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९६ । उपासक आनन्द । दुर्योधन से साफ-साफ कह दीजिए, कि हमारा तुम्हारे साथ कोई सम्बन्ध नहीं। उसे अपने बीच से धक्का देकर निकाल दीजिए। उस एक के पीछे समग्र कुल का सत्यानाश न कीजिए।
धृतराष्ट्र ने कहा—दुर्योधन भला है या बुरा है, आखिर तो मेरा लड़का है। वही मेरे काम आएगा। भला-बुरा तो जनता की भाषा है, सत्य की भाषा नहीं है। मैं कैसे उसको परित्याग दूँ! मैं अपने ही प्राणों का परित्याग कैसे करूँ।
एक बार एक सन्त से मेरी बात-चीत हुई। उनकी उम्र काफी पक गई थी, बूढ़े थे। उनके शिष्य ने उन्हें भी गलत रास्ते पर पहुंचा दिया, और उनकी प्रतिष्ठा को धक्का लगने लगा। मैंने उनसे कहा—आप कब तक मोह में पड़े रहेंगे। इस लोभ को छोड़िए। सम्भव है, आप पहले परलोक चले जाएँ, या यह शिष्य आपको छोड़कर चला जाए। व्यक्ति तो क्षण-भंगुर है। आज है, कल नहीं। किन्तु सत्य क्षण-भंगुर नहीं है। वह आज है और कल भी है और आजकल नहीं, अनन्त काल तक रहने वाला है। वह अमर है और मिटने वाला नहीं है। __ परन्तु सन्त ने लाचारी प्रकट करते हुए कहा-आप ठीक कहते हैं, कवि जी। मगर क्या करूँ। भला या बुरा जैसा भी है, है तो अपना। अपने का त्याग कैसा!
मुझे रोष नहीं आया। मैंने सोचा-हमारे संघ की जो व्यवस्थाएँ हैं, वही व्यक्ति को मजबूर करती हैं। हममें एकता नहीं है। बूढे साधु अकेले रह जाएँ, तो कौन सारसम्भाल करे, कौन सेवा करे।
एक दिन कृष्ण ने घोषणा की थी जिसके पुत्र नहीं, उसका पुत्र मैं बनूँगा। जिसके पिता नहीं, उसका मैं पिता बनूँगा। जो नागरिक आत्म-कल्याण करना चाहें, वे पिता-पुत्र के भरोसे न रहें। मैं उनका हूँ। उस समय भारत की यह संस्कृति थी। __एक तरफ सत्य है और दूसरी तरफ असत्य है। तुम सत्य को ही महत्त्व दो, असत्य को महत्त्व मत दो। अपने कुल की प्रतिष्ठा में दाग मत लगने दो और मेरे--तेरे का भेद-भाव त्याग कर सेवा के लिए आगे बढ़ो। यह मेरा है, तो सेवा करूँ और यह मेरा नहीं तो क्यों सेवा करूँ। यह वृत्ति जब तक बनी रहेगी, समस्या ठीक तरह हल नहीं होगी।
उन साधु के सामने भी यही सवाल था, और धृतराष्ट्र के सामने भी यही सवाल था। धृतराष्ट्र से कहा गया, कि कुल के हित के लिए एक व्यक्ति दुर्योधन को त्याग दो। परन्तु धृतराष्ट्र की निर्बलता ने ऐसा नहीं होने दिया। परिणाम यह हुआ, कि दुर्योधन के साथ कौरव-कुल का भी सत्यानाश हो गया।
आगे नीतिकार कहते हैं—एक ओर सारे गाँव का हित हो, और दूसरी ओर कुल का हित हो, तो कुल के हित के लिए सारे गाँव के हित का विनाश मत करो। पहले
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