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१९८ । उपासक आनन्द
जिस प्रकार फूल के वर्ण या गन्ध को बिना हानि पहुँचाये भ्रमर रस को लेकर चल देता है, उसी प्रकार मुनि गाँव में विचरण करे।
५
मासे मास कुसग्गेन,
बालो भुञ्जेथ भोजनं ।
न सो संखत धम्मानं,
कलं अग्घति सोलसिं ॥
यदि मूर्ख मनुष्य महीने-महीने भर केवल कुशा की नोंक से भी भोजन करे, तो भी वह धर्म के जानकारों के सोलहवें हिस्से के बराबर नहीं हो सकता।
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६
जो सहस्सं सहस्सेन, संगामे मानुसे जिने ।
एकं च जयज्ज मत्तानं,
स वे संगाम जुत्तमो ॥
एक मनुष्य संग्राम में लाखों मनुष्यों को जीत ले और दूसरा अपने-आपको जीत ले, यह दूसरा मनुष्य ही संग्राम-विजेता है।
७
अभिवादन - सीलस्स,
निच्चं बद्धा य सेविनो ।
चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति,
आयु वण्णो सुखं बलं ॥
जो अभिवादन शील है, जो नित्य बड़ों की सेवा करता है, सुख तथा बल में अभिवृद्धि होती है।
८
सव्वे तसन्ति दण्डस्स, सव्वेसं जीवियं पियं।
उत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय न घातये ॥
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उसकी आयु,
वर्ण,
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