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आस्तिक आनन्द | १०५ किसी के दबाव से आकर धर्मक्रिया करने की अपेक्षा अपने अन्तःकरण की प्रेरणा से ही धर्मक्रिया करने से अधिक रस मिलता है । अन्तःकरण में वासनाओं को जीतने की लौ लग जाएगी, तो ऐसा न होगा कि चौदस को जागे और पूर्णिमा को सो गए। प्रमाद से आत्मा का पतन होता है ।
सिद्धान्त की बात यह है, कि आपको शरीर, इन्द्रियों और मन की बात सुनना बंद करना पड़ेगा, किन्तु यह तभी होगा, जब आत्मा में जागृति पैदा होगी । अतएव अपनी आत्मा को जगाओगे, तो आपका कल्याण होगा।
जब तक आत्मा जागृत नहीं होती, दीनता छाई रहती है। देखो न, चक्रवर्ती कैसी भाषा बोल रहा है। वह छह खंड का राजा है। जिसके पास चौरासी लाख हाथी, इतने ही घोड़े, इतने ही रथ और ९६ करोड़ पैदल हैं। बहुत विशाल साम्राज्य है, जिसका । इतना विशाल, कि सूर्योदय और सूर्यास्त उसके राज्य में होता है। देवता भी उसके सामने हाथ बाँध कर खड़े रहते हैं । किन्तु जब आत्मा को सुधारने की बात आई, तो गिड़गिड़ा कर कहता है— मैं गजराज हूँ और मैं कीचड़ में फँस गया हूँ। किनारे तक नहीं पहुँच सकता । धतेरे साम्राज्य को । धतेरे चक्रवर्त्तित्व को ।
यह भाषा स्वतन्त्र आत्मा की भाषा नहीं है। यह निर्ग्रथ की भाषा नहीं है, बल्कि गुलामों की भाषा है।
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आनन्द कहता है—' भगवन्! मैं इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा रखता हूँ। मेरा रोमरोम इस वाणी पर श्रद्धा की गहरी भावना रखता है। मैं इस पर प्रतीति करता हूँ । रुचि रखता हूँ। जो कुछ आपने कहा है, सब सत्य है । मैं इस प्रवचन को शिरोधार्य करता हूँ।
अपने उपर्युक्त कथन में आनन्द लगभग एकार्थक शब्दों का प्रयोग कर रहा है। आप कह सकते हैं, कि एक ही वाक्य बोलने से काम चल सकता था। फिर बार-बार वही बात क्यों बोली जा रही है। किन्तु जब मेघ गरजता है, और गड़गड़ाता है, तो मोर आवाज पर आवाज लगाता जाता है, और सारे वन को गुंजा देता है। वह बार-बार क्यों कूकता है। उससे कहो - अरे मोर! क्या तू पागल हो गया है। क्यों बार-बार कूकता है। इससे तेरा क्या मतलब है ?
मोर क्या उत्तर देगा। उसमें सामर्थ्य हो, तो यही कहे मेरे यहाँ हिसाब लगाने का धंधा नहीं है। मैं बहीखाता करने नहीं बैठा हूँ । मुझे पुनरुक्ति की परवाह नहीं है । यह तो मेरे मन की लहर है। मेघ गरजता है, और मै कूकता हूँ। कूके बिना मुझसे रहा नहीं जाता।
आनन्द ने प्रभु की वाणी सुनी है, और हृदय, श्रद्धा और प्रेम से भर गया है। वही श्रद्धा और प्रीति उससे पुलक रही है। वह जनता को सुनाने के लिए नहीं बार-बार
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