Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१38.
१५८
१५६
[19] kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
**** क्रं. विषय
पृष्ठ | क्रं. विषय ११५. द्वितीय प्रश्न -
१३५. इन्द्र का गमन
१५४ जलते हुए अंतःपुर को क्यों नहीं देखते? १३७ | १३६. उपसंहार ११६. नमिराजर्षि का उत्तर
१३७ द्रुमपत्रक नामक दसवां ११७. तीसरा प्रश्न -
अध्ययन १५६-१७६ . नगर की सुरक्षा की चिंता क्यों नहीं? १३६
१३७. जीवन की क्षणभंगुरता ११८. नमि राजर्षि का उत्तर
१५६ १३८. आयु की अस्थिरता
१५७ ११६. चौथा प्रश्न - प्रासाद, गृहादि निर्माण विषयक
१३६. मनुष्य जन्म की दुर्लभता १२०. नमि राजर्षि का उत्तर
१४०. पृथ्वीकायिक जीवों की कायस्थिति १२१. पांचवां प्रश्न -
१४१. अप्काय की कायस्थिति । १४२. तेजस्काय की कायस्थिति
१६० नगर की सुरक्षा विषयक
१४३, वायुकाय की कायस्थिति . १२२. नमि राजर्षि का उत्तर
१६०
१४४. वनस्पतिकाय की कायस्थिति १२३. छठा प्रश्न -
१६१ • शत्रु राजाओं को जीतने विषयक
१४५. बेइन्द्रिय की कायस्थिति १२४. नमि राजर्षि का उत्तर
१४६. तेइन्द्रिय जीवों की कायस्थिति .. १६२
१४७. चउरिन्द्रिय जीवों की कायस्थिति १२५. सातवां प्रश्न -
१६३ यज्ञ ब्राह्मण भोजन आदि के संबंध में १४५
१४८. पंचेन्द्रिय जीवों की कायस्थिति .. १६३ १२६. नमि राजर्षि का उत्तर
१४६. देव और नैरयिक की स्थिति १२७. आठवां प्रश्न
१५०. आर्य देश की दुर्लभता . गृहस्थाश्रम का त्याग कर संन्यास क्यों? १४६ १५१. सम्पूर्णेन्द्रियता की दुर्लभता १२८. नमि राजर्षि का उत्तर
१४७ १५२. धर्म श्रवण की दुर्लभता
१६७ १२६. नववां प्रश्न
१५३. श्रद्धा की दुर्लभता
१६७ हिरण्यादि भंडार की वृद्धि करने के संबंध में १४७ १५४. धर्माचरण की दुर्लभता
१६८ १३०. नमि राजर्षि का उत्तर १४८ १५५. इन्द्रिय बलों की क्षीणता
१६८ १३१. दसवां प्रश्न - प्राप्त काम भोगों को- १५६. सर्व शरीर की निर्बलता
१७० छोड़ कर अप्राप्त की इच्छा क्यों? १४६ | १५७. रोगों के द्वारा निर्बलता
१७० १३२. नमि राजर्षि का उत्तर . १५० | १५८. स्नेह परित्याग
. १७१ १३३. इन्द्र का असली रूप में प्रकट होना १५१ | १५६. त्याग की दृढ़ता
१७२ १३४. इन्द्र द्वारा स्तुति १५३ | १६०. मोक्ष मार्ग .
१७२
१६४
१६५
१६॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org