरसा हरसा क्ष क्ष व व ह्मर्व्यू म्र्व्यू धर्व्यू र्व्यू व्र्व्यू सर्पस्थ गति स्तम्भं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र का तीनों समय स्मरण करने से सर्प का भय मिटता है।
( 14 ) मंत्र - हुं क्षं ठः ठः ।
विधि - इसके जाप से सर्प की गति बन्द होती है।
(15) सर्प - रेखा स्तंभन - मंत्र - ॐ ह्रीं ह्रीं गरुड़ाज्ञा ठः ठः ।
विधि - यह मंत्र जप कर एक लकीर निकाल दें तो सर्प उस का उल्लंघन नहीं करेगा।
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(16) सर्प को घड़े में डालने का मंत्र- ॐ ल ल ल ल ला ला कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र का जाप करने मात्र से सर्प घड़े में प्रविष्ट हो जायेगा। ( 17 ) सामने आते सर्प को रोकने का मंत्र- ॐ पू सर्प कुलाय स्वाहा अशेष कुल सर्प
कुलाय स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १०००० जाप करके पहले सिद्ध कर लें। फिर जब आवश्यकता हो,
सात बार बोलकर मिट्टी को अभिमंत्रित कर सर्प के सामने फेंके तो वह दूर भाग
जायेगा। ( 18 ) सर्प नहीं काटे मंत्र- ॐ ह्रीं गरुण ह्रीं हंस सर्व सर्प जातीनां मुख बंधं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- मंत्र को ७ बार स्मरण करने से १ वर्ष तक साँप नहीं काट सकता है। (19) ॐ ह्रीं अष्ट महानाग कुल विष शान्ति कारिणि (ण्यै) नमः स्वाहा। विधि- काला नाग पकड़े तो काटे नहीं। मंत्रित कंकड़ फेंके तो वह कीलित हो जाता है।
उसका विष असर नहीं करता। ( 20 ) सर्पोच्चाटन मंत्र- ॐ चिली चिली स्वाहा।
(86) बिच्छ्र का जहर नष्ट मंत्र (1) बिच्छू का जहर नष्ट मंत्र- ॐ अट्ठ गंट्ठि नव फोड़ि ३ तालि बीछतु ऊपरि मोरू
उडिरे जावन गरूड भक्खइ। विधि-मंत्र को ७ बार पढ़कर हाथ फेरने से बिच्छू का जहर उतर जाता है। (2) ॐ सवरि स्वाहा। विधि-इस मंत्र को जपने से बिच्छू का जहर नहीं चढ़ता है। (3) ॐ भूधर भूधर स्वाहा। विधि-मंत्र पढ़ता जावे और नीम की डाली से झाड़ दें तो बिच्छू का जहर नष्ट हो जावे। (4) ॐ चंडे फुः। विधि-२१ बार पढ़कर फूंक देने से बिच्छू का जहर उतर जाता है। (5) ॐ इवी श्री प्रदक्षिणे स्वाहा। विधि- इस मंत्र से भी बिच्छू का जहर उतरता है। (6) बिच्छु विषहरण मंत्र- ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय
अष्टादश वृश्चिकाणं विषं हर-हर आं यूँ ह्रां स्वाहा। विधि- इस मंत्र को पढ़ते जायें और बिच्छू काटे हुए स्थान पर झाड़ा देते जायें तो बिच्छु का
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जहर उतर जाता है। (7) बिच्छू के विष पर मंत्र- ॐ पक्षि स्वाहा। विधि- यह मंत्र १०००० जाप कर लेने से सिद्ध हो जाता है। फिर जब काम पड़े, २१ बार पढ़कर झाड़ा देने से विष उतर जायेगा।
(87) कुत्ते का जहर उतरे (1) कुत्ते का जहर उतरे- ॐ विसुंधरी ठः ठः। विधि- १०८ बार पढ़ने से कुत्ते का विष उतर जाता है। (2) पागल कुत्ते नहीं काटे- ॐ वाग्धाहि रहोज्जुत्तो सीहे हि पारिवारिऊ एम्य नंद गछा
मोकु कुराणां मुखं वंधामि स्वाहा। विधि- इस मंत्र को २१ बार पढ़ता जाय और कपड़ों में गांठ देवें तो पागल कुत्ते का मुख बंद हो जाता है फिर किसी को भी नहीं काटता है।
(88) सर्व विष हरण मंत्र (1) सर्व विष हरण मंत्र- ॐ नमो भगवते श्री पार्श्व तीर्थंकराय हंसः महाहंसः
शिवहंस: को झरेज्ज हंसः पक्षि महाविषं भक्ष भक्ष हूं फट स्वाहा। विधि- इस मंत्र को धीरे-धीरे जपने से गंडमाला, विषबेल, नासूर, दृष्ट वर्ण सर्व विष
अपने स्थान से चला जाता है। (2) विष दूर करने का मंत्र- ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा क्लीं नमः । विधि- इस मंत्र की १०८ बार जाप करना चाहिए।
(89) मछली बचावन मंत्र (1) जल जंतु जाल में नहीं फँसे- णंहू साव्वसए लोमोण, णंयाज्झावउमोण, णंयारिय
आमोण,णंद्धासिमोण, णताहंरि अमोण, हुलु हुलु कुलु कुलु चुलु चुलु स्वाहा। विधि-उक्त मंत्र २१ बार जपते हुए जलाशय में मंत्रित कंकर फेंकने से मच्छादि जलजंतु
जाल में नहीं फँसते हैं। (2) मछली बचावन मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं,
ॐ णमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूणं, उलु उलु( हुलु-हुलु) कुल
कुलु चुलु-चुलु मुलु मुलु स्वाहा। विधि- यह मंत्र जीव रक्षा के काम आता है। इस मंत्र को २१ बार पढ़ता जावें और एक
कंकर पर फूंक मारता जावें और फिर उस कंकर को जाल पर मारें तो मछली न फँसे, सब बचें।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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(90) चूहे भागे मंत्र (1) चूहे भागे मंत्र : ऊँ ठों ठों मातंगे स्वाहा। विधि : इस मंत्र से सरसों २१ बार मंत्रित करके डालने से चूहे भाग जाते हैं। (2) मूशक भागे मंत्र : ऊँ चिकिचि हि णि स्वाहा। विधि : इस मंत्र से २१ बार राख (भस्म) मंत्रित करके चारों दिशा में फेंकने पर मूशक
भाग जाते हैं। (3) चूहे जायें- ॐ नमो शिवाय ॐनमो चंड गरुडाय क्लीं स्वाहा श्री गरुडो आज्ञा
पयति स्वाहा विष्णुं क्लीं क्लीं मिलि मिलि हर हर हरि हरि फुरु फुरु मूषकान्
निवारय निवारय स्वाहा। विधि-इस मंत्र से सरसों मंत्रित कर डालने से चूहे नहीं रहते हैं। (4) ॐ टं टं टें मार टें स्वाहा। विधि-चौरस्ते की धूलि को मध्याह्न समय में लेकर इस मंत्र से १०८ बार मंत्रित करके घर
में डालने से चूहे सब भाग जाते हैं। (5) ॐ धूम् धूम् महाधूम् धूम् स्वाहा। विधि-इस मंत्र से १०८ बार राख मंत्रित करके डालिये (नांखिये) तो चूहे जायें। (6) चूहे-टिड्डी भाग जाएं मंत्र- ॐ ह्रीं ह्रां ह्रीं हूँ हूँ है है हो हो हं ह: विधि- सात कंकर लेकर प्रत्येक को १०८ बार मन्त्रित कर घर में डालें तो चूहे भाग जावें
व खेत में डालें तो टिड्डी भाग जावें। (7) टीडी भगाने का मंत्र : ऊँ नमो आवी टीडी हु अ उ उकास छाडयउ मन्दिर मेरू
कविल हाकइ हनुमंत हुकइ भीम छाडिरे टीडी हमारी सीम। विधि : १०८ बार अभिमंत्रित सर सवने वेलू खेल्लने चौफेर छांटी जे टीडी जाय।
(91) खटमल भगाने का मंत्र (1) खटमल भगाने का मंत्र- ॐ चिकि चिकि ठः ठः ठः। विधि- २१ बार पढ़कर सूत्र को शैय्या में बांधने से खटमल कम होते हैं.
(92) मक्खियाँ भगाने का मंत्र (1) मक्खियाँ नहीं आती मंत्र से- ॐ ह्रीं अछुप्ते मम श्रियं कुरु-कुरु स्वाहा हीं मम दुष्ट वातादि रोगान् सर्वोपद्रवान वृहतो नु भावात् ठः ३ मक्षिका फुसिका गुरूपादुके अमृतंभयं ठः ३ स्वाहा। विधि- इसको ३ बार जपकर भोजन करने के लिये बैठने से मक्खियाँ नहीं आती हैं और
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
सर्वप्रकार के वात रोग नष्ट होते हैं। (2) मक्खियों के उपद्रव शान्त मंत्र- (अ) ॐ वः ॐ सः ॐ ठः स्वाहा। विधि-इस मंत्र के प्रभाव से मक्खियों का उपद्रव नहीं होता है। (3) मक्खियाँ भागती है- काली पंखाली रूयालि फट् स्वाहा। विधि- इस मंत्र के प्रभाव से मक्खियाँ भाग जाती हैं।
(93) कौआ,तोता-मैना,श्वानबोली-ज्ञान मंत्र (1) कौआ-बोली-ज्ञान मंत्र- ॐ क्रां का का। विधि- मस्तक पर कौए की पूंछ रखकर चितासन पर बैठकर रात्री में ७००० जाप करें।
साधक कौए की बोली समझने लगेगा। (2) तोता-मैना-बोली-ज्ञान मंत्र- ॐ ह्रीं शुक शुक बोधय बोधय स्वाहा। विधि- इस मंत्र का रात्रि में १०००० जाप करने से साधक तोता-मैना की बोली समझने
लगेगा। (3) श्वान-बोली -ज्ञान मंत्र- ॐ स्फि स्फिं काली स्वाहा। विधि- नीम के वृक्ष के मूल के पास अर्ध रात्रि में बैठकर धूप, दीप, नैवेद्य से इष्ट देव का
पूजन कर, इसका जाप प्रारंभ करें। १०००० जाप होने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। साधक श्वान की बोली समझने लगता है। जाप एक आसन में करें। एक दिन में नहीं हो सक तो दूसरे दिन करें।
(94) सर्व रोग निवारण मंत्र (1) सर्व रोग जाय मंत्र - ॐ नमो जल्लो सहि पत्ताणं, सब्बे सहि पत्ताणं
स्वाहा। विधि - इस मंत्र को 108 बार जपे तो सर्व रोग जाय । (2) सर्वरोग शान्त मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्लौं क्लौं अहँ नमः। विधि-इस मंत्र को त्रिकाल १०८ बार जपने से सर्वरोग जायें। (3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लौं क्लौं ब्लूं नमः । विधि-इस मंत्र के त्रिकाल जाप से सर्वरोग नष्ट होते हैं। (4) सर्व रोग निवारण मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ अ सि आ उ सा भूर्भुवः स्वः
चक्रेश्वरी देवी सर्व रोग भिन्द-भिन्द ऋद्धि-वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र को त्रिकाल शुद्ध रीति से जाप करने से स्त्री रोग, सर्व रोग नाश होय और
सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
(5) सर्व रोग निवारण मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्लौं - क्लौं अर्हं नमः ।
विधि - इस मंत्र की त्रिकाल १०८ बार जप करने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं । (6) सर्व रोग हरण मंत्र - ॐ ह्रीं सकलरोगहराय श्री सन्मति देवाय नमः ।
विधि- इस मंत्र की २१ दिन में सवा लाख जाप करें।
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(7) सर्व रोग नाशक मन्त्र - ॐ णमो भगवते पार्श्वनाथाय एहि - एहि ह्रीं ह्रीं भगवती दह- दह हन हन चूर्णय - चूर्णय भंज कंड-कंड मर्द - मर्द हम्र्व्यू- हम्र्व्यू हूँ फट् स्वाहा।
विधि - इस मंत्र की ४००० बार पुष्पों से जाप करना चाहिए ।
( 8 ) सर्व रोग निवारण मंत्र - ॐ ह्रीं ऐं क्लीं सर्व रोग निवारिणी श्री पद्मावती देव्यैः नमः ।
विधि - शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से नित्य तीनों संध्या जाप करें सर्वरोगों से मुक्ति मिलेगी। (9) रोग विनाशक मंत्र : ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं अ सि आ उ सा भूर्भुवः स्वः चक्रेश्वरि देवि सर्वरोगं भिंद भिंद ऋद्धिं वृद्धिं कुरू कुरू स्वाहा ।
विधि : २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जपने से कठिन से कठिन रोगों का नाश होता है और ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है।
(10) सर्व रोग निवारण मंत्र - ॐ णमो आमोसहिपत्ताणं, ॐ णमो खेल्लोसहिपत्ताणं, ॐ णमो जल्लोसहिपत्ताणं, ॐ णमो सव्वोसहिपत्ताणं स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला फेरने से सर्व प्रकार के रोगों की पीड़ा शान्त होती है ।
( 11 ) रोग कष्ट और शत्रु निवारक : णट्ठट्ठ मयट्ठाणे पणट्ठ कम्मट्ठ नट्ठ संसारे । परमटठ् णिट्ठि अटठे अट्ठगुणाधीसरं वंदे ।
विधि : राई, नमक, नीम के पत्ते, कड़वी तुम्बी के बीजों का तेल और गूगल इन पाँचों को एकत्रित कर उक्त मंत्र से मंत्रित करें । पश्चात् पिछले पहर में प्रतिदिन ३००
बार२१ दिन तक मंत्र बोलते हुए हवन करें, सभी प्रकार के कष्टों और शत्रुओं से छुटकारा मिलेगा।
(12) रोग निवारण मंत्र - ओं नमो पार्श्वनाथाय ह्रीं नमो धरणेन्द्रपद्मावती नमो नमः । विधि- इस मंत्र को प्रातः काल शुद्ध होकर सफेद वस्त्र पहिन कर पूर्व की ओर मुँह कर २१ दिन तक एक माला फेरें तो रोग का निवारण हो, विघ्न टलें ।
(95) शरीर पीड़ा व दृष्टिदोष निवारक
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(1)शरीर पीड़ा व दृष्टिदोष निवारक : ऊँ ह्रीं णमो अरिहंताणं, ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ऊँ
ह्रीं णमो आयरियाणं, ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं, ऊँ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं, ऊँ ह्रीं णमो णाणाय, ऊँ ह्रीं णमो दंसणाय, ऊँ ह्रीं णमो चरित्ताय, ऊँ ह्रीं णमो तवाय, ऊँ ह्रीं
णमो त्रैलोक्यवशंकराय ह्रीं स्वाहा। विधि : मंत्र से २१ बार जल मन्त्रित कर रोगी को पिलाने और शरीर पर छींटे देने से पीड़ा और नजर दोष दूर होता है।
(96) सिर दर्द नाशक मंत्र (1) सिर रोग नाशक मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कलिकुंड दण्ड स्वामिने नमः आरोग्य
परमेश्वर्य मां कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १०८ बार जाप करें और हाथ को सिर पर फेरें तो सिर रोग मिटे। (2) माथे का दुखना शांत- (अ) ॐ हूं।
(ब) ॐ जः हः सः। प्रतिदिन १०८ बार जाप करें तो सिर दर्द ठीक होय। (स) ॐ वैष्णवै हुं स्वाहा। अथवा 'ॐ क्षं झू शिरोवेदनां नाशय-नाशय स्वाहा।'
(द) 'ॐ ऋषयस्य किरकिरु स्वाहा' अथवा 'ॐ हीं रौं रौं रूं यः क्षः' विधि-इन ऊपर लिखे सभी मंत्रों में से किसी भी मंत्र की सवा लाख जाप कर मंत्र को
सिद्ध कर लें, फिर मंत्र का १०८ बार जाप करते हुए मस्तक पर हाथ फेरते जायें तो
माथे का दुखना शांत होता है। (3) सिर दर्द मिटाने का मंत्र- ॐ हः झू झू हः। विधि- मस्तक को मन्त्रित करने से सिर का दर्द मिटता है। (4) आधा सिर दर्द नाशक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ ओहिजिणाणं सूर्यावर्त शिरोर्द्ध सर्वमस्तकाक्षि
रोग नाशय नाशय स्वाहा। विधि- सूर्योदय के पहले इस मंत्र से भस्म को मंत्रित करके लगाएँ। (5) सिर रोग नष्ट मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो ओहि जिणाणं परमोहि जिणाणं शिरो रोग
विनाशनं भवतु। विधि- इस मंत्र का १०८ बार जाप कर झाड़ा दें, तो सिर पीड़ा ठीक (शांत) हो। (6) सिर दर्द नाशक मंत्र- ॐ क्षीं क्षीं क्षीं हः स्वाहा। विधि- इस मंत्र का १०८ बार जाप करते हुए मस्तक पर हाथ फेरते जायें तो सिर पीड़ा ठीक (शांत) हो।
(97)आंख (नेत्र ) पीड़ा दूर मंत्र
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(1) आंखपीड़ा शांत- ॐ सिद्धिः चटकि धाउ पटकी फू टइ फूं जुन बंधइ रकुन वहइ
वाट घाट ठः ठः स्वाहा। विधि-अरणी कंडे की राख को १०८ बार मंत्रित कर आँख पर लगाने से आंख की पीड़ा
शांत होती है। (2) आंखपीड़ा शांत- ॐ चन्द्रमीलि सूर्य मीलि स्वाहा। विधि- इस मंत्र से डोरे को २१ बार मंत्रित करके जिसकी आंख (चक्षु) दुखती हो, उस
मनुष्य के कान में उस डोर को बांधने से चक्षु रोग पीड़ा नष्ट होती है। (3) नेत्र पीड़ा दूर मंत्र- ॐ (नमो भगवते) ह्रीं श्रीं क्लीं क्षां क्षीं नमः (स्वाहा) विधि- भोज पत्र पर लिखकर गले में बांधने से आई हुई आंखे ठीक होती हैं। नेत्र पीड़ा
दूर होती है। (4) नेत्र अच्छा होने का मंत्र- ॐकाली कंकारू वाली महापत्र राली हूँ फट स्वाहा। विधि- इस मंत्र से १०८ बार भस्म मंत्रित कर आंख पर पट्टी बांधने से नेत्र अच्छे होते हैं। (5) नेत्र रोग विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोहिजिणाणं अक्षिरोग विनाशनं
भवतु। (6) आंखों का दर्द दूर करने का मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं क्रों सर्व संकट निवारणेभ्यो श्री
पार्श्वनाथ यक्षेभ्यो नमः स्वाहा। विधि- इस मंत्र की १०८ बार जप करना चाहिए। (7) आंख का मंत्र- ओं नमो सलस समुद्र सोल समुद्र में पंखणी क झरै, अमकड़ीया
की आँख अमी संचरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा। विधि- नमक की सात डली व थोड़ी राख बारह बार अभिमंत्रित कर आंख को छुआ कर
अग्नि में डाल दें तो दुखती आंख ठीक होती हैं। (8) शान्ति, कुन्थु अरहो अरिटुनेमि, जिनंद पास होई समरंताणं निच्चं चक्खु रोग
पणासई। विधि- किसी भी आंख के रोग पर एक माला फेर कर झाड़ा दें, तो आंख ठीक हो।
(98) कान (कर्ण)रोग विनाशक मंत्र (1) कान की पीड़ा- ॐ क्षां क्षं क्षं। विधि- इस मंत्र से कान का दर्द मिटता है। (2) बहरापन दूर एवं निद्रा का नाश- ॐ ऋषभाय हनि-हनि हन हनि स्वाहा विधि- मंत्र को २१ बार या १०८ जपने से कषायेन्द्रि का उपशम होता है। विशेष तो
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निद्रा तन्द्रा का नाश करने वाला है I
( 3 ) कर्ण रोग विनाशक मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहिजिणाणं कर्णरोग विनाशनं भवतु ।
विधि - शुभ दिन, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र से जाप प्रारम्भ करके त्रिकाल जाप करें तो अवश्य ही लाभ हो ।
( 4 ) कर्णमूल का मंत्र - बनाह गठि बनरी तो डाटे हनुमान कंटा बिलारी वाघी थनैली कर्णमूल सब जाय । रामचन्द्र का वचन पानी पथ हो जाय।
विधि - सात बार मंत्र पढ़कर राख से झाड़ने पर कर्णमूल को लाभ होता है । (99) दांत, दाढ़, मुख के रोग शांत
(1) दांत वेदना ठीक मंत्र ॐ निरू मुनि स्वाहा ।
विधि - मंत्र से झाड़ देने से दांत की वेदना शांत होती है।
(2) दाढ़ पीड़ा शान्त मंत्र - समुंद्र समुंद्र मोहि दीपु दीप माहि धनाढयु जी दाढ की खाउ दाढ कीडउ नर वाहित "अमुक " तणइ पापी लीजउ ।
विधि - इस मंत्र से ७ बार या २१ बार मंत्रित करने से दाढ़ की पीड़ा दूर होती है । (3) दाँत के कीड़े निकले : ऊँ हर हर भमर चक्षु स्वाहा ।
विधि : मंत्र से सुपारी को २१ बार मंत्रित कर खावें तो दाँत के कीड़े बाहर आ जाते हैं।
(7) दांत के दर्द निवारण मंत्र - अग्नि बांधौं, अग्नीश्वर बांधौं, सौ लाल विकराल बांधौं, सौ लोह लोहार बांधौं, वज्र के निहाय वज्र धन दांत विहाय तो महादेव की आन । विधि- ध- सात बार मंत्र पढ़कर फूंकने से दांत का दर्द तुरन्त दूर होता है ।
( 5 ) दांतों का किरकिराना बन्द हो, मंत्र - ॐ हरे हरे भ्रम भ्रम चक्षु स्वाहा ।
विधि - सुपारी के टुकड़े को १०८ बार मन्त्रित करके मुख में रख कर सोने से दांतों का किरकिराना बन्द हो जाता है।
( 6 ) मुख रोग नाशक मंत्र - ॐ नमो अरहउ भगवऊ मुख रोगान्, कंठ रोगान्, जिह्वा रोगान् तालु रोगान्, दंत रोगान्, ॐ प्रां प्रीं प्रः सर्व रोगान् निर्वतय - निर्वतय स्वाहा । विधि - इस मंत्र से जल मन्त्रित कर कुल्ला करने से सर्व मुख रोग नष्ट होते हैं।
(3) मुख के रोग शांत- ॐ नमो अरहऊ भगवऊ मुखरोगान् कंठरोगान् जिह्वा रोगान् तालु रोगान् दांत रोगान् ॐ प्रां प्रीं प्रं प्रः सर्व रोगान् निवर्त्त - २ स्वाहा । विधि - इस मंत्र से पानी मंत्रित करके कुल्ला करने से सर्व प्रकार के मुख रोग शांत होते हैं ।
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(4) मसोड़ा ठीक मंत्र- ॐ दधी चिकतु पुत्रु तामलि रिषि तोर उपित्ता गावि जीभ वाहि
मरियउ तिथु वयरिहंतु लाग उहंतु गावितु हु ब्राह्मणु छाडि-२ न कीजइ अइसा। विधि- इस मंत्र से जल २१ बार मंत्रित करके उस जल को मुख में लेकर, मुख में घुमाने से मसोड़ा ठीक होता है।
(100) श्वांस,पाद ,पीलिया रोग निवारण मंत्र (1) श्वांस रोग विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो संभिण्णसोदराणं श्वास रोग विनाशनं
भवतु। (2) पाद रोग विनाशक मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वजिणाणं पादादिसर्व रोग विनाशनं
भवतु। विधि- शुभ दिन, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र से जाप प्रारम्भ करके त्रिकाल जाप करें तो
अवश्य ही लाभ हो। (3) पीलिया रोग निवारण मंत्र- ॐ नमो आदेश गुरु की रामचन्द्र सरसाध लक्ष्मण
सादा बाण काला पीला राता पीला ॐ थोथा पीला चारों उडज्यों रामचन्द्र जी थोके
नाम मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फंस मंत्र स्वर वाचा। विधि- सात सुई लेकर एक कटोरी में जल लेवें तथा एक कटोरी खाली लेवें, उस सात सुई
से खाली कटोरी में मंत्र बोलकर सुई से जल छोड़ते जावें । २१ बार ऐसा ही करें तो पीलिया रोग जाय।
(101) पेट रोग निवारण मंत्र (1) पेट दर्द-दूर : मंत्र- ॐ नमो इट्ठी मीट्ठी भस्म कुरु कुरु स्वाहा। विधि- १२५००० जाप कर मंत्र सिद्ध कर लें। २१ बार पानी को अभिमंत्रित कर रोगी
को पिलायें तो पेट का दर्द दूर हो। (2) धरण दूर : मंत्र- ॐ चरणी चरणी माणस तेरी सरणी माणस का आसा पासा छांड रे
धरणी न छोड़े तो चतुरंग नाथ जी री आज्ञा फुरे ठः ठः स्वाहा। विधि- प्रथम १२५००० जाप कर मंत्र सिद्ध कर लें। फिर जब भी आवश्यकता हो, पेट पर
हाथ फेरता जाय और मंत्र पढ़ता जाय तो धरण अच्छी होगी। (3) पेट दर्द शांत मंत्र- ॐ इटि मिटि भस्सं करि स्वाहा। विधि- १०८ बार मंत्रित करके पानी को पिलाने से पेट का दर्द शांत होता है।
(1.) ॐ भस्यकरी ठः ठः स्वाहा। (2.) ॐ इटिमिटि मम भस्यं करि स्वाहा।
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(3.) ॐ इचि मिचि मम भस्य करी स्वाहा॥ विधि- इन तीनों मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र से जल मंत्रित करके पिलाने से और हाथ
से झाड़ा देने से अजीर्ण ठीक होता है और अतिसार भी ठीक होता है और पेट का
दर्द भी ठीक होता है। (4) पार्यो पर्वडत्रिशुलधारी श्रुल भंजइ श्रुल फोड़इ तासुलय जय। विधि- इस मंत्र से पेट पीड़ा का नाश होता है। (5) सर्व वायु रोग नाशक मंत्र- ॐ तारणि तारय मोचनि मोचय मोक्षणि जीव वरदे
स्वाहा। विधि- इस मंत्र से जल २१ बार मन्त्रित कर पिलाने व झाड़ देने से सर्व वायु का शमन
होता है। (6) वायु रोग निवारण : मंत्र- ॐ नमो अजब कंकोल गड़ीयो वाय फिरंग रगत वाय,
चेपियो वाय, अनंत सर्वे वाय नाशय नाशय दह दह पच पच भख भख हन हन
ॐ फुट् स्वाहा। विधि- प्रथम १२५००० जाप कर मंत्र सिद्ध कर लें। फिर पांच रंग के रेशम के धागों को
लेकर ९ गांठ दें। हरेक गांठ पर १०८ बार धूप-दीप सहित मंत्र पढ़ें। फिर गले में बांधे तो हर प्रकार का वायु रोग मिटे।
(102) वात नष्ट मंत्र (1) वात नष्ट मंत्र-(अ) ॐ रां री रूं रौं र: स्वाहा। विधि- इस मंत्र को २१ बार, ३४ दिन तक हाथ से झाड़ा देवें तो कायल वात नष्ट होती है। (2) पवणु पवणु पुत्र, वायु-वायु पुत्र हणमंतु-२ भणइ निगवाय अंगज भणइ।
विधि-इस मंत्र से सभी प्रकार के वात दूर होते हैं। (3) ॐ नील नील क्षीर वृक्ष कपिल पिंगल नार सिंह वायुस्स वेदनां नाशय नाशय फट् ह्रीं
स्वाहा। विधि- इस मंत्र से सभी प्रकार के वात रोग दूर होते हैं। (4) वायजाय मंत्र : ऊँ ह्रीं कमले कमलोद्भवे स्वाहा। विधि : २१ बार चने की दाल व खारक मंत्रित कर खायें तो कमलवाय जाये।
(103) अंडकोष-वृद्धि व खालबिलाई मंत्र
= 181D
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(1) अण्डकोष वृद्धि व खाख बिलाई मंत्र : ऊँ नमो नलाई-ज्यां बैठ्या हनुमंत आई __पके न फुटे चले बाल जति रक्षा करे। गुरु रखवाला शब्द सांचा पिंड काचा चलो
मंत्र ईश्वरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु को। विधि :नीम की डाली से २१ बार झाड़े तो अण्डकोष वृद्धि तथा खाख बिलाई ठीक होय। (2) एक अन्य प्रयोग के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति शयन करते समय निम्न मंत्र का
२१ बार जाप अपने बिस्तर पर ही बैठकर करे तथा फिर सोये तो भी उसे स्वप्नदोष नहीं होता है। मंत्र इस प्रकार है:- “ॐ आर्यमायै नमः"
(104) बाला (नहरवा) मंत्र (1) बाला (नहरवा) मंत्र : ॐ नमो मरहर दे शंक सारी गांव महामा सिधुर चांद से
बालै कियो विस्तार बालो उपनो कपाल भांय या हुँतियो गीहु ओ तोड़ कीजै नै
डबाला किया पाचे फुटे पीड़ा करे तो विप्रनाथ जोगीरी आज्ञा फुरे। विधि : कुमारी कन्या के हाथ से कते सूत की डोरी करके ७ गांठ मंत्र पढ़कर लगा दें फिर पैर में बांध दें तो बाला ठीक हो जाएगा।
(105) दाद ,खुजली, घाव, फोड़ा ठीक मंत्र (1) दाद रोग दूर मंत्रॐ गुरूभ्यो नमः देव देव पुरी दिशा मेरूनाथ दलक्षना भरे विशाहतो
राजा वैरधिन (पैराधिन) आज्ञा राजा वासुकी के आन हाथ वेगे चलाव। विधि- इस मंत्र से पानी २१ बार मंत्रित कर पिलाने से दाद का रोग दूर होता है। (2) खुजली दूर मंत्र- ॐ विमिचि भस्यकरी स्वाहा। इस मंत्र से खुजली दूर होती है। विधि- इस मंत्र को पानी पर पढ़कर वह पानी पिलाने से दाद दूर होता है। (3) घाव की पीड़ा का मंत्र- सार सार बिजै सारं बांधू सात बार फूटे अन न ऊपजे घाव
सीर राखे श्री गोरखनाथ। विधि- इस मंत्र को सात बार पढ़कर घाव पर फूंके तो पीडा कम हो, घाव भरे। (4) व्रणहर मंत्र- ॐ णमो जिणाणं जावयाणं पुसोणि अं ए एणि सव्ववायेण वणमापच्चं
उमाघुष उमा फुट् ॐ ॐ ॐ ठः ठः स्वाहा। विधि- इस मंत्र से राख अभिमंत्रित कर व्रण (जिनको बण भी कहते है) जो बालकों के
शरीर पर हो जाते हैं, उन पर अथवा शीतला के व्रणों पर लगावें तो मिट जाते हैं। (5) घाव पीड़ा नाशक मंत्र- सार सार बिजै सरं बांधू सात बार फटे अन्य उपजे घाव सीर
राखे श्री गोरख नाथ। विधि- इस मंत्र को ७ बार पढ़कर घाव पर फूंक मारे तो घाव की पीड़ा कम होवे और घाव
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भरे। (6) घाव नाशक मंत्र- ॐ क्रों प्रौं ठः ठः स्वाहा । १०८ बार जाप करने से दुष्ट वर्ण
(घाव) का नाश होता है। (7) घाव भरने का मंत्र- ॐ सीता देलागउ घाउ फूकिउभलउ होई जाउ। विधि- तेल सात बार मन्त्रित करके घाव पर लगाने से और २१ बार मंत्र पढ़ने से घाव
भरने लगता है। (8) फोड़ा ठीक मंत्र- ॐ चंद्राहास खंङ्गेन छिन्द छिन्द भिन्द भिन्द हूँ फट् स्वाहा। विधि- मंत्र से फोड़ा मंत्रित करने से फोड़ा ठीक होता है। (9) कर्म जाणइ धर्म जाणई राका गुरूकउ पातु जाणइ सूर्य देवता जाणई रे विष। विधि- इस मंत्र से फोड़ा को मंत्रित करने से फोड़ा ठीक हो जाता है।
