SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र विधि - मंत्र की शुद्धि पूर्वक सवा लाख जाप करें। (3) दीपक स्तम्भन मंत्र : ॐ नमो भगवते वरणाय वरणाय स्तंभय स्तंभय ठः ठः । विधि : यह पाशपाणि देवता का मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है । फिर इसके सात बार जपादि से दीपक की लौ का स्तम्भन होता है । मुनि प्रार्थना सागर (4) स्तम्भन निवारक मंत्र : "ह स्व क्षी मान्त (य) " विधि : यदि किसी ने स्तम्भन किया हो तो इस मंत्र से उच्छेदन करें । (5 ) दुष्टजन स्तम्भक मन्त्र : ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्वदुष्टान् स्तंभय स्तंभय अन्धय अन्धय मुकय मुकय, मोहय मोहय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः स्वाहा । विधि : पूर्वाभिमुख होकर २१ दिन तक प्रतिदिन मुट्ठी बांधकर मंत्र का ११०० बार जप करने से दुष्ट देव मनुष्य आदि का स्तम्भन होता है । ( 6 ) दुष्ट देव का स्तम्भन होता - ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय स्तम्भय मूकय मूकय मोहय मोहय कुरू कुरू ह्रीं दुष्टान ठः ठः ठः स्वाहा। विधि - पूर्वाभिमुख होकर २१ दिन तक मुट्ठी बांधकर मंत्र का ११०० बार जाप करने से दुष्ट देव व मनुष्यादि का स्तम्भन होता है । - ( 7 ) शत्रु बुद्धि स्तम्भन ॐ नमो भगवते शत्रुणां बुद्धि स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा। विधि - इस मंत्र की जाप से शत्रु की बुद्धि नष्ट हो जाती है, अर्थात वह विरोध करना बन्द कर देता है। ( 8 ) प्रतिवादी की जिह्वा स्तंभन मंत्र - ॐ तटमर्टय स्वाहा ॐ व्याघ्र वदने वज्र देवी सप्त पाताल भेदिनी यज्ञक्षय प्रतिक्षोभिणी राजा मोहिनी त्रैलोक्य वश करणी परसभा जय जय ॐ ह्रां ह्रीं फट् स्वाहा । विधि - इस मंत्र को १०८ बार जपने से प्रतिवादी की जिह्वा का स्तंभन होता है। (9) मुख स्तंभित मंत्र ॐ कट विकट कटे कटि धारिणी ठः ठः परिस्फुट वादनी भंज भंज मोहय मोहय स्तंभय स्तंभय वादी मुखं प्रति शल्य मुख कीलय कीलय पूरय पूरय भवेत् अमुकस्य जयं । विधि - इस विद्या को कार्य पर जाने के पूर्व जप करने से वादि का मुख स्तंभित होता है और विजय प्राप्त होती है। कांटे वाले वृक्ष के नीचे इस विद्या को ८००० जपने से यह मंत्र सिद्ध होता है। इसको कंटकारि महाविद्या कहते हैं। ( 10 ) मनुष्य स्तंभन - ॐ नमो भगवते रुद्राय अमुकं स्तंभय स्तंभय ठः ठः ठः। विधि - इस मंत्र को सिद्ध कर रजस्वला स्त्री का कोई वस्त्र लेकर उस पर गोरोचन से शत्रु का नाम अंकित करके वह वस्त्र जल से भरे मटके (घड़े) में डाल देने से मनुष्य का 156
SR No.009369
Book TitleMantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy