________________
Tapmulamper
| समवसरण में प्रवेश । ५५ का पूर्ण रूप से पालन किया। आनन्द एक विवेक-शील गृहस्थ था। उसकी भक्ति अंधी नहीं थी। वह भगवान् के समवसरण में पहुँचा, तो वहाँ की सभी मर्यादाओं का उसने पालन किया। आनन्द श्रावक बना, भगवान् का परम भक्त हो गया। अतएव शास्त्र में उसे उपासक आनन्द कहा गया। जैन परम्परा में, गृहस्थ श्रमणोपासक कहा गया है।
कुन्दन-भवन, ब्यावर, अजमेर
२३-८-५०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org