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|९४ । उपासक आनन्द । की वाणी की वर्षा होने पर भी उन श्रोताओं को कोई लाभ नहीं होता, जिनका मन उसको ग्रहण करने को तैयार नहीं होता। ___तीन तरह के श्रोता बतलाए गए हैं। एक होते हैं पाषाण के समान। पाषाण को लेकर पानी में डाल दिया जाए और दो-चार घण्टे बाद निकाला जाए, तो विदित होगा, कि उस पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा है। उसका अन्तरङ्ग तनिक भी आर्द्र नहीं हुआ है। पानी, पानी है और पत्थर, पत्थर है। इसी प्रकार कुछ श्रोता ऐसे होते हैं, जिन पर वाणी का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ता, जो घण्टों उपदेश सुनकर भी ज्यों के त्यों बने रहते हैं, वे पाषाण सदृश श्रोता हैं।
कुछ श्रोता कपड़े की गुड़िया या पुतली की तरह होते हैं । 'गुड़िया को पानी में डाल दिया जाए, और दो-चार घण्टे बाद निकाला जाए, तो महसूस होगा, कि वह भीतर तक भीग गई है। किन्तु थोड़ी देर धूप लगने पर वह सूख जाएगी और उसका अस्तित्व अलग ही रहेगा। इसी प्रकार जो श्रोता वाणी की धारा में भीतर तक आर्द्र हो जाते हैं, किन्तु थोड़े समय में दुनियादारी की धूप लगते ही फिर जैसे के तैसे हो जाते हैं, वे गुड़िया के समान मध्यम श्रेणी के श्रोता हैं। इनके जीवन में स्थायी रस नहीं पैदा होता।
तीसरी तरह के श्रोता मिश्री की डली के समान होते हैं। मिश्री की डली को पानी में डालो, और घण्टे दो घण्टे बाद देखो तो गायब। वह कहाँ चली गई। वह टटोलने पर भी कहीं नहीं मिलती है। आँख से गायब नहीं, स्पर्शेन्द्रिय से भी गायब हो जाती है। उसने अपना विराट रूप बना लिया है, और वह पानी के कण-कण में घुस गई है। चखने पर ही पता चलेगा, कि मिश्री उसके अन्दर तल्लीन है— उसमें रम गई है। एक-रस हो गई है। जहाँ पानी जाएगा, वहीं मिश्री भी जाएगी। इसी प्रकार कुछ श्रोता वाणी की धारा में अपने आपको लीन कर देते हैं। उनका जीवन रसमय बन जाता है, और जीवन का पूरा स्परूप उनके अन्दर फूट पड़ता है। ___ गौतम स्वामी ऐसे ही श्रोता थे। भगवान् के पास गए तो कितने आडम्बर के साथ गए। उनका दावा था, कि हम भगवान् को पराजित करेंगे, और उन्हें अपना शिष्य बनाकर आएँगे। वे चेला बनाने चले, किन्तु स्वयं ही चेला बन गए। कितना अहङ्कार भरा था, उनके मन में। गली-ऊँचे में से निकले तो यही घोषणा करते गए, कि महावीर को शिष्य बनाकर लौटेंगे! __ इतना अहङ्कार होने पर भी गौतम के मन में सत्य के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा थी। मन में था, कि सत्य सर्वोपरि है, और सत्य मिलेगा तो ग्रहण करेंगे। सत्य को स्वीकार करने में अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा की दीवार को आड़ी नहीं आने देंगे। जब सत्य
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