___(106) ज्वर नाशक मंत्र (1) ज्वरादि भाग जाते हैं- ॐ अव्वुप्ते मम सर्व भयं सर्व रोगं उपशामय-२ ह्रीं स्वाहा
अहँ स्वास्तिलंकातः महाराजाधिराज समस्त कौणाधिपतिः 'अमुक' शरीरथं अमुक ज्वरं समादिशतिय थारे रे दुष्ट अमुक ज्वरं त्वयापत्तिका दर्शना देव शीघ्रं भागतव्यं अथ नाग छसित दते सिर श्रंद्रहास सखङ्गने कर्तपष्यामि हूँ फट् मां भणिष्यसि
यन्नाख्यात्तं। विधि- इस मंत्र को कागज पर लिखकर रोगी के हाथ में कागज को बांधने से वेला ज्वरादि
भाग जाते हैं। (2) ॐ ह्रीं क्रों क्लीं ब्लूं जंभे -२ मोहे वषट्। विधि- इस मंत्र का हाथ से जाप करने पर सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है। (3) ॐ ह्रीं श्री चंद्र वदनी माहेश्वरी चंडिका भूतप्रेत पिशाच विद्रापय- २ वज्र दंडेन
महेश्वर त्रिशूले नदी वरी खङ्गने चूरय-२ पात्र प्रवेशे-२ॐ छां छीं छू छ: फट्
स्वाहा। विधि- प्रथम १०८ बार इस मंत्र का जाप करें फिर डोरा को २१ बार मंत्रित करके बांध देने
से सर्वप्रकार के ज्वर का नाश होता है। (4) ज्वर से छुटकारा मंत्र- ॐ पंचात्माय स्वाहा विधि- इस मंत्र का २१ बार चोटी मंत्रित करके चोटी में गांठ लगावें तो ज्वर से छुटकारा
मिलता है। (5) ॐ तेजो हैं सोम सुधा हंस स्वाहा। अथवा 'ॐ अहँ ह्रीं क्ष्वीं स्वाहा।'
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विधि- भोज पत्र पर मंत्र को लिखें और मोमबत्ती पर लपेटें फिर मिट्टी के कोरे घड़े को पानी से भरकर उसमें उसे डालने से दाहज्वर नाश होता है ।
( 6 ) तृतीय ज्वर का नाश मंत्र - ॐ झां झीं झौं झः ।
विधि - मंत्र से रंगीन डोरा वट करके २१ बार मंत्रित करके हाथ में बांधने से तृतीय ज्वर का नाश होता है।
(7) ज्वर-निवारण मंत्र : ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं श्रावय मम सर्व रोगान् प्लावय प्लावय रः रः रः स्वाहा ।
विधि : इस मंत्र को २१ दिन तक नित्यप्रति ५ माला फेरकर सिद्ध कर लें । फिर जल को २१ बार अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाने से एकान्तर ज्वर, रोज आने वाला ज्वर तथा सन्धिवात आदि सर्व रोग अवश्य ठीक होते हैं ।
( 8 ) सर्व ज्वर शान्त - ॐ नमो भगवते (नाम) सर्व ज्वर शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ॥ विधि - मंत्र लिखकर धूप देकर रोगी के गले में बांधें तो सर्व ज्वर शान्त और सन्निपात दूर होता है।
(9) ॐ नमो भगवते म्ल्वर्यं नमः स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र के जाप से सब प्रकार के विषम ज्वर दूर होते हैं।
(10) बुखार दूर करने का मंत्र - ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ॐ णमो उवज्झायाणं ॐ णमो आइरियाणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ णमो अरिहंताणं ।
विधि - एक सफेद चादर के किनारे को एक बार मंत्र पढ़कर मोड़ें और इस प्रकार १०८ बार मन्त्रित करके चादर को मोड़ते जायें फिर मोड़ देने के पश्चात उस चादर को रोगी को उड़ा दें तो बुखार उतर जाता है।
( 11 ) ज्वर नाशक मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं सर्व ज्वरं नाशय नाशय, ॐ णमो सर्वोषधिवंताण ह्रीं नमः ।
विधि - १०८ बार या २१ बार पानी मन्त्रित करके पिलावें तो सर्व ज्वर पीड़ा जाय ।
( 12 ) जीर्ण ज्वर - निवारण - नमस्कार मंत्र - ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहुणं, ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ णमो अरहंताणं ।
विधि - एक सफेद धुली चद्दर लेकर, उसके कोने पर, एक मंत्र बोलें, एक गाँठ दें, फिर खोल दें, फिर मंत्र बोलें, गाँठ दें और खोल दें- इस प्रकार १०८ बार मंत्र बोले व गांठ दे तथा खोल दें। अन्तिम गांठ उसी तरह बँधी हुई रहने दें। वह गाँठ बँधी चद्दर रोगी को ओढ़ा दें। गाँठ वाला भाग रोगी के सिरहाने रखें। जब तक ज्वर नहीं छूटे, चद्दर रखें। एक दिन के अन्तर से, दो दिनों के अन्तर से, तीन दिनों के अन्तर से या
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चार दिनों के अन्तर से ज्वर आता हो तो छूट जायेगा। प्रतिदिन जाप करते रहें, धूप देते रहें।
(107) बवासीर ठीक मंत्र(1) बवासीर ठीक मंत्र- ॐ इज्जेविजे हिमवंत निवासिनी अमोविज्ये भगंदरे वातरिसे
सिंभारि से सोणि यारि से स्वाहा। विधि-इस मंत्र से सात बार मंत्रित करके जल पिलाने से बवासीर ठीक हो जाती है। (2) अडी विणडी विहंडी विमडीवा कुंण कुंण कुंतय तीविणट्ठी विमड़ी वा कुंकुणा
विद्यापसए अम्हकुले हरि साउन भवंति स्वाहा। विधि-इस मंत्र से किसी भी प्रकार के धान्य का लावा/धानी को मंत्रित करके सात दिन
तक खिलावें तो हरिष रोग याने बवासीर ठीक होता है। (3) ॐ लुंच मुंच स्वाहा। विधि- पानी को २१ बार मंत्रित कर पिलाने से बवासीर रोग शान्त होता है। (4) मस्सा नाशक मंत्र- ॐ उमती उमती चल चल स्वाहा। विधि- इस मंत्र से लाल डोरे को २१ बार मंत्रित कर तीन गांठ लगाकर पांव के अंगूठे में
बांधे तो फौरन आराम होवे। (5) खूनी बवासीर की पीड़ा दूर मंत्र- ॐ उमती उमती चल चल स्वाहा। विधि- शुभ मुहूर्त में ११००० जाप जपकर इस मंत्र को सिद्ध कर लें। फिर २१ बार पढ़कर
लाल सूत में एक गांठ दें और हर २१ बार पढ़कर एक गांठ दें। इस तरह ३ गांठ देने पर ६३ बार मंत्र पढ़ लिया जायेगा। इस सूत को दाहिने पैर के अंगूठे में बांध देने से खूनी बवासीर की पीड़ा दूर होती है।
(108) औषधि मंत्र (1) औषधि मंत्र- ओं ह्रीं सर्वते सर्वते श्रीं क्लीं सर्वोषधि प्राणदायिनी नैऋत्ये नमो नमः
स्वाहा। विधि- किसी भी रोग के लिए कोई भी औषधि आरंभ करने से पहले इस मंत्र- को पढ़ें, फिर औषधि शुरू करें तो शीघ्र लाभ हो।
(109 ) बच्चा चुप हो ,बच्चा दूध पीवे मंत्र (1) बच्चा चुप होने का मंत्र- ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ चलूठे चूजे स्वाहा। विधि- रोते हुए बच्चे के कान में जपने से बच्चा चुप हो जाता है, रोता नहीं है। (2) बच्चा दूध पीवे (बंगाली मंत्र) : आंदूरी कांदूरी कूल तोरे बासा, पोरेर छेले कांदिए
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कोरियाछो तामासा नाक काटबो, चूल काटबो, बेचिबो वालो कि यार हाटे न कांदो चूप कोरे थाको, भावेर कीले लो कोरे थाको माहादेवेर बोले कार दोहाई माहादेवेर
दोहाई। विधि : एक कटोरी पानी से भरें, उस पर तीन बार मंत्र पढे, प्रत्येक बार फूंक मारे, फिर उस पानी से मुंह धोएं, नाभि के पास लगावे व स्तन धोवे, बच्चा दूध पीवे।
__ (110) परदेश गमन लाभ मंत्र (1) परदेश गमन व्यापार लाभ मंत्र- ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो भगवइ महाविज्जाए
सत्तटाए मोर हुलु हुलु चुलु चुलु मयूर वाहिनीए स्वाहा। विधि-पौष कृ.१० (गुजराती मगसिर कृष्ण १०वीं) के दिन निराहार रहकर इस मंत्र का
श्रद्धापूर्वक १००८ बार जप करें। परदेश गमन व्यापार तथा लेन देन के समय उक्त
मन्त्र का ७ बार स्मरण करने से लक्ष्मी और अनाज का लाभ होता है। (2) भोजनादिक लाभ मंत्र- ॐ नमो भगवती वागेश्वरी अन्नपूर्णां ठः। विधि-इस मंत्र को नगर में प्रवेश करते समय २१ बार जपें तो भोजनादिक का लाभ होता
है।
(3) बिना याचना के भोजन मिले- ॐ रत्नत्रयाय मणिभद्राय महायक्ष सेना पतये ॐ
कलि-कलि स्वाहा। विधि- दातौन करने योग्य किसी भी वृक्ष की कोमल टहनी के सात टुकड़े करके इस मंत्र
से इक्कीस बार अभिमन्त्रित करके प्रात:काल दातौन करके फेंक दें तो बिना मांगे
भोजन मिलता है। अर्थात् भोजन के लिए किसी से याचना नहीं करनी पड़ती है। (4) प्रवास में आराम का मंत्र- गच्छगौतम शीघ्रत्वं ग्रामेषु नगरेषु च।आसनं वसनं शय्यां
ताम्बूलं यच्च कल्पयेत् ॥ विधि : प्रवास में जिस नगर में जाना हो, उसके समीप पहुंचने पर सात बार इस मंत्र को
पढ़े, फिर नगर में प्रवेश करें तो अपने आप समीचीन सुख-सुविधा प्राप्त होगी। (6) परदेश लाभ मंत्र :- ॐ णमो अरहंताणं, ऊँ णमो भगवइए चन्दायईए सतट्ठाए
गिरे मोर मोर हुलु हुलु चुलु चुलु मयूर वाहिनिए स्वाहा। विधि : पहले पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा के सामने यह मंत्र दस हजार बार जपें। फिर जिस समय गमन करें तब १०८ बार जपें तो नगर में पहुंचते ही रोजगार लाभ होय। धन मिले, लेकिन मंगलवार को नए व्यापार करने न जायें, अन्यथा दिवाला निकलता है।
(111) खेती संबंधी समस्त मंत्र (1) खेत अपना होय ( आकर्षण मंत्र) : श्री रेखे भू स्वाहा।
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फल : यह मंत्र इष्ट पुरुष का आकर्षण तथा पुष्टि करता है। घी तथा भात के हवन से सिद्धि होती है। शुक्रवार को झगड़े वाले खेत में दूध या नैवेद्य से एक हजार हवन करके बलि (चरू को) देने से वह खेत अपना हो जाता है। चन्द्रमा और बुध के एक अंश पर आने पर कहीं नक्षत्र पाकर यह कार्य करने से बिना विघ्न के कार्य पूर्ण होता है। (2) सूखा वृक्ष हरा हो मंत्र : ओं नमो आदेश गुरु कू अघोर अघोर महाअघोर अजर अघोर वजर अघोर अंड अघोर पिंड अघोर सिव अघोर संगति अघोर चन्द अघोर सूरज अघोर पवन अघोर पाणी अघोर जमी अघोर आकाश अघोर अनादि पुरुष बूजंत हो अलील ए घट पिंड का रखवाला, जल में न डूवणा अगन में न बलणा सहस्रधारा न कटणा, जमीन के पेट होय लिप जाणा सूका रूंख हरिया होगा। ऊँ अघोर मंत्र सोहं । विधि : पहले ११००० जाप करके इस मंत्र को सिद्ध कर लें फिर जो वृक्ष सूख रहा हो,
उसके पास जाकर पूर्व की ओर खड़ा होकर पानी भरे हुए कांसे के प्याले में नौ
बार मंत्र पढ़कर पानी को वृक्ष के चारों ओर छिड़क दें, वृक्ष हरा हो जायेगा। (3) पुनः वृक्ष पर फल आवें- ॐ नमो पद्मावत्यै इम्ल्ब्यूँ नमः स्वाहा। विधि- पुनः मधुर फल व पत्ते वृक्षों में आ जाते हैं मंत्र के प्रभाव से। (4) पानी मीठा होने का मंत्र- ॐ नमो भगवत्यै चामुण्डायै नमः स्वाहा । विधि- सात दिन तक मंत्रित जल खारे कुएँ या बावड़ी में डालने से पानी मीठा हो जाता
है।
(112) पुरुष व स्त्रियों की सुन्दरता का मंत्र (1) पुरुष व स्त्रियों की सुन्दरता का मंत्र- ॐ रक्ते विरक्ते रक्त वाते हुँ फट् स्वाहा। विधि-इस मंत्र से स्त्रियों की या पुरुषों की लावण्य बढ़ जाती है वा कुरूपता दूर हो जाती
(2) कान्ति बढ़ाने का मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं श्री कंकाल काली मधुमातंगी मदविह्वली
मनमोहिनी मकर-ध्वजे स्वाहा। विधि- यह स्नान मंत्र है। इसको पढ़कर स्नान करने से कान्ति बढ़ती है।
(113) स्त्रियों का रक्तस्राव बन्द हो मंत्र (1) स्त्रियों का रक्तस्राव बन्द हो मंत्र- ॐ णमो लोहित पिंगलाय मातंग राजानां
स्त्रीणां रक्तं स्तम्भय-स्तम्भय ॐ तद्यथा हुसु हुसु, लघु-लघु, तिलि-तिलि,
मिलि-मिलि स्वाहा। विधि- लालसूत्र या मौली को दोहरा करके सात गांठे लगावें तथा इक्कीस बार इस मंत्र से अभिमन्त्रित कर डोरा स्त्री के वाम पैर के अंगूठे पर बांध दें तो तत्काल रक्तस्राव
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बन्द हो जाएगा। (2) रक्तस्त्राव बंध का मंत्र- ॐ मातंग राजाय चिलि चिलि मिलि मितक्ली अमुकस्य
रक्तं स्तंभय स्तंभय स्वाहा। विधि-सफेद रंग के डोरे को इस मंत्र से २१ बार मंत्रित करके फिर उस डोरे को बांधे तो
स्त्रियों का रक्तस्राव बंध होता है। (3) रक्तस्राव रुक जाता मंत्र- ॐ तद्यथा गर्भधर धारिणी गर्भरक्षिणि आकाश मात्रिकै
हूँ फट् स्वाहा। विधि-इस मंत्र से लाल डोरे को २१ बार मंत्रित करके स्त्री के कमर में बांधने से रक्तस्राव
रुक जाता है। (4) ॐ नमो लोहित पिंगलाय: मातंग राजानो स्त्रीणां रक्तं स्तंभय स्तंभय ॐ तद्यथा हुँ
सुरलघु सुरलघु तिलि तिलि मिलि मिलि स्वाहा। विधि-इस मंत्र से लाल डोरे को २१ बार मंत्रित करके ७ गांठ लगाकर स्त्रियों के बाएं पांव
के अंगूठे में बांधने से रक्तस्राव रुक जाता है। (5) रक्तस्त्राव रुक जाता- ॐ रक्ते रक्ते वस्त्रे पु फु रक्ते वाक्ते स्वाहा। विधि- अनेन कसुंभ रक्त सूत्रेण अन्ह? दवरकं वटित्वा अद्या घाड़ा मूले बंधित्वा वार ७
अभिमंत्रेत रक्तवाहकं नश्यति। (6) रक्त स्राव नष्ट मंत्र : ॐ रक्ते रक्तवती हूँ फट् स्वाहा। विधि : लाल पुष्प पर २१ बार मंत्रित कर स्त्री के कंठ में बांधे तो रक्तस्राव नष्ट होये।
(114) स्तन पीड़ा नाशक मंत्र (1) स्तन पीड़ा नाशक मंत्र- ॐ सप्त पातालु सप्त पाताल प्रभाण छइ वालु ॐ चालिते वालु जउ लगि राम लक्ष्मण के वाण्उ छीनि घातिया हिलउ। विधि-मंत्र से जंगली कंडे की राख और अक्षत मंत्रित कर लगाने से स्तन की पीड़ा ठीक
होती है। (2) स्तन में दूध बढ़े- ॐ ब्लीं-२ सा दुग्ध वृद्धि कुरु-२ स्वाहा। विधि- चावल की खीर मंत्रित कर खिलावें तो दुग्ध स्तनों में बढ़े।
(115) चोरी गई वस्तु मिले (1) चोरी गई वस्तु मिले- ॐ नमो गंधारि (रयै) नमः श्रीं क्लीं ऐं ब्लूं हूँ स्वाहा। फल- इस मंत्र के प्रभाव से चोरी गई वस्तु मिलती है। (2) चोर चोरी नहीं कर पाते- ॐ हीं श्रीं हंसः हौं हाँ हाँ द्रां द्री द्रौं दः मोहिनी सर्वजन
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वश्यं कुरु-२ स्वाहा। विधि- ७ कंकरियों को १०८ बार मंत्रित कर चारों दिशाओं में फेंकने से चोर चोरी नहीं
कर पाते तथा रास्ते का भय नहीं रहता। (3) चोर भय दूर मंत्र- ॐ अढे मढे चोर घढे सर्व दुष्ट भक्षी मोहिनी स्वाहा। विधि- इस मंत्र से पत्थरों को मंत्रित करके दशों दिशाओं में फेंकने से चोर का भय नहीं
होता। (4) चोर मुंह से खून डाले मंत्र- ॐ नमो कामरू देश कानक्ष्यादेवी लंकामाहि चांवल
उपाय: किसका चोर किसका चावल पीर कानुगाधीर में रामनुका चाउल चिडा चोर को मुख लागै साह उंगण उखावै चौर के मुख लोही नी बह्यावाच विष्णु वाच सूर्य
चन्द्रमा वाच पवन वाणी वाच। विधि- इस मंत्र से चावल २१ बार मंत्रित कर चबावें तो चोर के मुँह से खून निकले। (5) मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं हः ज्वां ज्वी ज्वालामालिनी चोर कंठं ग्रहण-२ स्वाहा। विधि- शनिवार रात्रि चावल धोप २१ बार को हाँडी माँहि घालिये। प्रभात गुहली देय,
२१ बार चांवल खवाबै चोर के मुंह से लहू कडै। (6) चोर की आँखें बांधने का मंत्र : " ॐ धणु धणु महाधाणु धणु स्वाहा।" विधि : इस मंत्र को मार्ग में जपने से चोर की आंखें बंध जाती हैं।
(116) वृष्टि कारक मंत्र (1) वृष्टिकारक मंत्र : ऊँ नमो स्म्ल्यूँ मेघकुमार ऊँ ह्रीं श्रीं म्ल्यूँ मेघकुमाराणं वृष्टिं
कुरू कुरू ह्रीं संवौषट्। विधि : प्रथम एक लाख जपकर सिद्ध कर लें। तत्पश्चात् जब मेघ बरसाना हो तब
उपवासपूर्वक पाटा पर लिखकर पूजन करें व जपें। तब पानी बरसे। (2) वृष्टिकारक मंत्र : ऊँ नमो ह्म्ल्यूँ मेघकुमाराणं ऊँ ह्रीं श्रीं नमो स्म्ल्यूँ मेघकुमारिणां
___ वृष्टिं कुरू कुरू ह्रीं संवौषट् । विधि : १२ हजार जप से शीघ्र वर्षा होती है। (3) वृष्टि कारक मंत्र- ओं मेघोल्काय स्वाहा। विधि- जिस देश में वर्षा न होती हो वहां जल के अन्दर खड़ा होकर सात रात्रि तक मंत्र
जपने से बड़ी भारी वृष्टि होती है। (4) वृष्टि कारक यक्षिणी मंत्र - ॐ सेने द्विकर जिन युक्ते प्रभंजिनि सुकेशिनि ठः ठः। विधि- यह यक्षिणी देवी का मन्त्र एक लक्ष जप से सिद्ध होता है। इस मंत्र को जपकर केशों को छूने से तुरन्त वर्षा हो जाती है।
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मंत्री इस मंत्र को नाम सहित गौरोचन से भोजपत्र पर लिखकर धागे में लपेट कर पीपल के वृक्ष की खोखल में रख दें। यह मंत्र जब तक वहाँ रहता है तब तक साध्य के यहाँ बिना विघ्न के बड़ी भारी वर्षा होती रहती है। यह मंत्र उसी प्रकार से जब तक रोहिणी वृक्ष की खोखल में रखा रहता है तब तक
साध्य भी उसके वश में रहता है। (5) वर्षा कराने का मंत्र ॐ नमो रम्लयूँ ( स्म्लयू) मेघ कुमारणं, ऊँ ह्रीं श्रीं क्ष्यम्ला
मेघ कुमारणं वृष्टिं कुरू कुरू ह्रीं संवौष्ट् । विधि- इस मन्त्र का एक लाख विधिपूर्वक जप करें। जब पानी बरसाना हो तब उपवास कर पाटा पर मन्त्र लिखकर पूजा करें, पानी बरसेगा।
___ (117) मेघस्तम्भन मंत्र (1) मेघस्तम्भन मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं सों क्षं क्षं क्षं मेघकुमारेभ्यों वृष्टि स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा। विधि : श्मशान में प्यासे जपें तो मेघ स्तंभन होय। (2) जल स्तम्भन वायु मंत्र : ऊँ नमो भगवते वायवे मर्दय-२ प्रमर्दय-२ स्तंभय-२
हिरि संहर-२ ठः ठः। विधि : यह वायु मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होकर जल का स्तंभन करता है। (3) वर्षा रोकने का मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं (क्षी) सों ौं क्षा मेघ कुमारेभ्यो वृष्टिं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा।
विधि- श्मशान में प्यासा बैठकर जाप करें, तो मेघ का स्तंभन हो जायेगा,
बादल उमड़-उमड़ कर आयेंगे परन्तु वर्षा नहीं होगी। (4) मेघ स्तंभन-ॐ नमो भगवते रूद्राय मेघं स्तंभय-स्तंभय ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- मंत्र का 108 बार जाप करके दो ईंटों के मध्य श्मशान के अंगारे रखकर सूने स्थान पर गाड़ देने से वर्षा नहीं होती।
(118) पृथ्वी में से धन निकालने का मंत्र (1) ॐ नमो ब्रह्माणि प्रपूजिते नमोस्तु तेभ्यस्त्रयशीतिकपाल शूलिनि मयि स्वाहा। विधि - इस मंत्र के जाप से सफेद आक की रूई की बत्ती वाले दीपक में रात्रि के
समय तेल जलाकर देखने से मनुष्य को पृथ्वी में गड़ा धन दिखाई देता है। (2) ॐ हीं प्रज्वलित ज्योति दिशायां स्वाहा। विधि - संदिग्ध पृथ्वी के भाग में अट्ठाईस द्वार आदि के खंड बनाकर लें और कृतिका
आदि के चन्द्रमायुक्त मंत्र को वहाँ डालें। (3) : हरा ( हीं ) जिष्णु (ऊँ) में सूक्ष्म बिन्दु और ईकार लगाकर उनके बीच में चन्द्रमा
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अंग
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(सः) को रखें। अंग-ह्रयां हयीं यूँ हयै हयौं हयः ।
विधि : इस मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके धान की खील और त्रिमधुर से एक सहस्त्र हवन करें तो सुख से खजाने को खोद लें।
(4) पृथ्वी दायक मंत्र : ओं नमो भगवत्यै धरण्यै धरणीधरे ठः ठः । विधि: इस पृथ्वी मंत्र का तीन लाख जप करके घी और नैवेद्य का हवन करने से पृथ्वी की प्राप्ति होती है। उत्तम फलों से हवन करें तो बड़ी भारी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । त्रिमधुर होम से पुष्टि होती हैं।
( 5 ) निधि दर्शन मन्त्र - ॐ ह्रीं धरणेन्द्र पार्श्वनाथाय नमः निधि दर्शनं कुरु कुरु स्वाहा । विधि - नेत्र बन्द करके इस मंत्र के सवा लाख जाप करें। तत्पश्चात् मन्त्र बोलते हुए हाथों से नेत्रों को स्पर्श करें, तो भू - गर्भ में छिपी हुई निधि (दौलत) दिखेगी। ( 119 ) खोया धन व प्राणी प्राप्ति मंत्र
(1 ) खोये-धनादि लाभ मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं अर्हं नमः । विधि-१०८ बार जपने से खोई हुई सम्पत्ति धनादि का लाभ होता है ।
( 2 ) खोया धन व प्राणी प्राप्ति मंत्र : बन्दु सहित दन्त (दं) देवी (फ) मेद (व) पूर्वि (श) मल (य) पुरू (अं) पृथु (ग) विभ (ज) “हूं हूं वौ' यह सूर्य मंत्र है।
"श्री वसुले लेखा ठः ठः ।
इस मंत्र को सूर्य की ओर मुख करके जपने से साधक खोये हुए पुरूष, स्त्री या द्रव्य को पुनः पा लेता हैं।
विधि
मुनि प्रार्थना सागर
(120) अन्य फुटकर मंत्र
(1) घर में अन्य पुरुष नहीं आय- ॐ मिली मिली ठं ठः स्वाहा ।
विधि- ज्येष्ठा नक्षत्र में हिंगोष्ट की लकड़ी एक अंगुल की सात बार मंत्रित करके जिस वैश्य के घर में डाल देवें तो उस वैश्य के घर में अन्य पुरुष प्रवेश नहीं करेगा ।
( 2 ) घर के लोग सो जाते मंत्र - ॐ भ्रम भ्रमकेशि भ्रमकेशि भ्रम माते भ्रम विभ्रम विभ्रम मुहय मुहय मोहय मोहय स्वाहा ।
विधि- जमीन पर न गिरे सरसों के दानों को मंत्रित कर चौखट पर डालने से घर के लोग सो जाते हैं।
(3) जुआ में जीत मंत्र - ॐ प्रांजलि महातेजे स्वाहा ।
विधि - मंत्र को गौरोचन से लिखकर भोजपत्र को मस्तक पर धारण करने से जुआ में जीत होती है।
( 4 ) अदृश्य होने का मंत्र - ॐ रुधिर मालिन स्वाहा ।
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विधि- इस मंत्र का सात बार जाप करके अपना रक्त निकालें फिर उस रक्त को करंज के
तेल में मिलावें फिर कमल पुष्प की डंडी का डोग सूत्र निकालें फिर उस डोरे की बाती बनावे। उस बाती को रक्त मिला हुआ करंज के तेल में डालकर बत्ती को जला
देवें फिर काजल उपाड़ कर आंख में अंजन करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है। (5) डूबती नाव बचाने का मंत्र- ओं ह्रीं थंभेउ जल जलणं दुटुं थंभेउ स्वाहा। विधि-शुभ मुहूर्त में ११००० जाप से मंत्र सिद्ध कर लें। जब आवश्यकता पड़े, नाव
डूबती हो, तब इसके जाप मात्र से नाव डूबने से बच जायगी। (6) अनाज में कीड़ा नही पड़ने का मंत्र- ओं नमो भगवउ रिद्ध करी सिद्ध करी वृद्धि
करी, अणिमा, महिमा ए धान सुलै तो बालीनाथ अचल गुसांई की आण। विधि- पहले इस मंत्र को २१ दिन तक नित्यप्रति एक माला फेर कर सिद्ध करें। फिर नदी के किनारे २१ कंकड़ों को अभिमंत्रित कर अनाज में रखें तो उसमें कीड़ें नही पड़ें (7) पशु रोग निवारण मंत्र- ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः । विधि- गाय के गले में जो घंटी लटकी रहती है उस घंटी में खड़िया मिट्टी से मंत्र लिखकर
गाय के गले में बांध दें। उस घंटी की आवाज जितनी दूर सुनी जायेगी उतनी दूर
तक के हर पशुओं की रोग पीड़ा शांत हो जायगी। (8) गाय भैंस के दूध बढ़ाने का मंत्र- (अ) ॐ ह्रीं कराली पुरुष मुख रूपा ठः ठः । विधि- उपरोक्त मंत्र से २१ बार जल अभिमंत्रित कर गाय भैस के आंचल पर रोज लगाने
से दूध बढ़ाता है। (9) ओं हँकारिणे प्रसर शतीत। विधि- कार्तिक शुक्ला १४ के दिन एक माला फेरने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर रोज
घास अभिमंत्रित कर खिलाने से दूध बढ़ता है। (10) सैनिक घायल नहीं होता- ॐ नमो भगवते वंभयारि नमो ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ब्लूं नमः
(स्वाहा) विधि- संग्राम में तीर, तलवार, बरछा, भाला आदि शस्त्र साधक को घायल नहीं कर
पाते। (11) पथ कीलित हो जाता है- ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं भवीं रं रं हं हः म मः स्वाहा। विधि- १०८ बार मंत्रित कंकरी चारों दिशाओं में फेंकने से पथ कीलित हो जाता है तथा
सप्त भय भाग जाते हैं। (12) पराधीनता नष्ट मंत्र- ॐ ह्रीं अरिहन्त सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहू चुलु चुलु हुलु
हुलु कुलु कुलु मुलु मुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाह
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विधि-इस मंत्र के १ लाख जप से तीन लोक में जय प्राप्त होती है। पराधीनता नष्ट होती है। (13) अपकीर्ति निवारण मंत्र- ॐ ह्रीं अपकीर्युपद्रव निवारकाय श्री शान्तिनाथाय
नमः। (14) मोक्ष साधन के लिये- ॐ ह्रीं मोक्ष पुरुषार्थ सिद्धिं साधन करण समर्थाय श्री
शान्तिनाथाय नमः (स्वाहा)। विधि : श्री सुपार्श्वनाथ भगवान् के स्मरणपूर्वक मंत्र का जाप करने से विषम कष्ट भी दूर
हो जाते हैं। ( 15 ) बेचैनी दूर मंत्र- ॐ हंसः हंसः। विधि- किसी कारण से कोई स्त्री-पुरुष बेचैनी अनुभव करते हों तो उस समय उपरोक्त
मंत्र से पानी को २० बार अभिमन्त्रित कर पिलाने से तुरन्त बेचैनी दूर होती है। (16) भोजन पचाने का मंत्र- ओं नमों आदेश गुरु को अगस्त्यं कुंभकरणं च शतिं च
वडवानलः आहार पाचनार्थाय स्मरत भीमस्य पंचकम् स्फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा। विधि- खाना खाने के बाद सात बार मंत्र पढ़कर पेट पर हाथ फेरें तो अधिक खाया हुआ
खाना हजम हो जाता है। (17) - सम्मान वर्धक एवं लाभ प्रदायक मंत्र : ऊं हत्थुमले विणु मुहु मले ओं मलिय ओं
सतुहु माणु सीस धुणता जे गया आयास पायाल गतं ओं अलिंगजरेस सर्व जरे स्वाहा। विधि : इस मंत्र को सात बार जपते हुए मुख के सामने अपनी दोनों हथेलियों को मसलकर और अपने मुख के ऊपर फेरकर जिस व्यक्ति से मिलें वह सम्मान करे ।। (18) कुश्ती जीतने का मंत्र- ओं नमों आदेश गुरू को, अंगा पहरू, भुजंगा पहरूं पहरूं लोहा सार, आते का हाथ तोडूं ,पैर तोडूं मैं। हनुमन्त वीर उठ उठ नाहर सिंहवीर तूं जा उठ सोलह सौ सिंगार मेरी पीठ लगै माही हनुमन्त वीर लजावे तोही पान सुपारी नारियल अपनी पूजा लेहु अपना सा बल मोहि पर देहु मेरी भक्ति गुरू की शक्ति फूरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
