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१३६ | उपासक आनन्द
सकता। हाथ-पैर सूखें तो सूखें, सारे सरीर को कुछ नहीं मिल रहा है, तो न मिले ! मैं तो अपनी चीज़ अपने तक ही सीमित रखूँगा । ऐसी स्थिति में हाथ-पैर तो गिरेंगे हो किन्तु पेट भी क्या सुरक्षित रह पाएगा । पेट को अपनी रक्षा करनी है, तो जो कुछ उसे मिला है, उसे आवश्यकता के अनुसार अपने पास रख कर दूसरों को भी देना पड़ेगा।
इसी प्रकार वैश्य, धन या लक्ष्मी को समाज की आवश्यकता के अनुसार इकट्ठा करता है, और न्यायपूर्वक उसका वितरण भी करता है। यदि वह ठीक ढंग से बाँट रहा है, तो समाज रूपी शरीर भी सुव्यवस्थित रूप से चलता है, और वैश्य का भी काम चलता है।
शूद्र समाज के पैर माने गए हैं। पैर समूचे शरीर के भार को उठा कर चलते हैं, और शूद्र भी सारे शरीर की सेवा करता है। सेवा के बिना जीवन चल नहीं सकता। जिस प्रकार समाज की सुव्यवस्था के लिए चार वर्णों की पद्धति चली, उसी प्रकार वैदिक धर्म में जीवन की व्यवस्था के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गई। ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम - यह चार आश्रम बतलाए गए।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है, कि वर्ण- -व्यवस्था को तो जैन-धर्म ने स्वीकार किया, और भगवान् ऋषभदेव के द्वारा उसकी स्थापना होना माना, किन्तु उपर्युक्त चार आश्रमों की व्यवस्था को जैनधर्म ने स्वीकार नहीं किया। किसी भी जैनागम में आश्रम व्यवस्था का वर्णन और समर्थन नहीं किया गया है। इसका क्या कारण है?
एक वैदिक धर्मावलम्बी भाई मिले। वह कहने लगे-- हमारे यहाँ हो कदमकदम पर आश्रमों की बात आती है, किन्तु आपके यहाँ आश्रमों का पता ही नहीं है।
मैंने उनसे कहा- मौत वश में हो, तो हम आश्रमों का निर्माण करें। जब पच्चीस वर्ष गृहस्थाश्रम में व्यतीत हो चुकेंगे, तब कहीं वानप्रस्थाश्रम का नंबर आएगा । किन्तु जीवन का क्या पता है। इसीलिए जैनधर्म ने आश्रम - व्यवस्था को अङ्गीकार नहीं किया ।
जैन-धर्म तो महत्त्वपूर्ण चिन्तन लेकर आया है। वह कहता है - तू अपनी शक्ति देख ले। तू ब्रह्मचर्याश्रम में रहने योग्य है, या गृहस्थाश्रम में । वानप्रस्थाश्रम में रह सकता है, या संन्यासाश्रम में | तेरी क्षमता जिस आश्रम में रहने की आज्ञा देती हो, तू उसी में रह सकता है । यह नहीं, कि आज तू संन्यासी बनना चाहता है, और आश्रम - व्यवस्था अनुमति नहीं देती, और आदेश करती है, कि नहीं, पहले तुझे पच्चीस-पचास वर्ष दूसरे आश्रमों में बिताने होंगे, और उसके बात तू संन्यासी बन
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