Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 193
________________ १८० । उपासक आनन्द डाला गया है। व्रतधारी श्रावक में प्रारम्भ की कुछ प्रतिमाएँ पहले से ही विद्यमान होती हैं। अतः उनके लिए उसे विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता। जिसे श्रावक के व्रतों के पालन का अभ्यास नहीं होता, उसे प्रथम प्रतिमा से ही प्रयत्नशील होना पड़ता है। प्रथम प्रतिमा में सम्यग्दृष्टि अर्थात् आस्तिक दृष्टि प्राप्त होती है। इसमें सर्वधर्मविषयक रुचि अर्थात् सर्वगुणविषयक प्रीति होती है। दृष्टि दोषों की ओर न जाकर गुणों की ओर जाती है। यह प्रतिमा दर्शनशुद्धि अर्थात् दृष्टि की विशुद्धता—श्रद्धा की यथार्थता से सम्बन्ध रखती है। इसमें गुणविषयक रुचि की विद्यमानता होते हुए भी शीलव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि की सम्यक् आराधना नहीं होती। इसका नाम दर्शन-प्रतिमा है। द्वितीय प्रतिमा का नाम व्रत-प्रतिमा है। इसमें शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि तो सम्यक् रूप से धारण किये जाते हैं, किन्तु सामायिकव्रत एवं देशावकाशिकव्रत का सम्यक् पालन नहीं होता। तृतीय प्रतिमा का नाम सामायिक-प्रतिमा है। इसमें सामायिक एवं देशावकाशिक व्रतों की सम्यक् आराधना होते हुए भी चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि के दिनों में पौषधोपवास-व्रत का सम्यक् पालन नहीं होता। चतुर्थ प्रतिमा में स्थित श्रावक चतुर्दशी आदि के दिनों में प्रतिपूर्ण पौषध-व्रत का सम्यक् रूप से पालन करता है। इसका नाम पौषध-प्रतिमा है। पांचवीं प्रतिमा का नाम है नियम-प्रतिमा। इसमें स्थित श्रमणोपासक निम्नोक्त पाँच नियमों का विशेष रूप से पालन करता है :-१. स्नान नहीं करना, २. रात्रिभोजन नहीं करना, ३. धोती की लांग नहीं लगाना, ४. दिन में ब्रह्मचारी रहना एवं रात्रि में मैथुन की मर्यादा करना, ५. एक रात्रि की प्रतिमा का पालन करना अर्थात् महीने में कम से कम एक रात कायोत्सर्ग अवस्था में ध्यानपूर्वक व्यतीत करना। छठी प्रतिमा का नाम ब्रह्मचर्य-प्रतिमा है क्योंकि इसमें श्रावक दिन की भांति रात्रि में भी ब्रह्मचर्य का पालन करता है। इस प्रतिमा में सब प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग नहीं होता। ___ सातवी प्रतिमा में सभी प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग कर दिया जाता है, किन्तु आरम्भ (कृषि, व्यापार आदि में होने वाली अल्प हिंसा) का त्याग नहीं किया जाता। इस प्रतिमा का नाम है सचित्त-त्यागप्रतिमा। आठवीं प्रतिमा का नाम आरम्भ-त्याग प्रतिमा है। इसमें उपासक स्वयं तो आरम्भ का त्याग कर देता है, किन्तु दूसरों से आरम्भ करवाने का परित्याग नहीं कर सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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