विधिः किसी भी मंगलवार को गेरू का चौका लगाकर, लूंगी का लंगोट बांधकर धूप-दीप देकर हनुमान जी की पूजन करें। फिर उसी दिन तक प्रतिदिन 108 की संख्या में मंत्र का जप करें तथा मंगलवार के दिन पान-सुपारी एवं खोपरे का भोग रखें। अन्य दिन भोग के लिए लड्डू रखा करें। इससे मंत्र सिद्ध हो जाने पर आवश्यकता के समय अर्थात् कुश्ती लड़ने से पूर्व हनुमान जी को नमस्कार (दंडवत् )करके 7 बार इस मंत्र को अपने ऊपर पढ़कर अखाड़े में उतरे तो अपने प्रतिद्वन्दी पर विजय प्राप्त होती है। ( 25 ) बुरे स्वप्न वा अपशकुन निवारण मंत्र-ऊँ णमो अरहंताणं दीवोत्ताणं, सरणगइ पइट्टाणं अप्पडिदृश्यवर, णाणंदसण धाराणं, विअट्टछउम्माणं ऐं स्वाहा।
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विधि- प्रतिदिन एक माला का जाप करें तो बुरे स्वप्न नहीं आयेंगे। सम्मान बढ़े कहीं जाना हो तो तीन बार पढ़ें अपशकुन न हो।
(121. उपसर्गहर स्तोत्र के ऋद्धि, मंत्र व फल) १. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो जिणाणं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः
अप्रतिचक्रे विचक्राय स्वाहा। ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा झौं झौं स्वाहा। विधि- १०८ बार जल पर्ययतु विशूचिका नाश। इस मंत्र से १०८ बार पुष्प पढ़कर रोगी के पास रखें तो ज्वर नाश हो। ऋद्धि- ॐ णमो ॐ ह्रीं जिणाणं ।
विधि- चन्दन पर पढ़कर सिर पर लगावें तो सिर रोग नाश हो। ३. ऋद्धि- ॐ णमो परमोहिजिणाणं हूँ।
फल- इसके जप से कपाल के रोग दूर होते हैं। ४. ऋद्धि- ॐ णमो सव्वोएहि जिणाणं ह्रौं।
फल- इस मंत्र को १०८ बार कपूर पर जपें तो आंखों के रोग दूर होते हैं। ऋद्धि- ॐ णमो अणंतोहिजिणाणं।
फल- त्रिकाल १०८ बार जप से कर्ण रोग दूर हो जाय। ६. ऋद्धि- ॐ णमो कुट्ठ बुद्धीणं।
फल- जल पर पढ़कर पीने से गुल्म उदर रोग दूर हो जाय। ७. ऋद्धि- ॐ णमो बीजबुद्धीणं।
फल- श्वासहिक्कां नाशयति। ऋद्धि- ॐ णमो संभिण्ण सोदराणं ।
फल- कास को नष्ट करता है। ९. ऋद्धि- ॐ णमो पादानुसारिणं ।
फल- परस्पर विरोध को दूर करता है। १०. ऋद्धि- ॐ णमो पत्तेय बुद्धाणं।
फल- १०८ बार का जप प्रतिविद्या का छेद करता है। ११. ऋद्धि- ॐ णमो सयंबुद्धाणं।
फल- १०८ बार जप से पंडित हो जाता है। १२. ऋद्धि- ॐ णमो सव्वोहि जिणाणं।
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१३.
फल- अन्य ग्रहीतश्चुतैक संस्थो भवति।
ऋद्धि- ॐ णमो ऋजुमदीणं । फल- २४ दिन जप से शान्ति होती है। ऋद्धि- ॐ णमो विउलमदीणं । विधि- बहुश्रुतवान होता है। लोण खाटो पर्ययेत् १ मास तक १०८ जप करे। ऋद्धि- ॐ णमो दसपुव्वीणं। विधि- सर्वांग वेदी हो जाता है। लोण खाटो पर्यायत् मास ६ जप १०८ । ऋद्धि - ॐ णमो अट्ठ महाणिमित्त कुसलाणं। फला - 108 बार प्रतिदिन जप से जन्म-मरण का ज्ञान हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो चउदस पुवीणं । फल - 108 प्रतिदिन जप से पर समय वेदी हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो विउणयविपत्ताणं । फल - 20 दिन तक प्रतिदिन 108 बार जप से काम्य वस्तु प्राप्त हो। ऋद्धि - ॐ णमो विज्जाहराणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से उपदेशमात्रा जानाति। ऋद्धि - ॐ णमो चारणाणं। फल - प्रतिदिन 108 बार जप से बिना मुट्ठि पदार्थ स्वयं जानाति। ऋद्धि - ॐ णमो पण्हं सवणाणं। फल - 108 बार प्रतिदिन जप से आयु अवसान जान जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो आगासगामीणं फल - 108 प्रतिदिन जप से अंतरिक्ष योजन मात्रं गच्छति। ऋद्धि - ॐ णमो आसीविसाणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से विद्वेष नाश हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो दिट्ठिविसाणं । फल - इसके जप से स्थावर-जंगम के द्वारा कृत रोग नष्ट हो जाते हैं। ऋद्धि - ॐ णमो उग्गतवाणं। फल - इस जप से वचन का स्तम्भन होता है। ऋद्धि – ॐ णमो दित्ततवाणं। फल - तीन दिन तक रविवार की मध्याह्य से 108 जप करें। सेना का स्तम्भन होता है। ऋद्धि - ॐ णमो तत्ततवाणं फल - 108 बार प्रतिदिन जप से अग्नि का स्तम्भन होता है। जलं जयेत् ।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
28.
ऋद्धि - ॐ णमो महातवाणं। फल - इसके जप से जल का स्तम्भन होता है। ऋद्धि - ॐ णमो घोरतवाणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से सर्व विष व मुख के रोग नष्ट होते हैं। ऋद्धि - ॐ णमो घोरगुणाणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से लूताजंभादि रोगों का नाश होता है। ऋद्धि - ॐ णमो घोरगुण परक्कमाणं । फल - प्रतिदिन 108 जप से व्यन्तरादि के भय नष्ट होते हैं। ऋद्धि - ॐ णमो घोरगुण बंभचारीणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से व्यन्तरादि का भयनष्ट हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो आमो (सव्वो) सहिपत्ताणं। फल - 108 जप से जन्मान्तर का वैर नष्ट हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो खिल्लोसहिपत्ताणं। फल - प्रतिदिन 108 जप से सर्व अपमृत्यु का नाश हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमो जल्लोसहिपत्ताणं। फल - इसके जप से चित्तभ्रम नष्ट हो जाता है। ऋद्धि - ॐ णमोविप्पोसहिपत्ताणं। फल - प्रतिदिन जप से गज-मारी का नाश होता है। ऋद्धि - ॐ णमो सव्वेसहिपत्ताणं। फल - प्रतिदिन जप से मनुष्यमारी नष्ट होती है। ऋद्धि - ॐ णमो मणबलीणं। फल - प्रतिदिन जप से अश्वमारि नष्ट होती है। ऋद्धि - ॐ णमो वचिबलीणं। फल - प्रतिदिन जप से अजमारी नष्ट होती है। ऋद्धि - ॐ णमो कायबलीणं। फल - प्रतिदिन जप से गोमारी नष्ट होती है। ऋद्धि - ॐ णमो खीरसवीणं। फल - गौ दुग्ध पर जपें। कुष्ट, गंडमाला, श्वास आदि रोग नष्ट होते हैं। फल- गौ दुग्ध पर जपें। कुष्ट,गंडमाला, श्वास आदि रोग नष्ट होते हैं। ऋद्धि- ॐ णमो सप्पिसवीणं। फल- प्रतिदिन जप से एकान्तर ज्वर नष्ट होता है। ऋद्धि- ॐ णमो महुर सव्वीणं। फल- प्रतिदिन जप से समस्त उपसर्ग नष्ट होते हैं।
। 196
४३.
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४४. ऋद्धि- ॐ णमोसिद्धायदणाणं।
फल- प्रतिदिन जप से राज्यादि वश में होते हैं। ४५. ऋद्धि- ॐ णमो अक्खीण महाणसाणं। ४६. ऋद्धि- ॐ णमो वड्डमाणाणं। ४७. ऋद्धि- ॐ भगवदो महदि महावीर वढ्डमाण बुद्धिरिसीणं । ४८. ऋद्धि- ॐ वार सुवरे अ सि आ उ सा नमः। फल- त्रिकाल जप से वैभव होता है।
___122. कल्याणमंदिर स्तोत्र ऋद्धि-मंत्र विधि १-२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो इट्ठकज्जसिद्धिपराणं जिणाणं कं ह्रीं अ णमो दव्वं
कराणं २ ओहिजिणाणं। मंत्र-ॐ नमो भगवति यमेण उप्पाडिया जोहा कंठोट्ठमुहतालुआ खीलिया जो मं भसइ जो मं हसइ दुट्ठदिट्ठीए वज्जसिंखलाए (देवदत्तस्य) मण हिययं कोह जीहा खीलिया सेलखियाए ल ल ल ल ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- १०८ बार जप से वाद-विवाद में विजय होती है। प्रतिवादी का मुँह बन्द होता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो समुद्दभय सामणबुद्धीणं परमोहि जिणाणं । मंत्र-ॐ ह्रीं हर कली वगलामुखी देवो नित्ये ! विन्ने! मदद्रवे मदनातुरे वषट स्वाहा। विधि- पुष्य नक्षत्र में इस मन्त्र को २१ दिन तक १२००० जप करने से तीन लोक
वश में होते हैं। ४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अकालमिच्चुवारयाणं सव्वोहिजिणाणं।
मंत्र-ॐ नमो भगवति ओं हीं श्रीं क्लीं अहँ नमः स्वाहा। विधि- नौ वर्ष तक प्रतिवर्ष ४० रविवार के दिन प्रति १००० जप से गर्भपात
अकाल मरण नहीं होता। ५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो गोधणबुड्डिकराणं अणंतोहिजिणाणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ अहँ नमः।
विधि- प्रतिदिन १०८ जप से खोई हुई सम्पत्ति, धनादि का लाभ होता है। ६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पुत्तइ त्थिकरणं कोठबुद्धीणं।
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मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र-ॐ नमो भगवति ! अम्बिके अम्बालिके यक्षीदेवि यूँ यौं ब्लैं हस्ल्की ब्लं हसौं र: र: र: रां रां दृष्टि प्रत्यक्षं मम देवदत्तस्य वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- २१ बार मन्त्रित दांतुन से दांत साफ करें । फिर पुन: २१ बार जप करें तो इच्छित पुरुष वश में होता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अभिट्ठसाधयाणं बीजबुद्धीणं। मंत्र-ॐ नमो भगवति अरिट्ठणेमिस्स बंधेण बंधामि रक्खसाणं भयाणं खेयरणं चोराणं दाढाणं साईणीणं महोर गाणं अण्णे जेवि दुट्ठा संभवन्ति तेसिं सव्वेसिं मणं मुहं गहं दिट्ठी बंधामि धणु धणु महाधणु जः जः (जः?) ठः ठः ठः हुँ फट् (स्वाहा?) विधि- गहन वन के कठिन मार्ग में भय होने पर कुछ कंकरों को मन्त्रित कर चारों दिशाओं में फेंकने से चोर-सिंहादि क्रूर जन्तुओं का भय नहीं रहता। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो उण्हगदहारीणं पादाणुसारीणं। मंत्र-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथ तीर्थकराय हंसः महाहंसः पद्महंसः शिवहंसः कोपहंस: उरगेशहंसः पक्षि महाविषभक्षि हुं फट् (स्वाहा।) विधि- प्रतिदिन १०८ जपकर सिद्ध करें। फिर मन्त्र पढ़कर सर्प डसे व्यक्ति को झाड़ने से विष दूर होता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो विसहर विसविणासयाणं संभिण्ण सोदारणं। मंत्र-ॐ इंदसेणा महाविज्जा देव लोगाओ आगया दिट्ठिबंधाणं करिस्सामि भडाणं भूआणं अहिणं दाढीणं सिंगीणं चोराणं चारियाणं जोहाणं बग्घाणं सिंहाणं भूयाणं गंधव्वाणं महोरगाणं अन्नेसिं (अण्णेवि?) दुट्ठसत्ताणं दिट्ठि बंघणं मुहबंधणं करोमि ओं इंदनरिंदे स्वाहा। विधि- दीवाली के दिन निराहार रहकर १०८ बार जपें। पश्चात मार्ग में २१ बार जप से किसी प्रकार का भय नहीं रहता। उपद्रव शान्त होता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो लक्खर भय पणासयाणं उजुमदीणं। मंत्र-ॐ ह्रीं चक्रेश्वरी चक्रधारिणी जल जलनिहि पारउतारणि जलं थंभय दुष्टान् दैत्यान् दारय दारय असिवोपसमं कुरु २ ओं ठः ठः (ठः?) स्वाहा। विधि- गुरुवार को पुष्य नक्षत्र के योग में १०८ बार जप कर सिद्ध करें। पश्चात्
२१ बार जप से सर्व प्रकार के पानी का भय नष्ट होता है। ११. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वारियालणबुद्धीणं विउलमदीणं।
मंत्र-ॐ नमो भगवति अग्निस्तम्भिनि! ञ्चदिव्यो त्तरणि श्रेयस्करि प्रज्वल प्रज्वल
१०.
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
सर्व कामार्थसाधनि! ओं अनलपिङ्गलोर्ध्वकेशिनि! महाधिव्याधिपतये स्वाहा। विधि- इस मन्त्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर प्रचण्ड अग्नि में डालने से
तज्जन्य उपद्रव शांत होता है। १२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अणलभय वजयाणं दसपुव्वीणं ।
मंत्र-ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा वांछितं में कुरु २ स्वाहा
विधि- सवालाख जप से वांछित कार्यों की सिद्धि होती है। १३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो रिक्खभयवज्जयाणं चउदसपुव्वीणं।
मंत्र-ॐ ह्रों अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय २ अंधय २ मोहय २ मूकय २ कुरु २ ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः स्वाहा। विधि- पूर्वाभिमुख होकर ८ या २१ दिन तक मुट्ठी बाँधकर ११०० जप से सब
दुष्ट क्रूर व्यन्तरों से मुक्ति प्राप्त होती है। १४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो भंसणभय झवणाण अटंग महाणिमित्तकुसलाणं।
मंत्र-ॐ नमो मेरु महामेरु, ॐ नमो गौरी महागौरी ॐ नमो काली महाकाली ॐ (नमो) इंदे महाइंदे, ॐ (नमो) जये महाजये (ॐ नमों विजये महाविजये) ॐ णमो पण्णसमिणि महापण्णसमिणि अवतर २ देवि अवतर (अवतर स्वाहा।) विधि- ८००० जप से सिद्ध करें । फिर शीशा मंत्रित कर सफेद वस्त्र पर रक्खें। फिर उसके सामने सफेद वस्त्रों में कुँवारी कन्या को बिठावें। पश्चात् उससे जो
पूछोगे ठीक उत्तर देगी। १५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अक्खरधणप्पयाण विउव्वगपत्ताणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहुणं, ओं ह्रीं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, ॐहीं नमो सिद्धाणं, ओं ह्रीं नमो अरिहंताणं एकाहिक द्वयहिक चातुर्थिक महाज्वर क्रोध ज्वर शोकज्वर भयज्वर कामज्वर कलितरव महावीरान् बंधबंध ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा। विधि- मंत्र पढते हुए नूतन श्वेत वस्त्र में गाँठ बांधे तथा गूगल और घी की धूनी देवे। मंत्रित गांठ को सिर के निचे दबाकर वह वस्त्र ओढ़ने से सब ज्वर शांत होते
हैं और सुख की नींद आती है। १६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो गहणवण भय णासयाण विजाहराणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं पादौ रक्ष रक्ष नः, ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं कटिं रक्ष-रक्ष
ओं ह्रीं णमो आयरियाणं नाभिं रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं णमो उवज्झायाणं ह्रदयं रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं नमो लोए सव्व साहूणं ब्रह्माण्डं रक्ष रक्ष ओं ह्रीं एसो पंच णमक्कारो शिखां रक्ष रक्ष
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
ओं ह्री सव्वपावप्पणासणो आसनं रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़म होइ मंगलं आत्मरक्षा पररक्षा हिलि हिलि मातंगिनि स्वाहा।
विधि- प्रतिदिन जप से कार्माणादि कर्मों का दोष दूर होता है। १७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो कुट्ठबुद्धिणासयाणं चारणाणं ।
मंत्र-ॐ यः यः सः सः हः हः वः वः उरुरिल्लय रूह (ह?) रुहान्त ॐ ह्रीं पार्श्वनाथ दह दह दुष्टनागविषं क्षिप ओं स्वाहा। विधि- ७ बार मंत्रित जल को पिलाने व विषैले जगह छिड़कने से सर्प व विषैले
जन्तुओं के विष का असर दूर होता है। १८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो फणिसत्ति सोसयाणं पण्हसमणाणं।
मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं , ओं ह्रीं नमो सिद्धाणं, ओं ह्रीं नमो आयरियाणं ओं ह्रीं नमो उवज्झायाणं, ओं ह्रीं नमो लोए, सव्व साहूणं, ओं नमो सुअदेवाए भगवईए सव्वसुअमए, बारसंगपवयए जणणीए सरसइए सव्ववाइणि सवण्णवणे, ओं अवतर २ देवी मम सरीरं पविस पूव्वं तस्य पविस सव्वजण भयहरीए अरिहतसिरीए स्वाहा। विधि- पहले मंत्रित चाक मिट्टी का तिलक लगावें। फिर रात्रि में लोगों के सोने पर हाथ में जल भरी झारी लेकर एकान्त में लोंगों की वार्ता सुनें। जो बात समझ में आये उसी को सत्य समझें। मनोवांछित शुभाशुभ का फल इसी से ज्ञात होता है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अक्खिगदणासयागं आगासगामीणं। मंत्र- णंहूसव्वसएलोमोन णंयाज्झावउमोन णंआरीय आमोन, णंद्धासिमोन णताहरिअमोन हुलु२ कुलु२ चुलु२ स्वाहा। विधि- जाल में फँसे जलचर जीव मुक्त हो जाते हैं। मछलियां जाल में नहीं
फँसती। २०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो गहिलगहणासयाणं आसीविसाणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं नमो भगवओं ओं (?) पासनाहस्स थंभय सव्वाओ ई ई, ओं जिणाणाए मा इह, अहि हवंतु, ओं क्षां क्षी ही झू क्षौं क्षः स्वाहा। विधि- १०८ बार सफेद पुष्प को मंत्रित कर राज्यप्रमुख को सुंघाने से वह साधक
के वश में होता है तथा अपराध माफ कर देता है। २१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पुप्फियतरुवत्तयराणं दिट्ठिविसाणं।
मंत्र-ॐ अरिहंत सिद्धआयरियउवज्झायसव्वसाहू (णं) सव्वधम्म तित्थयराणं ओं नमो भगवइए सुअदेवयाए शान्तिदेवयाए सव्वपवयणदिवयाणं दसण्हं दिसापालाणं
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मंत्र अधिकार
मुनि प्रार्थना सागर
चउर्हं लोगपालाणं, ओं ह्रीं
अरिहंतदेवाणं नमः ।
विधि- १०८ बार जप से मनोवांछित सिद्धि होती है, जय होती है, हिंसक जानवर व चोर भय नष्ट होता है ।
२२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो तरुपत्तणासयाणं उग्गतवाणं ।
मंत्र-ॐ हत्थुमले विणुमुहुमल (ले) ओं मलिय ओं सतुहुमाणु सीस धुणता जेगया आयास पायालगतं ओं अलिंजरेस सर्व्वजरे स्वाहा ।
विधि- सात बार मन्त्र जपते हुए मुख के सामने हथेलियों को मसल कर राजादि से बात करने पर लाभ होता है ।
२३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो बज्झय ( बंधण) हरणाणं दित्ततवाणं ।
मंत्र - ॐ नमो भगवति ! चण्डि ! कात्यायनि ! सुभग दुर्भग युवतिजनानां मा कर्षय आकर्षय ह्रीं र रर्म्यूसंवौषट् देवदत्ताया हृदयं घे घे ।
विधि - सात दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप से इष्ट स्त्री का आकर्षण होता है। २४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो रज्जदावयाणं तत्ततवाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं भैरवरूपधारिणि ! चण्डशूलिनि ! प्रतिपक्ष सैन्यं चूर्णय २ धूम्र्म्मय २ भेदय २ ग्रस २ पच २ खादय २ मारय २ हूँ फट् स्वाहा ।
विधि- १०८ बार जप कर चारों ओर लकीर खैंचने से दुश्मन की सेना मैदान से भाग जाती है। साधक की जय होती है।
२५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो हिंडल मलणाणं महातवाणं ।
मंत्र - ॐ नमो भगवति ! बद्धगरुडाय सर्वविषविनाशिनी ! छिन्द २ भिन्द २ गृण्ह २ एहि ३ भगवति ! विद्ये हर हर हुं फट् स्वहा ।
विधि - मन्त्र पाठ करते जोर २ से ढोल बजाने से जहर पीड़ित का जहर उतर जाता है ।
२६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो जयपदाईणं घोरतवाणं ।
मंत्र-ॐ णमो श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये येन येन केनचित् मम पापं कृतं कारितम् अनुमतं वा तत् पापं तमेव गच्छतु ओं ह्रीं श्रीं प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये स्वाहा।
विधि- प्रातः पूर्वाभिमुख हो तथा सायं पश्चिम मुख होकर अञ्जलि बुद्धमुद्रा में १०८ बार जपने से पर- विद्या का छेदन होता है।
२७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो खलदुट्ठणासयाणं घोरपक्कमाणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं ॐ
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मुनि प्रार्थना सागर
ह्रीं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहूणं, ॐ ह्रीं णमो णाणाय ॐ ह्रीं नमो दंसणाय ॐ ह्रीं णमो चरित्ताय ॐ ह्रीं णमो तवाय, ॐ ह्रीं त्रैलोक्यवशंकराय ह्रीं स्वाहा। विधि- १०८ बार मंत्रित जल को रोगी को पिलाने व छींटा देने से नजर (दृष्टिदोष)
दूर होती है। २८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो उवदववजणाण घोरगुणाणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्ध आयरियउवज्झाय साहू चुलु चुलु हुलु हुलु कुलु कुलु मुलु मुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा । विधि- एक लाख जप से तीन लोक में जय प्राप्त होती है, पराधीनता नष्ट होती है।
मनोरथ सिद्ध होते हैं २९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो देवाणुप्पियाणं घोरगुणबंभचारीणं।
मंत्र- ॐ तेजोहं सोम सुधा हंस स्वाहा। ॐ अहँ ह्रीं क्ष्वीं स्वाहा। विधि- भोजपत्र पर लिखकर मोमबत्ती पर लपेटें। फिर मिट्टी के कोरे घड़े में डालन
से दाह ज्वर नाश होता है। ३०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अपुव्वबलपदाईणं आमोसहिपत्ताणं।
मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो जिणाणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोअगराणं मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय ओं ह्रीं कर्णपिशाचिनी मुण्डे स्वाहा। विधि- सोने से पूर्व १०८ बार पढ़कर सोने से स्वप्न में संभावित शुभाशुभ का ज्ञान
होता है। ३१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो इट्ठविण्णत्तिदावयाणं खेलोसहिपत्ताणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं पार्श्वयक्ष दिव्य रूपाय महा (घ?) वर्ण एहि २ आँ क्रों ह्रीं नमः।
विधि- श्रद्धापूर्वक जपने से दुष्ट दुश्मनों की पराजय होती है। उपद्रव शांत होता है। ३२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अट्ठमदणासयाणं जल्लोसहिपत्ताणं।
मंत्र-ॐ भ्रम भ्रमकेशि भ्रमकेशि भ्रम माते भ्रम विभ्रम विभ्रम मुह्य २ मोहय २ स्वाहा। विधि- जमीन पर न गिरे सरसों के दानों को मन्त्रित कर चौखट पर डालने से घर
के लोग सो जाते हैं। ३३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो असणिपातादि वारयाणं सव्वो सहिपत्ताणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्रां ग्रीं D ग्रः क्लीं कलिकुण्ड पासनाह ओं चुरु २ मुरु २ फुरु २ फर २ किलि २ कल २ धम २ ध्यानाग्निना भस्मी कुरु २ पूरय २ प्रणतानां हितं कुरु २ हुं फट् स्वाहा।
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मुनि प्रार्थना सागर
विधि- मन्त्र जप से राज- भूत- पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-हस्ती-सिंह-सर्पादि
का भय नष्ट होता है। ३४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो भूतावाहावहारयाण विट्ठोसहिपत्ताणं ।
मंत्र-ॐ नमो अरिहंताणं ओं नमो भगवइ महाविजजाए सत्तट्ठाए मोर हुलू २ चुलु २ मयूर वाहिनीए स्वाहा। विधि- पौष कृष्णा १० को निराहार रहकर १००८ जप करें । फिर परदेश गमन के
समय, व्यापार के समय ७ बार स्मरण से लक्ष्मी व अन्न का लाभ होता है। ३५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो मिगीरोअवारयाणं मणबलीणं ।
मंत्र-ॐ नमो अरिहंताणं ज्म्ल्व यूँ नमः ओं नमो सिद्धाणं भम्ल्यूँ नमः, ओं नमो आइरियाणं स्म्ल्यूँ नमः, ओं नमो उवज्झायाणं हम्ल्यूँ नमः, ओं नमों लोए सव्वसाहूणं छ्म्ल्यूँ नमः(अमुकस्य)संकट मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- साफ चौकी पर मंत्र लिखकर पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा को पधरावें। फिर चमेली के फूल चढ़ाते हुए ५०० जप करें खड़े होकर। सर्व संकटों का नाश
होता है। सर्वत्र जय होती है। ३६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वालवसीयरण कुसलाण वचणबलीणं।
मंत्र-ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभाय चन्द्रेन्द्रमहिताय नयनमनोहराय ओं चुलु २ गुलु २ नील भ्रमरि २ मनोहरि सर्वजनवश्यं कुरु २ स्वाहा। विधि- पीली गाय के घी में दीवाली को मिट्टी के बर्तन में काजल बनावें। पश्चात्
समय पर काजल आँख में लगाने से सर्वजन वश में होते हैं। ३७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वराज-पयावसीयरण कुसलाणं कायबलीणं।
मंत्र-ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्त्रावय २ सं सं क्लीं क्लीं (हूँ हूँ ) ब्लू ब्लूँ (हाँ ह्राँ) द्राँ द्रीं (ह्रीं ह्रीं ) द्रवय २ ह्रीं स्वाहा। विधि- मंत्रित जल से आचमन करने से भूत-ग्रह-शाकिनी आदि उपद्रवों का नाश
होता है। ३८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो दुस्सहकट्ठणिवारयाणं खीरसवीणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अहँ क्लीं ब्लैं भ्रौं यूँ नमिऊण पासनाह दुरवारिं विजय कुरु कुरु स्वाहा।
विधि- सवा लाख जप से चिन्तित कार्यों की तत्काल सिद्धि होती है। ३९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वजरसंतिकरणाणं सप्पिसवीणं मंत्र- म्ल्यूँ क्लीं जये विजये जयंते अपराजिते ज्म्ल्यूँ जंभे भप्यूँ मोहे मम्ल्धयूँ
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
स्तम्भे , हम्ल्यूँ स्तम्भिनि (अमुकं) मोहय २ मम वश्यं कुरु २ स्वाहा। विधि- इस मंत्र के जाप से जो भी साधे स्त्री या पुरुष तो परस्पर में आकर्षण उत्पन्न
होता है। मनुष्य साधे तो स्त्री तथा स्त्री साधे तो पुरुष वश में होता है। ४०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो उण्हसीयबाहाविणासयाणं मधुसवीणं।
मंत्र-ॐ नमो भगवते भल्वयूँ नमः (स्वाहा)।
विधि- श्रद्धा पूर्वक जपने से सर्व प्रकार के विषम ज्वर शांत होते हैं। ४१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वप्पलाहकारयाणं अमइसवीणं ।
मंत्र-ॐ नमो भगवते ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ब्लूँ नमः स्वाहा।
विधि- सश्रद्धा जपने से शत्रु के शस्त्रादि कुण्ठित हो जाते हैं। ४२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो इत्थिरत्तरोअणासयाणं अक्खीण महाणसाणं।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ अ सि आ उ सा भूर्भुवः स्वः चक्रेश्वरी देवी सर्वरोगं भिंद २ ऋद्धिं वृद्धि कुरु २ स्वाहा। विधि- १०८ बार प्रतिदिन जपने से स्त्री सम्बन्धी कठिन रोंगों का नाश होता है,
सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती है। ४३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो बंदिमोअगाणं सबसियदणाणं ।
