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| मा पडिबंध करेह । १३९ वास्तव में हमें जो कदम उठाना है, वह अभी क्यों न उठा लें। अभी अंगड़ाई ले रहे हैं। अभी साफा बाँध रहे हैं, अब नाश्ता कर रहे हैं और इस प्रकार एक कदम के बदले हजार कदम नाप रहे हैं। इसका अर्थ यही है, कि अभी वह चेतना जागी नहीं है, जो सिंह के सामने आने पर जाग उठती है। सिंह सामने आता दिखाई देता है, तो क्या कोई अंगड़ाई लेने को रुकता है। साफा बाँधने की चिन्ता करता है। उस समय साफा किधर ही पड़ा होगा, या बगल में दबा होगा और आप उसी समय भाग खड़े होंगे। उस समय हजार कदम का रास्ता एक कदम में नापने की कोशिश करेंगे। धन्ना और शालिभद्र ने कौन-सा मंत्र जपा था? यही तो
मा पडिबंधं करेह शालिभद्र प्रतिदिन एक-एक नारी का परित्याग कर रहे थे। सुभद्रा उनकी बहिन थी। यह खबर सुभद्रा को मिली। भाई के संसार-त्याग की खबर सुन कर उसे दुःख हुआ।
कथाकार कहते हैं, सुभद्रा अपने पति धन्ना सेठ को स्नान करा रही थी। उसे शालिभद्र का स्मरण हो आया, और आँखों से आँसू टपकने लगे। आँसू की एक बूंद धन्नाजी की पीठ पर गिरी। गरम बूंद गिरी तो उन्होंने सुभद्रा की तरफ देखा, और देखा कि सुभद्रा रो रही है।
धन्नाजी ने कहा-सुभद्रे! तुम रो रही हो। इस घर में आने के बाद तुम्हारी आँखों में कभी आँसू नहीं देखे गए। इस घर में कभी दुःख और कभी सुख भी रहा है, कभी-कभी कठिनाइयाँ और आपत्तियां भी आई हैं, मगर तुम्हें कभी रोते तो नहीं देखा। जब से तुम इस घर में आई हो, तुमने मेरा प्रेम पाया है। फिर आज रोने का क्या कारण है। ___ सुभद्रा बोली—आपके रहते मुझे क्या दुःख हो सकता है, भला आप मेरे सुख हैं, सौभाग्य हैं, सब कुछ हैं। मुझे केवल एक ही दुख है, और वह यह कि मेरा भाई दीक्षा लेना चाहता है। अब मेरे मायके में कोई नहीं रहेगा। वह एक-एक पत्नी को रोज त्याग रहा है, और जल्दी ही घर छोड़कर भगवान के चरणों में दीक्षित हो जाएगा।
भाई की चिन्ता बहिन के मन को व्याकुल कर रही है। सुभद्रा सोचती है—मेरे एक ही तो भाई है! जब जाती थी, चहल-पहल हो जाती थी। अब सूने घर में जाऊँगी, तो कौन मुझे बहिन कहकर पुकारेगा। मैं किसको 'भैया' कह कर संबोधित करूंगी।
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