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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
(6) जीव दया का पालन करना अर्थात व्यर्थ में हिंसा करने का त्याग। (7) गुरू निन्दा करने का त्याग। क्योंकि गुरू निन्दा करने से निधत्ति निःकांक्षित कर्म का बंध होता है। जो वज्रलेप के समान होता है। अर्थात वह कर्म उन्ही मुनिराज के पादमूल में कट सकता है जिनकी निन्दा की हो। गुरू (मुनि) निन्दा से महादुखों को भोगने वालों के उदाहरण शास्त्रों मे मिलते हैं, जैसे- श्रीपाल कोढ़ी हुआ, दुर्गन्धा कोढ़ी हुई आदि। (8) गुरू मंत्र की नित्य नियम से 108 बार जाप करें, तथा गुरू मंत्र को गुप्त रखें अर्थात किसी को भी अपना मंत्र न बताये। पूर्व तैयारी :- एक लोटा प्रासुक शुद्ध जल, एक कटोरी शान्तिधारा का गंधोधक मंत्रित किया हुआ, एक श्रीफल, पुष्प,लौंग,चन्दन घिसा हुआ, रक्षासूत्र, यज्ञोपवीत (जनेऊ) गुरूमंत्र की पर्ची, एक माला, एक गुरूजी का फोटो, एक डायरी, पेन आदि ।
पहले दीक्षार्थी सभी के समक्ष गुरू से दीक्षा देने की प्रार्थना करे। फिर गुरू सभी के समक्ष दीक्षार्थी के लिए ऊपर लिखे नियय समझाकर संकल्प पूर्वक संस्कार प्रदान करे। फिर दीक्षार्थी के लिये पूर्वाभिमुख पद्मासन अथवा सुखासुन से बैठाकर स्वयं उत्तराभिमुख होकर दीक्षा विधि के मंत्र पूर्वक संस्कार दें। सर्वप्रथम मंगलाष्टक स्त्रोत पढ़कर लघु सिद्ध व योगी भक्ति पढ़ें। (1) मंत्र पढ़कर शिष्य के ऊपर जल के छींटे दें। ऊँ ह्रीं अमृते अमृतोदभवे अमृतं वर्षणे, अमृत श्रावय श्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लू, ब्लू द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ऊँ नमोऽर्हते, पवित्रतर जलेन सर्वांग शुद्धि कुरू कुरू स्वाहा। (2) शिष्य के हाथों की अंजली मे श्रीफल, माला, गुरूमंत्र की पर्ची आदि दें। (3) निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर तिलक लगायें - ऊँ ही परम पवित्राय सर्व विजाय सर्व सुखाय तिलक प्रदानं करोमि स्वाहा। (4) मंत्र पढ़कर दाहिने हाथ मे रक्षासूत्र बांधे – ऊँ ही नमो अर्हते सर्व रक्ष रक्ष हूँ फट स्वाहा। (5) निम्न मंत्र पढ़कर यज्ञोपवित्र धारण करायें- ऊँनमो : परम शान्ताय शान्ति कराय पवित्री करणायहम् रत्नत्रय स्वरूपं यज्ञोपवीत दधामि, मम गात्रं पवित्रं भवतु अहँ नमः स्वाहा। (6) निम्न शान्ति मंत्र पढ़कर सिर के ऊपर तीन बार गंधोधक छिडकें - ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते प्रक्षीणाशेष दोष कल्मषाय दिव्य तेजोमूर्तये श्री शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्व विघ्न प्रणाशनाय, सर्वरोगापमृत्यु विनाशनाय,सर्व परकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय, सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ऊँ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं हः अ सि आ उ सा अहँ नम: "अमुक" सर्व शान्ति कुरू कुरू तुष्टि कुरू कुरू पुष्टि कुरू कुरू वषट् स्वाहा। (7) निम्न मंत्र पढ़ते हुए सिर के ऊपर पुष्प क्षेपण करते हुए संस्कार प्रदान करें।
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