मंत्र-ॐ नमो भगवति हिडिम्बवासिनि! अल्लल्लमांसप्पियेन हयलमंडलपइट्टिए तुह रणमत्ते पहरणदुढे आया समंडि पायालमंडि सिद्धमंडि जोइ णिमंडि सव्वमुइमंडि कज्जलं पडउ स्वाहा। विधि- अँधियारी अष्टमी के दिन ईशान कोण की ओर मुख करके मंत्र जपें। काले धतूरे के तेल से नारियल की खोपड़ी में काजल पाड़ें। उस काजल से कपाल पर त्रिशूल का निशान बनाने व आँख में डालने से सर्व प्रकार के भय नष्ट होते हैं और चित्त की उद्विग्नता दूर होती है। ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अक्खयसुहदायस्स बड्ढमाण बुद्धिरिसिस्स। मंत्र- ॐ नट्ठट्ठमयट्ठाणे पणट्ठकम्मट्ठनट्ठसंसारे। परमट्ठनिट्ठिअढे अट्ठगुणाधसिरं वंदे। विधि- नमक,राई, नीम के पत्ते, कड़वी तूमड़ी का तेल और गूगल इन पाँचों को उक्त मंत्र से मंत्रित करें। पश्चात् पिछले पहर प्रतिदिन ३०० बार हवन करने से रोग, दुश्मन तथा कष्टों का नाश होता है।
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___ मुनि प्रार्थना सागर
[ 123. कल्याण मन्दिर स्तोत्र ऋद्धि-मन्त्र द्वितीय विधि १-२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पासं पासं पासं फणं। ओं ह्रीं अहँ णमो दव्वकराए। मंत्र- ॐ ह्रीं णमो भगवते अभीप्सितकार्य सिद्धि कुरु स्वाहा। फल- धन लाभ तथा मनोवांछित कार्य सिद्ध होता है। ३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो समुद्दे (द्द ?) भयं (य) साम्यति (समन ?) बुद्धीणं। मंत्र- ॐ भुगवत्यै पद्मद्रहनिवासिन्यै नमः स्वाहा। फल- जल का भय नहीं होता। पानी में जहाज नहीं डूबता। ४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो धम्मराए जयतिए । मंत्र- ॐ णमो भगवते ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ नमः स्वाहा। फल- गर्भपात व अकाल मरण नहीं होता। ५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो धणबुद्धि (बुड्डि) कराए। मंत्र- ॐ पद्मिने नमः फल- चोरी गया वा जमीन में गड़ा धन तथा खोया हुआ गोधन मिलता है। ६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पुत्तइच्छी (त्थि?) कराए। मंत्र- ॐ णमो भगवते ह्रीं श्रीं ब्रां ब्रीं क्षां क्षी द्रौं ह्रौं नमः स्वाहा। फल- सन्तति व सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। ७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो माहणझाणाए। मंत्र- ॐ णमो भगवते शुभाशुभं कथयित्रे स्वाहा। फल- परदेश गये स्वजन की २७ दिन के भीतर खबर मिल जाती है। इष्ट व्यक्ति का
__ आकर्षण होता है। ८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो उन्ह (उण्ह) गदहारीए। मंत्र- ॐ णमो भगवते मम सर्वांगपीड़ाशांति कुरु कुरु स्वाहा। फल- १२ प्रकार का उपदंश, पित्तज्वर व सर्व प्रकार का ज्वर शान्त होता है। ९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो को पं हं सः । मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं ह्मलीं त्रिभुवन हूँ, स्वाहा। फल- सर्प, गोह,बिच्छू और छिपकली आदि का विष असर नहीं करता। मंत्र से झाड़ने से
शांत होता है। १०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो (क्ख?) रपणासणाए।
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मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र- ॐ ह्रीं भगवत्यै गुणवत्यै नमः स्वाहा। फल- चोर, ठग, वगैरह के भय का नाश होता है। ११. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वारिवाल (पालण?) बुद्धए। मंत्र- ॐ सरस्वत्यै गुणवत्यै नमः स्वाहा। फल- यंत्र पास रखने में साधक पानी में नहीं डूबता। देवी रक्षा करती है, कुदेवों का भय
___नहीं रहता।
१२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अग्गल (भय) वजणाए। मंत्र- ॐ णमो (भगवत्यै) चण्डिकायै नमः स्वाहा। फल- अग्निभय नष्ट होता है। मंत्रित जल छिड़कने से अग्नि शान्त होती है। आराधक
अग्नि पर चल सकता है तो भी नहीं जल सकता। १३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो इक्खवज्जणाए। मंत्र- ॐ णमो भगवत्यै चामुण्डायै नमः स्वाहा। फल- सात दिन तक मन्त्रित जल खारे कुएँ वा बावडी में डालने से पानी मीठा हो जाता
१४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो झ् (झ?) सण (भय) झूस (झव?) णाए। मंत्र- ॐ णमो (महाराति) कालरात्रि (त्रये?) नमः स्वाहा।। फल- शत्रु क्रोध छोड़ देता है। निर्मल मन बन जाता है अथवा उसका नाश होता है। १५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो तक्खरधणप (व? प्पियाए। मंत्र- ॐ ह्रीं णमो गंघारि (रयै) नमः श्रीं क्लीं ऐं ब्लूं हूं स्वाहा। फल- चोरी गई वस्तु वापिस मिलती है। १६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो णगभयपणासए। मंत्र- ॐ णमो गौरी (गौर्यायै ?) इन्द्र (इन्द्रायै ?) वज्रे (वज्रायै) ह्रीं ह्रीं नमः स्वाहा। फल- पर्वत पर भी उपसर्ग नहीं होता है। वन में भय का विनाश होता है। १७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो कुद्ध (ट्ठ?) बुद्धि (ड्ढि ?) णासए। मंत्र- ॐ णमो धृतिदेव्यै ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ऐं द्रां द्रीं नमः (स्वाहा) फल- यन्त्र पास रखने से वैर शान्त होता है। १८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सिद्धा सुणंति। मंत्र- ॐ णमो उ (सु) मतिदेव्यै विषनिर्णाशिन्यै नमः स्वाहा। फल- सर्प काटे (डसे) व्यक्ति के मुख-सिर-ललाट पर मंत्रित जल के छींटे उसके
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निर्विष होने तक मारें। १९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अ& णमो अक्खिगदे(द?) णासए। मंत्र- ॐ (णमो भगवते) ह्रीं श्रीं क्लीं क्षां क्षीं नमः (स्वाहा) फल- नेत्र पीड़ा दूर होती है। भोजपत्र पर लिखकर गले में बांधने से आई हुई आँख ठीक
होती है। २०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो गिल्ल (गहिल) विल्ल (गह?) षा (णा?) सए। मंत्र- ॐ (भगवत्यै) ब्रह्मणि (ण्यै ) नमः स्वाहा। फल- आराधना से इष्ट व्यक्ति का उच्चाटन होता है। २१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अ णमो पुफ्फि (य) ग (त?)रु ब (प?) त्ताए। मंत्र- ॐ भगवती (त्यै) पुष्पपल्लवकारीणि (ण्यै ?) फल- सूखे वन में वृक्ष लग जाते हैं। २२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो तरुव (प?) त्त पणासए। मंत्र- ॐ णमो पद्मावत्यै इल्यूँ नमः स्वाहा। फल- पुनः मधुर फल व पत्ते वृक्षों में आ जाते हैं। २३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वज्ज (ज्झ?) य हरणाए। मंत्र- ॐ णमो (x) श्री क्लीं झां झीं यूं झः नमः । फल- राजदरबार में जय व सम्मान तथा सर्वत्र मान्यता होती है। २४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो आगास ग (गा?) मियाए। मंत्र- ॐ ह्रीं भ्रां भ्रीं षोडश भुजे (जायै) पद्मे (द्मिन्यै) प्रो (प्रौ?) हूं ह्रौं नमः (स्वाहा)। फल- अपने हाथ से गया राज्य व स्थान पुनः प्राप्त होता है। २५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो हिडक (हिंडण?) मालाणयाए। मंत्र- ॐ णमो (x) धरणेन्द्र पद्मावत्यै नमः (स्वाहा)। फल- रोग, शोक और पीड़ा का नाश होता है। सर्व रोग शांत होते हैं। हर्ष बढ़ता है। २६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो जयंदेय पासेवत्ताये। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रां श्रीं श्रृं श्रः पद्मे (द्मायै ) नमः (स्वाहा)। फल- राज्य सभा में साधक की सम्मति तथा कथित वचन श्रेष्ठ माने जाते हैं। २७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो खलदुट्टणासए। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं धरणेन्द्र पद्मावती बलपराक्रमाय नमः (स्वाहा)। फल- दुश्मन परास्त होता है और बैर-विरोध छोड़कर शांत होता है।
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२८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो उव (दव) वज्जणाए ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्रों (क्रौं ?) वषट् स्वाहा ।
फल- दूज के चाँद की तरह संसार में यश फैलता है और सर्वत्र विजय मिलती है।
२९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो देवाणुप्पि (पि ?) याए ।
मंत्र - ॐ ह्रीं क्रौं ह्रीं हूँ फट् स्वाहा ।
मुनि प्रार्थना सागर
फल- उक्त मंत्र से मंत्रित सुपारी, इलायची व लौंग खिलाने से सर्व जन प्रसन्न होते हैं । ३०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो भद्दा (बला) ए ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं प्रौ (प्रों) हूँ नमः स्वाहा ।
फल- कच्चे मिट्टी के घड़े से कुएँ से पानी निकाला जाता है।
३१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो वी (बी ?) या (आ) वण (णं ?) ब ( प ?) ताए । मंत्र - ॐ णमो भगवति चक्रधारिणि भ्रामय भ्रामय मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय स्वाहा । फल- पूछे गये शुभाशुभ प्रश्न का फल ज्ञात होता है।
३२. ऋद्धि- ॐ अर्हं णमो अट्ठमट्ठ (द ?) णासए ।
मंत्र- ॐ णमो भगवते मम शत्रून् बंधय बंधय ताडय ताडय उन्मूलय उन्मूलय छिंदछिंद भिंद भिंद स्वाहा ।
फल - दुष्ट पुरुष का बल निर्बल होता है । उसकी संघातिक शस्त्रादि विद्या का जोर नष्ट होता है तथा अपनी दुष्टता छोड़ देता है।
३३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमोजवित्ताय ( प ?) खिक्ताए ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं वृषभादि तीर्थङ्करेभ्यो नमः स्वाहा ।
फल- अतिवृष्टि, अनावृष्टि, उल्कापात एवं टिड्डीदलों को रोक कर संभावित दुर्भिक्ष से रक्षा करता है।
३४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो उंजि अस्सायतक्खणणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं नमो भगवति (ते ?) भूत पिशाच राक्षस वेतालान् ताडय ताडय मारय मारय
स्वाहा ।
फल- भूत, पिशाच, राक्षस, शाकिनी और डाकिनी तथा शत्रुभय का विनाश होता है । ३५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो मिज्जलिज्जणासए ।
मंत्र - ॐ नमो भगवति (ते ?) मिगियागदे अपस्मारे (मृग्युन्मादापस्मारादि) रोगे (ग?) शांति कुरु कुरु स्वाहा ।
फल- मृगी, उन्माद, अपस्मार और पागलपन आदि असाध्य रोग शांत होते हैं।
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३६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो ग्रा (ग्रां ? ) हुँ फट् विचक्राए ।
मंत्र- ॐ ह्रीं अष्ट महानाग कुलविष शान्तिकारिणि ( ण्यै ? ) नमः स्वाहा । फल- मंत्र के प्रभाव से काला नाग पकड़े तो काटे नहीं। मंत्रित कंकड़ सर्व पर फेंके तो वह कीलित हो जाता है । तथा उसका विष असर नहीं करता ।
३७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो स्वो (खो ?) भि ह्रीं खोभिए ।
मंत्र - ॐ नमो (x) भगवति (ते ?) सर्वराज प्रजावश्य (श ? ) कारिएि (णे?) नमः
स्वाहा ।
फल- यंत्र पास रखकर मंत्रित ७ कंकरों को क्षीर वृक्ष के नीचे उछालकर अधर में पकड़ ले। फिर उन्हें चौराहे पर डालने से राजा से मिलाप होता है। श्रेष्ठ पुरुषों से सम्मान मिलता है।
३८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो इट्ठि (ट्टि ?) मिट्टि (ट्टि ?) मरकं (भक्खं) कराए। मंत्र- ॐ जानवा (जनेवा) न्हारवापहारिण्यै भगवत्यै खङ्गारी दैव्ये नमः स्वाहा ।
फल- नहरुवा, जनेवा, उदर तथा ह्रदय पीड़ा नष्ट होती है । होली की राख को मंत्रित कर रोग शांत होने तक प्रतिदिन झाड़े ।
३९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो सता (त्ता ? ) वरिएगु ( ग ?) णिज्जं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते (अनुकस्य) सर्व ज्वर शांति कुरु कुरु स्वाहा ।
फल- सर्व ज्वर और सन्निपात दूर होता है। भोजपत्र पर यंत्र लिखकर धूप देकर रोगी के
गले में बाँधे ।
४०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो उन्ह ( ह ?) सीअ ( य ? ) णासए ।
मंत्र - ॐ नमो भगवते इम्यूँ नमः स्वाहा ।
फल- इकतरा, तिजारी, चौथिया आदि विषम ज्वर दूर होते हैं ।
४१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो वप्पला हव्व ( प्प ? ) ए ।
मंत्र - ॐ नमो भगवते वंभयारि नमो ह्रीं श्री क्लीं ऐं ब्लू नमः (स्वाहा) ।
फल - संग्राम में तीर, तलवार, बरछा, भाला आदि शस्त्र साधक को घायल नही कर पाते।
४२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो इत्थि वत्थ ( रत्त ?) (रोअ) णासए ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते स्त्री प्रसूत रोगादि शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
फल- स्त्रियों का प्रदर रोग दूर होता है, बहता रुधिर रुकता है और गर्भ स्तम्भन होता है। ४३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो बदि मोक्ख (अ ?) या (गा) ए ।
मंत्र- ॐ नमो सिद्धि (द्ध ?) महासिद्धि (द्ध ? ) जगत् सिद्धि (द्ध ?) त्रैलोक्य सिद्धि
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मुनि प्रार्थना सागर
(द्ध?) (सहिताय कारागार बन्धनं) मम रोगं छिन्द छिन्द स्तम्भय स्तम्भय जृभय
जुभय मनोवांछितं (त) सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा। फल- बन्दी बन्धन मुक्त होता है । रोग शान्त होते हैं। इष्ट कार्यों की सिद्धि होती है। ४४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः। मंत्र- ॐ णमो धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय श्रीं क्लीं ऐं अहँ नमः स्वाहा। फल- लक्ष्मी की प्राप्ति और व्यापार में लाभ होता है।
कल्याण मन्दिर ऋद्धि- मंत्र जप विधिनोट- मन्त्र की साधना श्रद्धा सहित एकान्त स्थान में एकाग्रचित्त से करना चाहिये। भिन्न
भिन्न मन्त्र साधना में भिन्न-भिन्न दिशा- आसन व माला आदि का उपयोग किया जाता है। तथा धूप के लिए निर्धूम अग्नि का उपयोग किया जाता है।
(124. विषापहार स्तोत्र ऋद्धि- मंत्र १. ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंताणं जिणाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पुराणपुरुषोत्तम श्री ऋषभदेवाय नमः स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १०८ जप से समस्त विघ्न नाश होते हैं। २. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो जिणाणं। मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १००० जप ११ दिन तक करने से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। ३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो परमोहिजिणाणं । मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ अ सि आ उ सा नमः स्वाहा। विधि- प्रतिदिन ११००० जप ४१ दिन तक करने से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। ४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोहिजिणाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ नमः क्ष्वीं स्वाहा। विधि-नौ दिन तक प्रतिदिन ११०० जप से सर्व विघ्न बाधायें दूर होती हैं। ५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अणंतोहिजिणाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रों विकट संकट निवारणेम्यः वृषभयक्षेभ्यो नमो- नमः स्वाहा। विधि- २१ दिन तक प्रतिदिन १००० जप से सब विकट संकट शान्त होते हैं। ६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो कुट्ठबुद्धीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं वृषभदेवाय ह्रीं नमः । विधि- ११दिन तक प्रतिदिन १००० जप से सब विषमविषों का नाश होता है।
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७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो
बुद्धी ।
मंत्र - ॐ आँ क्रीं ह्रीं क्षीं क्लीं ब्लू द्राँ द्रीं ज्वालामालिनी स्वाहा
विधि - २७ दिन तक प्रतिदिन १०८ जप से भयंकर विष दूर होते हैं।
८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं णमो पादाणुसारिणं ।
मंत्र - ॐ नमो भगवते क्ष क्ष व व हम्र्व्यू विषधरगतिस्तम्भं कुरु २ स्वाहा ।
९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं णमो संभिण्णसोदारणं ह्रां ह्रीं हूँ फट् स्वाहा ।
मंत्र - ॐ ह्रीँ ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा सर्वशांति कुरु २ ॐ नमः स्वाहा ।
मुनि प्रार्थना सागर
विधि - प्रात:काल स्नानादि करके एकाग्रमन से १०८ बार जप से नवग्रह के अरिष्ट निवारण होते हैं।
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१०. ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो सयंबुद्धीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ऐं महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा ।
विधि - एकान्त में प्रातः एकाग्रचित्त से ४० दिन तक जपने से केवलज्ञान लक्ष्मी प्राप्त होती
है।
११. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो पत्तेयबुद्धीणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वती देवी हूं नमः स्वाहा ।
विधि - ऋद्धि- मंत्र का २१००० जप से ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम होता है।
१२. ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो वोहिबुद्धीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गं गं ओ गं गं नमो संकटविकटदुख निवारणाय् स्वाहा।
विधि- वीतराग भगवान् के समक्ष १०८ बार जप से समस्त संकट दुखादि दूर होते हैं ।
१३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं ऋजुमदीं ।
मंत्र - ॐ झं झं यं यं क्रं उं वं बं लं क्षं एं ऐं ओ ओ ह्रः नमः स्वहा ।
विधि- ४२ दिन तक प्रतिदिन १०८ जप से वृश्चिक से सताये आदमी पर आजमायें तो उसका कष्ट दूर होता है।
१४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो विपुलमदीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमि उणे विसहर विसह जिण फुलिंग ह्रीं श्रीं क्लीं नमः ।
विधि - ब्रह्मचर्य पूर्वक प्रतिदिन १००० जप करके १२५००० जाप करने से अधिष्ठातृ देवी प्रसन्न होती है। लक्ष्मी दिन प्रतिदिन बढ़ती है ।
१५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो दसपुव्वीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं हं सः स्वाहा ।
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विधि - ११ रविवार के दिनों में रात्रि के समय सोने के पूर्व १०८ बार जप करने से ऋद्धिसिद्धि बढ़ती है।
१६. ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो चउदसपुव्वीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं परमशान्तिविधायकाय श्री वृषभजिनपादाय नमः स्वाहा । विधि- प्रतिदिन प्रात: १०८ जप से राज सम्पदा प्राप्त होती है।
१७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अट्टंग महाणिमित्त कुसलाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं ऐं सावय सावय ब्लू अर्हं नमः स्वाहा । विधि- प्रतिदिन १०८ जप से शोक संताप दूर होते हैं ।
१८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो विउणयट्ठिपत्ताणं ।
मंत्र - ॐ क्लीं क्लौं अ सि आ उ सा वरे सुवरे नमः स्वाहा ।
विधि - ११ मंगलवार को लगातार प्रातः १०८ जप से प्रतिद्वन्दियों की जीत होती है।
१९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो विज्जाहराणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं क्ष्वों सु व देव आये अर्हत् उत्पत् उत्पत् स्वाहा।
विधि - ऋद्धि-मंत्र की निरन्तर आराधना से साधक अतुल विभूतियों का स्वामी होता है तथा लोक में प्रतिष्ठा पाता है I
२०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो चारणाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चक्रधारिणी चक्रेश्वरी देवी दुष्टान् हानय हानय स्वाहा ।
विधि- मंत्राराधन कर ऋद्धि मंत्र को भुजबन्ध में धारण करने से दुष्ट अपनी दुष्टता छोड़ देता है।
२१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो पण्णसमणाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं हर हुं हः सर सुंसः क्लीं क्ष्वीं हूं फट् स्वाहा ।
विधि
- इस ऋद्धि-मंत्र की आराधना से स्वामी क्रोध छोड़कर प्रसन्न होता है।
२२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो आगासगामीणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीँ ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः अनिलोपशम कुरु कुरु स्वाहा । विधि
- एकान्त में मन्त्राराधना से अग्निभय दूर रहता है।
२३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो आशीविसाणं ।
मंत्र - ॐ णमो श्रां श्रीं क्रौं क्ष्वीं ह्रीं फट् स्वाहा ।
विधि - १०८ जप से शत्रु वश में होता है, विजयलक्ष्मी प्राप्त होती है ।
२४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो दिट्ठिविसाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं नमो नमः सर्व सूरिभ्यः उपाध्यायेभ्यः ओं नमः स्वाहा ।
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मुनि प्रार्थना सागर
विधि- ऋद्धि-मंत्र आराधना से दुखों का नाश सुख की प्राप्ति होती है। २५.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो उग्गतवाणं । मंत्र- ॐ थम्मेई थम्मेई जल जलण घोरुवसग्गं पणासेउ स्वाहा। विधि- २१दिन तक ऋद्धि मंत्राराधना से सब विपत्तियों से छुटकारा मिलता है। २६.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो दित्ततवाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंताणं धणुं धणुं महाधणुं स्वाहा। विधि- २७दिन तक प्रतिदिन १००० जप से चोर और डाकुओं का भय जाता रहता है। २७.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो महातवाणं। मंत्र- ॐ णमो भगवते श्रीमते जय विजय विमोहय विमोहय सर्व सिद्धि सौख्यं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- ऋद्धि मन्त्राराधना से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। २८.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अ6 णमो घोरतवाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं अ सि आ उ सा चुलु चुलु हुलु हुलु मुलु मुलु कुलु कुलु इच्छियं
मे कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ४२दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप से सब मनोरथ सिद्ध होते हैं। २९.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वंभचारिणं । मंत्र- ॐ णमो ह्रां ह्रीं हूं ह्र: क्ष्वी सर्वरोगनिवारणं सर्वदोषहारणं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- २१सप्ताह तक लगातार सोम-बुध-शुक्र रविवार के दिन में प्रात: १०८ जप से सब
रोग-दोषों का विनाश होता है। ३०.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरगुणाणं परक्कमाणं । मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्ष्वी अरिहंत सिद्ध आयरिय उवझं सव्व साहूणं। विधि- नित्य आराधन से अलौकिक विभूति प्राप्त होती है। आन्तरिक वेदनाओं का विनाश होता
३१.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं क्ष्वीं ऐं ह्मों पद्मावत्यै नमो नमः श्री स्वाहा। विधि- सश्रद्धा २१दिन तक प्रतिदिन १०८ जप से आराधन करके कच्चे सूत के धागे को
मंत्रित कर कमर में बाँधने से असमय में गर्भ नहीं गिरता। ३२.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो खिल्लोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्वदुष्टान् स्तम्भय २ मोहय २ अंधय अंधय मूकवत्कारय
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
कुरु २ ह्रीं स्वाहा। विधि- २१दिन तक लगातार प्रतिदिन १०८ जप करने से भूत-पिशाचादि व्यन्तरों से
छुटकारा मिल जाता है। ३३.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो जल्लोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं इयं वृश्चिकविषापहारिणी विद्या ९ नमः स्वाहा। विधि- वायव्यकोण की ओर मुख करके १ वर्ष तक प्रति शनिवार को लगातार १०००
जप कर सिद्ध करें। फिर बिच्छू काटे आदमी पर इस मंत्र से मंत्रित राख से झाड़ा
देने से जहर नष्ट होता है। ३४.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो विप्पोसहिपत्ताणं । मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं बाहुबलि प्रचण्ड बाहुबलि पराक्रमी बाहुबलि ऊर्ध्वं बाहुबलि शुभाशुभं
कथयते कथयते स्वाहा। विधि- प्रातः स्नान करके १०८ बार सुबह शाम इस मंत्र को जपकर सिद्ध करें। फिर १०८बार
