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आस्तिक आनन्द । १०९ | ऋषि बोले—इस मूर्खता की बदौलत तो दुखी हो रहे हो। यही कायरता तो तुम्हारी दीनता और दरिद्रता का कारण है। इसे छोड़ो। देखो
यावन्जीवेत्सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य, पुनरागमनं कुतः॥ मूर्ख, एक दिन तेरा शरीर जलाकर भस्म कर दिया जाएगा, तब कौन तो लेने वाला और कौन देने वाला रहेगा।
इस प्रकार आस्तिक और नास्तिक का फैसला वर्तमान में ही है। कहाँ से आया है और कहाँ जाएगा, यह विचार ही जिसे नहीं है, और जो अपने वर्तमान अस्तित्व पर ही भरोसा करके बैठा है, वह नास्तिक है। - जैन-धर्म तो वर्तमान के विषय में भी कहता है, कि तुझे जो साधन मिले हैं, उनका अपने लिए और दूसरों के लिए उपयोग कर। अपने आपको समेट कर मत बैठ। समेट कर बैठेगा, तो तेरा सामाजिक जीवन बर्बाद हो जाएगा। ___आनन्द आज वैभव का स्वामी है, किन्तु वह अतीत को भूला नहीं है। अतीत में उसकी स्थिति कैसी-कैसी रही है, यह बात वह भली-भाँति जानता है। भूतकाल के दृश्यों को वह सामने रखता है। वैभव की असारता को समझता है। अतएव वह वर्तमान में ही नहीं भूला है। इसीलिए वह वर्तमान में भविष्य का निर्माण करने के लिए उद्यत है।
अतीत में जो रोटी बनाई है, उसका इस्तेमाल अभी हो रहा है। वह अभी पेट में जाकर समाप्त हो रही है। भविष्य की रोटी के लिए क्या व्यवस्था कर रहे हो। याद रखो, दूसरे के हाथ में जो रोटी पहुंच रही है, वह आगे के लिए बोई जा रही है। जो बोया था, वह पा रहे हो और जो बो रहे हो, वह पाओगे। तुम वर्तमान की चिन्ता करते हो, यह वृथा चिन्ता है, वर्तमान तो अतीत के फल के अनुरूप होगा ही, चिन्ता करनी है, भविष्य की। आज तो बीत रहा है, भविष्य सामने आ रहा है। उस विराट भविष्य की ही चिन्ता करो। उसके लिए व्यवस्था करो। सोचो आज सबकुछ पाया है, तो आगे भी कुछ ले जाना है, या नहीं।
जिसमें इस प्रकार की विचार-शीलता होगी, उसमें न्यायवृत्ति पनपेगी। इसके विपरीत, जो सोचता है, कि आगे का क्या पता है। जो सबका होगा, वही मेरा भी हो जाएगा; परलोक किसने देखा है। उसके अन्दर न्यायवृत्ति की भावना नहीं पनप
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