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१७८ । उपासक आनन्द
रहते हैं। केवल योग दर्शन में ही चित्तवृत्तियों का विश्लेषण उपलब्ध होता है जिन्हें सामान्य भाषा में नास्तिक दर्शन कहा जाता है, वे हैं— जैन, बौद्ध और चार्वाक । बौद्ध दर्शन में चित्तवृत्तियों का काफी विस्तार के साथ विश्लेषण किया गया है। जैन दर्शन के अनुसार मुख्य आत्मतत्व होते हुए भी उसके विकास के बाधक रूप में शुभ योग और अशुभ योग को स्वीकार किया गया है। इस विषय पर आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचन्द्र तथा आचार्य शुभचन्द्र ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। चार्वाक दर्शन आत्मा के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करता । अतः उसके यहाँ पर किसी भी प्रकार की साधना पद्धति को स्वीकार करने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। इस प्रकार भारत के सभी अध्यात्मवादी दर्शनों ने आत्मा को केन्द्र मानकर उसकी साधना के प्रकार बतलाए हैं।
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