रात को सोने से पहले जपकर भूमि पर सोयें तो जो बात पूछोगे उसका उत्तर मिलेगा। ३५.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ वृषभ यक्ष दिव्यरूपाय मेघवर्ण एहि एहि श्रीं औं क्रौं ह्रीं नमः स्वाहा। विधि- ४२ दिन तक प्रतिदिन १०८ जप से शुभाशुभ प्रश्नों का उत्तर मिलता है। ३६.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो वचिबलीणं कायबलीणं खीरसवीणं सप्पिसवीणं । मंत्र- ॐ ह्रीं क्षीं क्षीं ऐं श्रीं चामुण्डे स्वाहा। विधि- सात दिन तक प्रतिदिन आराधन से विविध उपसर्गों का शमन होता है तथा उपद्रव
__ शान्त होते हैं। ३७.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो महुरसवाणं। मंत्र- ॐ नमो ज्वालामालिनी जिनशासनसेवाकारिणी क्षुद्रोपद्रव विनाशिनी शान्तिकारिणी
___ धर्मप्रकाशिनी नमः कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ४१दिन तक प्रतिदिन १०८ जप से सर्व प्रकार की शान्ति होती है, भय मिटता है। ३८.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अमीयसवीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्ष्वी धीं धीं हंसः ह्रौं ह्रः ह्रां द्राँ द्रीं द्रौं द्रः सर्व जनवश्यं महामोहनी कुरु
कुरु स्वाहा। विधि- ११दिन तक लगातार ११०० जप करने से तथा ७ उड़द इस मंत्र से मंत्रित कर
चारों दिशाओं में फेंकने से साधक के शरीर की रक्षा होती है। ३९.ऋद्धि- ॐ ह्रीं अ6 णमो अक्खीणमहासाणं बड्ढमाणाणं ।
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मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रां श्रीं ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः क्ष्वीं कुविष विषमविष महाविष निवारिण्यै महामायामै नमः स्वाहा ।
विधि- सश्रद्धा ऋद्धि-मंत्र जप से सभी प्राणघातक विषों का नाश होता है।
४०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमोसव्वसाहूणं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते विषमविषविनाशिनी महाकाल दृष्ट मृतक को - स्थापनी पाप विमोचनी जगदुद्धारिणी देवि देवते ह्रीं श्रीं नमो नमः स्वाहा ।
विधि - ऋद्धि मंत्र की आराधना से सब पापों का नाश होता है।
125. भक्तामर स्तोत्र ऋद्धि मंत्र
१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं, णमो जिणाणं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असि सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौं झौं स्वाहा ।
मंत्र-ॐ ह्रां ह्रीं हूँ श्रीं क्लीं ब्लू क्रौं ओं ह्रीं नमः स्वाहा ।
ܬ
विधि- प्रतिदिन १०८ बार जपने से सब विघ्न नष्ट होते हैं ।
२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो ओहिजिणाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं नमः ।
विधि - सात दिन तक लगातार प्रतिदिन १००० बार जपने से समस्त रोग शान्त होते हैं ।
३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो परमोहिजिणाणं ।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सिद्धेभ्यो बु द्धेभ्यः सर्वसिद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा ।
विधि- सश्रद्धा प्रतिदिन १००० जप सात दिन तक जपने से अपूर्व सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वोहिजिणाणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं जलयात्रा देवताभ्यो नमः स्वाहा ।
विधि- प्रतिदिन १००० जप सात दिन तक लगातार करने पर तथा २१ कंकरियों को क्रमशः एक-एक कंकरियों को मंत्रित कर जल में डालने से जाल में मछलियाँ नहीं फँसती ।
५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहिजिणाणं ।
मंत्र - ॐ ह्री श्रीं क्लीं कौं सर्वसङ्कटनिवारणेभ्यः सुपार्श्वयक्षेभ्यो णमो स्वाहा । विधि - सात दिन तक लगातार १००० जप करने से सब संकट शमन होते हैं । ६. ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो कोट्ठबुद्धीणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रां श्रं श्रः हं सं थ थः ठः ठः सरस्वती भगवती विद्या प्रसादं कुरु कुरु
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मुनि प्रार्थना सागर
स्वाहा। विधि- २१ दिन तक लगाकर १००० जप से शीघ्र विद्या आती है। ७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो बीजबुद्धीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं हूं सं श्रां श्रीं क्रौं क्लीं सर्व दुरितं संकट क्षुद्रोपद्रवकष्ट निवारणं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जपने से विष नहीं चढ़ता तथा कंकरी को १०८
बार मंत्रित कर सर्प के सिर पर मारने से वह कीलित हो जाता है। ८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंताणं णमो पादाणुसारिणं । मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय झौं झौं स्वाहा। ओं
ह्रीं लक्ष्मण रामचन्द्र देव्य नमः स्वाहा। विधि- २१ दिन तक प्रतिदिन ऋद्धि व मंत्र का जाप करने से अरिष्ट मिट जाते हैं। ९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अरहंताणं णमो संभिण्ण सोदराणं हां ही हूं फट् स्वाहा। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं भवीं रं रं हं ह: म मः स्वाहा। विधि- १०८ बार मंत्रित कंकरी चारों दिशाओं में फेंकने से पथ कीलित हो जाता हैं, सप्त
भय भाग जाते है। १०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो सयंबुद्धीणं । मंत्र- ॐ जन्म सध्यानतो जन्मतो वा मनोत्कर्ष धृतावादि नोर्याक्षान्ताभावे प्रत्यक्षा
बुद्धान्मनो आं ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः श्रीं श्रीं श्रृं श्रौं श्रः सिद्धबुद्ध कृतार्थों भव भव वषट्
सम्पूर्ण स्वाहा। विधि-सात नमक की डली को १०८ बार मन्त्रित करके खाने से कुत्ते का विष असर नहीं
करता। ११. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पत्तेयबुद्धीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं श्रीं कुमतिनिवारिण्यै महामायायै नमः स्वाहा। विधि- २१ दिन तक लगातार १०८ बार जपने से अभीष्ट व्यक्ति आ जाता है १२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो बोहिबुद्धीणं। मंत्र- ॐ आँ अं अः सर्व राजा प्रजा मोहिनी सर्वजन वश्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ४२ दिन तक प्रतिदिन १००० मंत्र जपें। एक पाव तिल के तेल को मंत्रित कर
हाथी को पिलाने से उसका मद उतर जाता है। १३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो ऋजुमदीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं हंसः ह्रौं ह्रां ह्रीं द्रां द्रीं द्रों द्रः मोहिनी सर्वजन वश्यं कुरु कुरु स्वाहा।
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मुनि प्रार्थना सागर विधि- ऋद्धि मंत्र को जपने तथा ७ कंकरियों को १०८ बार मंत्रित कर चारों दिशाओं में
___फेंकने से चोर चोरी नहीं कर पाते तथा रास्ते का भय नहीं रहता। १४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो विपुल मदीणं। मंत्र- ॐ नमो भगवती गुणवती महामानसी स्वाहा। विधि- सश्रद्धा सात कंकरियों को २१ बार मंत्रित कर चारों दिशाओं में फेंकने से व्याधि
शत्रु आदि का भय नही रहता और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। १५. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो दसपुव्वीणं। मंत्र- ॐ नमो भगवती गुणवती सुसीम पृथवी वज्रशृंखला मानसी महामानसी स्वाहा। विधि- २१ बार मंत्रित तेल मुखपर लगाने से सभा में सम्मान बढता है। १६. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो चउदसपुव्वीणं। मंत्र- ॐ णमो मङ्गला सुसीमा नाम देवी सर्व समीहितार्थं वज्रशृंखलां कुरु कुरु स्वाहा। विधि- नौ दिन तक प्रतिदिन १००० जप करने से राज दरबार में प्रतिवादी की हार होती
है। शत्रु का भय नहीं रहता। १७. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्ह णमो अट्ठांग महानिमित्त कुसलाणं। मंत्र- ॐ णमो णमिऊण अढे मढे क्षुद्र विघठे क्षुद्रपीड़ा जठर पीड़ा भंजय २ सर्वपीड़ा
सर्वरोग निवारणं कुरु २ स्वाहा।। विधि- सश्रद्धा सात दिन तक प्रतिदिन १००० जप करें। अछूता पानी २१ बार मन्त्रित कर
पिलाने से शारीरिक सभी रोग दूर हो जाते हैं। १८. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो विउणयट्ठिपत्ताणं। मंत्र- ॐ नमो भगवते जय विजय मोहय २ स्तम्भय स्वाहा। विधि- सात दिन १००० जप करें। फिर १०८ बार ऋद्धिमंत्र जपने से शत्रु सैन्य स्तम्भित
होती है। १९. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो विजाहराणं । मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्र: जक्ष ह्रीं वषट् नमः स्वाहा। विधि- सश्रद्धा ऋद्धिमंत्र १०८ बार जपने से परकृत जादू-मूठ-टोटका उच्चाटनादि का भय
नहीं होता। २०. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो चारणाणं। मंत्र- ॐ श्रीं श्रीं शृं श्रः शतुभय निवारणाय ठः ठः स्वाहा। विधि- प्रतिदिन १०८ बार जप से सन्तान-सम्पत्ति-सौभाग्य बुद्धि और विजय की प्राप्ति
होती है।
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मुनि प्रार्थना सागर
२१. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो पण्णसमणाणं । मंत्र- ॐ नमः श्री मणिभद्र जय विजय अपराजित सर्व सौभाग्यं सर्व सौख्यं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- २१ दिन तक १०८ बार जपने से सर्व अपने वशवर्ती होते हैं और सौभाग्य बढ़ता
२२. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो आगासगामिणं । मंत्र- ॐ णमो विरेही जंभय जंभय मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय अवधारणं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि- ऋद्धि मन्त्र से मंत्रित हल्दी की गाँठ को मंत्रित कर चबाने से डाकिनी शाकिनी
भूत-पिशाच-चुडैलादि भाग जाते हैं। २३. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अ& णमो आसीविसाणं। मंत्र- ॐ णमो भगवती जयावती मम समीहितार्थ मोक्ष-सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ऋद्धि मन्त्र को १०८ बार जपकर अपने शरीर की रक्षा करें, पश्चात् इसी मन्त्र से
झाड़ने पर प्रेत बाधा दूर होती है। २४. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो दिट्ठिविसाणं । मंत्र- स्थावर जंगम काय कृतं-सकलविषं यद्भत्तेः अमृतायते दृष्टिविषास्ते मुनयः वड्ढमाणं
स्वामी सर्वहित कुरु कुरु स्वाहा। ओं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौ ह्र: अ सि आ उ सा झौं झों
स्वाहा। विधि- राख मंत्रित कर शिर में लगाने से शिर-पीड़ा दूर होती है। २५. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो उग्गतवाणं । मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा झौं झौं स्वाहा। ॐ नमो भगवते जय
विजयापराजिते सर्वसौभाग्यं सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ऋद्धि मंत्र सश्रद्धा जपने से नजर उतर जाती है और अग्नि का असर नहीं होता। २६. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो दित्ततवाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हूं हूं परजनशांति व्यवहारे जयं जयं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ऋद्धि मंत्र से मंत्रित तेल सिर में लगाने से आधा शीशी का सिर दर्द दूर होता है। २७. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो तत्ततवाणं । मंत्र- ॐ णमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी चक्रेणानुकूलं साघय साधय शत्रू नुन्मुलयोन्मूलय
स्वाहा।
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विधि- ऋद्धि-मंत्र की आराधना से उपासक को शत्रु भी हानि नहीं पहुंचा सकता। २८. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो महातवाणं। मंत्र- ॐ णमो भगवते जय विजय मुंभय मोहय मोहय सर्वसिद्धि सम्पत्ति सौख्यं च कुरु
कुरु स्वाहा। विधि- इसकी उपासना से सभी अच्छे कार्य सिद्ध होते हैं व्यापार में लाभ होता है। २९. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरतवाणं। मंत्र- ॐ ह्रीं णमो णमिऊण पासं विसहर फुलिंगमंतो विसहर नाम रकार मंतो सर्व सिद्धि
___मोहे इह समरंताण मण्णे जा गहं कप्पदुमच्च सर्व सिद्धि ओं नमः स्वाहा। विधि- १०८ बार जपने से नेत्र पीड़ा दूर होती है। ३०. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरगुणाणं। मंत्र- ॐ णमो अढे मढे क्षुद्रविघठे क्षुद्रान् स्तम्भय स्तम्भय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा। विधि- सश्रद्धा ऋद्धि-मन्त्र की आराधना से शत्रु का शौर्य नष्ट होता है। ३१. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरगुण परक्कमाणं। मंत्र- ॐ उवसग्गहरं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं विसहर विसणिर्णासिणं मंगल कल्याण
आवासं ओं ह्रीं नमः स्वाहा। विधि- ऋद्धि-मन्त्र जपने से सब जगह व राज्य सम्मान होता है। ३२. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरगुण बम्भचारिणं । मंत्र- ॐ णमो ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: सर्वदोष निवारणं कुरु कुरु स्वाहा। विधि- कुमारी कन्या के हाथ से कते सूत को मन्त्रित कर गले में बाँधने से संग्रहणी तथा
उदर की भयानक पीड़ा दूर होती है। ३३. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोसहिपत्ताणं । मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं क्षीं ब्लूं ध्यानसिद्धिपरमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा। विधि- सश्रद्धा कच्चे धागे को मन्त्रित कर गले में व हाथ में बाँधने से एकातंरा, तिजारी,
ताप, ज्वरादि सब रोग दूर होते हैं। ३४. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो खिल्लोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ णमो ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह्यौं पद्मावत्यै नमो नमः स्वाहा। विधि- ऋद्धि मन्त्र से मन्त्रित कच्चे धागे को मन्त्रित कर कमर में बांधने से असमय में गर्भ
नहीं गिरता।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
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३५. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो जल्लोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ णमो जय विजयापरिजित महालक्ष्मी अमृतवर्षिणी अमृतास्रावित्री अमृतं भव
भव वषट् स्वधा स्वाहा। विधि- ऋद्धि मन्त्र की आराधना से चोरी-मरी -मृगी-दुर्भिक्ष-मृगी राजभय आदि नष्ट होते हैं। ३६. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो विप्पोसहिपत्ताणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुण्डदण्डस्वामिन् आगच्छ आगच्छ आत्ममन्त्रान् आकर्षय आकर्षय
आत्ममन्त्रान् रक्ष रक्ष परमंत्रान् छिन्द छिन्द मम समीहितं कुरु कुरु स्वाहा। hि - १२००० ऋद्धि मन्त्र का जाप करने से सम्पत्ति का लाभ होता है। ३७ ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो सब्बोसहिपत्ताणं। मंत्र ॐ णमो भगवते अप्रतिचक्रे ऐं क्लीं ब्लू ॐ ह्रीं मनोवांछित सिद्धद्यै नमो नमः
अप्रतिचक्रे ह्रीं ठः ठः स्वाहा। विधि- मन्त्रित जल के छींटे मुंह पर देने से दुर्जन पुरुष वश में हो जाया करते हैं। और
उनकी जबान वश में हो जाती है। ३८. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो मणोवलीणं। मंत्र- ॐ नमो भगवते महानागकुलोच्चाटिनी कालदष्टमृतकोस्थापिनी पर-मन्त्र प्रणाशिनी
देवी-देवते ह्रीं नमो नमः स्वाहा। hि :- ऋद्धि- मन्त्र की आराधना से हस्ति-मद उतर जाता है और अर्थ-प्राप्ति होती है। ३९ ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो वचनबलीणं । मंत्र ॐ णमो एषु दत्तेषु वर्द्धमान तव भयहरं वृत्तिवर्ण येषु मन्त्राः पुनः स्मर्तव्या अतोना
परमंत्र निवेदनाय नमः स्वाहा। विधि- ऋद्धि-मन्त्र की आराधना से वनराज (सिंह) भी परास्त हो जाता है और सर्प भय
भी नहीं रहता। ४०. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो कायबलीणं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं अग्नि उपशम कुरु कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धि मन्त्र की आराधना से अग्नि का भय मिट जाता है। ४१. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो खीरसवीणं। मंत्र- ॐ णमो श्रां श्रीं श्रृं श्रः जलदेवि कमले पद्मदनिवासिनी पद्मो-परिसंस्थिते सिद्धिं
देहि मनोवांछितं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धि -मन्त्र को जपने और झाड़ने से सर्प का विष उतर जाता है।
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मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर ४२. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो सप्पिसवीणं। मंत्र- ॐ नमो नमिऊण विषहर विष प्रणाशन रोग-शोक-दोष ग्रह कप्दु-मच्चजाई
सुहनाक गहणसकल सुहदे ॐ नमः स्वाहा। विधि- ऋद्धि -मन्त्र की आराधना से भयंकर युद्ध का भय मिट जाता है। ४३. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो महुरसवीणं । मंत्र- ॐ ओं नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिन शासन सेवाकारिणी क्षुद्रोपद्रवविनाशिनी
धर्मशांतिकारिणी इष्टसिद्धि कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ऋद्धि- मन्त्र जपने से सर्व प्रकार का भय मिटता है और सब प्रकार की शान्ति
मिलती है। ४४. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो अमीयसवीणं । मंत्र- ॐ नमो रावणाय विभीषणाय कुंभकरणाय लंकाधिपतये महाबलपराक्रमाय
मनश्चितितं कुरु कुरु स्वाहा।। विधि- ऋद्धि- मन्त्र की आराधना से सब प्रकार की आपत्तियाँ मिट जाती है। ४५. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो अक्खीण महाणसाणं। मंत्र- ॐ णमो भगवती क्षुद्रोपद्रवशांतिकारिणी रोगकुष्टज्वरोपशमं शांति कुरु कुरु स्वाहा। विधि- ऋद्धि- मन्त्र की आराधना से सर्व रोग नाश होते हैं तथा उपसर्ग भय नहीं होता। ४६. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो वड्ढमाणाणं। मंत्र- ॐ णमो ह्रां ह्रीं श्रीं हूं ह्रौं ह्रः ठः ठः जः जः क्षां क्षीं दूं क्षौं क्षः क्षयः स्वाहा। विधि- ऋद्धि- मन्त्र की आराधना से आराधक बंधनों से निर्मुक्त होकर निर्भय होता है। ४७. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वसाहूणं । मंत्र- ॐ नमो ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: क्षां क्षीं ह्रीं फट् स्वाहा। विधि- ऋद्धि- मन्त्र १०८बार जपने से शत्रु वश में होते हैं, विजय लक्ष्मी प्राप्त होती है
और शस्त्रादि के घाव शरीर में नहीं हो पाते। ४८. ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अहँ णमो श्री ऋषभदेवाणं। मंत्र- महति महावीर वड्ढमाण बुद्धिरिसीणं ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा झौं झौं
स्वाहा। विधि- ४९ दिन तक १०८ बार ऋद्धि-मंत्र जपने से मनोवांछित समस्त कार्यों की सिद्धि
होती है।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
126. पद्मासन प्रतिमा अंकन्यास
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
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127, खड़गासन प्रतिमा अंकन्यास
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नं. तीर्थंकर पिता
माता 1. ऋषभनाथ नाभिराय मरूदेवी 2. अजितनाथ जितशत्रु विजयसेना 3. संभवनाथ दृढराज सुषेणा 4. अभिनंदननाथ स्वयंवर सिद्धार्था 5. सुमतिनाथ मेघस्थ मंगला 6. पद्मप्रम धरण सुसीमा 7. सुपार्श्वनाथ सुप्रतिष्ठ पृथ्वीषणा 8 चन्द्रप्रम महासेन
लक्ष्मणा 9. पुष्पदन्त सुग्रीव जयरामा 10. शीतलनाथ दृढ़रथ सुनन्दा 11. श्रेयांसनाथ विष्णु
वेणुश्री 12. वासुपूज्य वसुपूज्य जयावती 13. विमलनाथ कृतवर्मा जयश्यामा 14. अनंतनाथ सिंहसेन सर्वश्यामा 15. घर्मनाथ
सुप्रभा 16. शन्तिनाथ विश्वसेन ऐरा 17. कुन्थुनाथ सूरसेन श्रीकान्ता 18. अरहनाथ
मित्रसेना 19. मल्लिनाथ कुम्भ
प्रजावती 20. मुनिसुव्रतनाथ सुमित्र सीमा 21. नमिनाथ विजय महादेवी 22. नेमिनाथ समुद्रविजय शिवादेवी 23. पार्श्वनाथ विश्वसेन ब्राह्मी 24. महावीर सिद्धार्थ प्रियकारणी
तीर्थकर परिचय बोध ( तिल्लोय पण्णत्ति के आधार से ) गर्भकल्याणक जन्मकल्याणक दीक्षाकल्याणक दीक्षावृक्ष केवलज्ञान कल्याणक निर्वाणकल्याण यक्ष यक्षिणी आषाढ़ कृ.2 चैत कृ.9 चैत कृ.9 वट
फाल्गुन कृ.11 माघ कृ.14 गोवदन चक्रेश्वरी ज्येष्ठ कृ.15 माध शु.10 माघ शु.9 सप्तपर्ण पौष शु.14 चैत शु.5 महायक्ष रोहिणी फाल्गुनशु.8 कार्तिकशु.15 चैत कृ.9 शाल का.कृ.5 चैत शु.6 त्रिमुख प्रज्ञप्ति वैशा.शु.6 माध शु.12 माघ शु.12 सरल का.शु.5 वै. शु.7 यक्षेश्वर वजशृंखला
श्रा. शु.2 चैत शु.11 वैश. शु.9 प्रियङ्गु पौश शु.15 चैत शु. 10 तुम्बुरब वजाङ्कुशा माघ कृ.6 कार्तिककृ.13 कार्ति कृ.13 प्रियङगु वैश. शु.10 फा कृ.4 मातंङ्ग
अप्रतिचक्रेश्वरी भद्र शु.6 ज्येष्ठ शु.12 ज्ये.शु.12 श्रीष फा. कृ.7 फा. कृ.6 विजय पुरूषदत्ता चैत कृ.5 पौष कृ.11 पौष कृ.11 नाग फा. कृ.7 भाद्र. शु7 अजित मनोवेगा फा. कृ.9 मार्ग शु.1 मार्ग शु.1 साल का. कृ3 अश्वि. शु8 ब्रह्म
काली चैत कृ 8 माघ कृ.12 मार्ग कृ.12 प्लक्ष पौश कृ.14 का. शु.5 ब्रह्मेश्वर ज्वालामालनी ज्येष्ठ कृ.6 फा.कृ.11 फागु, कृ.11 तेन्दु माघ कृ.15 श्रा. शु. 5 कुमार महाकाली आष.कृ.6 फा. कृ.14 फागु. कृ.14 पाटला माघ शु.2 फा. कृ.5 शन्मुख गौरी ज्येष्ठ कृ.10 माघ शु.4 माघ शु.4 जम्बू पौष शु.10 आष शु.8 पाताल गान्धारी कार्तिक कृ.1 ज्ये. कृ12 ज्ये. कृ.12 पीपल चैत कृ.15 चैत कृ15 किन्नर वैरोटी
वैशा. शु.13 माघ शु.13 माघ शु.13 दधिपर्ण पौष शु.15 ज्ये.कृ.14 किंपुरूष सोलसा भाद्र कृ.7 ज्ये. कृ.14 ज्ये. कृ.14 नन्द पौष शु.11 ज्ये. कृ.14 गरूड़ मानसी
श्रा. कृ010 वैश.शु.1 वैश. शु.1 तिलक चैत शु.3 वैश. शु.1 गन्धर्व महामानसी फा. कृ. 3 मार्ग शु.14 मार्ग शु.10 आम्र का. शु.12 चैत कृ.15 कुबेर जया चैत शु.1 मार्ग शु.11 मार्ग शु.11 अशोक फाल.कृ12 फा. कृ.5 वरूण विजया श्रा. कृ.2 अश्वि.शु.12 वश. कृ.10 चम्पक फाल.कृ.6 फा. कृ.12 भृकुटि अपराजिता
आश्वि. कृ.2 आषा. शु.10 आषा.कृ.10 बकुल चैत शु.3 वैश. कृ.14 गोमेध बहुरूपिणी कार्तिक शु.6 श्राव. शु.6 श्राव. शु.6 मेषशृंग आश्वि.शु.1 आष.कृ.8 पार्श्व कूष्माण्डी वैश. कृ.2 पौष कृ.11 पौष कृ 11 धव चैत कृ.4 श्राव. शु7 मातङ्ग पद्मावती आषा. शु.6 चैत शु.13 मार्ग कृ.10 साल वैश. शु.10 कार्ति कृ.14 गुहाक सिद्धयिनी
मंत्र अधिकार
भानु
सुदर्शन
मुनि प्रार्थना सागर
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
129. श्री जिनेन्द्रदेव प्राण प्रतिष्ठा मंत्र / विधि)
प्रतिष्ठा के समय की पूर्व तैयारी - दो टेविल, पूजन की अष्ट द्रव्य सामग्री, यागमंडल विधान के लिए श्रीफल, यज्ञोपवित्र, मंजूषा (पेटी), कपूर, के सर, प्रतिमा के कपड़े आदि,पालना,आहार आदि सामग्री, अभीषेक के लिए कलश, सप्तधान, स्वर्णशलाका (सोने की सलाई), चॉदी की डिब्बी, माला ( जाप), दस भक्ति की पुस्तक आदि... । 1. गर्भ कल्याणक मंत्र / विधि
सबसे पहले मंगलाष्टक पढ़ें ( देखें पेज नं. 92 पर)।
( १ ) सकलीकरण करें - निम्न मंत्र को बोलकर अपने ऊपर जल के छीटें दें। अमृतस्नान मंत्र - ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृत स्त्रावय-स्रावय सं-सं क्लीं क्लीं ब्लूं ब्लूं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय-द्रावय सं हं इवीं क्ष्वीं ठः ठः हंसः
स्वाहा ।
भूमि शुद्धि मंत्र पढ़कर जल के छींटे लगावें- ॐ ह्रीं मही पूतां कुरु कुरु हूं फट् स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं भूः स्वाहा। (पुष्पक्षेपण करें।)
(२) नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर अपने ऊपर पुष्प क्षेपण करें ।
रक्षा मंत्र- ॐ हूँ हूँ फट् किरिटिं - किरिटिं घातय - घातय पर विघ्नान स्फोट्य-स्फोफट्य सहस्रखण्डान कुरु कुरु पर मुद्रान छिंद-छिंद पर मंत्रान भिन्द - भिन्द क्षों क्षः वाः वाः हूँ फट् स्वाहा। अथवा दूसरा मंत्र आगे इसी पुस्तक में देखें (पेज. 94)
( ३ ) अपने दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र बाँधे
मंत्र- ॐ ह्रीं नमोऽर्हते सर्वं रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ।
यज्ञोपवीत धारणा करें- पहले सिर में से गले में डालें फिर दाहिने कंधे का धागा दाहिने हाथ के नीचे से निकाल दें । अर्थात् एक हिस्सा बाँये कंधे पर रहे और दूसरा दाहिने हाथ के नीचे ।
मंत्र - ॐ नमः परमशान्तय शान्तिकराय पवित्री करणायाहम् रत्नत्रयस्वरूपं यज्ञोपवीतं दधामि, मम गात्रं पवित्र भवतु अर्हं नमः स्वाहा ।
(४) दिशाबंधन - निम्न मंत्र पढ़कर दशों दिशाओं में पीले सरसों या पुष्पों को फेंके।
१.
ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां पूर्वदिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
२.
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं दक्षिणदिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
ॐ हूं णमो आइरियाणं हूं पश्चिमदिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
३.
४.
५.
मंत्र अधिकार
ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं उत्तर-दिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ ह्रः णमो लोएसव्वसाहूणं ह्रः ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ऊर्ध्व, अधो आदि सर्व दिशा-विदिशात् समागत-विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष
रक्ष स्वाहा ।
(५) दस दिक्पालों का आह्वान
इन्द्राग्नि- दण्डधर - नैर्ऋत-पाशपाणि
वायूत्तरेश-शशिमौलि-फणीन्द्र-चन्द्राः ।
स्वं स्वं प्रतीच्छत बलिं जिनपाभिषेके ॥८ ॥
आगत्य यूयमिह सानुचराः सचिह्नाः,
ॐ आं क्रौं ह्रीं इन्द्र आगच्छ आगच्छ, इन्द्राय स्वाहा । ( केशरिया ध्वज ) ॐ आं क्रौं ह्रीं अग्ने आगच्छ आगच्छ, अग्नये स्वाहा । ( लाल ध्वज) ॐ आं क्रौं ह्रीं यम आगच्छ आगच्छ, यमाय स्वाहा । (काला ध्वज ) ॐ आं क्रौं ह्रीं नैऋत्य आगच्छ आगच्छ, नैऋताय स्वाहा । (काला ध्व . ) ॐ आं क्रौं ह्रीं वरुण आगच्छ आगच्छ, वरुणाय स्वाहा । (पीला ध्व . ) ॐ आं क्रौं ह्रीं पवन आगच्छ आगच्छ, पवनाय स्वाहा । (पीला ध्व . ) ॐ आं क्रौं ह्रीं कुबेर आगच्छ आगच्छ, कुबेराय स्वाहा । (पीला ध्व . ) ॐ आं क्रौं ह्रीं ऐशान आगच्छ आगच्छ, ऐशानाय स्वाहा । (श्वेत ध्व . ) ॐ आं क्रौं ह्रीं धरणेन्द्र आगच्छ आगच्छ, धरणेन्द्राय स्वाहा। (श्वेत) ॐ आं क्रौं ह्रीं सोम आगच्छ आगच्छ, सोमाय स्वाहा । (श्वेत ध्वज ) नाथ त्रिलोकमहिताय दशप्रकार
धमाम्बुवृष्टिपरिषिक्तजगत्त्रयाय ।
अर्धं महार्घगुणरत्नमहार्णवाय,
तुभ्यं ददामि कुसुमैर्विशदाक्षतैश्च ॥९ ॥
ॐ ह्रीं इन्द्रादिदशदिक्पालकेभ्यो इदं अर्घ्यं पाद्यं गंधं दीपं धूपं चरुं बलिं स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यताम् ।
(६) अभिषेक करके, शान्तिधारा करें, नवदेवता की पूजा करें, फिर यागमंडल विधान
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
करें ।
(७) मंत्र पढ़कर माता पिता पर पुष्प क्षेपण करें
मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उ सा णमो अरहंताणं अनाहत पराक्रमस्ते भवतु भवतु ह्रीं नमः
स्वाहा ।
ॐ सम्यग्दृष्टे-सम्यग्दृष्टे आसन्न भव्य - आसन्नभव्य विश्वेश्वरे - विश्वेश्वरे अर्जित पुण्येपुण्ये जिन माता - पिता भव ।
मुनि प्रार्थना सागर
(८) इन्द्रकल्पना- हार मुकुट पहिनाकर मंत्र पढ़कर पुष्प क्षेपण करें।
मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उ सा णमो अरहंताणं अनाहत पराक्रमस्ते इन्दो भवतु भवतु ह्रीं नमः स्वाहा ।
(९) नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर दिक्कुमारियों के ऊपर पुष्प क्षेपण करें।
मंत्र - ॐ ह्रीं श्री ह्री धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी तुष्टि पुष्टि शान्त्यादि दिक्कुमार्याः अत्रागच्छअत्रागच्छ जिन मातृ सेवां कुरु कुरु स्वाहा ।
मंत्र दूसरा- ॐ महति महसां श्री (ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी तुष्टि पुष्टि शान्ति ) महादेवी ऐं ह्रीं श्रीं (ह्री धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी तुष्टि पुष्टि शान्ति) देवी नित्यै स्वं सं क्लीं झ्वीं स्वां लां झौं तीर्थंकर सवित्रीं स्नापय स्नापय गर्भ शुद्धिं कुरु कुरु वं मं हं सं तं पं श्री (ह्रीं घृति कीर्ति वृद्धि लक्ष्मी तुष्टि पुष्टि शान्ति) देव्यै स्वाहा । आठों दिशा में एक-एक देवी को खड़ा करके मंत्र पढ़कर पुष्प क्षेपण करें।
-
(१०) गर्भशोधन क्रिया
नीचे लिखे मंत्र को बोलकर इन्द्राणी या देवियाँ मंजूषा में केशर का लेपन कर शुद्ध करें ।
मंत्र - ॐ भूर्भुवः श्रीं अर्हं मातृगर्भाशयं पवित्रं कुरु कुरु इवीं इवीं क्ष्वीं क्ष्वीं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः
स्वाहा ।
(११) मंत्र पढ़कर मंजूषा के अन्दर बीच में स्वास्तिक बनाकर चाँदी का स्वास्तिक रखें, उस पर भद्रासन रखकर मातृका यंत्र और सुरेन्द्र यंत्र की स्थापना करें। भद्रासन पर मातृका यंत्र और सुरेन्द्र यंत्र की स्थापना मंत्र पढ़कर करें
मंत्र- ॐ ह्रीं गर्भक्रिया समये मंजूषायां मातृका यंत्रं च सुरेन्द्र यंत्रं स्थापयामि ।
(अ) मात्रका मंत्र - ॐ नमोऽर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ऌ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ह्रीं क्लीं क्रौं स्वाहा । (मंत्राराधना १०८ बार करें)
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
(ब) सुरेन्द्र मंत्र- ॐ ह्रां वषट् णमो अरहंताणं संवौषट् ॐ ब्लूं क्लीं द्रीं द्रां ह्रीं क्रौ आ सः
ॐ नमोऽहं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ, च छज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व श ष स ह क्लीं
ह्रीं क्रौं स्वाहा। (मंत्राराधना १०८ बार करें) (स) वर्द्धमान मंत्र- ॐ णमो भयवदो वड्माणस्स रिसहस्स जस्स चक्कं जलं तं गच्छइ __ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा रणांगणे वा थंभणे वा मोहणे वा
सव्वजीवसत्ताणं अपराजिदे भवदु मे रक्ख रक्ख स्वाहा।(मंत्राराधना १०८बार करें) (१२) नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर जिनेश मंजूषा पर पुष्प क्षेपण करें। अथवा जहां पर भी
गर्भ कल्याणक स्थापन करना हो उस पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- ॐ ह्रीं मरुदेव्यदि जिनेन्द्रमातरोऽत्र सुप्रतिष्ठिता भवन्तु स्वाहा। (१३) प्रतिमा पर केशर लगाने का मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: भगवदर्हत् प्रतिकृतिं सर्वांगशुद्धि कुरु कुरु स्वाहा। (१४) प्रतिमा मंजूषा में रखने का मंत्र
ॐ नमो अर्हते केवलिने परमयोगिने अनंतविशुद्ध परिणाम परिस्फुरच्छुक्ल ध्यानाग्नि निर्दग्ध कर्मबीजाय प्राप्तानंतचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मंगलाय वरदाय अष्टादशदोषवर्जिताय स्वाहा।
(गर्भावतरणार्थ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्) (१५) गर्भ अवतरण मंत्रनीचे लिखा मंत्र पढ़कर विधिनायक प्रतिमा को मंजूषा में स्थापित करके अब प्रत्येक
तीर्थंकर के अवतरण का स्थान और माता का नाम उच्चारण कर मंजूषा बन्द करें। मंत्र- ॐ ह्रीं सर्वार्थसिद्धि अहमिन्द्र मरुदेव्यां कुक्षौ अवतरणं कुरु कुरु स्वाहा। (१६) मंजूषा आच्छादित करने का मंत्रनीचे लिखे मंत्र को पढ़कर मंजूषा को वस्त्र से आच्छादित करें। मंत्र- ॐ ह्रीं मंजूषा वस्त्रेण आच्छादयामि। (१७) जिस तीर्थंकर का पंचकल्याणक कर रहे हों उन तीर्थंकर के गर्भ कल्याणक के अर्घ
चढ़ाएं और सिद्ध, चारित्र, शांति भक्ति का पाठ करें। अर्घ चढ़ाने का ( उदाहरणार्थ ) मंत्र- ॐ ह्रीं आषाढकृष्णपक्षे द्वितीयां मरुदेवी गर्भावतरिताय
वृषभदेवाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मनि प्रार्थना सागर
(२. जन्मकल्याणक मंत्र/विधि ऊपर लिखे मातृका मंत्र, सुरेन्द्र मंत्र व वर्धमान मंत्र का १०८-१०८ बार जाप करना। (१) देवियों द्वारा परिचर्या का मंत्र
नीचे लिखा मंत्र पढ़कर मंजूषा और देवियों पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- ॐ रुचिकवर गिरीन्द्र शिखर निवासिन्यो विजयादिदेव्यो यथास्वमर्हत्प्रभुमिहेदानीं
परिचरंत्विति स्वाहा। (२) मंजूषा के ऊपर का वस्त्र अलग करने का मंत्र मंत्र- ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते त्रिभुवनतिलकोत्तमांगाय दिगंतराय ज्यातिर्मण्डलाय
देवेन्द्रवर-मुकुटमणिगण-किरण सलिलधाराकृत पदाभिषेकाय द्वादशगण समन्विताय समग्र समवसरण संपत्सहिताय वृषभादि वर्द्ध मान पर्यंत तीर्थंक राय,
ऊर्ध्वमुखमोक्षनायकाय नमः। (३) मंत्र पढ़कर सब प्रतिमाओं पर पुष्पक्षेपण करें। मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्र: श्री सिद्धचक्राधिपतयेऽष्टगुणसमृद्धाय फट् स्वाहा।
जिन जन्म स्थापनाय तस्या अन्यासां च प्रतिष्ठेय प्रतिमानामुपरि पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । तीन दीपक जलाकर जन्म से तीन ज्ञान की कल्पना करें। जयकारा लगाकर, हर्षित होकर वाद्ययंत्र बजवायें। कल्पवासी घंटा, भवनवासी शंख, ज्योतिषीदेव सिंहनाद
और व्यंतरवासी देव भेरी बजायें। * विधिपूर्वक जन्माभिषेक करें। * मंत्रपूर्वक प्रत्येक तीर्थंकर के कुल, माता-पिता का नामोचारण करें। मंत्र- ॐ ह्रीं इक्ष्वाकुकुले नाभिभूपतेर्मरुदेव्यामुत्पन्नस्यादिदे पुरुषस्य ऋषभदेवस्वामिनो अत्र
बिम्बे वृषभांकितत्वात्तद् गुणस्थापनं तेजोमयं करोमि। * मंत्र पढ़कर प्रतिमा का स्पर्श करें। मंत्र- ॐ ऋषभादि दिव्यदेहाय सद्योजाताय महाप्रज्ञाय अनंतचतुष्टयाय परमसुखप्रतिष्ठिताय
निर्मलाय स्वयंभुवे अजरामर पदप्राप्ताय चतुर्मुख परमेष्ठिनेऽर्हते त्रैलोक्यनाथाय
त्रैलोक्यपूज्याय अष्टदिव्यनागपूजिताय देवाधिदेवाय परमार्थ सन्निहितोस्मि स्वाहा। (४) जन्मातिशय संस्कारारोपण
नीचे लिखे मंत्रो को पढ़कर प्रतिमा के ऊपर पुष्प क्षेपण करें व एक-एक दीपक
स्थापित करें। मंत्र- १. ॐ अस्मिन् बिम्बे नि:स्वेदत्व गुणो विलसतु स्वाहा।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मंत्र अधिकार
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र
२. ॐ अस्मिन् बिम्बे मलरहितत्व गुणो विलसतु स्वाहा ।
३. ॐ अस्मिन् बिम्बे क्षीरवर्णरुधिरत्व गुणो विलसतु स्वाहा । ४. ॐ अस्मिन् बिम्बे समचतुरस्रसंस्थान गुणो विलसतु स्वाहा ।
५. ॐ
अस्मिन् बिम्बे वज्रवृषभनाराच संहनन गुणो विलसतु स्वाहा । अस्मिन् बिम्बे अद्भुतरूप गुणो विलसतु स्वाहा ।
६. ॐ
७. ॐ
अस्मिन् बिम्बे सुगंधित शरीर गुणो विलसतु स्वाहा ।
८. ॐ अस्मिन् बिम्बे अष्टोत्तरसहस्र लक्षण व्यंजनत्व गुणो विलसतु स्वाहा।
९. ॐ अस्मिन् बिम्बे अतुलबलवीर्यत्व गुणो विलसतु स्वाहा ।
१०. ॐ अस्मिन् बिम्बे हितमितप्रिय वचनत्व गुणो विलसतु स्वाहा । (५) नीचे लिखा मंत्र पढ़कर प्रतिमाजी का स्पर्श करें व वर्द्धमान यंत्र सामने स्थापित
करें ।
ॐ णमो भयवदो वड्ढमाणस्स रिसहस्स जस्स चक्कं जलंतं गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा थंभणे वा मोहणे वा सव्वजीवसत्ताणं अपराजिदो भवदुमे रख रक्ख स्वाहा ।
(६) तीर्थंकर का नामकरण मंत्र पढ़कर पुष्प क्षेपण करें
मंत्र - ॐ अयं महानुभावः परमेश्वरोयजमानामि मतेननाम्ना वृषभेश्वरो भवतु (इन्द्रेण वक्तव्यम्) वृषभेश्वरो भवतु ।
सिद्ध, चारित्र, तीर्थंकर एवं शांतिभक्ति पढ़ें ।
विधिपूर्वक पाण्डुक शिला पर जन्माभिषेक करें, तत्पश्चात् आरती करें।
जन्मकल्याणक की पूजा करें तथा जिन तीर्थंकर की प्रतिष्ठा कर रहे हैं उन-उन तीर्थंकर के जन्म कल्याणक के अर्घ चढ़ाएं।
जैसे - ॐ ह्रीं चैत्रकृष्ण नवम्यां जन्म कल्याणक प्राप्त श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(७) प्रतिमाजी के सामने मंत्र पढ़कर भोगोपभोग वस्तु की स्थापना करें।
मंत्र - ॐ अस्मै भगवते भोगोपभोग पदार्थानि स्थापयामि तानि गृहाण - गृहाण स्वीं इवीं क्ष्वीं क्ष्वीं हंसः स्वाहा ।
(८) मंत्र पढ़कर बालक्रीड़ा बालकों पर पुष्प क्षेपण करें
ओं त्रायस्त्रिंशदेवभावस्थापनार्थं कुमारेषु पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । (६) नीचे लिखे मंत्र पढकर वस्तुओं पर पुष्पा से बढकर है।
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मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र
___ मुनि प्रार्थना सागर भोगापभोगार्थसंपादकधनेशरथापनाय तत् संपादनीययजमाने पुष्पाक्षतं क्षिपेत्। (१०) अंगुष्ठ में अमृत स्थापन मंत्र
नीचे लिखा मंत्र पढ़कर तीर्थंकर कुमार के अंगुष्ठ में अमृत स्थापित करेंमंत्र- ॐ ह्रीं श्री तीर्थंकरकुमारांगुष्ठेऽमृतं स्थापयामि।
॥ ३. तपकल्याणक विधि/मंत्र (१) राज्याभिषेक या युवराजत्व स्थापना मंत्र-(१६) मंजूषा आच्छादित मंत्र- ॐ ह्रीं श्री तीर्थराजस्य राज्याभिषेकं करोमि स्वाहा। * मंत्र पढ़कर प्रतिमा के आगे पुष्प क्षेपण करें।) मंत्र- ॐ ह्रीं अस्मिन् बिम्बे राज्याभिषेकं आरोपयामि। नोट : पांच तीर्थंकरों-( वासुपूज्य, मल्लि, नेमि, पार्श्व, महावीर ) के राज्याभिषेक नहीं
हुए, मात्र दीक्षाभिषेक हुए हैं। (२) राज्योचित सामग्री स्थापन
मंत्र पढ़कर राज्योचित सामग्री पर पुष्प क्षेपण करेंमंत्र- ॐ पुण्य विपाक संपादित स्वराज्य संपदुपभोग स्थापनाय पुष्पाणि प्रतिमोपरि विकरेत् । (३) स्वराज्य त्याग स्थापन* वैराग्य होते ही लौकान्तिक देवों द्वारा प्रशंसा-स्तुति। दीक्षा की तैयारी। * मंत्र पढ़कर प्रतिमाजी पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- स्वराजत्याग स्थापनाय प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । (४) दीक्षाभिषेक १. दीक्षाभिषेक के लिए प्रतिमाजी को स्नान पीठ पर विराजमान करें। मंत्र- १. ॐ ह्रीं अहँ धर्मतीर्थ..जिन भगवन्निह पाण्डुक शिलापीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा।
२. ॐ ह्रीं अर्ह तीर्थंकर प्रतिकृतिः स्नपनपीठे तिष्ठ तिष्ठ । २. श्लोक पढ़कर प्रतिमाजी पर पुष्प क्षेपण करें।
दीक्षोद्यमं मोक्षसुखैकसक्तं यं स्नपयां चक्रुरशेषशक्राः ।
समेत्य सद्यः परया विभूत्या तं स्नपयाम्यष्टशतैश्चकुम्भैः । ३. शुद्ध जल से अभिषेक करें। मंत्र- ॐ जय जय जय तीर्थंकरप्रतिकृतिं स्नपयामि। ४. गंध लेपन करें।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र- ॐ सहज सौगन्ध्य बंधुरांगस्य गंधलेपनं करोमि। ५. पुन: जल से अभिषेक करें । मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीमन्तं तीर्थंकर प्रतिकृति शुद्धोदकेन स्नपयामि। ६. अभिषेक के बाद प्रक्षालन करके नये वस्त्र पहिनावें। मंत्र- ॐ ह्रीं जिनांगं विविध वस्त्राभरणैः विभूषयामि। ७. नीचे लिखे वर्द्धमान मंत्र को सात बार पढ़कर प्रतिमाजी को स्पर्श करते हुए पुष्प
क्षेपण करें। वर्द्धमान मंत्र-ॐ णमो भयवदो वड्डमाणस्स रिसहस्स जस्स चक्कं जलं तं गच्छइ आयासं
पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा रणांगणे वा थंभणे वा मोहणे वा
सव्वजीवसत्ताणं अपराजिदे भवदु मे रक्ख रक्ख स्वाहा। ८. नीचे लिखा मंत्र पढ़कर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- तपकल्याणक स्थापनार्थं पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । ९. नीचे लिखा मंत्र पढ़कर प्रतिमा के सामने पुष्प क्षेपण करेंमंत्र- निष्क्रमणादौ तीर्थंकर कृत महादान स्थापनाय प्रतिमाग्रे पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । १०. पालकी को शुद्ध कर पुष्प क्षेपण करें व स्वास्तिक बनायें। मंत्र- दिव्य शिविका स्थापनायात्र शिविकायां पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । ११. सभी प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- अत्रैवान्यासां प्रतिमानामुपरि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्। १२. विधिनायक प्रतिमा को पालकी में विराजमान करेंमंत्र- ॐ ह्रीं अहँ श्री धर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह शिविकायां तिष्ठ तिष्ठेति स्वाहा। १२. गणधरवलय मंत्र को १०८ बार पढ़ें। (कोई भी एक।) मंत्र- १. ॐ ह्रीं झ्वी श्री अहँ अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः।
२. ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः। १३ चौंसठ ऋद्धि मंत्र १०८ बार पढ़ें। मंत्र- ॐ ह्रीं चतुः षष्ठी ऋद्धिसमृद्धगणधरेभ्यो नमः । १४ पालकी में से प्रतिमा को उठा कर शिला पर विराजमान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं धर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह सुरेन्द्र विरचित चन्द्रकान्त शिलोपरि तिष्ठ-तिष्ठ
स्वाहा।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
१५. दीक्षा के पहले सिद्ध, श्रुत, अरहंत, शांति आचार्य, चारित्र तथा योगि ये सात
__ भक्तियां पढ़ें। १६. निम्न मंत्र पढ़कर प्रतिमा के वस्त्र उतार कर थाली में रखें। मंत्र- ॐ णमो भगवते अर्हते सद्यः सामायिक प्रपन्नाय वस्त्राभूषणमपनयामि। १७. आभूषणादिकों का त्याग करावें। मंत्र- ॐ नमो भगवते अर्हते सद्यः सामायिक प्रपन्नाय कंकणमयनयामि स्वाहा। १८. अरहंत, सिद्ध भक्ति का पाठ कराते हुए विधिनायक प्रतिमा के सिर पर घिसी हुई
गाढ़ी केशर या पिसी हुई लवंग लगाकर फूल अलगकर लवंग लगा देवें। १९. निम्न मंत्र बोलकर प्रतिमाजी के केशलोंच करेंमंत्र- ॐ नमः सिद्धेभ्यः। २०. सिर पर लगी केशर धोएंमंत्र- ॐ ह्रीं श्री अनादिमूल मंत्रेभ्यो नमः शिर प्रक्षालनं करोमि। २१. निम्न मंत्र बोलें- मंत्र- अहँ सर्व सावद्याबिंरतोऽमीति। २२. पिच्छिका प्रदान मंत्र मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं षट्जीवनिकाय रक्षणाय क्षमा-मार्दवादि गुणोपेतमिदं पिच्छिकोपकरणं
- गृहाण गृहाण। २३. कमण्डलु प्रदान मंत्र मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं रत्नत्रय पवित्राय कृतोत्तमंगाय बाह्याभ्यन्तरमल विशुद्धाय नमः इदं
शौचोपकरणं गृहाण गृहाण। २४. नामकरण मंत्र मंत्र- ॐ ह्रीं दिगम्बराम्नाये तव वृषभनाथ नाम भवसि। २५. पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- ॐ सामायिक चारित्रतिशय स्थापनाय पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । २६ मन:पर्ययज्ञानोत्पत्ति का प्रतीक चौमुखा (चार बत्ती वाला) दीपक जलाकर प्रतिमाजी
के सामने रखें। मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ णमो अ सि आ उ सा ज्योतिर्मयाय मनः पर्ययज्ञान प्राप्ताय नमः। २७ केश विसर्जन मंत्र मंत्र- ॐ भगवत्केश कलापस्येन्द्रकृतार्चन रत्नपात्र स्थापन क्षीराब्धि निक्षेपण स्थापनाय
प्रतिमाग्रे पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
तपकल्याणक की पूजा करें तथा जिन तीर्थंकर की प्रतिष्ठा कर रहे हैं उन-उन तीर्थंकर के तप कल्याणक के अर्घ चढ़ाएं।
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मंत्र अधिकार
जैसे - ॐ ह्रीं चैत्रकृष्ण नवम्यां तप कल्याणक प्राप्त श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
४. केवलज्ञान विधि / मंत्र
नित्य नियम की पूजा के बाद केवल ज्ञान कल्याणक के पहले विधिनायक प्रतिमाजी की आहार आदि की क्रिया करायें, फिर अंकन्यास, संस्कारमालारोपण आदि व प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया करें। क्योंकि दिगम्बर मान्यता के अनुसार केवली भगवान कवलाहारी नहीं होते अर्थात केवल ज्ञान के बाद केवली भगवान आहार आदि ग्रहण नहीं करते। अतः केवल ज्ञान के पहले ही आहार की क्रिया करें फिर दोपहर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद केवल ज्ञान की पूजन आदि करें ।
अंकन्यास विधि/मंत्र
1
नोट : अंकन्याय का चित्र देखें पेज नं. 222-223 पर इसी अध्याय के आगे ।
कपूर, चंदन, केशर आदि सुगन्धित द्रव्यों से स्वर्ण शलाका द्वारा अंकन्यास करें
ललाट में
ॐ अं नमः ललटे,
ॐ आं नमः मुखवृत्ते
ॐ इं नमः दक्षनेत्रे,
ॐ ईं नमः वामनेत्रे,
ॐ उं नमः दक्षकर्णे,
ॐ ऊं नमः वामकर्णे,
ॐ ऋ नमः दक्षनसि,
ॐ ॠ नमः वामनसि
ॐ लूं नमः दक्षगण्डे,
ॐ ॡ नमः वामगण्डे,
ॐ एं नमः अधः ओष्ठे,
ॐ ऐं नमः ऊर्ध्वओष्ठे,
ॐ ओं नमः अधोदन्ते,
ॐ औं नमः ऊर्ध्व दन्ते,
ॐ अं नमः मूर्ध्नि,
अ
आ
इ
ई
उ
ऊ
ऋ
ॠ
लृ
ऌ
ए
ऐ
ओ
औ
अं
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मुखवृत में
दाहिने नेत्र
वाम नेत्र
दक्षिण कान
वाम कान
दक्षिण नाक
वाम नाक
दक्षिण गाल
वाम गाल
नीचे होंठ
ऊपर होंठ
नीचे दांत
ऊपर दांत
मस्तक पर
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ल 6F9 P
मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर ॐ अ: नम: जिह्वाग्रे,
अ: जिह्वा के अग्रभाग पर ॐ कं नमः दक्षिणबाहुदण्डे, क दाहिने भुजा ॐ खं नमः दक्षबाहुमध्य संधौ, ख दाहिने भुजा मध्य संधी ॐ गं नमः दक्षबाहुनाड़ी संधौ, __दाहिने हाथ की नाड़ी संधि ॐ घं नमः दक्षकरांगुलि संधौ, घ दाहिने हाथ की अंगुलि संधि ॐ हुं नमः दक्षकराग्रे,
दाहिने कराग्रे ॐ चं नमः वामबाहुदण्डे,
वाम भुजा ॐ छं नमः वामबाहु मध्य संधौ, छ वाम भुजा मध्य संधि ॐ जं नमः वामहस्त नाड़ी संधौ, वाम हाथ नाड़ी संधि ॐ झं नमः हस्तांगुलि संधौ, झ वाम हाथ अंगुलि संधि ॐ जं नमः वाम हस्ताग्रे
ञ वाम कराग्रे ॐ टं नमः दक्षपाद मूले (जंघा), दक्षिण पाद मूल (जंघा) ॐ ठं नमः दक्षपाद मूले (जंघा), ठ दक्षिण पाद मूल (जंघा) ॐ डं नमः दक्षपाद गुल्फे, ड दक्षिण पाद गुल्फ ॐ ढं नमः दक्ष पाद गुल्फे,
दक्षिण पाद गुल्फ ॐ णं नमः दक्ष पादाग्रे,
दक्षिण पादाग्रे ॐ तं नमः वाम पादाग्रे,
त वाम पादाग्रे ॐ थं नमः वाम पाद मूले (जंघा), थ वाम पाद मूल (जंघा) ॐ दं नमः वाम पाद गुल्फे द वाम पाद गुल्फ ॐ धं नमः वामपाद गुल्फे ॐ पं फं नमः दक्ष पार्श्व दिकुक्ष्यंतं, पफ
दक्षिण कुक्षि के पार्श्व में ॐ वं भं नमः वाम पार्श्व दिकुक्ष्यंतं, ब भ वाम कुक्षि के पार्श्व में ॐ मं नमः उदरे,
म नाभि पर ॐ यं नमः हृदि,
य हृदय पर ॐ रं नमः दक्ष स्कंधे,
र दाहिना कंधा ॐ लं नमः ग्रीवायां,
गला पर ॐ वं नमः वाम स्कंधे,
बायां कंधा ॐ शं नमः हृदयादि दक्षिण करे, श हृदय एवं दाहिने हाथ के मध्य ॐ षं नमः हृदयादि वाम करे, ___ष हृदय एवं बायें हाथ के बीच
oo" ७ F
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
ॐ सं नमः हृदयादि दक्षिण पादे, स हृदय एवं दाहिने पांव के बीच ॐ० हं नमः हृदयादि वाम पादे, ह हृदय एवं बायें पांव के बीच ॐ शं नमः हृदयादि जठरे
क्ष हृदय एवं नाभि के बीच न्यसेत् स्थापयेच्च। ९ समस्त प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें- अर्थात् भगवान ध्यान में मग्न हो गये। मंत्र- १. ॐ णमो सिद्धाणं भगवान स्वयंभू रत्नसुनिविष्ठो भवत्विति स्वाहा।
२. ॐ षट्प्रकार अन्तरंग तपोनिष्ठाय जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ्य- ॐ ह्रीं षट्प्रकार बाह्यतपो धारकाय जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ३०. प्रतिमा के सामने बोधि समाधि यंत्र को स्थापित करें। ३१. प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि क्षेपित करें। मंत्र- ॐ संस्कार मालारोपणप्रतिज्ञायै प्रतिमोपरि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ३२. भगवान के गुणारोपण के अर्घ चढ़ाएं
ॐ ह्रीं अप्रमृत्त गुणस्थान रूढ़ अधः करण प्रवृत्ति मिथ्यात्वादि दशकर्म सत्ता
रहिताय श्री जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। २. ॐ ह्रीं अपूर्व करण गुणस्थानारूढ़ श्री जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ३. ॐ ह्रीं अनिवृत्तिकरण गुणस्थानारूढ़ षट्त्रिंशत्प्रकृति विदारकाय श्री जिनाय अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा। ४. ॐ ह्रीं सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानारूढ़ लोभ प्रकृति विदारणाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ५. ॐ ह्रीं क्षीणकषाय गुणस्थानारूढेकत्व वितर्कावीचार शुक्लध्यान धारकाय श्री
जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ६. ॐ ह्रीं यथाख्यात चारित्र धारकाय श्री जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
संस्कारमालारोपण क्रिया/मंत्र ३३. प्रत्येक मंत्र के साथ प्रतिमा के सिर पर लौंग चढ़ाएं। १. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सद्दर्शन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सज्ज्ञान संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ३. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सच्चारित्र संस्कार: स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सत्तपः संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सद्वीर्यचतुष्टय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
as in x ;
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति अष्टप्रवचन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति शुद्धयष्टकावष्टंभ संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति परीषहजय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
मंत्र - ॐ
६.
