________________
जीवन के छेद । १४३ ध्यान ही नहीं देते, और सोचते हैं, हमारी नावें तो ठीक ही हैं। कमाण्डर का आदेश मिलते ही सभी नावें समुद्र में छोड़ दी जाती हैं। जिन नावों के छिद्र भली प्रकार से बन्द कर दिए गए हैं, वे नावें अपने लक्ष्य पर पहुँच जाती हैं।
मगर जिन नावों के छेद बन्द नहीं किए गए, उनमें पानी भरता रहता है, और वे समुद्र के पास नहीं पहुँच पातीं। वे समुद्र में डूब जाती हैं।
इसी प्रकार भगवान् महावीर एक विशाल जन-समूह या संघ के नायक हैं, कमाण्डर हैं। उन्होंने संघ रूपी बेड़े से कहा – संसार के इस विशाल - सागर को पार करना है, तो अपनी-अपनी नाव को ठीक कर लेना चाहिए। छेद बन्द कर लेने चाहिए। छेद वाली नावें संसार - समुद्र को पार नहीं कर सकती हैं ।
साधुत्व को अंगीकार करना, और श्रावकत्व को अंगीकार करना भी जीवन की नाव के छेद बन्द करना है। इस प्रकार छेद बन्द करके जीवन की नौका जब संसारसमुद्र में छोड़ दी जाती है, तो वह पार कर सकती है। छेदों को बन्द किए बिना पार होना सम्भव नहीं है ।
यह प्रश्न, जो मैंने आपके सामने रखा है, उस समय भी उपस्थित हुआ था, जब केश कुमार और गौतम का महान् सम्मिलन हुआ था ।
केशी स्वामी ने गौतम स्वामी से पूछा- बड़ा भारी समुद्र है, और लोग उसमें अपनी-अपनी नावें खे रहे हैं, किन्तु नावें तैर नहीं रही हैं, डूब रही हैं। मगर देखते हैं, कि आपकी नाव ठीक ढङ्ग से तैरती चली जा रही है, और वह महासमुद्र की लहरों के ऊपर से भी ठीक ढङ्ग से तैर रही है। इसका क्या कारण है ?
अण्णवंसि महोहंसि, नावा विपरिधाव | जंसि गोयमारूढो, कहं पारं गमिस्ससि ?
-उत्तराध्ययन
यह संसार बड़ा भारी समुद्र है, और अनन्त काल से हमारी नौका इसमें भटक रही है, डूब रही है । हे गौतम! आप जिस नाव पर सवार हैं, वह किस कारण किनारे की ओर बढ़ती चली जा रही है ?
स्वामी का प्रश्न सुन कर गौतम स्वामी बोले
जाउ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जाय निस्साविणी नावा, सा हु पारस्स गामिणी ॥
-उत्तराध्ययन
दूसरों की नौकाएँ डूब रही हैं, क्योंकि उनमें छेद हैं। छेदों के द्वारा उन नावों में पानी भर-भर कर ऊपर आ रहा है, और वे डूब रही हैं। किन्तु मैंने अपनी नौका के छेद बन्द कर लिए हैं, इसी कारण वह तैरती हुई दिखाई दे रही है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org