SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर हवन करके निष्ठापन करें, और फिर जीवन पर्यन्त सुबह-शाम एक माला प्रतिदिन करें। (2) एकाक्षरी मंत्र- ॐ ह्रीं नमः। विधि - शुभ मुहूर्त में सवा लाख जाप करे श्वेत वस्त्र माला आसन से मुक्ति के लिए, लाल रंग से वशीकरण, पीले रंग से लक्ष्मी प्राप्ति, विद्या प्राप्ति, नीले रंग से शत्रु मरण, काले रंग से शत्रु उच्चाटन होता है। विशेष वशीकरण के लिए वषट् विद्वेषण, में हूँ। आकर्षण में संवोषट, उच्चाटन में फट, मरण में घे घे, शांति के लिय स्वाहा, पोष्टिक में स्वधा, विष नाशन के लिए हंसः सर्वोषधि अर्थात् स्तंभन में ठः ठः यह पल्लव लगाकर जाप करें, अन्त में दशांश हवन अवश्य करें। (7) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र (1) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ॐ श्रां श्रीं श्रृं श्रः शत्रुभय निवारणाय ठः ठः स्वाहा। विधि- १०८ बार जप से सन्तान, सम्पत्ति, सौभाग्य, बुद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। (2) सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ॐ इरि मेरि किरि मेरि गिरि मेरि, पिरि मेरि सिरि मेरि हरि मेरि ___ आयरिय मेरि स्वाहाः। विधि- मंत्र को संध्या में ७ दिन तक १०८ बार जपें तो सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (3) अखण्डित सौभाग्य प्राप्ति मंत्र : ॐ ह्रीं णमो पुरिसोप्तमाणं अतलिय पुरिसाणं अहँ अ सि आ उ सा नमः। विधि : इस मंत्र के १०८ बार जपने से अस्खलित सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा भाग्य वृद्धि होती है। (4) कुभाग्य- सौभाग्य में बदलने का मंत्र- ऐं क्लीं ह् सौः कुंडलिनी नमः विधि- मंत्र को त्रिकाल १०८ बार जपने से कुभाग्य भी सौभाग्यमय हो जाता है। (5) सौभाग्यवर्धक मंत्र -ॐ अप्रतिचक्रे फट्विचक्राय सर्ववश्यं मानय मानय स्वाहा। विधि - इस मंत्र को प्रतिदिन 21 बार जपकर मुंह पर हाथ फेरे, इससे सौभाग्य वृद्धि होती है। (8) सर्वसम्पत्ति वान बनने का मंत्र (1) सर्वसम्पत्ति वान बनने का मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं हर हर स्वाहा। विधि-इस मंत्र को जो १०८ सफेद पुष्पों से ३ दिन तक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा के सामने जपें तो सर्वसम्पत्तिवान होता है। (2) सम्पत्ति लाभ मंत्र- ॐ ह्रीं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिन् आगच्छ आगच्छ आत्ममन्त्रान् आकर्षय आकर्षय आत्ममन्त्रान् रक्ष रक्ष परमंत्रान् छिन्द छिन्द मम 104
SR No.009369
Book TitleMantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy