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१४६ । उपासक आनन्द । दिन हमारे सारे साम्राज्य पर उसका अधिकार हो जायेगा, और हम धूल चाटते फिरेंगे।
विष्णु ने उन देवताओं को आश्वासन देते हुए कहा—अच्छा, मैं प्रबन्ध कर दूंगा।
कहते हैं, जब विष्णु ने बौने का रूप बनाया, ब्राह्मण का वेष धारण किया, और बलि राजा के दरबार में प्रवेश किया। वह राजा के सामने खड़े हुए तो राजा ने पूछा-क्या चाहिए, किस प्रयोजन से यहाँ आए हो। ___बौने ब्राह्मण ने कहा—हमें क्या चाहिए ? हमारे पास तो सभी कुछ है, किन्तु रहने की जगह नहीं है।
राजा बोला—जितनी चाहिए उतनी ले लो। कितनी जगह चाहिए ? बौने ने कहा-अधिक का क्या करना है। तीन पग जमीन बहुत होगी।
तब बलि ने कहा- यहाँ तक माँगने आए हो, और सिर्फ तीन पग ही जमीन माँग रहे हो। कुछ और माँग लो।
बौना बोला—नहीं, और कुछ नहीं चाहिए। इतनी जमीन ही मेरे लिए वस है। बलि—तो ठीक है। यही सही। तीन पग जमीन जहाँ पसंद हो, नाप लो।
उस समय विष्णु ने अपना विराट रूप बनाया, तो चाँद और सितारों को छूने लगे। शरीर बड़ा होगा, तो पैर भी उसी परिमाण मे बड़े होंगे। उन्होंने पृथ्वी के एक छोर पर एक पैर रखा, और दूसरे छोर पर दूसरा पैर रखा, तीसरा कदम रखने की कहीं जगह न बची। तब, कहते हैं, तो तीसरा कदम उन्होंने बलि की छाती पर ही रख दिया।
इस प्रकार बलि को संसार से विदा होना पड़ा, और देवताओं की रक्षा हो गई।
विष्णुकुमार की कथा भी बहुत कुछ इसी प्रकार की है। उसका मुख्य भाग तीन कदमों में जमीन नापना वहाँ भी बतलाया गया है। तीन कदमों में जमीन को नापने का यह जो ढंग है, वह तो पौराणिक है, आलंकारिक है। किन्तु हम अपने जीवन को देखें, तो सारा संसार एक ही पिण्ड है, और एक ही ब्रह्माण्ड है। आत्मा पिण्ड में रहती है। अतएव जो इसको अच्छा बनाते हैं, जीवन को पवित्र बनाते हैं, मन के छेदों को और वचन के छेदों को—जिनसे कि वासनाएँ आती हैं, बंद कर लेते हैं, और काम के छेदों को जिनसे हिंसा होती है, बंद कर लेते हैं, तो पिण्ड को नाप लिया जाता है। यही समग्र जीवन को तीन कदमों में नापना है। जो भी पाप आते हैं, इन्हीं तीन योगों से आते हैं। मन, वचन और काय का योग अपने आप में बड़ा भारी आस्रव है। जब तक हम इन तीन पर अधिकार नहीं कर लेते, पिण्ड पर भी अधिकार नहीं
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