________________
मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
विधि- भोज पत्र पर मंत्र को लिखें और मोमबत्ती पर लपेटें फिर मिट्टी के कोरे घड़े को पानी से भरकर उसमें उसे डालने से दाहज्वर नाश होता है ।
( 6 ) तृतीय ज्वर का नाश मंत्र - ॐ झां झीं झौं झः ।
विधि - मंत्र से रंगीन डोरा वट करके २१ बार मंत्रित करके हाथ में बांधने से तृतीय ज्वर का नाश होता है।
(7) ज्वर-निवारण मंत्र : ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं श्रावय मम सर्व रोगान् प्लावय प्लावय रः रः रः स्वाहा ।
विधि : इस मंत्र को २१ दिन तक नित्यप्रति ५ माला फेरकर सिद्ध कर लें । फिर जल को २१ बार अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाने से एकान्तर ज्वर, रोज आने वाला ज्वर तथा सन्धिवात आदि सर्व रोग अवश्य ठीक होते हैं ।
( 8 ) सर्व ज्वर शान्त - ॐ नमो भगवते (नाम) सर्व ज्वर शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ॥ विधि - मंत्र लिखकर धूप देकर रोगी के गले में बांधें तो सर्व ज्वर शान्त और सन्निपात दूर होता है।
(9) ॐ नमो भगवते म्ल्वर्यं नमः स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र के जाप से सब प्रकार के विषम ज्वर दूर होते हैं।
(10) बुखार दूर करने का मंत्र - ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ॐ णमो उवज्झायाणं ॐ णमो आइरियाणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ णमो अरिहंताणं ।
विधि - एक सफेद चादर के किनारे को एक बार मंत्र पढ़कर मोड़ें और इस प्रकार १०८ बार मन्त्रित करके चादर को मोड़ते जायें फिर मोड़ देने के पश्चात उस चादर को रोगी को उड़ा दें तो बुखार उतर जाता है।
( 11 ) ज्वर नाशक मंत्र - ॐ ह्रीं अर्हं सर्व ज्वरं नाशय नाशय, ॐ णमो सर्वोषधिवंताण ह्रीं नमः ।
विधि - १०८ बार या २१ बार पानी मन्त्रित करके पिलावें तो सर्व ज्वर पीड़ा जाय ।
( 12 ) जीर्ण ज्वर - निवारण - नमस्कार मंत्र - ॐ ह्रीं णमो लोए सव्व साहुणं, ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ णमो अरहंताणं ।
विधि - एक सफेद धुली चद्दर लेकर, उसके कोने पर, एक मंत्र बोलें, एक गाँठ दें, फिर खोल दें, फिर मंत्र बोलें, गाँठ दें और खोल दें- इस प्रकार १०८ बार मंत्र बोले व गांठ दे तथा खोल दें। अन्तिम गांठ उसी तरह बँधी हुई रहने दें। वह गाँठ बँधी चद्दर रोगी को ओढ़ा दें। गाँठ वाला भाग रोगी के सिरहाने रखें। जब तक ज्वर नहीं छूटे, चद्दर रखें। एक दिन के अन्तर से, दो दिनों के अन्तर से, तीन दिनों के अन्तर से या
184