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________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर यह सर्व कार्य सिद्धि दायक, सर्वश्रेष्ठ चिन्तामणी महामंत्रों का महामंत्र है। इसकी महिमा देव, नाग, नरेन्द्र, इन्द्र आदि भी नहीं बता सकते हैं। इसके प्रभाव का वर्णन तो सिर्फ केवली भगवान ही कर सकते हैं। अन्य दूसरा नहीं। इस मंत्र के प्रभाव से पाप भक्षाणि विद्या, केवली विद्या, कर्ण पिशाची विद्या, अकारादि सभी विद्याये सिद्ध हो जाती हैं। यह मंत्र चिन्तामणि,. रतन के समान चिन्तित फल देता है, कल्पवृक्ष के समान कल्पना करने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं। सम्पूर्ण ऋद्धियाँ - सिद्धियां, सुख – समृद्धि शान्ति आनंद, वैभव-प्रभाव, धन-धान्य, प्रतिष्ठा - सम्मान, आदि इस महामंत्र से प्राप्त होता है। समस्त प्रकार के दुख, संकट, कष्ट वेदना, उपद्रव विघ्न – बाधाएँ परेशानियां इस मंत्र से दूर हो जाती हैं। सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। इस मंत्र के प्रभाव से अग्नि जल बन जाती है। जहर-अमृत में बदल जाता है। सर्प-फूल की माला बन जाता है। सूर्य चन्द्र के समान व चन्द्र सूर्य के समान हो जाता है। पृथ्वी स्वर्ग के समान हो जाती है, सर्व जीव जन्तु का विष नष्ट हो जाता है, शत्रु मित्र हो जाते हैं दुष्ट ग्रह शुभ हो जाते हैं। निशाचर भूत प्रेत शाकिनी डाकनी आदि मंत्र के स्मरण से भाग जाते हैं। यहां तक कि इस मंत्र के प्रभाव से नरकति का बंध छूट जाता है यदि तीन लाख जाप की जाये तो वचन सिद्धि प्राप्त होती है, फिर आपके मुंह से जो भी बात निकलेगी वह पूर्ण सही होगी। पांच लाख जाप की जाये तो नरक गति नहीं होगी और यदि सात लाख जाप की जाए तो समस्त समस्याओं का समाधान स्वयं ही हो जाता है। यदि 9 लाख जाप की जाये तो तीर्थकर प्रकृति का बंध हो सकता है। अर्थात् 9 लाख जाप से शाश्वत मोक्ष सुख प्राप्त होता है। अधिक क्या कहा जाए तीन लोक में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो इस महामंत्र के प्रभाव से प्राप्त नहीं की जा सकें। अर्थात् इस मंत्र से चारों पुरूषार्थ (धर्म, अर्थ, काम-मोक्ष) प्राप्त होते हैं। विधि - पूर्व दिशा की ओर मुख कर, पद्!मासन से बैठकर प्रतिमा जी के सामने अथवा श्री महामंत्र या श्री मंगलकलश के सामने, सफेद माला से अथवा स्वर्णमाला से, सफेद कपडे पहनकर, शुद्ध घी का दीपक सामने जलाकर, अगरबत्ती जलाकर शुद्धता पूर्वक एकाग्र मनन से प्रसन्नता पूर्वक, मन ही मन में 125000 जाप करना चाहिए। जाप के दिनों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, जमीन पर शयन करें तथा दिन में एक बार शुद्ध भोजन करें और कषायों का त्याग कर के संयमी जितेन्द्रिय होकर जीवन जीयें। ध्यान रहें कि प्रतिदिन एक निश्चित समय पर जाप करें और प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में ही जाप करें कम या अधिक नहीं तथा प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर बैठकर ही जाप करें अर्थात् स्थान न बदले और जब जाप पूरी हो जायें तब इस मंत्र का दशांश 103
SR No.009369
Book TitleMantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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