________________
| इच्छा-योग-'जहासुई । १२३ मुझसे एक ने कहा—भगत जी से पूछिये, कि खेती की है ? ईख बोई है ? और ईख कैसे बोई जाती है।
मैंने उन्हीं के सामने बूढ़े से पूछा—क्या कहते हैं, यह भाई।
बूढ़े ने कहा—मैं तो जुलाहा हूँ, और जुलाहे का ही काम करता था। किन्तु एक बार किसी से जमीन का टुकड़ा लेकर थोड़ी ईख बो दी। चौथे-पाँचवे दिन खेत में पहुँचा, तो क्या देखता हूँ, कि सब अंकुर एक से नहीं हैं। सब एक साथ बोए थे, और अब देखा, कि अँकर सब एक सरीखे क्यों नहीं हैं। कोई पौधा बड़ा हो गया है, तो कोई छोटा रह गया है। तब मैंने एक छोटे-से पौधे को पकड़ लिया और उससे कहा-'तू छोटा कैसे रह गया।' उस पौधे के सिरे को पकड कर मैंने कहा'बड़ा हो जा।' ज्यों ही उसे बड़ा करने लगा, वह ऊपर को आने लगा। जब उसे मैंने जरा जोर से पकड़ कर कहा, कि ऊपर उठ, तो वह ऊपर उठने लगा और बाहर आ गया। वह उखड़ गया और सूख गया।
लोगों ने देखा, और मेरी हँसी की, और कहने लगे—यों तो तुम सभी पौधों को उखाड़ फेंकोगे।
बूढ़ा फिर बोला—हुजूर! मेरे बाप-दादाओं ने कभी ईख नहीं बोई। मैं ईख बोना क्या जानूं। मुझे क्या पता था, कि पौधे को बड़ा करने जाऊँगा, तो पौधा उखड़ जाएगा। यह एक प्रकार से अनाधिकार चेष्टा है।
भगत की कहानी सुनकर हमें हँसी आती है, परन्तु कभी-कभी हम भी क्या उसी के समान चेष्टाएँ नहीं करते। हमारे सामने कोई साधक आता है, और हम उसकी भूमिका नहीं देखते, उसके जीवन को नहीं देखते, उसकी मानसिक स्थिति को नहीं परखते, वह जागा है या नहीं, जागा है, तो कितनी मात्रा में जागा है यह जानने का प्रयत्न नहीं करते, और उससे कहने लगते हैं, कि यह नियम ले लो और वह नियम ले लो। खींचतान शुरू हो जाती है, और उसे बढ़ाने की धुन में उखाड़ कर ही फेंक देते हैं।
लाला लाजपतराय के विषय में आपने सुना ही होगा। वे पंजाब के शेर के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने सारे भारत में प्रतिष्ठा प्राप्त की। अमेरिका में अपने विचारों की धूम मचा दी। वह जगरावां के रहने वाले थे, और जैन थे। उनके परिवार में अब भी जैनधर्म का पालन किया जाता है। जब वह लाहौर में बी. ए. में पढ़ते थे—तो, एक बार अपने घर आए। वहाँ एक पुराने सन्त थे। लालाजी ने सोचा चलो, दर्शन कर आएँ! दर्शन करने गए, तो सन्त ने पूछा क्या नाम है ?
उत्तर मिला लाजपतराय !
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org