Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 203
________________ [१९०। उपासक आनन्द दन्तसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं। अणवज्जेसणिज्जस्स, गिण्हणा अवि दुक्करं॥ दाँत कुरेदने की सींक आदि तुच्छ वस्तुएँ भी बिना दिये चोरी से न लेना, (बड़ी चीजों को चोरी से लेने की तो बात ही क्या?) निर्दोष एवं एषणीय भोजन-पान भी दाता के यहाँ से दिया हुआ लेना, यह बड़ी दुष्कर बात है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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