Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 212
________________ बुद्ध-वचन | १९९ । सभी दण्ड से डरते हैं, सभी को जीवन प्रिय है। अतः सभी को अपने जैसा समझ-कर, न किसी को मारे, न मरवाए। यही है सच्ची अहिंसा। हीनं धम्मं न सेवेय्य, पमादेन न संवसे। मिच्छादिटुिं न सेवेय्य, न सिया लोक-वड्ढनो॥ पाप कर्म न करे, प्रमाद में न रहे। असत्य धारणा न रखे। संसार बढ़ाने वाला न बने। जयं वे पसवति, दुक्खं सेति पराजितो। उपसन्तो सुखं सेति हित्वा जय-पराजयं॥ जय से वैर पैदा होता है, पराजित दुःखी रहता है। जय और पराजय दोनों को छोड़कर शान्त व्यक्ति सुख से सोता है। ११ नत्थि राग समो अग्नि, नस्थि दोससमो कलि। नत्थि खन्ध समा दुक्खा, नत्थि सन्ति परं सुखं'। राग के समान अग्नि नहीं। द्वेष के समान मल नहीं। स्कन्धो के समान दुःख नहीं। शान्ति से बढ़कर सुख नहीं। १२ आरोग्य परमालाभा, संतुट्ठी परमं धनं। विस्सास परमा आती, निब्वाणं परमं सुखं॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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