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१२
बुद्ध-वचन
१
न हि वेरेन वेरानि,
सम्मन्तीध कुदाचनं ।
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अवेरेन च सम्मन्ति,
एस धम्मो सन्नतमो ॥
वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता । अवैर से ही वैर शान्त होता है। यही सनातन नियम है।
1
२
असारे सार - मतिनो
सारे चासार-दस्सिनो ।
ते सारं नाधिगच्छंति,
सम्मा संकम्प गोचरा ॥
सार को सार और असार को आसार समझने वाले, सच्चे संकल्पों में संलग्न मनुष्य सार को प्राप्त करते हैं।
अप्पमादो अमत-पदं, घमादो मच्चुनो पदं ।
अप्पमत्ता न मीयन्ति,
ये पमत्ता यथा मता ॥
अप्रमाद अमृत पद है, प्रमाद मृत्यु का पद । अप्रमादी मनुष्य मरते नहीं और प्रमादी मनुष्य मृत के समान होते हैं।
४
यथा भमरो पुष्पं, aण्णगन्धं अहेठमं ।
पलेति रस मादाय,
एवं गामे मुनी चरे ॥
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