७.
८.
९.
१०.
११.
१२.
१३.
१४.
१५.
१६.
मंत्र - ॐ
ह्रीं इहार्हति चतुरसीति लक्षोत्तरगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
१७.
मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति अतिशयविशिष्ट धर्मध्यान संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । १८. मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति अप्रमत्तसंयम संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
१९.
मंत्र - ॐ
ह्रीं इहार्हति अतिदृढ़ श्रुतोपयोग संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
२०.
मंत्र - ॐ
ह्रीं इहार्हति अप्रकंपक्षपक श्रेण्यारोहण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
२१.
२२.
२३.
२४.
२५.
२६.
२७.
२८.
२९.
३०.
३१.
३२.
३३.
मंत्र- ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र अधिकार
मंत्र - ॐ
मंत्र- ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र- ॐ
मंत्र - ॐ
मुनि प्रार्थना सागर
ह्रीं इहार्हति त्रियोगेन संयमाच्युति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ह्रीं इहार्हति कृतकारितानुमोदनैरतिचारनिवृत्तिः संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति दशसंयमो परमः संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति पंचेन्द्रियजयः संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति संज्ञानचतुष्टयनिग्रह संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति दशविधिधर्मधारण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति अष्टादशसहस्रशीलपरिशीलन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति अनंतगुणशुद्धि संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ह्रीं इहार्हति अधः प्रवृत्तिकरणप्राप्ति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति पृथकत्ववितर्कविचार स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति अपूर्वकरणप्राप्ति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
ह्रीं इहार्हति अनिवृत्तिकरणप्राप्ति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
मंत्र - ॐ
ह्रीं इहार्हति बादरकषायकिट्टिकाकरण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । ह्रीं इहार्हति सूक्ष्मकषायकिट्टिकाकरण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
मंत्र - ॐ
ह्रीं इहार्हति बादरकषायकिट्टिकानिर्लेपन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । ह्रीं इहार्हति सूक्ष्मकषायकिट्टिकानिर्लेपन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति सूक्ष्मसांपरायचारित्र संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति प्रक्षीणमोह संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति यथाख्यातचारित्र प्रप्ति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । मंत्र - ॐ ह्रीं इहार्हति एकत्ववितर्कवीचारशुक्लध्यान संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
३४. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति घातिकर्म निर्मूलन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ३५. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति केवलज्ञानदर्शनोद्भव संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ३६. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति धर्मतीर्थप्रवृत्ति संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। ___ मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिशुक्लध्यानपरिणत्व संस्कार: स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति शैलेषीकरण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। ३९. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति परमसंवर संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। __ मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति योगकिट्टिकाकरण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति योगकिट्टिकानिर्लेपन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ४२. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति परमनिर्जरा संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति सकलकर्मक्षयाप्ति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ४५. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति अनादिभवपरावर्तनविनाश संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ४६. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति अनंतसिद्धपर्यायोपलब्धि संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ४७. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति अदेहसहजज्ञानोपयोगैश्वर्य संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ४८. मंत्र- ॐ ह्रीं इहार्हति अदेहसहजदर्शनोपयोगैश्वर्य संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। (३४)मंत्र के साथ सभी प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- एवमष्टचत्वारिंशत्संस्काराधारित्वं प्रतिपाद्य एतदर्थारोपणान्तः करणेन आचार्येण
सर्वप्रतिमासु पुष्पाञ्जलि:क्षेप्यः । तिलकदान विधि/मंत्र
ॐ णमो अरहंताणं अहँ स्वाहा। * इंद्राणी द्वारा सिल, लोड़ी, दीपक, तिलक सामग्री को मंत्रों द्वारा स्थापित करावें। शिला स्थापन मंत्र
ॐ ह्रीं हूँ क्ष्मं ठः ठः शिला स्थापनं करोमि। शिला शुद्धि दीपक स्थापन मंत्र
शिलाशुद्धिं दीपकस्थापनं च करोमि। तिलक द्रव्य स्थापन मंत्र * नाभि में तिलक लगावेंमंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा अर्हतां वृषभनाथस्य नाभौ तिलकं न्यसामि।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
* निम्न मंत्र को १०८ बार पढ़कर प्रतिमा की नाभि में केशर से 'अर्ह' लिखें मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा अप्रतिहतशक्तिर्भवतु ह्रीं स्वाहा। मंत्रन्यास विधि/मंत्र * प्रतिमाजी के अष्ट प्रदेशों में श्रीखण्ड और कपूर से बीजाक्षरों का न्यास करें। मंत्र- ॐ ह्रां ललाटे, ॐ ह्रीं वामकर्णे, ॐ हूं दक्षिणकर्णे,
ॐ ह्रौं शिरः पश्चिमे, ॐ ह्र: मस्तकोपरि, ॐ मां नेत्रयोः, ॐ क्ष्मीं मुखे, ॐ मूं कण्ठे, ॐ क्ष्मौं हृदये, ॐ क्ष्मः वाह्वोः, ॐ क्रौं उदरे, ॐ ह्रीं कट्यां,
ॐ ब्लूं जंघयोः, ॐ झू पादयोः, ॐ क्ष: हस्तयोः अधिवासना विधि/मंत्र * अधिवासना मंत्र पढ़कर प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें१. ॐ सत्यजाताय नमः २. ॐ अर्हज्जाताय नमः ३. ॐ परमजाताय नमः ४. ॐ परमार्हताय नमः ५. ॐ परमरूपाय नमः ६. ॐ परमतेजसे नमः ७. ॐ परमगुणाय नमः ८. ॐ परमनाथाय नमः ९. ॐ परमयोगिने नमः १०.ॐ परमभाग्याय नमः ११. ॐ परमर्द्धये नमः १२. ॐ परमप्रसादाय नमः १३.ॐ परमकांक्षिताय नमः १४.ॐ परमविजयाय नमः १५. ॐ परमविज्ञानाय नमः १६.ॐ परमदर्शनाय नमः १७. ॐ परमवीर्याय नमः १८. ॐ परमसुखाय नमः १९. ॐ परमसर्वज्ञाय नमः २०. ॐ परमार्हते नमः २१. ॐ परमसर्वज्ञाय नमः २२. ॐ सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे त्रिलोकविजय त्रिलोकविजय धर्ममूर्ते धर्ममूर्ते स्वाहा। सेवाफलं
षट् परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु समाधिमरणं च भवतु। * अर्घ चढ़ाएं- अर्घ- ॐ ह्रीं यथाख्यात चारित्रधारकाय जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। * निम्न मंत्र की १०८ बार जपेंमंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: श्री सिद्धचक्राधिपतये अष्टगुण समृद्धाय फट् स्वाहा। * निम्न मंत्र की १०८ बार जाप करें- मंत्र- “ॐ नमः सिद्धेभ्यः।" नेत्रोन्मीलन क्रिया/मंत्र * नेत्रोन्मीलन मंत्रपूर्वक सोने की सलाई से करें, अर्थात् प्रतिमा के नेत्रों में कर्णिका
(पुतली) आकार निकालें। (दीपक की लौ से अंजन बनाएं)
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र- ॐ णमो अरहंताणं णाणदंसण चक्खुमयाणं अमियरसायणं विमल तेयाणं संति तुट्ठि
पुट्ठि वरद सम्मादिट्ठीणं वं झं अमिय वरसीणं स्वाहा। सूर्यकला मंत्र * सूर्यकला मंत्र १०८ बार जपें। मंत्र- ॐ ह्रीं स्फ्रां स्फ्री ॐ वं झौं सं श्रीं एहि एहि अस्मिन् बिम्बे सूर्य कलां स्थापय
स्थापय श्रुः नमः। चन्द्रकला मंत्र * चन्द्रकला मंत्र १०८ बार जपें। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं अहँ पुनीहि पुनीहि ॐ श्रीं क्लीं अस्मिन् बिम्बे चन्द्रकलां स्थापय
स्थापय ह्रीं झौं नमः। प्राणप्रतिष्ठा विधि/मंत्र * प्राणप्रतिष्ठा मंत्र १०८ बार जपें। मंत्र- १. ॐ आं कौं ह्रीं य र ल व श ष स ह अ सि आ उ सा क्षों सः हं सः आयुष्य
प्राणा इह प्राणा आयुष्य जीवः इह स्थितिः सर्वेन्द्रियाणां काय वाङ्मनश्चक्षुश्रोत्रं मुख घ्राण जिह्वान् स्थापय स्थापय शब्द स्पर्श वर्ण रस गंधान् अस्य आत्मघटं वायु च पूरय-पूरय संवौषट् तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः चिरकालं नन्दतु। २. ॐ ऐं आं क्रों ह्रीं श्रीं क्लीं अ सि आ उ सा अयं जीवः असौ चेतनः अस्मिन्
स्थिताः सर्वेन्द्रियाधि इह स्थापय देहे पूरय पूरय संवौषट् चिरं जीवतु चिरं जीवतु। सूरि मंत्र प्रथम १. प्रतिमाजी के सीधे कान में २१ बार बोलेंमंत्र- ॐ ह्रीं झू हूं सूं सः क्रौं ह्रीं ऐं अहँ नमः सर्व अर्हत गुणभागी भवतु भवतु स्वाहा। २. दर्पण सामने रखकर प्रतिमाजी के उल्टे तरफ के (बायें) कान में २१ बार बोलेंमंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रां ह्रौं श्रीं श्रौं जय जय द्रां कलि द्राक्षसां ,जय जिनेभ्योः ॐ
भवतु स्वाहा। सूरि मंत्र द्वितीय मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं श्रीं भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ माः ॐ हाः ॐ जनः तत् सवितु वरेण्यं
भर्गो देवाय धी मही धियोनिं अ सि आ उ सा णमो अरहंताणं अनाहत पराक्रमस्ते भवतु ते भवतु।
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मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर सूरि मंत्र तृतीय मंत्र- ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो
लोए सव्वसाहूणं। चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो णम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वजामि अरहंते सरणं पव्वज्जामि सिद्धे सरणं पव्वज्जामि साहू सरणं पव्वजामि केवलि पण्णत्तं धम्मंसरणं
पव्वज्जामि क्रौं ह्रीं स्वाहा। सूरि मंत्र चतुर्थ मंत्र- ॐ परमब्रह्मणे नमोनमः स्वस्ति स्वस्ति जीव जीव नंद-नंद वर्धस्व-वर्धस्व
विजयस्व-विजयस्व अनुसाधि-अनुसाधि पुनीहि-पुनीहि पुण्याहं-पुण्याहं मांगल्यंमांगल्यं वर्धयेत्-वर्धयेत् एवं जिन बिम्बे आत्मघटं वायुं पूरय पूरय आगच्छ आगच्छ संवौषट् तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः चिरकालं नन्दतु वज्रमयां प्रतिमां कुरु कुरु गौं गौं स्वाहा
स्वहा। सूरि मंत्र पंचम मंत्र- ॐ हां ही हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा अहँ ॐ ह्रीं स्म्ल्यूँ , मल्यूँ, जुम्ल्वयूँ,
त्यम्ल्यूँ, लम्ल्यूँ, व्ल्यूँ, पल्यूँ, भल्यूँ, म्ल्यूँ, कम्ल्यूँ, ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ हूँ णमो आइरियाणं ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं अनाहत पराक्रमस्ते भवतु ते भवतु ते भवतु ह्रीं नमः। अर्घ चढ़ाएं- अर्घ- ॐ ह्रीं मोहनीयज्ञान दर्शनावरणान्तराय निर्णासकाय जिनाय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। * केवलज्ञान उत्पत्ति के पांच दीपक जलाएं। केवलज्ञान की वाद्ययंत्रों के साथ घोषणा
करें* मंत्र के साथ पुष्पांजलि क्षेपित करेंमंत्र- ॐ णमो अरहंताणं रत्नत्रय पवित्रकृतोन्तमाङ्गाज्योतिर्मयाय मतिश्रुतावधिमनःपर्यय
केवलज्ञानाय अ सि आ उ सा नमः (स्वाहा) पुष्पांजलिं क्षिपेत् । * गुणारोपण मंत्र पढ़कर प्रतिमा के ऊपर पुष्प क्षेपण करेंमंत्र- १.ॐ अनंतचतुष्टय स्थापनाय प्रतिमोपरि पुष्पं क्षिपेत्। २. ॐ अनंतज्ञान स्थापनार्थं पुष्पं क्षिपेत् । ३. ॐ अनंतदर्शन स्थापनार्थं पुष्पं क्षिपेत् । ४. ॐ अनंतवीर्य स्थापनार्थं पुष्पं क्षिपेत् ।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
५. ॐ अनंतसुख स्थापनार्थं पुष्पं क्षिपेत् । * अर्घ चढ़ाएं- अर्घ- ॐ ह्रीं अष्टमंगलद्रव्य संपन्नाय जिनाय अर्घ निर्वपामीति
स्वाहा। दश अतिशयों की स्थापना * दश अतिशयों की स्थापना मंत्र के साथ पुष्प क्षेपण द्वारा करें। मंत्र- १. ॐ घातिक्षयज दशातिशय स्थापनार्थं पीठिकायां दश पुष्पाणि क्षिपेत् । (पीठिका
पर दस पुष्प क्षेपित करें) २. ॐ समवसरण स्थापनार्थं प्रतिमायां समंतात् पुष्पाक्षतं क्षिपामि स्वाहा ।(प्रतिमा के चारों ओर पुष्पाक्षत क्षेपित करें ) ३. ॐ चतुर्दशदेवोपुनीतातिशय स्थापनार्थं पीठिकायां चतुर्दश पुष्पाणि क्षिपामि स्वाहा। (पीठिका पर चौदह पुष्प क्षेपित करें) ४. ॐ अष्ट महा प्रातिहार्य स्थापनार्थं पीठिकायां अष्ट पुष्पाणि क्षिपेत् (पीठिका पर आठ पुष्प क्षेपित करें) ज्ञानकल्याणक की पूजा करें तथा जिन-जिन तीर्थंकर-प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा
की है उन सभी के ज्ञान कल्याणक के अर्घ चढ़ाएं। जैसे- अर्घ- ॐ ह्रीं फाल्गुन कृष्ण एकादश्यां ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय वृषभदेवाय अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा। * पश्चात् निर्वाण क्षेत्र एवं महार्घ चढ़ाकर शान्तिपाठ पढ़ें व विसर्जन करके कायोत्सर्ग करें।
। ५. निर्वाण कल्याणक विधि/मंत्र ) * निर्वाणकल्याणक अर्थात् सिद्ध प्रतिष्ठा के लिए निम्न मंत्र का १०८ बार जाप करेंमंत्र- ॐ ह्रीं अहँ श्रीं ॐ झं पं झ्वीं क्ष्वी हः पः हः अ सि आ उ सा मम शान्तिं पुष्टिं
कुरु कुरु स्वाहा।
अर्घ चढ़ाएंअर्घ- १. ॐ ह्रीं शुक्लध्यान निरताय जिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। २. ॐ ह्रीं वृषभनाथ जिनेन्द्राय तृतीय शुक्लध्यानारूढाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ३. ॐ ह्रीं वृषभनाथ जिनेन्द्राय चतुर्थ शुक्लध्यानारूढाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। * पुष्प क्षेपण करें- मंत्र- अस्मिन् बिम्बे निर्वाणकल्याणक आरोपयामि।
निम्न मंत्र का १०८ बार जाप करें
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मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर मंत्र- ॐ ह्रीं अहँ अनाहतविद्यायै णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो
उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रेभ्यः सम्यक्तपसे नमः
स्वाहा। अथवा ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा अनाहत सिद्धचक्राधिपतये नमः (स्वाहा)। * गुणारोपण क्रिया में मंत्र पढ़कर प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें। मंत्र- १. ॐ सिद्धाष्टगुणानि न्यसामि स्वाहा। २. ॐ ह्रीं परमावगाढ़गुण विभूषिताय नमः। ३. ॐ ह्रीं अनंतज्ञानगुण विभूषिताय नमः । ४. ॐ ह्रीं अनंतदर्शनगुण विभूषिताय नमः। ५. ॐ ह्रीं अनंतवीर्यगुण विभूषिताय नमः । ६. ॐ ह्रीं सूक्ष्मगुण विभूषिताय नमः। ७. ॐ ह्रीं अवगाहनगुण विभूषिताय नमः। ८. ॐ ह्रीं अगुरुलघुगुण विभूषिताय नमः। ९. ॐ ह्रीं अव्याबाधगुण विभूषिताय नमः। * सिद्ध पूजा करें तथा जिन-जिन तीर्थंकर-प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा की है उन सभी
के निर्वाण कल्याणक के अर्घ चढ़ाएं। जैसे- अर्घ- ॐ ह्रीं माघकृष्ण चतुर्दश्यां निर्वाणकल्याणक प्राप्ताय वृषभदेवाय अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा। * अर्हन्त प्रभु के सामने पुष्प क्षेपण कर पंचकल्याणक की स्थापना करें।
ॐ गर्भकल्याण स्थापनं करोमि। ॐ जन्मकल्याण स्थापनं करोमि। ॐ तपकल्याण स्थापनं करोमि। ॐ ज्ञानकल्याण स्थापनं करोमि। ॐ मोक्षकल्याण स्थापनं करोमि। प्रतिष्ठाचार्य सिद्ध-श्रुत-चारित्र-योग-शान्तिभक्ति पढ़कर केवलज्ञानकल्याण क्रिया पूर्ण करें। पश्चात् निर्वाण क्षेत्र एवं महार्घ चढ़ाकर शान्तिपाठ पढ़ें व विसर्जन करके, शांति हवन, शांति भक्ति पढ़कर कार्य पूर्ण करें। मण्डल विसर्जन- मंत्र- ॐ ह्रीं अस्मिन् बिम्बप्रतिष्ठा महोत्सवे (कर्माणि) आहूयमान
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मंत्र अधिकार
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देवगणाः स्वस्थानं गच्छन्तु अपराध क्षमापणं भवतु जः जः जः । नोट- बाहुबली बिम्ब प्रतिष्ठा में तीन कल्याणक की क्रियाएं करें । 130. आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु के सूरि मंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
ॐ ह्रीं क्रौं सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रावतर गात्राय चतुरशीति गुण गणधर चरणाय अष्ट चत्वारिंश गणधरवलयाय षट्त्रिंशत गुणसंयुक्ताय णमो आइरियाणं हें हं स्थिरं तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः चिरकालं नंदतु यंत्र गुणं तंत्र गुणं वेदयुतं अनंतकालं वर्द्धयन्तु धर्माचार्या हुं कुरु कुरु स्वाहा स्वाहा ।
नोट- जहां आइरियाणं है उस स्थान पर जिसकी प्रतिष्ठा करना हो वहां उसी आचार्यउपाध्याय - साधु का मंत्र कान में बोलें।
131. शासन देवता सूरि मंत्र
जैसे
क्षेत्रपाल सूरि मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रां वं सर्वज्ञाय प्रचण्डाय पराक्रमाय बटुक-भैरव-जय-विजयादि क्षेत्रपाला अत्र अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ सर्व जीवानां रक्ष रक्ष फट् स्वाहा ।
यक्षि देवी सूरि मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ऐं श्री पद्मावती देवी अत्र अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ सर्व जीवानां रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा ।
यक्ष देव सूरि मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ऐं श्री धरणेन्द्र देवता अत्र अवतर अवतर अत्रतिष्ठ तिष्ठ सर्व जीवानां रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा ।
नोट : पद्मावती व धरणेन्द्र के स्थान पर अन्य जिनकी स्थापना करनी हो उनका नाम लेवें।
इन शासनदेव सूरि मंत्रों को अर्धरात्रि में शासन देवों के कान में पढ़ें।
सूरिमंत्र को देकर एक आटे का बना हुआ दीपक में चार बत्ती जलाकर भगवान के सामने रखें तथा सबको यह कहे कि भगवान को केवलज्ञान प्रकट हो गया है। आचार्य चरण प्रतिष्ठा आचार्य पद प्रतिष्ठा के समान है।
132 चरण-चिह्न प्रतिष्ठा
पहले मंगलाष्टक आदि पढ़कर यागमण्डल विधान करें फिर आचार्य और चारित्र भक्ति पढ़ें। फिर आचार्य, उपाध्याय, साधु जिनके भी चरण स्थापित करना हो उनका मंत्र पढ़कर शुद्धि कर लें ।
ॐ ह्रीं चन्दनादि सुगंधित द्रव्य कलशेन आचार्य ( उपाध्याय - साधु ) चरण शुद्धि
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करोमि ।
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निम्नलिखित मंत्र को ७ बार पढ़ते हुए चरण स्पर्श करें।
मंत्र - १. ॐ अर्हद्भ्यो नमः । केवललब्धिभ्यो नमः । क्षीर स्वादुलब्धिभ्यो नमः । मधुर स्वादुलब्धिभ्यो नमः। बीज बुद्धिभ्यो नमः । सर्वावधिभ्यो नमः । परमावधिभ्यो नमः। संभिन्न श्रोतृभ्यो नमः । पादानुसारिभ्यो नमः । कोष्ठबुद्धिभ्यो नमः । परमावधिभ्यो नमः ॥
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मंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
२. ॐ ह्रीं वल्गु वल्गु ॐ वृषभादिवर्धमानांतेभ्यो वषट् वषट् स्वाहा।
चरण पादुका प्रतिष्ठा मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीमंतं चरण पादुका स्थापनं करोमि । फिर अर्हत के चरणों पर ॐ ह्रां, सिद्ध के चरणों में ॐ ह्रीं, आचार्य के चरणों में ॐ हूँ, उपाध्याय के चरणों में ॐ ह्रौं, साधु के चरणों में ॐ ह्रः लिखकर १०८ बार जप करें। तत्पश्चात् सिद्ध,
आचार्य, निर्वाण, भक्ति उन साधु जैसे करें ।
शास्त्र (जिनवाणी) प्रतिष्ठा मंत्र
श्रुतभक्ति पढ़कर सरस्वती पूजन भी करें ।
ॐ अर्हन्मुख कमल निवासिनि पापात्मक्षयं करि श्रुत ज्वाला सहस्र प्रज्वलिते सरस्वति अस्माकं पापं हन हन दह दह पच पच क्षां क्षीं क्षू क्षौं क्षः क्षीरवर धवले अमृत संभवे वं वं हूँ हूँ स्वाहा ।
(133. गुरू द्वारा दीक्षा ( शिष्यत्व संस्कार ) विधि
सर्वप्रथम शिष्य के लिये निम्नलिखित नियम दे :
(1) नित्य देव दर्शन करने का नियम (विशेष परिस्थितियों में छूट)
(2) अष्टमूल गुण का नियम अर्थात बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर, और पाकर इन पांच प्रकार के फलों का त्याग तथा मद्य (शराब) मांस एवं मधु (शहद) का त्याग।
(3) सप्त व्यसन त्याग का नियम (जुऑ, मॉस, शराब, शिकार, वेश्यागमन, चोरी, परस्त्री सेवन इन सात चीजों का त्याग )
(4) रात्रि भोजन त्याग का नियम । इससे एक वर्ष में छह माह के उपवास का पुण्य मिलता है। और नियम न लेने वाले के लिए अमृतचंद आचार्य ने पुरूषार्थ सिद्धि उपाय ग्रन्थ में लिखा है कि रात्रि भोजन करने वालों को मांस भक्षण (खाने) के समान व रात्रि में पानी पीने वालों को खून पीने के समान पाप लगता है। (5) जल छानकर पीने का नियम ।
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(6) जीव दया का पालन करना अर्थात व्यर्थ में हिंसा करने का त्याग। (7) गुरू निन्दा करने का त्याग। क्योंकि गुरू निन्दा करने से निधत्ति निःकांक्षित कर्म का बंध होता है। जो वज्रलेप के समान होता है। अर्थात वह कर्म उन्ही मुनिराज के पादमूल में कट सकता है जिनकी निन्दा की हो। गुरू (मुनि) निन्दा से महादुखों को भोगने वालों के उदाहरण शास्त्रों मे मिलते हैं, जैसे- श्रीपाल कोढ़ी हुआ, दुर्गन्धा कोढ़ी हुई आदि। (8) गुरू मंत्र की नित्य नियम से 108 बार जाप करें, तथा गुरू मंत्र को गुप्त रखें अर्थात किसी को भी अपना मंत्र न बताये। पूर्व तैयारी :- एक लोटा प्रासुक शुद्ध जल, एक कटोरी शान्तिधारा का गंधोधक मंत्रित किया हुआ, एक श्रीफल, पुष्प,लौंग,चन्दन घिसा हुआ, रक्षासूत्र, यज्ञोपवीत (जनेऊ) गुरूमंत्र की पर्ची, एक माला, एक गुरूजी का फोटो, एक डायरी, पेन आदि ।
पहले दीक्षार्थी सभी के समक्ष गुरू से दीक्षा देने की प्रार्थना करे। फिर गुरू सभी के समक्ष दीक्षार्थी के लिए ऊपर लिखे नियय समझाकर संकल्प पूर्वक संस्कार प्रदान करे। फिर दीक्षार्थी के लिये पूर्वाभिमुख पद्मासन अथवा सुखासुन से बैठाकर स्वयं उत्तराभिमुख होकर दीक्षा विधि के मंत्र पूर्वक संस्कार दें। सर्वप्रथम मंगलाष्टक स्त्रोत पढ़कर लघु सिद्ध व योगी भक्ति पढ़ें। (1) मंत्र पढ़कर शिष्य के ऊपर जल के छींटे दें। ऊँ ह्रीं अमृते अमृतोदभवे अमृतं वर्षणे, अमृत श्रावय श्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लू, ब्लू द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ऊँ नमोऽर्हते, पवित्रतर जलेन सर्वांग शुद्धि कुरू कुरू स्वाहा। (2) शिष्य के हाथों की अंजली मे श्रीफल, माला, गुरूमंत्र की पर्ची आदि दें। (3) निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर तिलक लगायें - ऊँ ही परम पवित्राय सर्व विजाय सर्व सुखाय तिलक प्रदानं करोमि स्वाहा। (4) मंत्र पढ़कर दाहिने हाथ मे रक्षासूत्र बांधे – ऊँ ही नमो अर्हते सर्व रक्ष रक्ष हूँ फट स्वाहा। (5) निम्न मंत्र पढ़कर यज्ञोपवित्र धारण करायें- ऊँनमो : परम शान्ताय शान्ति कराय पवित्री करणायहम् रत्नत्रय स्वरूपं यज्ञोपवीत दधामि, मम गात्रं पवित्रं भवतु अहँ नमः स्वाहा। (6) निम्न शान्ति मंत्र पढ़कर सिर के ऊपर तीन बार गंधोधक छिडकें - ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते प्रक्षीणाशेष दोष कल्मषाय दिव्य तेजोमूर्तये श्री शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्व विघ्न प्रणाशनाय, सर्वरोगापमृत्यु विनाशनाय,सर्व परकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय, सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ऊँ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं हः अ सि आ उ सा अहँ नम: "अमुक" सर्व शान्ति कुरू कुरू तुष्टि कुरू कुरू पुष्टि कुरू कुरू वषट् स्वाहा। (7) निम्न मंत्र पढ़ते हुए सिर के ऊपर पुष्प क्षेपण करते हुए संस्कार प्रदान करें।
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|| - No Fooo
ॐ ह्रीं अयं प्रतिदिनं देवदर्शन संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ॐ ह्रीं अयं अष्ट मूलगुण संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ऊँ ह्रीं अयं सप्तव्यसन त्याग संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ऊँ ह्रीं अयं जैन धर्म अहिंसा संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ॐ ह्रीं अयं सम्यकदर्शन संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ऊँ ह्रीं अयं सम्यक्ज्ञान संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ऊँ ह्रीं अयं सम्यक्चारित्र संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा। ऊँ ह्रीं अयं सुशिष्य संस्कारः इह शिष्यौ स्फुरतु स्वाहा।
ऊँ ह्रीं सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र संस्कारः इह शिष्यौ भवतु । 10. ऊँ ह्रीं अहँ णमो सम्पूर्ण कल्याणं मंगलरूप मोक्ष पुरूषार्थ भवतु। 11. श्री मूल संघे, कुन्दकुन्द आम्नाय, बलात्कार– गणे सेन गच्छे, नन्दी संघस्य परम्परायाम्, श्रीमहावीर कीर्ति आचार्य जातास्तत् शिष्यः श्री विमलसागराचार्य –जातास्तत् शिष्यः श्री पुष्पदन्ताचार्यः जातास्तत् शिष्यः अहम् मुनि प्रार्थनासागर अमुकस्य अमुकनाम् भवतु। 12. निम्न मंत्रों में से कोई भी एक मंत्र कान में तीन बार पढ़कर प्रदान करें
1. ऊँ ह्री श्री त्रिकाल सम्बन्धी पंच परमेष्ठीभ्यो नमः 2. ऊँ ह्रीं अर्ह अ सि आ उ सा नमः
ॐ ह्रीं णमो सव्व जिणाणं ।
ॐ नमः सिद्धेभ्य;" 5. ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहम् नमः | 6. "ॐ ह्रीं नमः" 7. ऊँ ह्रीं णमो वड्ढमाणं
8. ऊँ ह्रीं श्रीं महावीराय नमः नोट - इस प्रकार राशि के अनुसार किसी भी तीर्थंकर का मंत्र दे सकते हैं। (8) अन्त में लघु समाधि भक्ति पढ़कर दीक्षा विधि पूर्ण करें। शिष्य गुरू को नमस्कार कर 9 बार णमोकार मंत्र पढ़ें। पुनः नमस्कार कर स्थान से उठे और अपनी अंजली वाला श्रीफल घर में जाकर लाल कपड़े में बाँधकर पूजन के स्थान पर रखे। तथा गुरू के द्वारा दिये मंत्र की एक माला नित्य जाप करे।
134- मुनि दीक्षा विधि (1) दीक्षा पूर्व तैयारी :- विधान सामग्री - 25 श्रीफल, 1 किग्रा0 सुपाड़ी , केशर (चंदन), 5 किग्रा0 चावल, 100 ग्रा0 लौंग, पूजन सामग्री, 1 कि0ग्रा0 काजू , 1 कि0ग्रा0 बादाम गिरी, 1 कि0ग्रा0 खारक, 1 कि0ग्रा0 मखाने, 1 कि0ग्रा0 किशमिश, 1 मीटर सफेद कपड़ा, 250 ग्राम दूध, 1 लोटा जल, 2 टावल, पिच्छी, कमण्डल, शास्त्र, दशभक्ति की
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
