________________
मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
129. श्री जिनेन्द्रदेव प्राण प्रतिष्ठा मंत्र / विधि)
प्रतिष्ठा के समय की पूर्व तैयारी - दो टेविल, पूजन की अष्ट द्रव्य सामग्री, यागमंडल विधान के लिए श्रीफल, यज्ञोपवित्र, मंजूषा (पेटी), कपूर, के सर, प्रतिमा के कपड़े आदि,पालना,आहार आदि सामग्री, अभीषेक के लिए कलश, सप्तधान, स्वर्णशलाका (सोने की सलाई), चॉदी की डिब्बी, माला ( जाप), दस भक्ति की पुस्तक आदि... । 1. गर्भ कल्याणक मंत्र / विधि
सबसे पहले मंगलाष्टक पढ़ें ( देखें पेज नं. 92 पर)।
( १ ) सकलीकरण करें - निम्न मंत्र को बोलकर अपने ऊपर जल के छीटें दें। अमृतस्नान मंत्र - ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृत स्त्रावय-स्रावय सं-सं क्लीं क्लीं ब्लूं ब्लूं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय-द्रावय सं हं इवीं क्ष्वीं ठः ठः हंसः
स्वाहा ।
भूमि शुद्धि मंत्र पढ़कर जल के छींटे लगावें- ॐ ह्रीं मही पूतां कुरु कुरु हूं फट् स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं भूः स्वाहा। (पुष्पक्षेपण करें।)
(२) नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर अपने ऊपर पुष्प क्षेपण करें ।
रक्षा मंत्र- ॐ हूँ हूँ फट् किरिटिं - किरिटिं घातय - घातय पर विघ्नान स्फोट्य-स्फोफट्य सहस्रखण्डान कुरु कुरु पर मुद्रान छिंद-छिंद पर मंत्रान भिन्द - भिन्द क्षों क्षः वाः वाः हूँ फट् स्वाहा। अथवा दूसरा मंत्र आगे इसी पुस्तक में देखें (पेज. 94)
( ३ ) अपने दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र बाँधे
मंत्र- ॐ ह्रीं नमोऽर्हते सर्वं रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ।
यज्ञोपवीत धारणा करें- पहले सिर में से गले में डालें फिर दाहिने कंधे का धागा दाहिने हाथ के नीचे से निकाल दें । अर्थात् एक हिस्सा बाँये कंधे पर रहे और दूसरा दाहिने हाथ के नीचे ।
मंत्र - ॐ नमः परमशान्तय शान्तिकराय पवित्री करणायाहम् रत्नत्रयस्वरूपं यज्ञोपवीतं दधामि, मम गात्रं पवित्र भवतु अर्हं नमः स्वाहा ।
(४) दिशाबंधन - निम्न मंत्र पढ़कर दशों दिशाओं में पीले सरसों या पुष्पों को फेंके।
१.
ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां पूर्वदिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
२.
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं दक्षिणदिशात् समागत- विघ्नान् निवारय निवारय मां एतान् सर्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
225