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२००। उपासक आनन्द ।
नीरोग रहना परम लाभ है। संतुष्ट रहना परम धन है। विश्वास सबसे बड़ा बन्धु है। निर्वाण सबसे बड़ा सुख है।
पियतो जायते सोको,
पियतो जायते भयं। पियतो विप्पमुत्तस्स,
नत्थि सोको कुतो भयं॥ प्रिय से शोक उत्पन्न होता है। प्रिय से भय होता है। जो प्रिय से मुक्त है, उसे शोक नहीं। कहाँ से भय होगा।
१४ पेमतो जायते सोको,
पेमतो जायते भयं। पेमतो विप्पमुत्तस्स,
नत्थि सोको कुतो भयं॥ प्रेम से शोक उत्पन्न होता है। प्रेम से भय। जो प्रेम से मुक्त है, उसे शोक नहीं, उसे भय कहाँ।
कामतो जायते सोको, कामतो जायते भयं। कामतो विष्ण-मुत्तस्स,
नत्थि सोको कुतो भयं॥ भोग से शोक उत्पन्न होता है। भोग से भय। जो भोग से मुक्त है, उसे शोक कहाँ? भय कहाँ?
अक्कोधेन जिने कोधं,
असाधु साधुना जिने। जिने कदरियं दानेन,
सच्चेन अलिक वादिन॥
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