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________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र __मुनि प्रार्थना सागर ( 15 ) सुरेन्द्र मंत्र-ॐ ह्रां वषट् णमो अरहंताणं संवौषट् ॐ ब्लू क्लीं द्रीं द्रां ह्रीं क्रौ आ सः ॐ नमोऽहँ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ, च छज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व श ष स ह क्लीं ह्रीं क्रौं स्वाहा। विधि-मंत्राराधना १०८ बार जाप करें। (16) वर्द्धमान मंत्र- ॐ णमो भयवदो वड्ढमाणस्स रिसहस्स चक्कं जलं तं गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा विवादे वा थंभणे वा रणांगणे वा रायं गणे वा मोहेण वा सव्वा जीवसत्ताणं अपराजिदो मम भवदु रक्ख रक्ख स्वाहा। विधि- इस वर्द्धमान महाविद्या को उपवास करके एक हजार जप सुगंधित पुष्पों से करें, दशांश होम करें तो ये मंत्र सिद्ध हो जाये। फिर कहीं से भय आने वाला हो अथवा आ गया हो तो सरसों हाथ में लेकर सर्वदिशाओं में फेंक देने से आगत उपद्रव भय, परकृत विद्याएं सर्व स्तम्भित हो जाएंगे। घर में स्मरण मात्र से ही शान्ति हो जायेगी। इस परकृत उपद्रव शान्त मंत्र का विलक्षण फल गुरुगम्य है। (40) महामृत्युञ्जय मंत्र (1) महामृत्युञ्जय मंत्र- ॐ ह्रों ॐ जूं सः त्र्यम्बकं यजामहे भुर्भुवः सुगन्धि पुष्टि वर्द्धन उर्वा रुकमिक बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वरो भुर्भुव: जूं सः ह्रों फ नमः । विधि- प्रत्येक साधक को मृत्यु भय टालने व अकाल मृत्यु को समाप्त करने के लिए इससे बढ़कर मंत्र व अनुष्ठान नहीं है। सवा लाख मंत्र जप करने से यह मंत्र सिद्ध होता है। इसमें रोग निवारण की शक्ति है। मंत्र जाप का दशांश बिल्व फल तथा तिल लेकर हवन किया जाता है। जप से साधक का देह अन्तिम समय तक सुसंगठित, सुन्दर होता है। कुटुम्ब रक्षा, अकाल घात व बलाघात वत् अशुभ योगों हेतु सर्वाधिक मंत्र योग्य है। (२) महामृत्युंजय मंत्र - ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ हूँ णमो आइरियाणं ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं मम सर्वग्रहारिष्टान् निवारय-निवारय अपमृत्युं घातय-घातय सर्वशान्तिं कुरु-कुरु स्वाहा। विधि- दीप जलाकर धूप देते हुए नैष्ठिक रहकर इस मंत्र का स्वयं जाप करें अथवा अन्य द्वारा करावें। यदि अन्य व्यक्ति जाप करें तो 'मम्" के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जोड़ लें- अमुकस्य सर्वग्रहारिष्टान् निवारय आदि। इस मन्त्र का सवा लाख जाप करने से ग्रह बाधा दूर होती है। कम से कम इस मन्त्र का ३१ हजार जाप करना चाहिए। जाप के अनन्तर दशांश आहुति देकर हवन भी करें। (३) मृत्युञ्जय मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौ ह्र: णमो जिणाणं जीवन लाभं कुरु-कुरु स्वाहा। 132
SR No.009369
Book TitleMantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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