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|१२ | उपासक आनन्द
हे मनुष्य! जैसे तुझे अपना सुख प्रिय है, वैसे ही दूसरों को भी अपना सुख प्रिय है। तू सुख चाहता है, तो दूसरों को सुख दे। सुख देगा तो सुख पाएगा
सुख दीधां सुख होत है, दुख दीधां दुख होय। यह अनुभव-सिद्ध बात है। इसके लिए शास्त्रों को टटोलने की आवश्यकता नहीं है। मानव-शास्त्र अन्तर्मन के द्वारा ही देखा और समझा जाता है। ___ मनुष्य को सोचना चाहिए, कि मैं जो चेष्टाएँ कर रहा हूँ, आस-पास में उनकी प्रतिक्रिया कैसी होगी ? मेरे मन की हरकतों से दूसरों को आनन्द मिलेगा या वे दुख के क्लेश के अथाह सागर में डूब जाएँगे।
मनुष्य का मनुष्य के प्रति भाई जैसा सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। मगर आज तो भाई का भाई के प्रति सद्व्यवहार होना भी बड़ी बात समझी जाती है; परन्तु वास्तव में यह बड़ी बात है नहीं। बड़ी बात है, अपने पडौसियों के साथ सद्व्यवहार होना और जिन्हें दूर का समझा जाता है, उनके प्रति भी सहानुभूति रखना। मनुष्य और पशु-पक्षी :
मानव जाति का पड़ौसी कौन है? मनुष्य का पडौसी नारकी नहीं है और देवता भी नहीं है; उसका सन्निकटतर पड़ौसी है, पशु-जगत्। आज तक मनुष्य ने जो विकास और प्रगति की है, जिन सुख-सुविधाओं को हासिल किया है, और इस दर्जे तक पहुँचा है, उसमें मनुष्य का पुरुषार्थ तो है ही, परन्तु पशुओं का सहयोग भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। मनुष्यों की सभ्यता की अभिवृद्धि में पशुओं का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। पशु अनादिकाल से मानव-जाति के सहयोगी और सहायक रहे हैं। परन्तु उनके सहयोग के मूल्य को आज हम भूल-से गए हैं।
भारतवर्ष के इतिहास को देखिए। हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भी किया है, वह क्या अकेले ही उन्होंने कर लिया है? क्या अकेले इन्सान की बदौलत ही आज मानवजाति सभ्यता की इस सीढ़ी पर पहुँची है ? क्या उसमें पशुओं का कोई हिस्सा नहीं है? इन प्रश्नों का उत्तर केवल यही है, कि मनुष्य की इस उन्नति में पशुओं ने मनुष्य की बहुत अधिक सहायता की है। मानव-जाति की उन्नति का इतिहास इस बात का साक्षी है। ___मनुष्य अपनी माता का दूध पीता है और थोड़े समय पीकर छोड़ देता है। फिर गौ-माता या अन्य दुधारू जानवरों का दूध पीना शुरू कर देता है। हमारे शरीर में आज दूध से बनी हुई रक्त की जितनी भी बूंदें हैं, उनका अधिकांश गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं के दूध से ही बना है। अगर आप गम्भीरता-पूर्वक विचारें, तो निस्सन्देह
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