________________
[१२२ । उपासक आनन्द | मूंड़ लिया गया है, और उनमें भावना नहीं आई, तो वह व्यर्थ है। ऐसा धर्म अधिक दिनों तक जिन्दा नहीं रह सकता।
जैनधर्म के अनुयायी करोड़ों से लाखों की संख्या में आ गए, किन्तु जैनधर्म को इसकी चिन्ता नहीं है। हमें नाम की चिन्ता नहीं, काम की चिन्ता है। __ आपने इतिहास में पढ़ा होगा, कि बिहार प्रान्त जैनधर्म का प्रधान केन्द्र रहा है। किन्तु एक समय वहाँ के जैनी भगा दिए गए और तलवार की नोंक के द्वारा खदेड़ दिए गए। पुष्पमित्र ने इस काम के लिए अपनी बहुत बड़ी शक्ति लगादी। हज़ारों से अधिक ने अपने प्राणों का बलिदान दिया, किन्तु धर्म-परिवर्तन नहीं किया। जब वे दक्षिण और गुजरात में पहुँचे, तो वहाँ उन्हें बड़े-बड़े राजा और सम्राट मिल गए। उन्हें तलवारों की शक्ति मिल गई। फिर भी उन्होंने एक बार भी बदला लेने का विचार नहीं किया। उन्होंने नहीं सोचा, कि हम निकाले गए, सताए गए और मौत के घाट उतारे गए, तो आओ अब बदला ले लें। उनमें यह भावना और यह प्रकाश कहाँ से आया। वह आया 'जहासुहं में से। यही हमारा प्रकाशस्तंभ रहा है, और इसी की रोशनी में हम हज़ारों वर्षों से अपनी दुख-सुख भरी यात्रा करते चले आ रहे हैं। ___ हम जानते हैं, और हमारा दावा है, कि आखिरकार हमारा की सिद्धान्त विजयी होगा। हिन्दू और मुसलमान का प्रश्न इसी सिद्धान्त से हल होगा, और आज की समस्याएँ इसी 'जहासुहं' से हल होंगी। मार-काट या तलवार के जोर पर धर्मों का फैसला नहीं हुआ करता, और न कभी होगा ही।
जैनधर्म ने इन्सान की आत्मा को पहचाना है इसलिए उसने बार-बार यही कहा है-'जहासुहं'। जिसमें सुख उपजे वही करो।
जब विकास होगा, तब होगा। एक फूल है और अभी-अभी कली के रूप में, वृक्ष की डाल पर मुँह खोलने को तैयार हुआ है। उससे चाहा जाए कि अभी, इसी समय खिल जा। तो क्या वह खिल जाएगा। हाथ से उसकी पंखुड़ियों को बिखेर कर कोई कह दे, कि फूल खिल गया है, तो क्या वह वास्तव में खिल गया है। उस फूल को अभी फूलना है, और उसमें महक आनी है। उसे कुदरत के भरोसे छोड़ दो। तुम उसकी रक्षा कर सकते हो, उसे खिलने का मौक़ा दे सकते हो, परन्तु हाथ से बिखेर कर कहो, कि खिलो, खिलो और उसे महकने न दो तो इससे बढ़ कर मूर्खता क्या हो सकती है ?
हृदय का यह पुष्प भी खिलेगा। तुम उसकी रक्षा करने की तैयारी करो। जबर्दस्ती खिलाने का प्रयत्न मत करो। ऐसा करने से परिणाम उलटा होगा।
मैं एक गाँव में गया। वहाँ एक जुलाहा था। वह प्रेमी था, और अक्सर आया करता था। वह जरा से जीर्ण हो चुका था। गाँव के दूसरे लोग उसका मज़ाक किया करते थे, और उत्तर में वह मधुर मुस्कान से मुस्करा दिया करता था। Jain Education International
For Private & Personal Use Only
For De
www.jainelibrary.org