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११२ । उपासक आनन्द
राजकुमार ने कहा- भली विचारी तुमने । अजी, वह और कोई होगा, जो बदल जाएगा। मैं राजा बनूँगा तो राजा की जगह बनूँगा; हमारी मैत्री में क्यों अंतर आ जाएगा। तुम मित्र रहोगे, तो तुम भी राजा बनोगे ।
सेठ के दोनों लड़कों ने कहा- ऐसी बात है । कभी जरूरत पड़ जाए, तो एक बार हमें भी राजा बना देना ।
राजकुमार ने कहा- मैं वचन देता हूँ, कि एक बार तुमको भी राजा बना दूँगा ।
कुछ समय के पश्चात् राजकुमार राजा बन गया, और सेठ के लड़कों ने दुकान की गद्दियाँ सँभाली। एक ने व्यापार किया और लड़खड़ा गया। घाटा पड़ गया। दुकान में पूँजी कम रह गई, और देना ज्यादा हो गया । कठिनाई में पड़ गया। माँगने वाले आने लगे। उसने सोचा कोई बात नहीं है। जब देना होता है, तो लेने वाले हजारों हो जाते हैं, किन्तु जब लेना होता है, तो देने को कोई नहीं आता ।
समुद्र में ज्यादा वर्षा होती है, और जहाँ आवश्यकता होती है, वहाँ नहीं होती । सेठ के लड़के ने इधर-उधर हाथ मारे, किन्तु कहीं सफलता नहीं मिली। उसे पूँजी न मिल सकी। तब उस राजा की याद आई। उसने सोचा- राजा ने वचन दिया था, तो उससे लाभ उठाने का यही उपयुक्त अवसर है। यह भागा-भागा राजा के पास गया। राजा के समक्ष अपनी स्थिति निवेदन की। राजा ने कहा- आप जो सहायता चाहें, माँग सकते हैं।
सेठ के लड़के ने कहा- आपने राजा बनाने का वचन दिया था।
राजा को अपने वचन याद थे; मगर यह सुनकर उसके पैर लड़खड़ा गए । फिर भी उसने सँभल कर कहा— अच्छा, एक पहर के लिए राजा बनाता हूँ।
राजा, सेठ को राजा बनाने का आदेश देकर अपने महल चला गया, और सेठ कूद कर सिंहासन पर बैठ गया।
राजा के मंत्रियों ने कहा - अभिषेक आदि की विधि तो हो जाने दीजिए और राजा के योग्य वस्त्र - आभरण भी धारण कर लीजिए। तब यह सिंहासन अधिक सुशोभित होगा ।
सेठ राजा बोला – मुकुट और वस्त्राभरण की क्या आवश्यकता है। हम तो राजा बन चुके ।
सिंहासन पर आसीन होकर उसने आदेश देना आरम्भ कर दिया — इतने रुपये मेरे घर भेज दो। लेने वालों से कहला दिया- जिनको लेना हो, अभी ले लो। जितने भिखारी और साधारण आदमी आए, तो उसने किसी को कुछ और किसी को कुछ
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