Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 209
________________ |१९६ । उपासक आनन्द । ज्ञानी पुरुष, संयम-साधक उपकरणों के लेने व रखने में कहीं भी किसी भी प्रकार का ममत्व नहीं करते। और तो क्या, अपने शरीर तक पर भी ममता नहीं रखते। लोहस्सेस अणुप्फासो, मन्ने अन्नयरामवि। जे सिया सन्निहिकामे गिही, पव्वइए न से॥ संग्रह करना, यह अन्दर रहने वाले लोभ की झलक है। अतएव में मानता हूँ कि जो साधु मर्यादा-विरुद्ध कुछ भी संग्रह करना चाहता है, वह गृहस्थ है—साधु नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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