पुस्तक, डायरी। (यदि आर्यिका, क्षुल्लक, क्षुल्लिका दीक्षा हो तो उनके वस्त्रादि 2 जोड़ी | ) 3 चटाई। मुनि दीक्षा के एक दिन पूर्व खड़े होकर आहार ग्रहण करने की विधि सिखाएं। फिर आहार से आकर चारों प्रकार के भोजन का त्याग कर अगले दिन का उपवास ग्रहण करे।
दीक्षा के पूर्व दिन अथवा दीक्षा के दिन दीक्षार्थी गणधर वलय विधान अथवा शान्तिविधान करके यथा शक्ति दान आदि दे। तथा सभी से क्षमायाचना करे। फिर गुरूजी के सामने जाकर सभी संघ की उपस्थिति में गुरू से दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना करे। मुनि दीक्षा विधि (1) गुरूजी सौभाग्यवती स्त्री से स्वस्तिक बनवाकर उस पर सफेद
वस्त्र बिछवायें फिर आसन पर पूर्व की ओर मुख करके सुखासन से या पदमासन से शिष्य को बैठने की आज्ञा दें। फिर गुरू जी उत्तराभिमुख होकर संघ से पूछकर
दीक्षार्थी के केशों का लुन्चन करें। (2) अथ दीक्षा ग्रहण क्रियायां सिद्ध भक्ति कायोत्सर्गं करोमि (सिद्ध भक्ति पढ़ें ) (3) अथ दीक्षा ग्रहण क्रियायां योग भक्ति कायोत्सर्गं करोमि (योग भक्ति पढ़ें ) (4) केशलुन्च के बाद गुरू अपने बाँए हाथ से शिष्य के सिर पर 3 बार मंत्र पढ़कर
गंधोदक छिड़के और फिर अपने बाँयें हाथ से तीन बार सिर का स्पर्श करें। मंत्र - ऊँ णमो अर्हते भगवते प्रक्षीणाशेष दोष कल्मषाय दिव्यतेजो मूर्तये श्री शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्व विघ्न प्रणाशनाय, सर्व रोगापमृत्यु विनाशनाय, सर्व परकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय सर्व क्षामडामर विनाशनाय ऊँ हां ही हूँ हौं हः अ सि आ उ सा अमुकस्य (दीक्षार्थी का नाम) सर्व शान्ति कुरू कुरू स्वाहा। (5) दीक्षार्थी के मस्तक पर निम्न मंत्र पढ़कर दूध की धारा दें। मंत्र- ऊँ णमो भयवदो वड्डमाणस्य, रिसहस्स चक्कं जलं तं गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा रणागणे वा थंभणे वा मोहणे वा सव्वजीवसत्ताणं अपराजिदे भवदु में रक्ख रक्ख स्वाहा। (6)पहले सिर को सफेद वस्त्र से पोंछकर निम्न मंत्र पढ़कर कपूर मिश्रित राख सिर के बालों पर लगाए। मंत्र- ऊँ णमो अरहताणं रत्नत्रय पवित्री कृत्तोत्त मांगाय ज्योतिर्मयाय मति श्रुतावधि मनः पर्यय केवल ज्ञान अ सि आ उ सा स्वाहा। (7) निम्न मंत्र पढ़कर प्रथम पंच मुष्ठि से केश लुन्च करेंमंत्र- ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह अ सि आ उ सा स्वाहा। (8) निम्न मंत्र पढ़कर गुरू अपने हाथ से पाँच बार केशों को उखाडें ।
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मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र- ऊँ हां अर्हद्भ्यो नमः, ऊँ ही सिद्धभ्यो नमः, ऊँ हूं सूरिभ्यो नमः, ऊँ हौं पाठकेभ्यो नमः ॐ हः सर्व साधभ्यो नमः। (9) निम्न प्रकार सिद्ध भक्ति पढ़कर केश लुन्च का निष्ठापन करें। अथ लोचावसने दीक्षायां लोचनिष्ठापन क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्म क्षयार्थ भाव पूजा वन्दना स्तव समेतं सिद्ध भक्ति कुर्वेऽहं । (10) पवित्र जल से सिर पर प्रक्षाल करके गुरूजी भक्ति पढ़ें। (11) दीक्षार्थी को खड़े कराकर वस्त्र आभूषण यज्ञोपवीत आदि का त्याग करायें फिर दीक्षा विधि करें। (12) दीक्षार्थी को उसी आसन पर बैठाकर, उसके सिर पर निम्न मंत्र पढ़कर "श्री" लिखेंमंत्र- ऊँ ही अर्ह अ सि आ उ सा हीं स्वाहा। (108 बार जपे) (13) गुरू जी दीक्षार्थी की अंजली में केशर कपूर श्रीखण्ड से "श्री" लिखें(14) निम्न श्लोक पढ़कर पूरब में 3, दक्षिण में 24, पश्चिम में 5, उत्तर में 2 लिखें। रत्नत्रयं च वंदे, चउवीस, जिणे च सव्वदा वंदे। पंच गुरूणां वदे, चारणचरणं सदा वदें।। (15) निम्न मंत्र पढ़ कर दीक्षार्थी की अंजली के ऊपर श्रीफल (नारियल) सुपाड़ी (पूगीफल), चावल (तंदुल) रखें। मंत्र- सम्यक् दर्शनाय नमः, सम्यक् ज्ञानाय नमः, सम्यक चारित्राय नमः | (16) अब सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति और योगभक्ति पढ़कर व्रतादि दें। (17) निम्नलिखित श्लोक को पढ़कर दीक्षार्थी को अर्थ (28 मूलगुण) समझाकर 28 मूल गुणों के मंत्र पढ़कर सिर पर लोंग क्षेपण कर संस्कार प्रदान करें। गाथा- वदसमिदिदियरोधो, लोचावासय मचेलमण्हाणं। खिदिसयणमदंतवणं, ठिदिभोयणमेयभत्तं च।। 5 महाव्रत- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, (अस्तेय), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । 5 समिति- ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण, प्रतिष्ठापना। 5 इन्द्रिय निरोध- स्पर्शन,रसना,घाण,चक्षु और कर्ण (श्रोत)। 6 आवश्यक- सामायिक, वन्दना, स्तवन (चतुर्विंशति स्तुति), प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान,व्यतुसर्ग।
7 शेष गुण– केशलोच, अचेलक्य (नग्नता), अस्नान व्रत, भूमि शयन, अदन्त धावन, स्थित भोजन, एक भुक्त।
1. ॐ हीं इह मुनौ अहिंसा महाव्रत संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 2. ॐ हीं इह मुनौ सत्य महाव्रत संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
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3. ऊँ ही इह मुनौ अचौर्य महाव्रत संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 4. ॐ हीं इह मुनौ ब्रह्मचर्य,महाव्रत संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 5. ॐ हीं इह मुनौ अपरिग्रह महाव्रत संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ऊँ ही इह मुनौ ईर्या समिति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ___ ऊँ ही इह मुनौ भाषा समिति संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 3. ऊँ ही इह मुनौ एषणा समिति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ हीं इह मुनौ आदाननिक्षेपण समिति संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 5. ऊँ ही इह मुनौ प्रतिष्ठापना समिति संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
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ॐ हीं इह मुनौ स्पर्शन इन्द्रिजय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 2. ऊँ ही इह मुनौ रसना इन्द्रिजय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 3. ऊँ ही इह मुनौ ध्राण इन्द्रिजय संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 4. ऊँ ही इह मुनौ चक्षु इन्द्रिजय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 5. ऊँ ही इह मुनौ कर्ण इन्द्रिजय संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
1. ॐ हीं इह मुनौ सामायिक आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 2. ऊँ ही इह मुनौ वन्दना आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 3. ऊँ ही इह मुनौ स्तवन आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 4. ऊँ ही इह मुनौ प्रतिक्रमण आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 5. ऊँ ही इह मुनौ प्रत्याख्यान आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 6 ॐ हीं इह मुनौ व्यतुसर्ग आवश्यक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
कल
1. ॐ हीं इह मुनौ केशलोंच मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 2. ॐ हीं इह मुनौ अचेलक्य मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 3. ऊँ ही इह मुनौ अस्नान व्रत मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 4. ऊँ ही इह मुनौ भूमिशयन मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 5. ॐ हीं इह मुनौ अदन्तधावन मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 6. ॐ हीं इह मुनौ स्थिति भोजन मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा । 7. ऊँ ही इह मुनौ एक भक्त मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। (17) निम्नलिखित पाठ को 3 बार पढ़कर सिर पर पुष्प क्षेपण करें। पंच महाव्रत, पंच समिति, पंचेन्द्रियरोध, लोचादि, षटावश्यक क्रिया, अष्टाविंशति मूलगुणाः शौच सत्य, संयम, तपस् त्यागाकिचन्य ब्रह्मचर्याणि दशलाक्षिणिको धर्मः,
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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
अष्टादश शील, सहस्राणि, चतुरशीति लक्षगुणाः, त्रयोदश विधंचारित्रं, द्वादशविध तपश्चेति सकलं सम्पूर्ण अर्हत सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधु साक्षिकं सम्यक्त्व पूर्वकं, दृढव्रतं, सुव्रतं, समारुढं ते में भवतु।। (18) शान्ति भक्ति पढ़कर दीक्षार्थी की अंजली की सामग्री को परिवार वालों को दान करा दें। (19) नीचे लिखे प्रत्येक मंत्र को पढ़कर सिर पर लौंग रखकर पुष्प क्षेपण कर षोड़श संस्कारारोपण करें। 1. अयं सम्यकदर्शन संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 2. अयं सम्यकज्ञान संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 3. अयं सम्यक्चारित्र संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 4. अयं बाह्यभ्यंतरतपः संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 5. अयं चतुरंगवीर्य संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 6. अयं अष्टमातृकामंडल संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 7. अयं शुद्धयष्टकावष्टंभ संस्कार संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 8. अयं अशेषपरीषहजय संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 9. अयं त्रियोगा संगम निवृत्तिशीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु । 10. अयं त्रिकरणा संयम निवृत्तिशीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु । 11. अयं दशा संयम निवृत्तिशीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 12. अयं चतुः संज्ञा निग्रहशीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 13. अयं पंचेन्द्रिजय शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 14. अयं दर्श धर्मधारण शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 15. अयं अष्टादशसहस्र शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। 16. अयं चतुरशीतिलक्षण संस्कार इह मुनौ स्फुरतु। (20) दीक्षार्थी के मस्तक पर हाथ रखकर निम्न मंत्र पढ़ें – मंत्र- णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो
लोएसव्व साहूणं, ऊँ परमहंसाय परमेष्ठिने हंस हंस हं हृा हिं ह्रीं हुं हूं हें हैं,
ह्रौं, हृ: जिनाय नमः जिनं स्थापयामि सवौषट् । (21) नीचे लिखी गुर्वावली पढ़कर नाम प्रदान करें।
श्री मूल संघे, कुंद-कुंद आम्नाय,बलात्कार गणे, सेन गच्छे, नन्दी संघस्य परम्परायाम् श्री महावीर कीर्ति आचार्य जातास्यतत् शिष्यः श्री विमलसागर आचार्य जातास्तत् शिष्यः .......अहम् मुनि प्रार्थना सागर शिष्यः अमुकस्य .......अमुकनामा भवतु। (22) निम्न मंत्र बोलकर पिच्छिका प्रदान करें।
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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र-ॐ णमो अरहंताणं भो अन्ते वासिन् । षट्जीव निकाय रक्षणाय मार्दवादि गुणोपेत मिदं पिच्छिकोपकरणं गृहण गृहाणेति ।
(23) निम्न मंत्र बोलकर शास्त्र प्रदान करें
मंत्र-ॐ णमो अरहंताणं मति श्रुतावधि मनः पर्यय केवल ज्ञानाय द्वादशांग श्रुताय नमः । भो अन्तेवासिन ! इदं ज्ञानोपकरणं ग्रहण ग्रहाणेति ।
—
(24) निम्न मंत्र बोलकर बाएँ हाथ में कमंडल प्रदान करें
मंत्र- ऊँ णमो अरिहंताणं रत्नत्रय पवित्रीकरणांगाय बाह्याभ्यन्तर मल शुद्धाय नमः भो अन्तेवासिन इदं शौचोपकरण ग्रहण, ग्रहाणेति ।
(25) अब अन्त में समाधि भक्ति पढ़कर दीक्षा विधि पूर्ण करें। नवदीक्षित मुनि पहले गुरु को नमस्कार कर फिर संघ के अन्य मुनियों को नमस्कार करें। किन्तु अन्य मुनि तब तक प्रतिवंदना न करें जब तक व्रतारोपण नहीं हुआ ।
(26) शुभ मुर्हृत में व्रतारोपण करें पहले रत्नत्रय पूजा कर पाक्षिक प्रतिक्रमण करें फिर पाक्षिक नियम के पूर्व वदसमिदिदिय इत्यादि पढ़कर पूर्ववत् व्रत आदि दें, नियम ग्रहण के समय यथायोग्य एक तप दें (पल्यविधानादिक) किसी दातृप्रमुख (श्रावक) को उत्तम फलादि थाली में रखकर नवमुनि भेंट करें तथा गुरु उस श्रावक को एक तप नियम दें। फिर सभी प्रतिवंदना करें।
( 27 ) मुख शुद्धि मुक्ताकरण विधि
त्रयोदशसु पंचसु त्रिसु वा कच्चोलिकासु लवंग एलापूंगीफलादिकं निक्षिप्य ताः कच्चोलिकाः गुरोरग्रे स्थापयते । मुखशुद्धि मुक्तकरणं पाठक्रियायामित्याद्युच्चार्य सिद्ध-योगि आचार्य शांति समाधिभक्ति विधाय ततः पश्चातमुखशुद्धिं गृहणीयात् ।
135. आर्यिका दीक्षा विधि
आर्यिका दीक्षा विधि - मुनि दीक्षा के समान ही आर्यिका दीक्षा के संस्कार होते हैं । अन्तर केवल इतना है कि मुनि दीक्षार्थी सभी के समक्ष सभी वस्त्र आभूषणों का त्याग कर नग्न हो जाता है, किन्तु आर्यिका दीक्षार्थी एक पहनने वाली साड़ी को छोड़कर सभी का त्याग करती है। दूसरा वह मुनि के समान खड़े होकर आहार न करके एक जगह बैठकर करपात्र मे ही आहार करती है।
नोट- गुरू जी संस्कार दीक्षा विधि मंत्र में मुनौ स्फुरतु की जगह आर्यिकायां स्फुरतु बोलकर संस्कार प्रदान करें ।
136. क्षुल्लक दीक्षा विधि
नोट - (1) क्षुल्लक दीक्षा एवं क्षुल्लिका दीक्षा विधि मुनि दीक्षा विधि के लगभग समान ही है अन्तर सिर्फ इतना है कि क्षुल्लक - क्षुल्लिका के अट्ठाईस मूलगुण संस्कार और षोडश संस्कार नहीं होते है उसकी जगह उनके सिर पर ग्यारह प्रतिमाओं के संस्कार किए जाते हैं।
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मुनि प्रार्थना सागर
(2) दीक्षा गुरु दीक्षार्थी को निम्न गाथा का अर्थ (ग्यारह प्रतिमा) समझाकर गाथा को 3 बार बोलकर, निम्न मंत्र पढ़कर सिर पर लौंग रखते हुए संस्कार प्रदान करें
दसण वय सामाइय, पोषह सचित रइभत्ते य।
बंभारंभ परिग्गह, अणुमण मुदिट्ठ देस विरदेय ।। 1. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ दर्शन प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 2. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लको व्रत प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। ___ ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ सामायिक प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा।
ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ प्रोषधोपवास प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 5. ॐ हृीं इह क्षुल्लको सचित्त त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 6. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लको रात्रि भोजन त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 7. ॐ हृीं इह क्षुल्लकौ ब्रह्मचर्य प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 8. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ आरम्भ त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 9. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ परिग्रह त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 10. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लको अनुमति त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा। 11. ऊँ ह्रीं इह क्षुल्लकौ उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा संस्कार स्फुरतु स्वाहा।
(137. उपाध्याय पद स्थापन विधि ) (1) श्रावको से शुभमुहूंत में गणधर वलय या शान्ति विधान सरस्वती (श्रुत) पूजा ___कराएँ ! (2) सौभाग्यवती स्त्री से चावलों का स्वस्ति बनवाकर उसके ऊपर पाटा स्थापित
करें। उस पाटे पर उपाध्याय पद योग्य मुनि पूर्व की ओर मुख करके बैठे। (3) अथ उपाध्याय पद स्थापन-क्रियायां पुर्वाचार्यानुक्रमेण, सकल कर्म क्षयार्थ भाव
पुजा वंदना स्तव समेतं सिद्ध भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।(सिद्ध भक्ति पढें ) (4) अथ उपाध्याय पद स्थापन-क्रियायां पुर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्म क्षयार्थं भाव
पुजा वंदना स्तव समेतं श्रुत भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम्। (श्रुत भक्ति पढें ) (5) निम्न मंत्र पढ़कर सिर पर लौंग पुष्प, अक्षत आदि का क्षेपण करें। 1. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ उत्पाद पूर्व मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 2. ॐ ह्रौं इह उपाध्यायौ अग्रायणी पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ ह्रौं इह उपाध्यायौ वीर्यानुवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 4. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ ह्रौं इह उपाध्यायौ ज्ञानप्रवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ ह्रौं इह उपाध्यायौ कर्मप्रवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 7. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ सत्यप्रवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
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मुनि प्रार्थना सागर
8. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ आत्मप्रवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 9. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ प्रत्याख्यान पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 10. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ विद्यानुवाद पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 11. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ कल्याणवाद पूर्व मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 12. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ प्राणावाय पूर्व मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 13. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ क्रियाविशाल पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 14. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ लोकन्दुपुसार पूर्व मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 15. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ आचारांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 16 ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ सूत्रकृतांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 17. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ स्थानांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 18. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ समवायांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 19. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 20. ॐ ह्रौं इह उपाध्यायौ ज्ञातधर्म कथांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 21. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ उपासकाध्ययनांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 22. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ अन्तकृतदशांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 23. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ अनुत्तरोपपादिकदशांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 24. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ प्रश्नव्याकरणांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 25. ऊँ ह्रौं इह उपाध्यायौ विपाकृसूत्र कश्तांग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। (6) निम्न मंत्र पढकर ........... चन्दन से सिर पर न्यास करें।
1. ऊँ ह्रौं णमो उवज्झायाणं उपाध्याय परमेष्ठिने नमः । (7) शान्ति भक्ति और समाधि भक्ति पढ़ें। (8) ॐ ह्रौं उवज्झायाणं, उपाध्याय परमेष्ठिन् अत्र एहि एहि संवौषट् आह्वाननं,
स्थापनं, सन्निधिकरणं ! (9) अब वह उपाध्याय परमेष्ठी गुरुभक्ति कर गुरु को नमस्कार कर सभी को आर्शीवाद दें।
(138. आचार्य पद प्रतिष्ठा विधि ) (1) शुभमुहूत में किसी योग्य श्रावक से यथा शक्ति यागमडल विधान या शान्ति
मंडल विधान करायें। (2) किसी सौभाग्यवती स्त्री से चावलों का स्वस्तिक बनवाकर उस पर पाटा
स्थापित करें फिर आचार्य पद योग्य मुनि पुर्व की ओर मुख करके बैठे। (3) आचार्य पद प्रतिष्ठापन क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्म क्षयार्थं भाव पूजा वन्दना स्तव समेतं, सिद्ध भक्ति कायोत्सगं करोम्यहम् ।(सिद्ध भक्ति पढें )
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(4) आचार्य पद प्रतिष्ठापन क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्म क्षयार्थं भाव पूजा
वन्दना-स्तव समेतं, आचार्य भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । (आचार्य भक्ति पढ़ें) (5) निम्न मंत्र पढकर आचार्य पद योग्य मुनि के सिर पर लौंग का क्षेपण कर
आचार्य के 36 मूलगुणों का संस्कार करें। 1. ऊँ ह्रौं इह आचार्यो अनशन मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 2. ऊँ हूँ इह आचार्यो ऊनोदर मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ___ऊँ हूँ इह आचार्यो वृत्तपरिसंख्यान मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ऊँ हूँ इह आचार्यों रसपरि त्याग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ॐ हूँ इह आचार्यों विविक्त शैयासन मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ऊँ हूँ इह आचार्यो कायकलेश मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ हूँ इह आचार्यो प्रायश्चित मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। ____ऊँ हूँ इह आचार्यों विनय मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 9. ऊँ हूँ इह आचार्यो वैयावृत्य मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 10. ऊँ हूँ इह आचार्यों स्वाध्याय मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 11 ऊँ हूँ इह आचार्यो व्युत्सर्ग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 12. ऊँ हूँ इह आचार्यो ध्यान मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 13. ऊँ हूँ इह आचार्यों उत्तम क्षमा मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 14. ऊँ हूँ इह आचार्यों उत्तम मार्दव मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा।
ऊँ हूँ इह आचार्यों उत्तम आर्जव मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ॐ हूँ इह आचार्यों उत्तम शौच मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ऊँ हूँ इह आचार्यों उत्तम सत्य मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ऊँ हूँ इह आचार्यो उत्तम संयम मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ॐ हूँ इह आचार्यों उत्तम तप मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। ॐ हूँ इह आचार्यों उत्तम त्याग मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। ॐ हूँ इह आचार्यों उत्तम आकिंचन मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। ऊँ हूँ इह आचार्यो उत्तम ब्रह्मचर्य मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
ॐ हूँ इह आचार्यों ज्ञानाचार मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 24. ऊँ हूँ इह आचार्यों दर्शनाचार मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 25. ॐ हूँ इह आचार्यों चारित्राचार मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 26. ऊँ हूँ इह आचार्यो तपाचार मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 27. ॐ हूँ इह आचार्यों वीर्याचार मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 28. ऊँ हूँ इह आचार्यों सामायिक मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 29. ऊँ हूँ इह आचार्यो स्तुति मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा।
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मुनि प्रार्थना सागर
30. ॐ हूँ इह आचार्यों वंदना मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 31. ऊँ हूँ इह आचार्यो प्रतिक्रमण मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 32. ऊँ हूँ इह आचार्यों प्रत्याख्यान मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 33. ॐ हूँ इह आचार्यो व्युतसर्ग मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। 34. ॐ हूँ इह आचार्यो मन गुप्ति मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 35. ॐ हूँ इह आचार्यो वचन गुप्ति मूलगुण संस्कार: स्फुरतु स्वाहा। 36. ऊँ हूँ आचार्यों काय गुप्ति मूलगुण संस्कारः स्फुरतु स्वाहा। (6) निम्न मंत्र पढकर 5 स्वर्ण कलश सुगंधित जल से पाद प्रक्षालन करायें। मंत्र- ऊँ हूँ परम सुरभि द्रव्य सन्दर्भ परिमलगर्भ तीर्थम्बुि सम्पूर्ण स्वर्ण कलश
पंचकतोयेन-पारिषेचयामीति स्वाहा। (7) ॐ हूँ णमो आइरियाणं आचार्य परमेष्ठिन् अत्र एहि एहि संवौष्टं आह्वानन्,
स्थापनं, सन्निधिकरणं (8) निम्न मंत्र पढकर चन्दन से पैरौ पर तिलक करायें। मंत्र- ऊँ हूँ णमो आइरियाणं धर्माचार्याधिपतये नमः | (8) अब शान्ति भक्ति और समाधि भक्ति करें। (10) अन्त में नवीनाचार्य गुरूभक्ति करके अपने गुरू को नमस्कार करें और समस्त
सभा सदों को आर्शीवाद दें।
चौघड़िया देखने की विधि सामान्यतः एक दिन-रात में आठ-आठ चौघड़िया होती हैं। जिनमें से एक चौघड़िया का समय डेढ़ घंटे का होता है, जिसका चार्ट नीचे दिया हुआ है। लेकिन विशेष रूप से दिन-रात के छोटे-बड़े होने पर यह अवधि भी घटती-बड़ ति रहती है। अतः सूर्योदय और सूर्य अस्त का समय पंचांग में देखकर, जो दिन अथवा रात का कुल समय हो उसमें आठ का भाग देकर एक चौघड़िया का समय निकालें। ध्यान रखें सूर्योदय से दिन की और सूर्यास्त से रात की प्रथम चौघड़िया प्रारम्भ होती है। दिन का चौघडिया
रात का चौघड़िया रवि | सोम मंगल बुध गुरु शुक्र | शनि समय रवि सोम मंगल बुध गुरु शक्र |शनि उद्वेग | अमृत रोग | लाभ| शुभ | चर | काल ६:००से७:३० शुभ | चर काल| उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ
चर | काल | उद्वेग अमृत रोग | लाभ | शुभ ७:३०से९:०० अमृत रोग | लाभ| शुभ | चर काल | उद्वेग | लाभ शुभ | चर काल उद्वेग अमृत रोग |९:००से१०:३० चर काल | उद्वेग अमृत रोग लाभ | शुभ |
अमृत रोग | लाभ| शुभ चर | काल | उद्वेग |१०:३०से१२:० रोग |लाभ | शुभ| चर | काल | उद्वेग | अमृत काल| उद्वेग | अमृत रोग लाभ| शुभ | चर |१२:००से१:३०काल| उद्वेग |अमृत रोग | लाभ | शुभ | चर शुभ | चर | काल| उद्वेग अमृत रोग | लाभ |१:३०से३:०० लाभ | शुभ | चर | काल| उद्वेग अमृत | रोग रोग | लाभ | शुभ | चर | काल उद्वेग | अमृत ३:००से४:३० उद्वेग अमृत | रोग लाभ| शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ| शुभ | चर | काल |४:३०से६:०० शुभ | चर काल उद्वेग अमृत रोग | लाभ |
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