Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 216
________________ बुद्ध-वचन । २०३ काय की चंचलता से बचा रहे। काय का संयम रखे। शरीर के दुश्चरित्र को छोड़कर शरीर से सदाचरण करे। २५ वचीप्पकोयं रक्खेय्य, वाचाय संबुतो सिया। वची दुच्चरितं हित्वा, __ वाचाय सुचरितं चरे॥ वाणी की चंचलता से बचे। वाणी का संयम रखे। वाणी का दुश्चरित्र छोड़कर, वाणी का सदाचरण करे। २६ मनोप्पकोपं रक्खेय्य, मनसा संबुतो सिया। मनो दुच्चरितं हित्वा, मनसा सुचरितं करे॥ मन की चंचलता से बचे। मन का संयम रखे। मन का दुश्चरित्र छोड़कर मन का सदाचरण करे। २७ कायेन संबुता धीरा, ___ अथो वाचाय संबुता मनसा संबुता धीरा, ते वे सुपरि संबुता॥ जो काय से संयत है। जो वाणी से संयत है। जो मन से संयत है, वे ही अच्छी तरह से संयत कहे जा सकते हैं। २८ न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे। भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ परि सुत्तमे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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