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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि- प्रतिदिन एक माला का जाप करें तो बुरे स्वप्न नहीं आयेंगे। सम्मान बढ़े कहीं जाना हो तो तीन बार पढ़ें अपशकुन न हो।
(121. उपसर्गहर स्तोत्र के ऋद्धि, मंत्र व फल) १. ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो जिणाणं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः
अप्रतिचक्रे विचक्राय स्वाहा। ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा झौं झौं स्वाहा। विधि- १०८ बार जल पर्ययतु विशूचिका नाश। इस मंत्र से १०८ बार पुष्प पढ़कर रोगी के पास रखें तो ज्वर नाश हो। ऋद्धि- ॐ णमो ॐ ह्रीं जिणाणं ।
विधि- चन्दन पर पढ़कर सिर पर लगावें तो सिर रोग नाश हो। ३. ऋद्धि- ॐ णमो परमोहिजिणाणं हूँ।
फल- इसके जप से कपाल के रोग दूर होते हैं। ४. ऋद्धि- ॐ णमो सव्वोएहि जिणाणं ह्रौं।
फल- इस मंत्र को १०८ बार कपूर पर जपें तो आंखों के रोग दूर होते हैं। ऋद्धि- ॐ णमो अणंतोहिजिणाणं।
फल- त्रिकाल १०८ बार जप से कर्ण रोग दूर हो जाय। ६. ऋद्धि- ॐ णमो कुट्ठ बुद्धीणं।
फल- जल पर पढ़कर पीने से गुल्म उदर रोग दूर हो जाय। ७. ऋद्धि- ॐ णमो बीजबुद्धीणं।
फल- श्वासहिक्कां नाशयति। ऋद्धि- ॐ णमो संभिण्ण सोदराणं ।
फल- कास को नष्ट करता है। ९. ऋद्धि- ॐ णमो पादानुसारिणं ।
फल- परस्पर विरोध को दूर करता है। १०. ऋद्धि- ॐ णमो पत्तेय बुद्धाणं।
फल- १०८ बार का जप प्रतिविद्या का छेद करता है। ११. ऋद्धि- ॐ णमो सयंबुद्धाणं।
फल- १०८ बार जप से पंडित हो जाता है। १२. ऋद्धि- ॐ णमो सव्वोहि जिणाणं।
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